Thursday, June 1, 2017

एक सच यह भी

"पत्नी से परेशान होकर जाने-माने मराठी फिल्म निर्माता ने की खुदकुशी" अखबार के पहले पन्ने पर चौंकाने वाले शीर्षक को पढते ही मन में फौरन पूरी खबर को पढने की उत्कंठा जाग उठी :
पत्नी की मानसिक प्रताडना से परेशान होकर मराठी फिल्म निर्माता अतुल तपकीर ने पुणे के प्रसिद्ध होटल प्रेसिडेंट में जहर पीकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या करने से पहले अतुल ने फेसबुक पर जो सुसाइड नोट पोस्ट की उससे सभी सन्न रह गए। अतुल ने लिखा कि पत्नी को ऐसा जीवन साथी कहा जाता है जो सुख और दु:ख में साथ खडी रहती है और हर संकट काल में हौसला बढाती है। लेकिन मैं वो बदनसीब हूं जिसे एक ऐसी स्वार्थी पत्नी मिली जिसने बुरा वक्त आते ही मेरा साथ छोड दिया। सुख चैन भी छीन लिया। मैंने इधर-उधर से कर्ज लेकर फिल्म 'ढोल ताशा' बनाई जो कि बदकिस्मती से चल नहीं पायी। फिल्म निर्माण में हुए भारी नुकसान और कर्ज के चलते साहूकारों ने मेरा जीना हराम कर दिया। ऐसे विकट काल में मुझे पत्नी के साथ की सख्त जरूरत थी, लेकिन वह मेरा साथ देने की बजाय मेरी दुश्मन बन गई। वह मेरे साथ ऐसा व्यवहार करने लगी जैसे मैंने जानबूझकर असफल फिल्म बनाई है और अब मैं जीवन में कभी कामयाब नहीं हो सकता। होटल के कमरे में जहर मिली शराब गटक कर अपना काम तमाम करने वाले अतुल ने साफ-साफ लिखा कि मुझ पर आर्थिक संकट आने के बाद प्रियंका ने मुझे तथा मेरे पिता को प्रताडित करने का अभियान-सा चला दिया। कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जब वह मुझे निखट्टू और नकारा कहकर नहीं कोसती। उसकी मानसिक और शारीरिक प्रताडना ने मेरा जीना हराम करके रख दिया था। उसने पुलिस में दहेज और प्रताडना की झूठी शिकायत दर्ज करवायी कि मैं और मेरे पिता उसे मारते-पीटते हैं। पुलिस जब मुझे गिरफ्तार करने पहुंची तो मैंने उन्हें बताया कि यह झूठा आरोप है। पुलिस वाले भी सच को समझते थे। उन्होंने कहा कि हमें मालूम है कि तुम सही हो, लेकिन पहली शिकायत उसने दर्ज करवाई है इसलिए हमें तुम्हें और तुम्हारे पिता को गिरफ्तार करना ही होगा। मैंने बहुत हाथ-पैर जोडे, लेकिन पुलिस वालों के चरित्र से तो हर कोई वाकिफ है। उन्हें ऐसे धन बरसाने वाले मामलों का इंतजार रहता है। गिरफ्तारी से बचने के लिए मुझे वर्दीवालों को दस हजार रुपये की रिश्वत देनी पडी। मुझे लगा कि दस हजार रुपये की रिश्वत चाटने के बाद पुलिस वाले मेरेप्रति नर्म रूख अपनायेंगे और हद दर्जे की झूठी और मक्कार प्रियंका को दुत्कारेंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऐसे में प्रियंका का तो और हौसला बढ गया। दो-तीन बार तो उसने अपने भाइयों से मेरी पिटायी भी करवा दी। वह घर के आसपास रहने वाले लोगों के यहां जाती और मेरी बदनामी करती। हमारे परिवार ने उसे समझाने-मनाने के लिए कुछ रिश्तेदारों को बुलाकर घर में एक बैठक भी की। तब यह तय किया गया कि प्रियंका घर के ऊपरी माले पर रहेगी और खर्च के लिए १० हजार रुपये प्रतिमाह मुझे देने होंगे। मैंने सभी शर्तें मान लीं। मुझे तब बहुत पीडा हुई जब उसने