Thursday, December 22, 2016

अब नहीं तो कब?

१६ दिसंबर २०१२ को राजधानी दिल्ली में चलती बस में एक लडकी के साथ ६ वहशियों ने सामूहिक बलात्कार किया था और उसे बस से फेंक दिया था। बाद में २९ दिसंबर को उसकी मौत हो गई थी। पीडिता का नाम सामने नहीं आने देने के उद्देश्य से उसे नाम दिया गया था... 'निर्भया'। निर्भयाकांड ने देश के संपूर्ण जनमानस को भीतर तक हिला कर रख दिया था। पूरे देश में रोष की ज्वाला भडक उठी थी। जगह-जगह पर कैंडल मार्च निकाले गए थे। बलात्कारियों को नपुंसक बनाने और भरे चौराहे फांसी पर लटकाने की पुरजोर मांग की गई थी। निर्भयाकांड की चौथी बरसी पर राजधानी फिर शर्मसार हो गई। वक्त बीत गया, लेकिन दिल्ली नहीं बदली। बलात्कारियों के हौसले पस्त नहीं हुए। दिल्ली के समीप स्थित नोएडा की रहने वाली एक बीस वर्षीय युवती रात करीब दस बजे एम्स के पास बस स्टैंड पर खडी थी। तभी वहां एक गाडी वाला आया और उसने लिफ्ट देने की पेशकश की। युवती उस कार में बैठ गई। बीच रास्ते में मोतीबाग के पास कार चालक ने उसके साथ छेडछाड शुरू कर दी और फिर दुष्कर्म कर मौके से फरार हो गया। जिस कार में दुष्कर्म किया गया उस पर गृह मंत्रालय का स्टीकर लगा हुआ था। इसी स्टीकर को देखकर ही युवती आश्वस्त हो गई थी कि वह अपने गंतव्य स्थल तक सुरक्षित पहुंच जाएगी। यह घटना यह भी बताती है कि मनचलों, अय्याशों के दिलों में किसी किस्म का कोई खौफ नहीं है। कार चालक तीन घण्टे तक कार को दिल्ली की सडकों पर घूमाता रहा, लेकिन कहीं भी उसे किसी पुलिस वाले ने नहीं रोका। इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि हमारे यहां की पुलिस कितनी सजग रहती है।
राजधानी के उतमनगर में एक नाबालिग लडकी को पहले शराब पिलायी गई फिर उस पर सामूहिक बलात्कार किया गया। नशे में धुत पीडिता किसी तरह से घर पहुंची और मामले की जानकारी परिजनों को दी। निर्भया सामूहिक बलात्कार कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बडे-बडे वादे किए गए थे, लेकिन हकीकत में हालात जस के तस हैं। निर्भया कांड के बाद कानून में बदलाव किया गया। फिर भी बलात्कार की घटनाओं में कमी नहीं आयी। दिल्ली में आज भी महिलाएं असुरक्षित हैं। दिल्ली पुलिस से महिला अपराध पर मिले आंकडे बताते हैं कि वर्ष २०१२ से २०१४ में महिलाओं के खिलाफ अपराध में ३१४४६ एफआइआर दर्ज हुर्इं और सिर्फ १४६ लोगों को सजा मिली। यानी अधिकांश अपराधी किसी न किसी तरह से बच निकलते हैं। वैसे यह भी सच है कि दुराचार के कई मामले तो पुलिस थानों तक पहुंचते ही नहीं। इसी से पता चल जाता है कि अपराधियों के मन में कोई खौफ क्यों नहीं है। ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब राजधानी से दस-बारह महिलाओं और लडकियों के गायब होने और उन पर बलात्कार होने की खबर न आती हो। राजधानी की जनसंख्या १ करोड ७५ लाख के आसपास है। इसमें महिलाएं करीब ८० लाख हैं। महिलाओं की इतनी बडी आबादी पर दिल्ली पुलिस में सिर्फ ७४५४ महिला पुलिस कर्मी तैनात हैं। थानों में उनकी तैनाती न के बराबर है। ऐसे में अधिकांश महिलाओं की सुरक्षा रामभरोसे है। दिल्ली में गुंडे और बदमाश जिस तरह से बेखौफ होकर महिलाओं का जीना हराम करते हैं उससे लगता नहीं कि यह देश की राजधानी हैं जहां प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, नौकरशाह आदि बडी शान से रहते हैं। ४० फीसदी महिलाओं के साथ आते-जाते समय छेडछाड की जाती है। वहीं, करीब ४१ फीसदी महिलाएं बसों, मेट्रो व ट्रेनों में छेडछाड का शिकार होती हैं। बाकी महिलाओं से बाजार व भीड वाले स्थानों पर बदसलूकी की जाती है।
