Thursday, September 1, 2016

शराब बंदी की हकीकत

बिहार में जहरीली शराब पीने से १८ लोग मौत के मुंह में समा गए। कुछ को अपनी आंखों की रोशनी गंवानी पडी। नीतीश कुमार ने प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहले शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर अपनी पीठ थपथपायी थी। वे यकीनन इस सच को भूल गये थे कि शराबबंदी की घोषणा करना आसान है, उसे यथार्थ का जामा पहनाना बेहद मुश्किल है। इतिहास गवाह है कि पहले भी जिन-जिन प्रदेशों में शराब बंदी की गयी, वहां वास्तव में शराब मिलनी बंद नहीं हो पायी। अवैध शराब बनाने और बेचने वालो की निकल पडी। ऐसा तो हो नहीं सकता कि बंदी के बाद खुलने वाले विभिन्न दरवाजों के असली सच से मुख्यमंत्री अनभिज्ञ रहे हों। गोपालगंज में विषैली शराब पीने से १८ लोगों की हुई मौत ने यह संकेत तो दे ही दिये हैं कि बिहार में भी शराब बंदी का वही हश्र हो रहा है जो कभी हरियाणा में हुआ था और गुजरात तथा अन्य बंदी वाले प्रदेशों और शहरों में होता चला आ रहा है। लोग अवैध शराब पीकर मरते रहते हैं और शासन और प्रशासन की जिद और अकड का तंबू तना रहता है।
गोपालगंज में जब जहरीली शराब पीने की वजह से लोगों के मौत के मुंह में समाने और बीमार पडने की खबरें आयीं तो जिला प्रशासन ने पहले तो यही प्रचारित किया कि यह आम मौते हैं। इनका नकली शराब से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन मीडिया ने जब प्रशासन को बेनकाब करने का अभियान चलाते हुए विषैली शराब को ही मौतों की असली वजह बताया तो सरकार को मजबूरन सच को स्वीकार करना पडा। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने भी उस हकीकत को उजागर कर दिया जिसे दबाया और छिपाया जा रहा था। यह कहना कतई गलत नहीं कि विषैली शराब के कहर से हुई मौतों की असली दोषी सरकार और पुलिस ही है। लोग शराब से तौबा कर लें इसके लिए सरकार ने कानून तो यकीनन बहुत क‹डा बनाया है, लेकिन लोगों में उसकी दहशत का नितांत अभाव है। बिहार के निवासी घर या बाहर शराब नहीं पी सकते। घर में शराब का रखना भी घोर अपराध है। किसी दूसरे प्रदेश से बिहार में जाने वालों के लिए शराब लेकर जाने पर भी बंदिश है। बिहार में शराब बंदी का उल्लंघन करना बहुत महंगा पड सकता है। अगर शराब के उत्पादन और विक्रय के चलते किसी ग्राहक की मौत हो जाती है तो उत्पादक और विक्रेता को फांसी तक की सजा हो सकती है। अवैध शराब पीने की वजह से यदि कोई शारीरिक अपंगता का शिकार हो जाता है तो भी फांसी की सजा या दस लाख रुपये जुर्माना देना पड सकता है। सार्वजनिक जगहों पर शराब पीने वालों को एक लाख रुपये तक का जुर्माना और पांच से सात साल तक की जेल हो सकती है। ताज्जुब है कि इतना कडा कानून भी शराब बंदी को सफल नहीं बना पाया। एक सच यह भी खुलकर सामने आया है कि शराब पर प्रतिबंध लगाये जाने के बाद से भ्रष्ट पुलिस वालों और नेताओं की चांदी हो गयी है। कई आबकारी विभाग वाले भी मालामाल हो रहे हैं। जब शराब पर पाबंदी नहीं थी तब विभिन्न करों के रूप में धन सरकारी खजाने में आता था, अब शराब के अवैध धंधेबाजों की तिजोरियों में समा रहा है। अवैध शराब के निर्माता, विक्रेता तस्करी के नये-नये तरीके इजाद कर प्रशासन की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। यह भी देखने में आ रहा है कि प्रशासन के कई बिकाऊ चेहरों की अवैध शराब के धंधे में सहमति और साझेदारी है। शराब माफियाओं को नेताओं का भी भरपूर संरक्षण मिला हुआ है। रेलगाडियों, बसों, ट्रकों, कारों आदि से जहां-तहां शराब पहुंचाने के परंपरागत तरीकों के साथ-साथ जलमार्ग से भी शराब तस्करी को अंजाम दिया जा रहा है। शराब तस्कर गंगा व कोसी के अलावा अन्य नदियों के रास्ते बंगाल, झारखंड, उत्तरप्रदेश तथा नेपाल से शराब मंगाकर बिहार के कोने-कोने में पहुंचा रहे हैं। मरीजों के अस्पताल पहुंचाने वाली एम्बुलेंस भी शराब तस्करी का सुरक्षित माध्यम बन चुकी हैं। गत माह कुछ प्राइवेट नर्सिंग होम के एम्बुलेंस चालकों को पुलिस के द्वारा गिरफ्तार करने के बाद यह चौंकाने वाला सच सामने आया कि अनेकों प्राइवेट नर्सिंग होम के एम्बुलेंस चालक शराब माफिया के हाथों का खिलौना बन चुके हैं। शराब माफिया जानते हैं कि अस्पतालों की एम्बुलेंस मरीजों की सुविधा के लिए चलायी जाती हैं। इसलिए पुलिस उन्हें रोकती-टोकती नहीं है। हमारे देश की पुलिस का काम करने का तरीका किसी से छिपा नहीं है। जब से बिहार में शराब बंदी हुई है, पुलिस की मनमानी में अभूतपूर्व ईजाफा हुआ है। ईमानदार वर्दीधारी तकलीफ में हैं और बेइमानों की तानाशाही ने कानून का पालन करने वाले नागरिकों का जीना हराम कर दिया है। नये-नये माफियाओं का जन्म हो रहा है जो साम, दाम, दंड, भेद की नीति पर चलने में यकीन रखते हैं। इन्हें अवैध धंधों को अंजाम देने में महारत हासिल है। शराब बंदी का फायदा उठाने वाले एकजुट हो चुके हैं ऐसे में यह तय है कि शराब पर प्रतिबंध से दबंगों की किस्मत खुल गयी है। सरकार अगर सख्त नहीं हुई तो बिहार का भी हरियाणा जैसा हश्र होगा जहां पर शराब बंदी के लागू होने के बाद ऐसा राजनीतिक विद्रोह हुआ था, जिसके चलते मुख्यमंत्री बंसीलाल को मुंह की खानी पडी थी।

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