Thursday, December 15, 2016

कुछ तो सोचा होता...

जेल में बंद नेताजी की तस्वीर देखी। सफेद दाढी और उतरा हुआ चेहरा। यही नेताजी जब आजाद थे तो उनके चेहरे की रौनक देखते बनती थी। सत्तर साल की उम्र में भी उनके सिर के काले बालों को देखकर लगता था कि वे अपने चेहरे-मोहरे के प्रति कितने सजग रहते हैं। खुद को दलितों और शोषितों का नेता घोषित करने वाले इस शख्स ने कम समय में नाम भी पाया और कुख्याति भी बटोरी। जिधर दम, उधर हम की नीति पर चलने वाले नेताजी की सत्ता परिवर्तन के बाद ऐसी दुर्गति होगी इसकी तो किसी ने कल्पना ही नहीं की थी। उनके विरोधी भी मानते थे कि इस भुजबली का सूरज कभी भी अस्त नहीं होगा। नेताजी महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री भी रह चुके हैं। सत्ता का सुख भोगने और माया हथियाने में उन्होंने कोई कसर बाकी नहीं रखी। अपने घर-परिवार के सभी सदस्यों को कुछ ही वर्षों में खाकपति से अरबपति बनाने वाले इस धुरंधर ने अपने उन साथियों का भी पूरा-पूरा ध्यान रखा जिन्होंने उनका हर मौके पर साथ दिया। जब उन्होंने शिवसेना छोडी और राष्ट्रवादी कांग्रेस का दामन थामा तो कई शिवसैनिक उनके साथ हो लिए। उनके ऐसे सभी साथी आज आर्थिक बुलंदी पर विराजमान हैं। लेकिन जैसे ही नेताजी के बुरे दिन आए सभी ने मुंह फेर लिया। उनको जेल में भेजे जाने के बाद सभी ने ऐसी चुप्पी साध ली जैसे कि वे नेताजी को जानते ही न हों। भारतीय राजनीति में अक्सर ऐसा ही होता आया है। उगते सूरज को सभी सलाम करते हैं। महाराष्ट्र के इस स्वयंभू दलित नेता का जो हश्र हुआ उससे कितनों ने शिक्षा ली इस बारे में बता पाना मुश्किल है। राजनीति और भ्रष्टाचार के बाज़ार में एक कहावत प्रचलित है कि जो पक‹डा गया... वह चोर... बाकी सभी ईमानदार और साहूकार। अपने देश का यह इतिहास रहा है कि सत्ता पर काबिज होने के बाद सौ में से नब्बे नेता बेइमान हो ही जाते हैं। लालच उन्हें अपनी गिरफ्त में ले ही लेता है। भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार करते चले जाते हैं। यह भी सच है कि सभी बेईमान, रिश्वतखोर नेता पकड में नहीं आते। नेताजी को इसी बात का गम है। अकेले उन पर ही गाज क्यों गिरी! उन्हीं की पार्टी में सत्ता की मलाई खाने वाले और भी कई बदनाम चेहरे थे, लेकिन उन पर आंच भी नहीं आयी। उनकी पार्टी के दिग्गजों ने भी उनका साथ नहीं दिया। बडी बेदर्दी से मुंह फेर लिया। कार्यकर्ताओं ने भी ज्यादा शोर-शराबा नहीं मचाया। हां कुछ कार्यकर्ताओं ने सरकार पर यह आरोप जरूर लगाया कि दलितों के मसीहा को जबरन फंसाया गया। आज के जमाने में कमाता कौन नहीं। राजनीति भी तो एक धंधा है। सितारा चमकने के बाद भी यदि फक्कड के फक्कड रह जाएं तो राजनीति में आने का मतलब ही क्या...?
नेताजी का जब सितारा बुलंदी पर था तब वे सिर्फ चाटूकारों से ही घिरे रहते थे। दलितों और शोषितों के हित में उन्होंने कभी कोई ऐसा काम नहीं किया जिसका डंके की चोट पर उल्लेख किया जा सके। वे तो बस बेखौफ माल बनाने में ही व्यस्त रहे। उन्हें यकीन था कि वे राजनीति के अजेय यौद्धा हैं। किसी में इतना दमखम नहीं जो उन्हें परास्त कर सके। यही अहंकार आखिरकार उन्हें ले डूबा। आय से अधिक अथाह सम्पत्ति बनाने के खेल में धरे गए। वैसे काली कमायी के मामले में अम्मा यानी जयललिता भी पीछे नहीं थीं। फिर भी उनका व्यक्तित्व कुछ ऐसा था कि प्रदेश की जनता उन्हें अपने करीब पाती थी। दरअसल, जयललिता ने लोगों के दिलों पर राज किया। जयललिता ने नेताजी की तरह धन को ही सर्वोपरि नहीं माना। उन्होंने गरीबों का पूरा-पूरा ख्याल रखा। उन्हें मुफ्त भोजन की सुविधाएं उपलब्ध करवायीं। सरकारी अस्पतालों में गरीबों का निशुल्क इलाज और बच्चों के लिए स्कूली शिक्षा मुहैय्या करवाकर तामिलनाडु के जन-जन की प्रिय नेता बन गयीं। उनके नहीं रहने पर प्रदेश के असंख्य लोग खुद को असहाय समझने लगे। अथाह दु:ख के सागर में डूब गए। लगभग पांच सौ लोगों ने आत्महत्या कर ली। भारत वर्ष में किसी नेता के प्रति इतना समर्पण और आत्मीयता कभी नहीं देखी गयी।
