Wednesday, March 23, 2016

विवादों की फसल

देश के कुछ नेता आए दिन कोई न कोई विवादित बयान देते रहते हैं। उनके शब्द शूल की तरह चुभते हैं। वे तो नये-नये विवादों का तमाशा खडा कर चैन की नींद सो जाते हैं, लेकिन सजग देशवासियों की नींद उड जाती है। ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं ने तो यह मान लिया है कि विवादाग्रस्त भडकाऊ शब्दावली ही उनकी राजनीति को शिखर पर पहुंचा सकती है। ठंडक और शीतलता प्रदान करने वाली सीधी-सादी भाषा बोलने में उन्हें कमतरी का एहसास होता है। वैसे ओवैसी इकलौते नेता नहीं हैं जो तरह-तरह के पीडादायक, भडकाऊ बयानों को उछालकर सुर्खियां पाते रहते हैं। बीते दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि युवकों में देशप्रेम पैदा करने के लिए उन्हें भारत माता की जय के नारे लगाना सिखाना चाहिए। हमें नहीं लगता कि इसमें उनकी कोई गलत भावना छुपी है, लेकिन सांसद ओवैसी ऐसे उछल पडे जैसे उन्हें बिजली का करंट लग गया हो। उनका तमतमाता बयान आया कि भले ही मेरी गर्दन पर चाकू रख दें, लेकिन मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा, क्योंकि भारतीय संविधान में ऐसा नहीं लिखा है। नेताजी को मालूम था कि उनके यह अभद्र और अविवेकी बोल देशभर में चर्चा का विषय बनेंगे। विवादों को जन्म देने और उन्हें तूफान बनाने की दुष्टता में माहिर ओवैसी के बयान को लगभग सभी न्यूज चैनल वालो ने कई-कई घण्टों तक ऐसे दिखाया और सुनाया जैसे उनके पास हितकारी समाचारों का घोर अकाल पड गया हो। उनकी निगाह में इस उग्र नेता का बयान इतना महत्वपूर्ण था, जिसका जन-जन तक पहुंचना नितांत जरूरी था। सांसद ओवैसी तो गदगद हो गये, लेकिन लाखों देशवासी आहत होकर रह गए। ओवैसी की अजूबी बयानबाजी कि खबर को विभिन्न न्यूज चैनलों पर बार-बार देखने के बाद बिहार में स्थित गोपालगंज की एक उम्रदराज महिला सादिकन खातून के दिलो-दिमाग पर ऐसा असर पडा कि वे बेहोश हो गयीं। होश में आने के बाद उन्होंने अपनी पीडा और चिन्ता अपने परिजनों को बतायी। अहिंसावादी युगपुरुष महात्मा गांधी को अपना आदर्श माननेवाली सादिकन खातून कोई आम भारतीय नारी नहीं हैं। वे स्वतंत्रता आंदोलन में भाग ले चुकी हैं। अपनी उम्र के सौवें वर्ष के पडाव पर होने के बावजूद वे देश और दुनिया की खबरों से सतत रूबरू रहती हैं। वे इस हकीकत को नहीं भूली हैं कि देश को स्वतंत्र करवाने में कैसी-कैसी तकलीफें आयीं और कुर्बानियां देनी पडीं। भारत माता की जय का नारा लगाकर शहादत देने वाले भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और लाजपतराय आदि तमाम शहीदों के किस्से उन्हें अच्छी तरह से याद हैं।
असदुद्दीन का कहना है कि संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि भारत माता की जय बोली जाए। उनकी इस सफाई से तो यही लगता है कि वे संविधान का अक्षरश: पालन करते हैं। वे ऐसा कोई भी काम नहीं करते जो संविधान के खिलाफ हो। मुसलमानों का मसीहा बनने के लिए हर तरह का जोर लगाते इस सांसद के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद में घोर आपत्तिजन आग उगलने वाला भाषण दिया था। जिसका सार यही था कि यदि पुलिस अपने हाथ बांध ले तो देश के पंद्रह करोड मुसलमान १२५ करोड हिन्दुओं का