Thursday, September 29, 2016

तमाशबीन भीड

ऐसा लगता है कि कुछ लोगों ने कभी न सुधरने की कसम खा रखी है। निर्भया कांड के बाद लगा था कि काफी परिवर्तन आयेगा, लेकिन आया नहीं। दिल्ली से सटे गुडगांव में एकतरफा प्रेम में शादी का प्रस्ताव ठुकराये जाने पर प्रेमी ने लडकी पर गोली चला दी। नोएडा में ट्यूशन पढकर घर लौट रही ११ वीं की छात्रा का दो युवकों ने अपहरण कर लिया। कार में उनके साथ एक महिला भी थी। युवकों ने छात्रा को कुछ सुंघाया जिससे वह बेहोश हो गयीं। सुबह होश आने पर उसने खुद को एक मकान में पाया। बाद में आरोपी कार में बैठाकर एनएच-२४ पर फेंक कर चलते बने। हरियाणा के शहर रोहतक में कार में सवार पांच बदमाशों ने तीन बेटियों की मां को घर से अगवा किया और ११ घण्टे तक अपनी हैवानियत का शिकार बनाया। दुष्कर्मियों का इरादा तो महिला को मौत के घाट उतारने का था। बेटियों की परवरिश का हवाला देकर महिला ने दरिंदो से तो मुक्ति पा ली, लेकिन कुछ घण्टों के बाद खुद ही मौत को गले लगा लिया। देश की राजधानी दिल्ली में दिन-दहाडे बीच सडक पर २१ साल की एक युवती को ३४ साल के एक युवक ने बाईस बार कैंची घोंपी। युवती ने भीड के समक्ष दम तोड दिया। हत्यारे का कहना था कि वह युवती से बेइंतहा प्यार करता था। उसकी इच्छा थी कि युवती उसकी पत्नी बने, लेकिन उसने उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो उसका खून खौल उठा। वह अपनी प्रेमिका को किसी और की होते नहीं देख सकता था, इसलिए उसकी हत्या कर दी।
देश के विभिन्न नगरों, महानगरों और ग्रामों तक में ऐसी घटनाओं को अंजाम दिये जाने की खबरें आम हो गयी हैं। न जाने कितनी ऐसी और भी वारदातें होती हैं जिनकी खबर हमें नहीं लग पाती। निर्भया कांड के बाद २०१३ में बने कानून के तहत किसी लडकी का पीछा करना अपराध है। मगर एक तो यह जमानती अपराध है। दूसरे इसमें पीडिता की सुरक्षा का कोई प्रावधान नहीं है। कानून की इसी कमजोरी का फायदा उठाते चले आ रहे हैं सिरफिरे प्रेमी और छंटे हुए अपराधी। राह चलती लडकियों को छेडने, स्कूल, कॉलेज, घर में प्रेम पत्र भेजने, दुपट्टा खींचने जैसी कई घटनाओं को बेखौफ अंजाम देकर युवतियों का सुख-चैन छीनना आज के बेलगाम आशिकों का मनपसंद खेल बन गया है। भीड भरी सडकों, गलियों-चौराहों पर जबरन लडकियों का रास्ता रोका जाता है। प्यार का इजहार किया जाता है जैसे जिन्दगी कोई फिल्म हो कोशिश करते रहो, लडकी पट ही जाएगी। आज नहीं तो कल उसे हां कहनी ही पडेगी। ना कहेगी तो उसे सबक भी सिखा देंगे। आजकल यही हो तो रहा है। अब यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं कि चाहे दिल्ली हो, रोहतक हो, नोएडा हो या फिर देश का कोई भी शहर-कस्बा हो महिलाएं असुरक्षित हैं। पुरुष आज भी महिलाओं को खुद से कमतर समझते हैं। उन्हें अपने विवेक पर चलने वाली नारियों को दबाने और सताने में असीम खुशी हासिल होती है। यह भी तो नहीं माना जा सकता कि सभी पुरुषों एक जैसी मानसिकता वाले होते हैं। फिर ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि महिलाओं