Thursday, September 8, 2016

भ्रमित करने का खेल

अब तो जब भी किसी बडे नेता, मंत्री, उपदेशक, प्रवचनकार और समाज सेवक आदि के दुराचारी और व्याभिचारी होने की खबरें सुर्खियां पाती हैं तो उतनी हैरानी नहीं होती। आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार के महिला और बाल विकास मंत्री संदीप कुमार का सैक्स स्कैडल सामने आने के बाद भले ही देश की राजनीति गरमा गयी, लेकिन सजग देशवासियों के लिए यह रोजमर्रा की खबर थी। अखबारों और न्यूज चैनलों पर छा जाने वाली ऐसी खबरों को पढने और सुनने के अभ्यस्त हो चुके हैं देशवासी। इस खबर ने संदीप कुमार को कम और 'आम आदमी पार्टी' को ज्यादा नुकसान पहुंचाया। पार्टी के सर्वेसर्वा यह दावा करते थे कि उन्होंने काफी जांचने-परखने के बाद चरित्रवान, पाक-साफ लोगों को पार्टी में जगह दी है। ऐसे में संदीप कुमार जैसे पथभ्रष्ट चेहरे पार्टी के टिकट से चुनाव लडकर विधायक और मंत्री बनने में कैसे कामयाब हो गये? यह सवाल उन मतदाताओं से भी जवाब मांगता है जो भावुकता के पाश में बंधकर किसी भी ऐरे-गैरे को अपना कीमती वोट देने की भूल कर देते हैं और बाद में पछतावे के सिवाय और कुछ नहीं पाते।
२०१५ में राजनीति में आने से पहले वकील रह चुके संदीप को लोगों की आंखों में धूल झोंकने और अपनी छवि चमकाने के सभी तौर तरीके आते हैं। तभी उसने यह प्रचारित कर रखा था कि वह अपनी पत्नी के पैर छूकर अपने दिन की शुरुआत करता है। जब उसकी सेक्स सीडी में ९ मिनट लंबा वीडियो और दो महिलाओं के साथ विभिन्न आपत्तिजनक तस्वीरें सामने आयीं तो लोगों को यह भी पता चल गया कि उसमें शातिर नेताओं वाले सभी गुण मौजूद हैं। बेशर्म संदीप ने सबसे पहला बयान दागा कि मैं दलित हूं और मैंने अपने निवास स्थान पर डॉ. बाबासाहब आंबेडकर की प्रतिमा स्थापित की है। जिसकी वजह से कुछ लोग मुझसे ईर्ष्या करते हैं और वही मुझे बदनाम करने की साजिश कर रहे हैं। मैं तो महिलाओं का अपार सम्मान करता हूं ऐसे में भला मैं किसी की मां-बहन के साथ दुष्कर्म कैसे कर सकता हूं!
आम आदमी के मुखर प्रवक्ता आशुतोष जो कभी पत्रकारिता में अपना परचम लहरा चुके हैं और बेडरूम में झांकने की गुस्ताखी के चलते बसपा के संस्थापक स्वर्गीय कांशीराम से थप्पड भी खा चुके हैं, ने जोश में होश खोते हुए अपने शोध और आधुनिक बोध से आग में घी डालते हुए कुछ यूं फरमाया कि, संदीप तो भोला-भाला इंसान है। उसने जो कुछ भी किया है उसकी प्रेरणा उसे इस देश के नेताओं से ही मिली है। भारतीय इतिहास ऐसे नेताओं और नायकों के उदाहरणों से भरा पडा है, जिन्होंने अपनी सामाजिक सीमाओं के आगे जाकर अपनी इच्छाओं के मुताबिक भरपूर जीवन जीया। संदीप के मौज-मज़ा करने पर इतना हंगामा क्यों? आशुतोष ने यह सवाल उठाते हुए लिखा कि, अगर दो व्यस्क सहमति से आपस में सेक्स करते हैं तो क्या यह अपराध है? वैसे भी सेक्स हमारी मूल प्रवृत्ति का हिस्सा है। जैसे हम खाते हैं, पीते हैं और सांस लेते हैं... ठीक उसी तरह से सेक्स भी इंसान की जरूरत है। जो लोग संदीप पर उंगलियां उठा रहे हैं उन्हें इस ऐतिहासिक सच का भी ज्ञान होना चाहिए कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विभिन्न सहयोगी महिलाओं से प्रेम के किस्से चटखारे लेकर सुने-सुनाये जाते थे। एडविना माउंटबेटेन के साथ उनके अंतरंग रिश्तों की खूब चर्चा हुई। पूरी दुनिया इसके बारे में जानती थी। नेहरू का आखिरी सांस तक उनसे लगाव बना रहा। क्या यह पाप था? इतिहास इस तथ्य का भी गवाह है कि १९१० में कांग्रेस के बडे नेता सरला चौधरी से महात्मा गांधी के रिश्तों को लेकर बेहद चिंतित थे। महात्मा गांधी ने खुद स्वीकारा था कि सरला उनकी आध्यात्मिक पत्नी हैं। बाद के दिनों में अपने ब्रह्मचर्य के प्रयोग के लिए गांधी अपनी दो भतीजियों के साथ नग्न सोते थे। पंडित नेहरू एवं अन्य कुछ बडे नेताओं ने बापू से कहा था कि वे ऐसा न करें। इससे उनकी छवि खराब होती है। लेकिन फिर भी वे नहीं माने। आशुतोष ने संदीप को सही