Thursday, May 26, 2016

बेटियों के सपनों के हत्यारे

पत्रकारिता में होने के कारण तरह-तरह के लोगों से मिलना-जुलना लगा रहता है। वैसे भी नये चेहरों से मिलना मेरी अभिरुचि में शामिल है। पिछले दिनों हरियाणा के सोनीपत शहर में रहने वाले एक शख्स से मिलना हुआ। यह महाशय शहर के निकट स्थित एक गांव के जाने-माने किसान हैं। उनका नेताओं के बीच उठना-बैठना है। जब वे मिले तो काफी चहक रहे थे। साथी पत्रकार मित्र ने बताया कि जमींदार साहब दस दिन पहले ही अपनी दो बेटियों का बाल विवाह सम्पन्न करवा कर गांव से लौटे हैं। बीती शाम को इन्होंने अपने सभी रिश्तेदारों और दोस्तों को मटन-मुर्गा और दारू पार्टी दी थी। इस रंगारंग पार्टी में कई नेता, मंत्री, अफसर, पत्रकार और खाकी वर्दीवाले भी शामिल हुए थे। एक पढे लिखे रौबदार शख्स के इस परिचय ने मुझे उनसे सवाल करने को विवश कर दिया। "क्या आपको पता नहीं है कि बाल विवाह गैरकानूनी और अनैतिक कर्म है? आप तो पढे-लिखे हैं और समझदार लोगों के बीच उठते-बैठते हैं। आपने अपनी तेरह-चौदह वर्ष की बेटियो का विवाह कर यह अपराध क्यों कर डाला?" मेरा सवाल सुन वे मुस्कराये और फिर मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोले- "भाषण देना बहुत आसान है। मैंने तो कोई गलत काम नहीं किया है। मैं जमाने के रंग-ढंग से वाकिफ हूं। आपको भी तो पता होगा कि अपने यहां लडकियां कितनी असुरक्षित हैं। वासना के गिद्धों की निगाहें उन पर लगी रहती हैं। मैं यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई मेरी बेटी की तरफ निगाह उठा कर भी देखे। बेटियों को यौन हिंसा से बचाने के लिए मेरी निगाह में बाल विवाह से बेहतर और कोई रास्ता नहीं हो सकता। फिर हमारे नेता चौटाला जी की भी यही सीख है कि लडकियों को बलात्कारियों से बचाने के लिए उनकी शादी छोटी उम्र में कर दी जानी चाहिए। १८ साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते छोरियों के भी पर निकल आते हैं। प्यार-व्यार के चक्कर में पडकर परिवार की नाक कटाने से भी नहीं कतरातीं। मैंने जो किया है, बहुत सोच समझ कर किया है।" अपनी दोनों बेटियों के हाथ पीले कर मैं खुद को बहुत हल्का महसूस कर रहा हूं। अब मैं अपने सपनों को पूरा करने की तरफ ध्यान दूंगा। मुझे समाजसेवा करनी है। नेताजी ने वायदा कर रखा है कि मुझे आने वाले चुनाव में विधानसभा की टिकट जरूर देंगे। विधायक बन गया तो मंत्री भी बन ही जाऊंगा और प्रदेश और देश की सेवा कर नाम कमाऊंगा।" अभी उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि किसी का बुलावा आने के कारण वे यह कहकर चल दिए कि पत्रकार महोदय, शीघ्र ही आप से फिर मुलाकात होगी। आप मेरी सफलता की दुआ जरूर करना।
