Thursday, June 16, 2016

शैतान की उडान

मथुरा का कंस। रावण वृक्ष। आधुनिक डाकू और लुटेरा। शातिर राजनेताओं की नाजायज़ औलाद। उसे न जाने और भी कितने नाम दिये गए। दरअसल, उसे किसी भी नाम के दायरे में कैद करना आसान नहीं। ऐसे लोग कई-कई बहुरूपों के साथ बडे मजे से जिंदा रहते हैं। एक मरता है तो दस पैदा भी हो जाते हैं। समाज और देश के शत्रुओं से इन्हें खाद पानी मिलता रहता है और देखते ही देखते यह बीज से दरख्त बन जाते हैं। एक हवा-हवाई संगठन... स्वाधीन भारत सुभाष सेना के कर्ताधर्ता रामवृक्ष यादव ने जब धार्मिक नगरी मथुरा के जवाहरबाग में डेरा डाला तो देखने वालों ने भी अनदेखा कर दिया। उसने प्रशासन से मात्र तीन दिन तक ठहरने की इजाजत मांगी थी लेकिन उसके इरादे कुछ और ही थे। धीरे-धीरे उसने २७० एकड में फैले पूरे बाग पर अपने तीन हजार से अधिक चेले-चपाटों के साथ ऐसा कब्जा जमाया, जैसे यह बाग सरकारी न होकर उसकी खरीदी हुई सम्पत्ति हो। जनता तो जनता है। शासन और प्रशासन भी भविष्य के खतरे को भांप नहीं पाये। रामवृक्ष खुद को सुभाषचंद्र बोस का अनुयायी, सत्याग्रही और जयगुरुदेव का कट्टर चेला प्रचारित करता था। वह देश में सोने के सिक्के चलाने और पानी की कीमत से भी कम दाम पर पेट्रोल और डीजल दिलाने के सपने दिखाता था। ऐसे सपने किसे अच्छे नहीं लगते। यही वजह थी कि लोग उससे प्रभावित होने लगे। वह उन्हें इस सदी का मसीहा लगने लगा। उसकी टकराने की हिम्मत देखकर कई लोगों को यह भ्रम भी हुआ कि वह देश का कायाकल्प करने के लिए भारत की धरा पर आया है। शासन और प्रशासन भी इसकी मुट्ठी में है। तभी तो इसने सरकारी जमीन पर बेखौफ कब्जा जमा लिया है और बडे-बडे अधिकारी उससे खौफ खाते हैं। कई नेता और मंत्री उसके यहां हाजिरी लगाने के लिए आते हैं। मथुरावासियों ने बहुत से नेता देखे थे, लेकिन ऐसा अनोखा 'क्रांतिकारी' पहले कभी नहीं देखा था जो डंके की चोट पर कहता था कि अंग्रेजों के समय के कानून खत्म किए जाएं। पूरे देश में आजाद हिन्द बैंक करेंसी से लेन-देन हो और मांसाहार पर पूरी तरह से पाबंदी हो। यह रामवृक्ष के अजूबे बोलवचन और बगावती तेवर ही थे जिनकी वजह से उसके समर्थकों की संख्या में सतत इजाफा होता चला गया। सत्याग्रह के नाम पर रामवृक्ष अपनी मनमानी करने पर उतर आया। उत्तरप्रदेश में उसका डंका बजने लगा। धीरे-धीरे उसने पूरे देश में अपना नेटवर्क फैलाना शुरू कर दिया। एक समय ऐसा भी आया जब बिहार में भी उसकी तगडी पकड बन गयी। उसके हजारों समर्थक ऐसे थे जो उसकी एक आवाज पर कुछ भी करने को तैयार रहते थे। जिस तरह से आतंकी धर्म से जोडकर जिहाद के नाम पर हिंसा करते हैं ठीक उसी राह पर चल रहा था वह। उसके कई प्रभावशाली लोगों को भी अपना दास बना लिया था। छत्तीसगढ, झारखंड, महाराष्ट्र और उडीसा के नक्सलग्रस्त इलाकों से उसके यहां लोगों का आना-जाना शुरू हो