ठहराने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी, समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया, जार्ज फर्नाडीस, चीनी नेता माओ के महिला सहयोगियों के साथ के रिश्तों को कठघरे में खडा कर खुद को निष्पक्ष और निर्भीक बुद्धिजीवी दर्शाने की भरपूर कोशिश करते हुए यह भी कह डाला कि उस समय के नेता खुशनसीब थे। क्योंकि तब न टीवी चैनल थे, कोई स्टिंग भी नहीं होता था और तो और किसी नेता का राजनीतिक जीवन भी प्रभावित नहीं होता था। आशुतोष का यह भी कहना था कि जब संदीप के खिलाफ किसी महिला ने कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं करायी है तो इससे तय हो जाता है कि आपसी सहमति से ही हमबिस्तरी की गयी। ऐसे में संदीप को बलात्कारी और व्याभिचारी की संज्ञा देने वाले लोग हद दर्जे के अज्ञानी हैं। चार-पांच दिन तक संदीप के पक्ष और विपक्ष में बयानबाजी के तीर चलते रहे। विभिन्न विद्वान आपस में भिडते रहे। फिर अचानक आपत्तिजनक सीडी में दिखायी देने वाली महिला ने सामने आकर जैसे बाजी ही पलट दी। थाने में शिकायत करने पहुंची महिला ने बताया कि यह घटना लगभग एक वर्ष पहले की है। वह मंत्री के कार्यालय में राशन कार्ड बनवाने के लिए गई थी। मंत्री ने उसे एक कमरे में बैठने का निर्देश दिया। जहां उसे कोल्ड ड्रिंक पीने के लिए पेश की गयी। इसे पीते ही वह अपने होश खो बैठी। इसके बाद उसके साथ दुष्कर्म किया गया। होश में आने के बाद ही उसे पता चला कि उसकी अस्मत लूटी जा चुकी है। उसने मंत्री को कहा कि यह आपने ठीक नहीं किया। यह तो बहुत बडा गुनाह है, धोखाधडी है। मंत्री ने उसे समझाते हुए कहा कि वह यह क्यों भूल रही है कि उसे राशन कार्ड भी तो बनवाना है। महिला के अनुसार इस दुष्कर्म कांड को खुफिया कैमरे में कैद किये जाने की उसे कतई कोई जानकारी नहीं थी। उसे तो समाचार चैनलों से ही पता चला कि उस पर हुए बलात्कार की वीडियो बनायी गयी। यह भी गौरतलब है कि मंत्री ने जिस राशन कार्ड को बनवा कर देने के नाम पर कुकर्म किया वह भी उसे नहीं मिला।
जब यह सवाल उठाया गया कि वह इतने महीनों तक चुप्पी क्यों साधे रही तो उसका कहना था कि मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं। मुझे उनकी परवरिश करनी हैं। मैं नहीं चाहती मेरे परिवार की बदनामी का ढोल पीटा जाए। मैं तो अपना नाम और पहचान भी किसी हालत में उजागर नहीं करना चाहती। इसे विडंबना कहें या कुछ और कि अपने देश में मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नारी को यौन शोषण का शिकार होना पडता है। इस पर शासकों को जरूर चिन्तन-मनन करना चाहिए। वैसे यह उनकी ही जबरदस्त चूक और अनदेखी का नतीजा है। एक सवाल यह भी कि कुछ महिलाएं इतनी आसानी से कैसे शोषकों के हाथों का खिलौना बन जाती हैं? संदीप कुमार जैसे नकाबपोशों के कुकर्मों का ढिंढोरा पिट चुकने के बाद भी उनकी मंशा आसानी से पूरी हो जाती है!! अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भी अपने देश में बहुत खतरनाक खेल खेला जा रहा है। जिसके मन में जो आता है, बोल देता है। कई तथाकथित बुद्धिजीवी उंगलियां उठाने में माहिर हैं। उनके लिए बडा आसान है किसी दूसरे की मिसाल देकर अपने आपको तथा अपने संगी-साथियों को साफ-सुथरा बताना। यह भी सच है कि हमारे समाज में अनैतिकता को स्वीकृति दिये जाने की कभी कोई गुंजाइश नहीं रही है। बडी से बडी हस्ती को नैतिक पतन का न कभी बर्दाश्त किया गया है, न कभी किया जायेगा। ढोंगी प्रवचनकार आसाराम के दुष्कर्मों की पोल खुलने के बाद उनका कैसा हश्र हुआ यह किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस के उम्रदराज दिग्गज नेता नारायण दत्त तिवारी महिलाओं के साथ रंगरेलियां मनाने के चक्कर में ऐसे बदनाम हुए कि उन्हें राजनीतिक वनवास भोगने को विवश होना पडा। और भी ऐसे कई नाम हैं जिनका कभी दौर था, लेकिन अय्याशी के भंवर में फंसने के बाद सदा-सदा के लिए अपनी इज्जत गंवा बैठे।

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