मध्यप्रदेश के मंदसोर शहर की बेटी नेहा कछावा का उसके मां-बाप ने बचपन में ही विवाह कर दिया था। वह तब मात्र बारह साल की थी। उसने इस विवाह को स्वीकार करने से इंकार करते हुए बाल विवाह के खिलाफ अपने स्वर बुलंद किए। वह अपने बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए कुटुंब न्यायालय गई और वहां अपने विवाह को निरस्त करने की मांग रखी। अदालत के लिए भी यह चौंकाने वाला मामला था। एक बच्ची सदियों से चली आ रही कुरीति से खुद को मुक्ति दिलाने के लिए उसकी शरण में आयी थी। अदालत ने भी नेहा के हौसले को सलाम किया और उसके विवाह को शुन्य करार देने में देरी नहीं लगायी। इतना ही नहीं ससुराल पक्ष को यह आदेश भी दिया गया कि नेहा के भरण-पोषण के लिए हर माह उसे १२०० रुपये दिए जाएं। हमारे देश में बाल विवाह को सख्ती से रोकने के लिए अनेकों प्रयास किये गये, लेकिन इसमें अभी पूरी तरह से सफलता नहीं मिल पायी है। बाल विवाह के हिमायती भी जानते हैं कि इक्कीस वर्ष से कम आयु के लडके और अठारह वर्ष से कम आयु की लडकी का विवाह कराना कानूनन अपराध है, फिर भी वे इस सदियों पुरानी प्रथा को निभाकर अपनी पीठ थपथपाने से बाज नहीं आते। ऐसा भी नहीं है कि छोटी आयु में विवाह कराने के पक्षधर माता-पिता अशिक्षित और गरीब हों। पढे-लिखे समझदार लोग भी इस कलंकित परिपाटी के कई फायदे गिना देते हैं।
बाल विवाह बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है। बाल विवाह करवाने वाले पता नहीं क्यों इस सच को नजरअंदाज कर देते हैं कि कच्ची उम्र में शादी होने से बच्चों के शरीर, दिमाग पर कितना बुरा प्रभाव पडता है। स्वास्थ्य के साथ-साथ भविष्य अंधकारमय हो जाता है। यह कहां का न्याय और अक्लमंदी है कि उन बच्चों का ब्याह कर दिया जाए जो इसका अर्थ ही नहीं जानते। संतान मां-बाप की सम्पत्ति नहीं होते, लेकिन फिर भी कुछ मां-बाप इस सच को जानते समझते हुए भी नजरअंदाज कर देते हैं और अपनी बेटियों का भविष्य दांव पर लगा देते हैं। कई ऐसी बच्चियां हैं जिन्होंने बाल विवाह कर एक ही झटके में नकार ऐसा चमत्कार कर दिखाया है कि उनकी हिम्मत और बगावत की दास्तान को पूरी दुनिया तक पहुंचाने को जी चाहता है। अलवर की कविता की उम्र जब मात्र ढाई वर्ष की थी तब उसका बाल विवाह कर दिया गया। जब वह बडी हुई तो उसे अपने साथ हुई बेइंसाफी का पता चला। उसने बचपन की शादी को ठुकराने की ठान ली। घर वाले बुरा मान गये। उन्हें यह बर्दाश्त नहीं हुआ कि उनकी बेटी उनकी इच्छा और आज्ञा की अवहेलना करे। उन्होंने उसका स्कूल से नाम कटवा दिया। समाज के बडे लोगों और पंचों ने दबाव डाला कि शादी तो हो चुकी है। अब उसे तोडा नहीं जा सकता। कविता ने कोर्ट जाकर बाल विवाह को शुन्य करवाने में सफलता पायी। आज वह इंजिनियरिंग कॉलेज अजमेर में कम्प्यूटर साइंस की पढाई कर रही है। इसी तरह से अजमेर की ही भानु की शादी १५ साल की उम्र में ५५ साल के व्यक्ति से कर दी गयी। वह दूसरे दिन ही ससुराल से लौट आयी। शादी तुडवाने के लिए कोर्ट की शरण ली। भानु नर्स बनना चाहती थी। अपने सपने को पूरा करने के लिए वह जी-जान से जुटी है। जोधपुर की ममता की भी ८ साल की उम्र में शादी कर दी गयी थी। बडी होने पर उसे पता चला कि उसका तो ब्याह हो चुका है। उसके पति की यह दूसरी शादी थी। वह भी बाल विवाह को निरस्त करने के लिए कोर्ट जा पहुंची। मामला अभी तक चल रहा है। ममता पढ-लिख कर डॉक्टर बनना चाहती है। उसकी हिम्मत और लगन बताती है कि डॉक्टर बनने का उसका सपना जरूर पूरा होगा।

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