Thursday, June 23, 2016

यही तो है असली चेहरा

महाराष्ट्र में वर्धा, गढचिरोली के बाद चंद्रपुर जिले में शराब बंदी की जा चुकी है। शराब बंदी के बाद सरकारें सोचती हैं कि पियक्कड पीना छोड देंगे और शराब माफिया भी किसी दूसरे धंधे में लग जाएंगे। सोचने और होने में बहुत फर्क होता है। इस लम्बे फासले को पाटना आसान नहीं। यही वजह है कि शराब पर बंदिश लगने के बाद भी पीने वालों को शराब उपलब्ध हो ही जाती है। इसके लिए भले ही उन्हें दुगनी-तिगुनी कीमत देनी पडती हो। ऐसी किसी भी बंदिश का सबसे ज्यादा फायदा अवैध धंधेबाज नेता-अधिकारी और खाकी वर्दी वाले उठाते हैं। कानून इनके पीछे रेंगता रहता है और यह नये-नये तरीके ईजाद कर छलांगे लगाते हुए दौडते चले जाते हैं। काली दौलत और काली कमायी जहां पेशेवर अपराधियों को लुभाती है वहीं अच्छे-अच्छों के ईमान को डगमगा देती है और उन्हें अपराधी के कठघरे में खडा कर देती है। फिर भी उन्हें कोई फर्क नहीं पडता। पिछले महीने अहमदाबाद में गुजरात के विभिन्न शहरों और कस्बों में अवैध शराब की सप्लाई करने वाले एक बडे गिरोह का पर्दाफाश हुआ। उस गिरोह का सरगना एक बडे अखबार का पत्रकार था। देश के प्रदेश गुजरात में वर्षों से शराब पर पाबंदी लगी हुई है! अभी हाल ही में चंद्रपुर में अवैध शराब ले जा रहे दो शराब तस्करों को गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में एक तस्कर पुलिस से भिड गया। वह धौंस दिखाने लगा कि वह पत्रकार होने के साथ-साथ एक बडी राजनीतिक पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता है। उसकी पहचान बहुत ऊपर तक है। खाकी वर्दी वाले भी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की बदलती भूमिका पर सोचने को विवश हो गये। जिन्हें अपराधियों को बेनकाब करने और पकडवाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देनी चाहिए वही अगर आसानी से धन बनाने के लालच की नदी में डुबकियां लगाने लगेंगे तो देश का क्या होगा? असली तो असली, नकली पत्रकार भी देशभर में सक्रिय हैं। शहरों और गांवों में ऐसे कई पत्रकार हैं जिनके ठाठ देखते ही बनते हैं। कमाऊ सरकारी अधिकारियों, अवैध कारोबारियों और सरकारी ठेकेदारों को धमकाना और वसूली करना इनका पेशा है। इनके वाहनों पर 'प्रेस' लिखा होता है इसलिए पुलिस वाले इन पर हाथ नहीं डालते। आपसी मिलीभगत के खेल से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
देश में नयी सरकार बनने के बाद यह उम्मीद बलवती हुई थी कि देश के चहुंमुखी विकास और भ्रष्टाचार के खात्मे में अवरोध पैदा करने वाली ताकतें पूरी तरह से कमजोर पड जाएंगी। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। मौका पाते ही बहती गंगा में हाथ धोने वालों की भीड बढती चली जा रही है। कोई भी किसी से पीछे नहीं रहना चाहता। पकडे गए तो चोर, नहीं तो साहूकार और पूरी तरह से ईमानदार और धर्मात्मा। यह भी सच है कि सभी चोर और डकैत पकड में नहीं आते। मुंबई में एक बहुत बडा सडक घोटाला कर ठेकेदारों ने बीएमसी को ३५२ करोड की चोट दे दी। घटिया सामग्री से घटिया सडक और पुल बनाने वाले ठेकेदार शातिर भी हैं और चालाक भी। इस लूटमारी को ठेकेदारों ने बीएमसी के कई अधिकारियों के साथ मिलकर अंजाम दिया। सडकों के निर्माण की गुणवता की जांच का काम दो कंपनियों को सौंपा गया। यह कंपनियां भी भ्रष्ट निकलीं। इनके इंजीनियरों और जानकारों ने सडक बनाने वाले ठेकेदारों को ईमानदार होने का प्रमाणपत्र देते हुए घोषित कर दिया कि सडक निर्माण में कहीं कोई घोटाला नहीं हुआ है। हर काम दुरुस्त हुआ है। ठेकेदारों के खिलाफ शिकायत करने वालों के निजी स्वार्थ पूरे नहीं हुए इसलिए उन्होंने सडकों के घटिया निर्माण का हल्ला मचा दिया।
महाराष्ट्र में चाहे किसी भी पार्टी की सरकार हो, भ्रष्टाचार होना आम बात है। ऊंचे भ्रष्टाचारियों के कारनामों को दबाने की भरपूर कोशिशें होती हैं, लेकिन कुछ 'लडाकूओं' के कारण सच बाहर आ ही जाता है। कई नेता कुछ ऐसी मिट्टी के बने हैं कि हकीकत को नकारने में ऐढी-चोटी का जोर लगा देते हैं। वैसे भी अपनी पार्टी के बेईमानों और बिकाऊ लोगों को बचाने के लिए हर राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत लगाने में कोई कसर नहीं छोडता। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के लिए चुनौती बनने वाले सरकार के वरिष्ठ मंत्री एकनाथ खडसे को कहीं न कहीं अपने मंत्री होने का गुमान तो था ही इसलिए उन्होंने ऐसे-ऐसे काम कर डाले जिनके कारण उन्हें कुर्सी से हाथ धोना पडा। पहले खडसे के पीए की तीस करोड रुपये की रिश्वत लेने पर गिरफ्तारी हुई। मंत्री जी ने सफाई दी कि इस कांड से उनका कोई लेना-देना नहीं है। सवाल यह कि क्या कोई पीए अपने बलबूते पर इतनी बडी रिश्वत लेने की जुर्रत कर सकता है? सच तो यह है कि अधिकांश भ्रष्ट मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के पीए उनके दलाल की तरह काम करते हैं। अपने आका के इशारे पर मोटे ग्राहक फांसते हैं और आका को मालामाल कर मोटी दलाली पाते हैं। आपको ऐसे कई पेशेवर पीए मिल जाएंगे जिनके पास महंगी कारें और आलीशान कोठियां हैं तथा दुनिया भर की सुख-सुविधाओं की भरमार है। अंडरवर्ल्ड सरगना दाऊद इब्राहिम से मंत्री खडसे की फोन पर बातचीत होने की धमाकेदार खबर ने भी ने भी खूब सुर्खियां बटोरीं। इस खबर को दबाने की कोशिशें चल ही रही थीं कि यह विस्फोट हो गया कि मंत्री महोदय ने अपनी पत्नी और दामाद के नाम पर करोडों की सरकारी जमीन एकदम माटी के दाम पर खरीदी है। महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने के सपने देखने वाले खडसे ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देने को विवश कर दिया जाएगा। उन्हें बेनकाब करने में आम आदमी पार्टी की पूर्व नेता अंजली दमानिया ने जो हिम्मत दिखायी उसकी कहीं कोई चर्चा नहीं है! अंजली अगर साहस नहीं दिखातीं तो खडसे का असली चेहरा सामने नहीं आ पाता।

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