अपने यहां उन भ्रष्टाचारी नेताओं को भी बर्दाश्त कर लिया जाता है जो ईमानदारी से जनसेवा करते हैं। लेकिन वो महाभ्रष्ट जनता को चुभने लगते हैं जो सिर्फ अपना घर भरने का काम करते हैं। भारतवर्ष के अधिकांश राजनीतिक दल भी भ्रष्टाचार के जन्मदाता हैं। बहुजन समाज पार्टी की सर्वेसर्वा मायावती के बारे में तो यही कहा और माना जाता है कि बहनजी उन्हीं धनवानों को चुनावी टिकट देती हैं जो उन्हें मोटी थैलियां थमाते हैं। पार्टी फंड के नाम पर भी विभिन्न दलों के द्वारा जमकर वसूली की जाती है। २००५ से २०१३ के बीच भाजपा, कांग्रेस, बसपा, राष्ट्रवादी कांग्रेस, सीपीआई और सीपीएम ने ६००० हजार करोड के लगभग चंदा बटोरा। इस चंदे को देने वाले अधिकांश लोगों के अते-पते नदारद थे। राजनीति दलों को अपना काला धन सफेद करने में कभी भी दिक्कत का सामना नहीं करना पडता। आयकर कानून उनपर मेहरबान रहता है। यह कितनी हैरानी की बात है कि जो दल देश और प्रदेश चलाते हैं उन्हें २० हजार रुपये से कम मिलने वाले चंदे की राशि का स्त्रोत यानी दानदाता का नाम ही नहीं बताना पडता। अपने देश में चुनाव कैसे लडे जाते हैं इसका भी सभी को पता है। लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में काले धन की बरसात कर दी जाती है। ऐसे नाममात्र के प्रत्याशी होते हैं जो चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित राशि खर्च करते हैं। अब तो स्थानीय निकाय के चुनावों में भी अंधाधुंध खर्च किया जाने लगा है। खर्च की सीमा २ लाख रुपये तय होने के बावजूद २५ से पचास लाख रुपये फूंक दिया जाना तो आम हो चुका है। राजनेता और विभिन्न दल लोगों के जीवन में सुधार लाने के कितने इच्छुक हैं इसकी खबर, समझ और जानकारी तो हर देशवासी को है। वह अंधा नहीं है। उसे स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि जिसे भी लूट का मौका मिलता है वह बेखौफ अपनी मनमानी कर गुजरता है। सरकार की किसी भी नयी योजना का बंटाढार करने के लिए भ्रष्टाचारी हमेशा कमर कसे रहते हैं। नोटबंदी के बाद कई सफेदपोश नकाब हो गये। यहां तक की इस अभियान को पलीता लगाने में कई बैंक वाले भी पीछे नहीं रहे। गुजरात और महाराष्ट्र के कई सहकारी बैंकों में करोडों रुपये के काले धन को सफेद किया गया। यह भ्रष्टाचार का ही कमाल है कि नोटबंदी के बाद आम आदमी एक-एक नोट के लिए परेशान होता रहा वहीं काले धन को सफेद करने के खिलाडी नये नोटों की गड्डियों और बंडलों से खेलते देखे गए। बडे-बडे बैंक अधिकारियों ने ही काले धन को सफेद करने के लिए भ्रष्टाचारियों का पूरा-पूरा साथ देने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। करोडों रुपयों के नोट अवैध रूप से बदलवाने के आरोप में आरबीआई के एक अधिकारी को गिरफ्तार कर लिया गया। इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि लगभग नब्बे प्रतिशत बैंक कर्मी और अफसर पूरी ईमानदारी से दिन-रात काम करते रहे। कुछ की काम करते-करते मौत भी हो गयी। लेकिन पांच-दस प्रतिशत भ्रष्टों ने पूरा खेल बिगाड दिया। नोटबंदी के घपले में २०० से अधिक बैंक कर्मियों-अफसरों को निलंबित किया गया। तीस के आसपास की गिरफ्तार भी हुई। २०१६ के दिसंबर महीने में हिन्दुस्तान के पूर्व वायु सेना प्रमुख ए.पी.त्यागी की गिरफ्तारी ने तो पूरे देश को चौंका दिया। भारत के इतिहास में यह पहली घटना है जब सेना प्रमुख रहे किसी व्यक्ति को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया है। यह सवाल कलमकार को सतत परेशान करता है कि उच्च शिखर पर विराजमान महानुभाव ऐसे भ्रष्टाचार को कैसे अंजाम दे देते हैं जो राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में भी आता है। किसी विद्वान ने कहा है कि, जिस देश के शासक पूरी तरह से ईमानदार नहीं होते वहां भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को पहचानना मुश्किल होता चला जाता है। भ्रष्ट नेताओं की लीक पर चलने वाले तमाम भ्रष्टाचारी यह भी जानते हैं कि पक‹ड में आने के बाद भी उनका कुछ नहीं बिगडने वाला। नेताजी की तरह उन्हें भी जेल में कम और आलीशान निजी अस्पताल में ज्यादा से ज्यादा रहने से कोई नहीं रोक सकता। किसी भी बडी बीमारी का बहाना बनाओ और जेल जाने की बजाय अस्पताल के बिस्तर पर आराम से लेटे रहो। मिलने-मिलाने के लिए आने वालों की भीड यही आभास देगी कि किसी फाइव स्टार होटल में छुट्टियां मना रहे हैं।

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