गया था। वह सत्ता परिवर्तन की बात कर लोगों को उकसाता था। उसके यहां जुटने वाली भीड को भी यकीन था कि यह शख्स जो कहता है, वो करके दिखायेगा। एक दिन ऐसा जरूर आयेगा जब भारतवर्ष में एक रुपये में चालीस लीटर पेट्रोल और ६० लीटर डीजल  मिलने लगेगा। रामवृक्ष सत्ता हासिल करने में सफल होगा। देश में उसकी करेंसी चलेगी। सबकुछ बदल जायेगा। चारों तरफ खुशहाली होगी। कोई भी बेरोजगार और गरीब नहीं होगा।
सत्तर साल के रामवृक्ष की अकड देखते बनती थी। वह था तो अनपढ लेकिन उसमें नेताओं वाले सभी दुगुर्ण थे। उसे नक्सलियों और देश के अन्य शत्रुओं से हर माह लाखों रुपये की देन मिलती थी जिससे वह अपने संगठन का खर्चा चलाता था। जवाहर बाग को उसने अच्छी-खासी रिहायशी बस्ती में तब्दील कर दिया था। सबकुछ था यहां। यहां का एकमात्र राजा था रामवृक्ष। वह बेफिक्र और बेखौफ अपनी सत्ता चला रहा था। लेकिन हर शैतान का एक न एक दिन अंत तो होता ही है। १४ मार्च २०१४ को मथुरा के सरकारी बाग में कब्जा जमाकर आतंक का पर्याय बने इस कपटी के नेतृत्व में २ जून २०१६ को मथुरा में ऐसा खून-खराबा हुआ जिसमें दो पुलिस अधिकारियों सहित लगभग तीस लोग मारे गये और पचास से ज्यादा लोगों को लहुलूहान होकर अस्पताल की शरण लेनी पडी। देश का भाग्य बदलने  के नाम पर दहशतगर्दी करने वाले इस बाहुबलि को यह भ्रम भी था कि वह लोगों को जो सपने दिखाता है उससे उसकी प्रतिष्ठा शिखर पर जा पहुंची है। वक्त आने पर लाखों लोग आंखें मूंदकर उसके साथ चल पडेंगे। लेकिन सच तो यह है कि उसकी मौत के बाद उसके परिवार के लोगों ने ही उसका शव लेने से इंकार कर दिया। लगता है कि भले ही उसके हजारों समर्थक उस पर आंख मूंदकर भरोसा करते थे, लेकिन उसके परिवार वाले उसके असली चरित्र से वाकिफ थे। उसकी मौत के बाद कई चौंकाने वाले सच सामने आये। दूसरों को आलीशान भविष्य के सपने दिखाने वाला यह सरगना अपने वर्तमान को रंगीन बनाये हुए था। मुफ्त में बरसने वाले धन ने उसकी नीयत खराब कर दी थी। बाग के बीचों-बीच उसने अपना आलीशान आवास बना रखा था। जहां ब्युटी पार्लर था, जिसमें फेसवाश से लेकर विभिन्न ब्रांड के तेल और भी बहुत सी ऐसी-ऐसी महंगी अय्याशी की चीज़ें थीं जो रईसों के शौक का अहम हिस्सा हुआ करती हैं। उसके अनुयायी झोपडियों में गर्मी के मारे बेहाल होकर आधी-अधूरी नींद ले पाते थे, लेकिन वह वातानुकूलित आवास के मजे लूटता था! वह बीयर की बोतलें खाली करने का जबर्दस्त शौकीन था। वह स्वीमिंग पुल में नहाता था। और उसके समर्थकों को शुद्ध पीने के पानी के लिए तरसना पडता था। रामवृक्ष के दानवी कृत्यों की भी दास्तान बहुत लम्बी है। अच्छा हुआ जो उसका अंत हो गया। नहीं तो भविष्य में एक और कपटी और फरेबी नेता इस देश की छाती पर मूंग दलता नजर आता और आप और कुछ भी नहीं कर पाते...।

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