Thursday, September 15, 2016

राष्ट्रभक्तों का खून खौलता है

समय बदल रहा है। तारीखें बदल रही हैं। लेकिन भारतीय राजनीति के रंग-ढंग नहीं बदल रहे हैं। कई नेता ऐसे हैं जिन्हें हमेशा धनपतियों, बाहुबलियों, कट्टरपंथियों, माफियाओं, इंसानियत के शत्रुओं और किस्म-किस्म के गुंडों-बदमाशों की जरूरत बनी रहती है। राजनीति के रंग में रंगे अराजक तत्वों का भी नेताओं की छत्रछाया के बिना काम नहीं चलता। ११ साल बाद शहाबुद्दीन जेल से बाहर निकला तो हजारों समर्थकों का हुजूम उसके स्वागत के लिए उमड पडा। सैकडों कारों के काफिले के साथ जब उसकी सवारी सडकों से गुजरी तो उसके चाहने वालों के चेहरे की चमक को देखकर ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे किसी क्रांतिकारी नेता की रिहायी हुई है जिसका वर्षों से बडी बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। कई वर्दीवाले भी दहशतगर्द शहाबुद्दीन के करीबी हैं। इसलिए उन्होंने भी अपने अंदाज में उसका स्वागत किया। बाहुबलि के काफिले की किसी भी कार ने टोल प्लाजा पर टोल टैक्स देने के लिए रूकना जरूरी नहीं समझा। कहते हैं मेहरबान पुलिस ने टोल नहीं लेने का आदेश जारी कर दिया था। कभी पूरे बिहार को थर्रा देने वाले सीवान के इस हत्यारे, लुटेरे डॉन पर कई गंभीर मामले दर्ज हैं। १३ मई २०१६ को ४२ साल के पत्रकार राजदेव रंजन की सीवान रेलवे स्टेशन के पास हत्या कर दी गयी थी। शहाबुद्दीन के अपहरण, उद्योग और घातक कारगुजारियों के खिलाफ सजग पत्रकार रंजन बेखौफ कलम चलाया करते थे। माफिया से नेता बने पूर्व सांसद शहाबुद्दीन ने अपने खिलाफ लिखने और आवाज उठाने वालों को ठिकाने लगाने में कभी कोई देरी नहीं की। निर्भीक कलमकार रंजन को अपनी खोजबीन में २०१४ में राजनीतिक कार्यकर्ता श्रीकांत भारती की हत्या में जेल में बंद शहाबुद्दीन का हाथ होने के पुख्ता संकेत मिल चुके थे। रंजन हत्याकांड के तुरंत बाद हिरासत में लिए गए तीन लोगों में हिस्ट्रीशीटर अपराधी उपेंद्र सिंह था, जिसके तार शहाबुद्दीन से जुडे पाये गये। जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के सक्रिय नेता चंद्रशेखर की हत्या के पीछे भी शहाबुद्दीन का हाथ माना जाता है। आपराधिक तत्वों के इस सरगना की यह खुशकिस्मती है कि बिहार में उसके आका लालू की पार्टी सत्ता में है और उनके पुत्र बिहार के उपमुख्यमंत्री हैं। ऐसे में शहाबुद्दीन को उडने के लिए खुला आसमान मिल गया है। उसके द्वारा सताये गये अनेकों लोगों को चिन्ता और दहशत ने घेर लिया है। यह सच भी जगजाहिर है कि जहां लालू अपराधियों को संरक्षण देने के लिए जाने जाते हैं वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आपराधिक तत्वों से समझौता न करने वाले सिद्धांतवादी नेता के रूप में जाना जाता रहा है, लेकिन यह भी सच है कि नेता अपनी कुर्सी बचाने के लिए क्या से क्या हो जाते हैं यह भी देशवासी बखूबी जानते हैं। कुर्सी के लिए नीतीश कुमार ने जब भ्रष्ट लालू की पार्टी से गठबंधन करने में परहेज नहीं किया तो ऐसे में उनपर भी शंका होने लगी है।