सफाया करने की हिम्मत दिखा सकते हैं। ऐसे शर्मनाक उत्तेजक बोल कोई सिरफिरा ही बोल सकता है जो हिन्दुस्तान के कानून से खेलने की सोच के साथ-साथ हिन्दु-मुसलमानो को युद्ध की आग में झोंक देने की ठाने हो। अकबरुद्दीन विधायक हैं। मुसलमानों को हिन्दुओ से लडाकर आपसी सदभाव की हत्या करने के मंसूबे पालने वाला और कुछ भी हो, लेकिन संविधान का पालन करने वाला तो नहीं हो सकता। दोनों भाई एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। मुसलमानों को उकसा कर अपनी राजनीति की रोटियां सेकना ही इनका एकमात्र मकसद है। जावेद अख्तर का यह कथन काबिलेगौर है- 'जिन्हें गुमान हो गया है कि वह राष्ट्रीय नेता हैं, जिनकी हैसियत एक शहर या मुहल्ले के छुटभइये नेता से ज्यादा नहीं है। वे कहते हैं कि किसी भी कीमत पर भारत माता की जय नहीं बोलेंगे... क्योकि यह संविधान में नहीं लिखा है। वह बताएं कि संविधान में शेरवानी और टोपी पहनने की बात कहां लिखी है? जावेद कहते हैं कि भारत माता की जय बोलना मेरा अधिकार है। मैं कहता हूं कि - भारत माता की जय, भारत माता की जय, भारत माता की जय...।' दरअसल, यही सोच हर उस भारतवासी की है जो देश में अमन चैन और भाईचारा चाहता है। देश को विकास के पथ पर अग्रसित होते देखना चाहता है न कि विवादों के दलदल में धंसते। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं कि भारत माता की जय कहने से इंकार करने वालो की जीभ काटने पर लाखों रुपये के इनाम की घोषणा कर वही बेवकूफी की जाए जो अधिकांश न्यूज चैनल वाले इनकी खबरें बार-बार दिखा कर करते चले आ रहे हैं।
भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवाने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कभी भी शाब्दिक हिंसा का सहारा नहीं लिया। बापू के नाम की माला जपने वाले आज के नेता इतने बडे मुखौंटेबाज हैं कि एक दूसरे को नीचा दिखाने के मौके तलाशते रहते हैं। बापू जैसी शालीनता, सहनशीलता, त्याग और सादगी उनमें कहीं भी नजर नहीं आती। अहिंसा के पुजारी बापू के समूचे जीवन की वास्तविक तस्वीर देखनी हो तो सेवाग्राम में स्थित बापू कुटी आश्रम से बेहतर और कोई जगह नहीं हो सकती। विवादों के भूखे और भौतिक सुख सुविधाओं को पाने के लिए अपना ईमान तक बेचने वाले नेताओं को एक बार जरूर बापू के इस आश्रम में  जाना चाहिए। यकीनन उनकी आंखें खुली की खुली रह जाएंगी कि देश के महानायक ने बिना विवादों की फसल बोये, कम से कम सुविधाओं के साथ कैसे जीवनयापन करते हुए बडी से बडी अहिंसक लडाइयां लडीं और सफलता पायी। पत्रकार मित्र डॉ. सुधीर सक्सेना तथा राजेश यादव के साथ सेवाग्राम में स्थित बापू कुटी को करीब से देखने का अवसर मिला तो मन में विचार आया कि नागपुरवासी होने के बावजूद मैंने यहां आने में इतनी देरी क्यों लगा दी! हम तीनों को बापू की सादगी ने अपने मोहपाश में ऐसा बांधा कि उससे मुक्त होने को जी ही नहीं चाहता। कुटिया के प्रांगण में ही लगे फलक पर लिखी इन पक्तियों ने तो जैसे मंत्रमुग्ध ही कर दिया :
"धरती की माटी
धरती का जल,
हवा धरती की
धरती के फल
सरस बनें, प्रभु सरस बनें
धरती के तन और
धरती के मन
धरती के सारे भाई-बहन
विमल बनें, प्रभु विमल बनें"

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