Thursday, July 7, 2016

गलत और सही का फैसला

राजस्थान के उदयपुर के निकट स्थित एक गांव की रहने वाली शांता को अपने पति के असहनीय दुर्व्यवहार के कारण अलग रास्ता चुनने को मजबूर होना पडा। वह कब तक शराबी, कबाबी, जालिम पति के साथ बंधी रहती। एक दिन वह अपने लिव-इन पार्टनर लालूराम के साथ घर से भाग गई। उसका पति भंवरलाल आग-बबूला हो उठा। मेरी घरवाली ने किसी गैर के संग रफू-चक्कर होने की सोची कैसे... कौन मर्द अपनी बीवी पर हाथ नहीं उठाता। यही तो मर्दानगी की निशानी है। इसको तो ऐसा सबक सिखाऊंगा कि इसका हश्र देखकर कोई दूसरी जनानी पति के साथ बेवफाई करने की कल्पना करने से पहले लाख बार सोचेगी। साली बदजात। गांववालों को भी भंवरलाल के साथ हमदर्दी थी। उनका भी यही सोचना था कि सात फेरे लेने के बाद पत्नी की चिता पति के घर से ही उठनी चाहिए। पत्नी पर हाथ उठाना और बेइज्जत करना तो पति का जन्मसिद्ध अधिकार है। पति के डंडे से ही पत्नियां काबू में आती हैं। २० जून २०१६ को शांता और लालूराम को ढूंढकर गांव लाया गया। भीड ने दोनों के कपडे उतारे, नग्न परेड कराई और दो दिनों तक जानवरों की तरह खूंटे से बांधे रखा। दोनों ने एक बहुत बडी गलती यह भी की थी कि उन्होंने एक साथ रहने की शुरुआत करने से पहले गांव के बुजुर्गों की स्वीकृति नहीं ली थी। मीणा जनजाति के 'नाता' रिवाज के मुताबिक कोई भी अपने वैवाहिक संबंध को तभी समाप्त कर सकता है जब वह क्षतिपूर्ति दे। शांता ने तो अपने पति भंवरलाल को छोडने से पहले उसको पैसे नहीं दिए थे और समुदाय के लोगों को भी अपने फैसले से अवगत नहीं कराया था। शांता का लिव-इन पार्टनर और उसका पति, दोनों ही मीणा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और दोनों का एक ही गोत्र है, इसके चलते ही मीणा समुदाय के नियमों के मुताबिक शांता के दूसरे रिश्ते को अस्वीकार कर दिया गया। शांता को नग्नावस्था में उसके पति के कंधे पर लादकर तीन किलोमीटर तक दौडाया गया। जहां भी वह थक कर रूकता वहीं ग्रामीण उसपर हमला बोल देते और डंडे, जूते-चप्प्ल बरसाते। एक अकेली नारी को अमानवीय बर्बर  सजा देकर ग्रामीणों को बेइंतहा खुशी हुई तो पति भंवरलाल का भी गर्व से सीना और चौडा हो गया। उसकी मर्दानगी भी तृप्त और संतुष्ट हो गयी। शांता फिर भी नहीं झुकी। उसने अपना फैसला बदलने से इंकार कर दिया। बहुत कम नारियां शांता की तरह अपनी राह और किस्मत बदलने का साहस दिखा पाती हैं। इज्जत की खातिर उन्हें बिना मुंह खोले घुट-घुट कर मरना मंजूर होता है। अपने देश में आज भी कई शहरी और ग्रामीण इलाकों में शादी ब्याह के मामले में युवतियों को खुद का निर्णय लेने की आजादी नहीं है। अपवादों को छोड दें तो यही सच्चाई है।
घर वाले जो फैसला लेते हैं उसे लडकियों को मानना ही पडता है। बाद में उनके साथ कैसी बीतती है इसकी कतई चिन्ता नहीं की जाती। मां-बाप की तरह लडकियां भी धनवान खाता-पीता परिवार देखकर लडके को बिना जांचे-परखे शादी के बंधन में बंध जाती हैं और फिर जीवनभर चुपचाप खून के आंसू पीते हुए नर्क भोगती रहती हैं। दरअसल वे इसे ही अपना मुकद्दर मानते हुए कोई दूसरा निर्णय लेने की हिम्मत ही नहीं कर पातीं।