यह देश की बदकिस्मती ही है कि चुनाव जीतने के लिए और सत्ता पर बने रहने के लिए शहाबुद्दीन जैसे गुंडे बदमाशों को पाला-पोसा जाता है। यह वो आतंकी हैं, जिनके एक इशारे पर पुलिस अधिकारियों को गोली मार दी जाती है। बसे-बसाये परिवार उजाड दिये जाते हैं। आपसी भाईचारे की हत्या कर दी जाती है। सरकारें इनपर हाथ डालने से कतराती हैं। क्योंकि इनके चंदे, धंधे और गुंडो की फौज की बदौलत सत्ता पायी और हथियायी जाती है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने विवादित इस्लामी उपदेशक जाकिर के एनजीओ 'इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन' (आरजीएफ) से ५० लाख रुपये का चंदा लेकर एक बार फिर से यह स्पष्ट कर ही दिया कि देश में राजनीति दल अपना कामकाज कैसे करते हैं। आतंकियों को अपने भडकाऊ उपदेशों से प्रेरित करने वाले डॉ. जाकिर ने यह चंदा राजीव गांधी फाउंडेशन को समर्पित किया था। गौरतलब है कि नाइक धर्म के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाला ऐसा शख्स है जो कई सालों से समूचे भारत में धर्मांध राष्ट्रद्रोही ताकतों को बढावा देने का काम करता चला आ रहा है। कथित तौर पर अमन और शांति का संदेश देने वाले जाकिर के ये भडकाऊ भाषण उसकी असलियत बयां कर देते हैं, "मैं सारे मुस्लिमों को कहता हूं कि हर मुसलमान को आतंकवादी होना चाहिए। आतंकी का मतलब ऐसा आदमी, जो भय फैलाए।" पुलिस की जांच और गिरफ्तारी के डर से विदेश में जा दुबका जाकिर अपने भाषणों में हिन्दू देवी-देवताओं को अपमानित कर गर्व महसूस करता है। गीता के श्लोक की गलत व्याख्या कर कट्टरवाद को बढावा देते-देते वह चर्चित होता चला गया। आतंक का यह अध्यापक कभी दक्षिण मुंबई के भिंडी बाजार की तंग गलियों में एक छोटे से घर में रहता था। लेकिन उसने धर्म का गलत प्रचार और हिन्दू देवी-देवताओं का घोर अपमान करते-करते इतनी दौलत और शोहरत कमा ली कि वह आज मुंबई के एक पॉश इलाके में खडी की गयी आलीशान कोठी में रहता है। उसने कई मदरसे भी खोल रखे हैं। आतंक का परचम लहराने के लिए उसे भारत और दुनियाभर के देशों से करोडों रुपये का डोनेशन मिलता है। वह पीस टीवी (चैनल) का कर्ताधर्ता भी है जिसके २० करोड दर्शक हैं और इसे १०० से अधिक देशों में देखा जाता है। बेगुनाहों के कत्ल को जायज ठहराने वाले जाकिर पर कांग्रेस के बडे नेता काफी मेहरबान रहे हैं। २०१२ के एक कार्यक्रम में कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह उसके साथ एक मंच पर नजर आये थे। यह कहना गलत तो नहीं लगता कि राजीव गांधी फाउंडेशन को जो चंदा दिया गया वह दरअसल रिश्वत ही था जिसकी बदौलत जाकिर बेखौफ होकर युवकों को आतंक के मार्ग पर जाने और कट्टरपंथी बनने की शिक्षा-दीक्षा देता रहा और तब की सरकार तमाशबीन बनी रही। शहाबुद्दीन और जाकिर जैसे चेहरे आखिर हैं तो समाज और देश के दुश्मन ही। राजनीतिक दलों का इनसे किसी भी तरह का जुडाव हर राष्ट्रभक्त के खून को खौलाता है।

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