पर बर्बरता होते देख संवेदनशील और सभ्य पुरुषों का खून क्यों नहीं खौलता? उनका तमाशबीन बने रहना उनकी संवेदना और मर्दानगी पर सवाल तो खडे करता ही है। यह भी जान लें कि तमाशबीन सिर्फ पुरुष ही नहीं होते, महिलाएं भी होती हैं। इतिहास गवाह है कि खुद महिलाओं ने ही जितना नुकसान, अपमान महिलाओं का किया उतना तो पुरुषों ने भी नहीं किया। यदि स्त्री और पुरुषों की भीड मिलकर किसी दुराचारी हत्यारे को ललकारे तो उसके हौसले ठंडे होने में देरी नहीं लगेगी। हत्यारों, व्याभिचारियों में मनोबल का नितांत अभाव होता है उनमें अपने पांव पर खडे होने की ताकत ही नहीं होती। वे बाहर से शेर और अंदर से गीदड होते हैं। इस सच को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि घर परिवार में युवाओं को मिलने वाली शिक्षा-दीक्षा और वातावरण भी ऐसी घटनाओं के लिए उत्तरदायी है। प्यार में असफल तथाकथित प्रेमियों की हिंसक प्रवृत्तियां सभ्य समाज के मुंह पर तमाचा हैं। आज कुआंरी लडकियां तो निशाने पर है ही शादीशुदा महिलाओं को भी नहीं बख्शा जा रहा है। पहले अंधेरे में अपराध होते थे, अब उजाले में, दिन दहाडे किसी राह चलती लडकी और महिला की आबरू लूट ली जाती है, हत्या कर दी जाती है, लेकिन कोई हलचल नहीं होती। प्रेमी से हत्यारे बने ऐसे नौजवानों से पूछताछ करने वाले कुछ पुलिस अफसर काफी हद तक उनकी मानसिकता को समझने में सफल हुए हैं। दिल्ली के राजौरी गार्डन के अस्पताल की लेडी डॉक्टर पर दो लडकों को रकम का लालच देकर तेजाब डलवाने के आरोप में एक डॉक्टर को गिरफ्तार किया गया था। उस डॉक्टर की मानसिकता का अध्ययन करने वाले एक पुलिस अधिकारी ने स्पष्ट किया कि ऐसे लोग रिजेक्शन यानी इनकार स्वीकार नहीं कर सकते। यह साइको-एनालिसिस का मामला है। यह लोग अचानक ऐसा भीषण अपराध नहीं करते, बल्कि काफी लंबे वक्त तक सोच विचार करने के बाद जुर्म करते हैं। इन पर आसपास के समाज का भी प्रभाव पडता है। इन नौजवानों के मन में यह बात घर कर जाती है कि लडकी अगर मेरी नहीं हो सकती तो किसी और की भी नहीं हो सकती। कुछ नौजवानों पर जैसे जुनून सवार हो जाता है। उनकी हालत पूरी तरह फियादीन आतंकवादी जैसी होती है। उन्हें आसपास की भीड की भी चिन्ता नहीं रहती। उन्हें यह भी अच्छी तरह से मालूम होता है कि उनकी गिरफ्तारी तय है। भीड से पिटने का भय भी उन्हें नहीं सताता। कई आशिक ऐसे होते हैं जो अकेलेपन का शिकार होते हैं। एकतरफा प्यार करते हैं। सोशल साइटस पर लडकी को फॉलो करते हैं। उन पर नजर रखते हैं ब्लैंक कॉल करते हैं। अनजान लडकी को देर रात फोन करने में उन्हें सुकून मिलता है। थोडी सी जान-पहचान होते ही प्रेमपत्र और उपहार भेजने लगते हैं। मानसिक रूप से बीमार होने के कारण ये इस भ्रम को पालने में देरी नहीं लगाते कि कहीं न कहीं लडकी उनसे प्यार करती है इस तरह के लोगों को समझाना या इनका इलाज करना बहुत मुश्किल होता है। यह लोग शिकार तलाशते रहते हैं और मौका पाते ही यौन उत्पीडन कर आनंदित होते हैं।

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