आदिवासी युवती ममता की हासंदा के झारखंड भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी के बेटे के साथ शादी की बात पक्की हो गयी थी। विधायक के बेटे के साथ शादी होने की कल्पना ने ही ममता को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था। उसकी खुशियों का कोई पार नहीं था। उसके परिजनों के साथ-साथ सारा गांव गर्वित और प्रफुल्लित था। पहली बार किसी गांव की बेटी का ब्याह किसी बडे नेता के बेटे के साथ सम्पन्न होने जा रहा था। शादी की निमंत्रण पत्रिका बांटने के दौरान ममता को कहीं से खबर लगी कि उसका होने वाला पति मुन्ना अय्याश प्रवृत्ति का है। उसके किसी लडकी से जिस्मानी रिश्ते हैं यह खबर भी ममता तक पहुंची कि वह लडकी मुन्ना पर यौन शोषण के आरोप लगा रही है। ममता के मन-मस्तिष्क में विचारों और सवालों की आंधी चल पडी। अब वह क्या करे? क्या वह सब कुछ भूल-भालकर चरित्रहीन लडके से शादी कर ले? संथाली समाज में शादी तोडना बहुत बुरा माना जाता है। परिवार की भी बदनामी होती है। समय बहुत कम था और ममता को बहुत बडा फैसला लेना था। सोचने-विचारने के बाद ममता ने यही निष्कर्ष निकाला कि भले ही मुन्ना के पिता विधायक हैं, धनवान हैं पर उनका पुत्र तो चरित्रहीन और नालायक ही है। ऐसे लडके के साथ वह कभी खुश और संतुष्ट नहीं रह पायेगी। उसने मुन्ना से शादी न करने का फैसला लेकर सभी को चौंका दिया। यह २० जून २०१६ की बात है। २७ जून की शादी सम्पन्न होनी थी। पिता ने विधायक तक बात पहुंचा दी। नेताजी ने दबाव तंत्र भी अपनाया, लेकिन ममता नहीं मानी। पूरा परिवार उसके साथ था। ममता कहती है शादी के लिए न कहना आसान नहीं था। फिर लगा कि यह जिंदगी का सवाल है, अभी चुप रह गई तो कभी खुद को माफ नहीं कर पाऊंगी। मैट्रिक तक की पढाई कर चुकी ममता को स्कूल में भी यही पढाया गया था कि गलत और सही का फैसला सही समय पर करना जरूरी है। गलत का विरोध करने में सकुचाना और घबराना नहीं चाहिए। समय बीत जाने के बाद पछतावे के अतिरिक्त और कुछ नहीं बचता। देश में जगह-जगह नारियों के उद्धार के लिए नारी निकेतन खोले गए हैं। अधिकांश नारी निकेतन नेताओं और समाज सेवकों के द्वारा संचालित किये जाते हैं। बीते सप्ताह मध्यप्रदेश के शहर सतना में स्थित नारी निकेतन से भागने को मजबूर हुई दो युवतियों ने वहां के सच को इन शब्दों में बयां किया :
"नारी निकेतन में हम लोगों पर देहव्यापार करने का दबाव बनाया जा रहा था। आधी रात के बाद असमाजिक तत्व आकर हमारे साथ जबरदस्ती करते थे। उनसे बचने के लिए हम बाथरूम में छिप जाते थे। एक रात कुछ बदमाश घुस आए और हमारे यौन शोषण पर उतारू हो गए। खुद को बचाने के लिए हमने सब्जी काटने वाली हंसिया को अपना हथियार बनाया और उन पर टूट पडीं। हमारा उग्र रूप देखकर आखिरकार वे भागने को मजबूर हो गए। नारी निकेतन के वार्डन, सहायक वार्डन और चौकीदार पहले भी यहां लडकियों से देह व्यापार कराते रहे हैं।"
ये युवतियां अगर हिम्मत नहीं दिखातीं तो नारियों के उद्धार और सुधारगृह कहलाने वाले नारी निकेतन की शर्मनाक सच्चाई सामने नहीं आ पाती। युवतियों ने बताया कि नारी निकेतन में रात को वार्डन व अन्य कर्मचारी घर चले जाते थे। एक वृद्ध महिला व चौकीदार रहती थीं। रात को सीसीटीवी कैमरा भी बंद कर दिया जाता था। वासना के खिलाडी बेखौफ आते थे और लडकियों का देहशोषण करते थे। नारी निकेतन में देह व्यापार के लिए दबाव बनाये जाने के साथ-साथ युवतियों को बेचने के अपराध को भी अंजाम दिया जा रहा था। डेढ-दो लाख रुपये में बेबस युवतियों को दरिंदों के हवाले करने के बाद रजिस्टर में लिख दिया जाता था कि उनकी शादी हो गई है। नारी निकेतन के दुष्कर्मों का पर्दाफाश करने वाली युवतियों को भी दो-दो लाख में बेचने का सौदा कर दिया गया था। व्यापारी उन्हें लेने के लिए आने ही वाले थे। इसकी भनक लगने पर वे फौरन भाग निकलीं।

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