१६ दिसंबर २०१६ को दिल्ली एवं देश के विभिन्न शहरों में श्रद्धांजलि सभा आयोजित कर निर्भया को याद किया गया। लोगों का गुस्सा इस बात को लेकर था कि चार साल बीत गए, लेकिन निर्भया को न्याय नहीं मिल पाया है। देश-दुनिया को झकझोरने वाली इस घटना के बाद महिला सुरक्षा को लेकर जो तमाम इंतजाम के दावे किये थे, सिर्फ कोरे वादे ही रह गए। अपनी बेटी के इंसाफ के लिए घर की दहलीज पार करने वाली निर्भया की मां आशादेवी ने अपना दर्द इन शब्दों में उजागर किया : बेटी की पीडा को याद कर आज भी मैं सिहर उठती हूं। उस घटना के बाद से हमारी जिन्दगी पूरी तरह से बदल गई है। शायद ही कोई दिन ऐसा आया हो जब हम खुलकर हंस पाए हों। कभी-कभी मुझे लगता है कि ठीक ही हुआ उनकी बेटी मर गई, नहीं तो अब तक न्याय न मिलने के कारण वह शायद घुट-घुट कर मर जाती।
यह कहा भी जाता है कि देरी से मिला न्याय भी अन्याय के बराबर होता है। निर्भया के माता-पिता भी ऐसी ही पीडा के दौर से गुजर रहे हैं। उनका दु:ख देश की हर निर्भया का दु:ख है। ध्यान रहे कि निर्भया गैंगरेप में छह आरोपी शामिल थे। इसमें एक आरोपी राम सिंह ने तिहाड जेल में फांसी लगा ली थी जबकि छठा आरोपी जुवेनाइल था। जिसे जुवेनाइल कोर्ट ने तीन साल तक जुवेनाइल होम में रखने का आदेश दे रखा था। तीन साल जुवेनाइल होम में रखने के बाद उसे छोड दिया गया था। निचली अदालत से चारों को फांसी की सजा सुनाई गई थी जिसके बाद इन्होंने हाईकोर्ट में अपील की थी और हाईकोर्ट ने भी इन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। जिसके बाद इनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी जिस पर सुनवाई हो रही है। यह बेहद चिन्ता की बात है कि निर्भया कांड के बाद जिस तरह से देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे, जागृति की लौ दिखायी दी थी वह धीरे-धीरे धीमी पड गई। इस घटना के बाद राजधानी में महिला अपराध में ५३ प्रतिशत से लेकर २०० फीसदी तक का ग्राफ बढा है। नया कानून भी वो खौफ पैदा नहीं कर सका जिसकी उम्मीद थी। यह तथ्य भी गौर करने लायक है कि निर्भया गैंगरेप के आरोप में पकडे गए सभी आरोपियों का शैक्षणिक, सामाजिक स्तर पिछडा हुआ था। वे नशे के आदी थे। गलत संगत में पड जाने के कारण वे भटक चुके थे। १५ से १८ साल की उम्र में यदि कोई समझाने-बुझाने वाला नहीं हो तो भटकाव की कोई सीमा नहीं होती। इस उम्र के लडकों को कानून और समाज का भय नहीं लगता। उन्हें लगता है कि पकड भी गए तो ज्यादा से ज्यादा पिटाई होगी और जेल जाने की नौबत आएगी। किसी भी अपराध को अंजाम देने के बाद होने वाली बदनामी और भविष्य के बर्बाद होने का उनके मन में ख्याल ही नहीं आता। देखने में यह भी आया है कि कुछ नाबालिग लडके जानबूझकर बार-बार अपराध करते है। कुछ को अपराध करने के लिए प्रेरित किया जाता है। देश के बेरोजगार, अशिक्षित युवकों की भी कुछ ऐसी ही सोच है। उन्हें कानून का डर नहीं सताता। इसलिए अपराधों को अंजाम देने से नहीं कतराते। इस सच को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि बच्चियां घरों में भी महफूज नहीं हैं। बाहर के हालत किसी से छिपे नहीं हैं। उन पर सरेआम फब्तियां कसी जाती हैं। छेडछाड की जाती है और हम तमाशबीन बने रहते हैं। यह सच बहुत पीडा देता है कि जब हमारी बहन-बेटी पर कोई बुरी नजर डालता है तो हमारा खून खौल उठता है। मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं और दूसरों की बहन बेटियों की अस्मत लुटते देखकर भी आंखें बंद कर लेते हैं। चुप्पी साध लेते हैं। हमारी यही प्रवृत्ति अपराधियों का मनोबल बढाती है। इस हकीकत से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पुलिस हर जगह मौजूद नहीं रह सकती। युवतियों के लिए भी सतर्कता बरतना जरूरी है। उन्हें किसी भी अपरिचित से कभी लिफ्ट नहीं लेनी चाहिए। बलात्कार की घटनाएें किसी सबक से कम नहीं हैं। अगर अब नहीं जागे तो फिर कब जागेंगे?

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