Thursday, December 8, 2016

इन्हें कौन सुधारे?

अचलपुर तहसील के येलीकापूर्णा मठ के मठाधिपति संत बालयोगी महाराज का नाम भले ही ज्यादा जाना-पहचाना न हो लेकिन उनके श्रद्धालुओं की संख्या अच्छी खासी है। ब्रह्मचारी की महान उपाधि से विभूषित महाराज के भक्त उन्हें भगवान मानते हैं। उनकी फोटो की पूजा करते हैं। लगभग एक हजार की जनसंख्या वाले येलकीपूर्णा गांव के किनारे महाराज का मठ है। उनके सभी भक्त यही समझते थे कि उनके आराध्य तलघर में ध्यान साधना में तल्लीन रहते हैं। लेकिन जैसे ही इस खबर का धमाका हुआ कि ब्रह्मचारी महाराज तो तलघर में रास लीला करते हैं तो सभी हतप्रभ रह गए। उन्होंने तलघर में छिपे कैमरे लगा कर रखे थे। इन्हीं कैमरों के जरिए यह शर्मनाक सच सामने आया कि जिनकी तस्वीर को घर-घर में पूजा जाता है वह साधु ईश्वर की आराधना की बजाय नारी की देह की साधना करता है। वह संत नहीं शैतान है। घोर भोगी और विलासी है। उनके देहपिपासु होने के सबूत के तौर पर नौ महिलाओं ने अपना दुखडा सुनाया और छह वीडियो फुटेज पुलिस को सोंपे गए जिनमें महाराज युवतियों के साथ बेखौफ वासना-साधना में लिप्त नजर आए।
सारा विश्व जानता है कि हिंदुस्तान धर्म की बहुत बडी मंडी है। इस मंडी में कुछ साधु- संत ऐसे हैं जो निष्कंलक हैं। धर्म के उपासक और मानवता के सच्चे पुजारी। उनसे मिलने और सुनने में आत्मिक सुख की अनुभूति होती है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से जिस तरह से कुछ साधुओं, बाबाओं, बापुओं, आचार्यों और प्रवचनकारों का नंगा सच उजागर होता चला आ रहा है उससे लोगों की आस्था तार-तार हुई है। इस श्रृंखला में सबसे पहले एक नाम आता है प्रवचनकार आसाराम बापू का, जिसने २०१२ में दिल्ली हुए सामूहिक बलात्कार के बाद यह प्रतिक्रिया दी थी कि जितने दोषी बलात्कारी हैं उतनी ही दोषी बलात्कार का शिकार हुई युवती भी है। अगर वह भगवान का नाम लेकर आरोपियों में से एक-दो का हाथ पकडकर उन्हें भाई कहकर संबोधित करती और उनके सामने गिडगिडाती तो उसकी इज्जत और जान बच सकती थी। ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है। इसलिए बलात्कारियों के लिए मौत का सजा का कानून नहीं बनना चाहिए। ऐसा निर्लज्ज बयान कोई सजग नागरिक तो नहीं दे सकता। कानून को तोडने और उसके भय से इधर-उधर भागने वाले अपराधी ही ऐसी शब्दावली उगल सकते हैं। आसाराम भी प्रवचनकार के चोले में दरअसल एक दुराचारी ही था। इसलिए तो उसने बलात्कारियों के प्रति सहानुभूति दर्शायी और बलात्कार का शिकार होने वाली युवतियों को भी बराबर का दोषी ठहराया।  इसी आसाराम को जब एक नाबालिग कन्या के साथ दुराचार करने के आरोप में जेल की  सलाखों के पीछे भेजा गया तो अधिकांश प्रबुद्ध जनों को हैरानी नहीं हुई। विचार ही इंसान की पहचान होते हैं। उसके चरित्र का दर्पण होते हैं। ऐसे गंदी सोच वाले प्रवचनकार का जब पर्दाफाश हुआ तो उसके लाखों अंधभक्त ठगे के ठगे रह गए। यह उसकी खुशकिस्मती थी कि उसका सिक्का वर्षों तक चलता रहा। उसके लाखों भक्त उसे भगवान से कम नहीं मानते थे। यह तो अच्छा हुआ कि उसका भांडा फूट गया, नहीं तो एक व्याभिचारी की तस्वीर की पूजा जारी रहती और उसका अनुसरण करने वाले भी बेखौफ दुराचार करने से नहीं कतराते। भक्तों की आस्था की धज्जियां उडाने वाले बाबाओं की कतार बहुत लम्बी है। कुछ बाबाओं ने तो शैतानों को भी मात देने का काम किया है। मालेगांव धमाकों के मास्टरमाइंड तथाकथित संत दयानंद पांडे ने भगवा वस्त्र धारण कर न जाने कितने दुष्कर्म किए। जब वह पकड में आया तो उसके लैपटाप ने जो सच उगले उससे खाकी वर्दीधारी भी अचंभित रह गए। उसे खुद याद नहीं था कि उसने कितनी महिलाभक्तों की अस्मत लूटी। उसका यह भी कहना था कि उसने कभी किसी के साथ जोर जबरदस्ती नहीं की। महिलाएं उसके प्रभावी व्यक्तित्व से आकर्षित होकर खुद-ब-खुद समर्पण कर देती थीं। साधु के भेष में शैतानी का तांडव करने वाले दयानंद पांडे में तनिक भी मानवता नहीं बची थी। उसने यह कबूल कर  अपने अंदर के हैवान का पर्दाफाश कर दिया कि वह तो ज्यादातर उन विधवाओं का देह शोषण करता था जिनका कोई सहारा नहीं होता था। वे सांत्वना और आश्रय के लिए उसके पास आती थीं और वह उनसे शारीरिक रिश्ते बनाने के जोड-जुगाड में लग जाता था। असंख्य महिलाओं की जिन्दगी बरबाद करने वाले इस शैतान ने अपने बेडरुम में हिडन कैमरे लगा रखे थे। महिला भक्तों के साथ अश्लील फिल्में बनाने की उसे लत लग चुकी थी। इसी तरह से जबलपुर का एक बाबा था विकासानंद। उसकी हर रात महिला भक्तों के साथ रंग रेलियां मनाने में बीतती थी। दिन में बाबागिरी और रात में भोग विलास की सभी सीमाएं लांघने वाला यह धूर्त यह दावा करता था कि वह भगवान और इंसान के बीच सशक्त माध्यम की भूमिका निभाता है। नीली छतरी वाले से उसके काफी  करीबी रिश्ते हैं। वह युवतियों के साथ झूला झूलते और स्विमिंग पूल में डुबकियां लगाते-लगाते भगवान से मिलाने के बहाने संत और भक्त के बीच के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर प्रफुल्लित होता था।
देश की राजधानी दिल्ली में एक आधुनिक लिबासधारी बाबा कुछ वर्ष पूर्व पकड में आया था। उसकी इच्छाएं अनंत थीं। लोग उसे इच्छाधारी के नाम से जानते-पहचानते थे। कहने को तो वह संत था लेकिन असल में यह  कालगर्ल्स  सप्लायर था। कई वेश्याएं उसके संपर्क में रहती थीं। जब पुलिस का छापा पडा तो उसके आश्रम से कई डायरियां बरामद हुई थी जिनमें उसके नामी-गिरामी ग्राहकों के नाम दर्ज थे। कई राजनेताओं, नौकरशाहों और उद्योगपतियों का उसके यहां आना-जाना था। वह दिन में भगवा वस्त्र धारण कर प्रवचन देता, रात को टी-शर्ट और जींस पैंट धारण कर अपने अनैतिक कारोबार में लिप्त हो जाता था।

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