घर खर्च के लिए दी गई रकम से किश्तों में नई कार खरीद ली। मैं फटीचर की तरह रहता था और प्रियंका शानो-शौकत के साथ। लोगों ने मेरा मजाक उडाना शुरू कर दिया। यार-दोस्त कन्नी काटने लगे। मेरे पिता और बहन ही थे जो मुझे नुकसान से उबरने की हिम्मत देते रहते थे। मैंने भी इधर-उधर हाथ-पैर मारने में कोई कसर नहीं रखी थी। मेरी मेहनत रंग लाने लगी थी। धीरे-धीरे मैंने लेनदारों को कर्ज की रकम लौटानी शुरू कर दी थी। मुझे यकीन था कि मैं शीघ्र ही कर्ज मुक्त होकर अपने सपने को साकार करने की राह पर दौडने लगूंगा। मेरी आनेवाली नई फिल्म तहलका मचा देगी। मेरा नाम होगा। लोग सलाम करेंगे। लेकिन प्रियंका सुधरने का नाम नहीं ले रही थी। एक रात तो उसने तमाम हदें पार कर दीं। अपने मौसेरे भाइयों के साथ मुझे अपमानित कर मेरे ही घर से मुझे धक्के मार कर बाहर कर दिया। उसके लिए पैसा ही सबकुछ है। मैंने तनाव से मुक्ति पाने के लिए अंधाधुंध शराब पीनी शुरू कर दी। पुलिस को बार-बार रिश्वत देने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। जब-तब खाकी वर्दी वाले मुझे परेशान करने के लिए आ खडे होते और मुझे जेल में सडाने की धमकियां देने लगते। मेरी सहनशीलता ने जवाब देना शुरू कर दिया और आखिरकार मुझे अपनी जिन्दगी को खत्म करने का निर्णय लेना पडा है। अतुल ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुए लिखा कि यह कैसा कानून है जो महिला की शिकायत पर तो फौरन कार्रवाई करता है, लेकिन पुरुषों पर होने वाले अन्याय को नजरअंदाज कर देता है?
आज देश में ऐसी नारियों की संख्या में इजाफा होता चला जा रहा है जो पति को पैर की जूती समझती हैं। देखने में आ रहा है कि कई युवतियां तो शादी होते ही अलग होने की योजना बनाने लगती हैं। उनका संयुक्त परिवार में दम घुटता है। वे हर मामले में आजादी चाहती हैं। आजादी और बर्बादी के फर्क को जानबूझकर भुला देती हैं। अपने अभियान को सफल बनाने के लिए हर मर्यादा को ताक में रख देती हैं। सास-ससुर और परिवार के अन्य सदस्यों का निरादर करने में उन्हें कोई झिझक नहीं होती। शालीनता के लबादे को बेहिचक उतार फेंकती हैं। देश के महान साहित्यकार गिरीश पंकज ने अपने ही एक मित्र की आप बीती कुछ इस तरह से बयां की है:
उन लोगों को असभ्य-गंवार कहा जाता है जो अश्लील गालियां देते हैं। इन दिनों कुछ शहरी लडकियां भी गंदी-गंदी गालियां देने लगी हैं। ऐसी ही एक लडकी को बहू बनाकर हमारे मित्र घर ले आए और अब अदालत के चक्कर काट रहे हैं। शादी के कुछ दिन बाद ही लडके ने देखा कि लडकी शराब पी रही है और सिगरेट के कश लगाने की भी शौकीन है। देर रात को घूमघाम कर घर लौट रही है। लडके ने जब इन सब बातों का विरोध किया तो लडकी लडने लगी और अश्लील गालियां देने लगी। कौन बर्दाश्त करता। लडकी को समझाया गया, लेकिन वो नहीं समझी। अब लडकी मायके चली गई है। सास-ससुर और पति के खिलाफ दहेज और प्रताडना का केस कर दिया है। दु:खी मित्र ने बताया कि लडकी की मां भी गंदी-गंदी गालियां देती है। लडकी के पिता सज्जन हैं। वे लज्जित हैं। कभी बडे अधिकारी रहे हैं। लेकिन आज बेबस हैं। हमारे मित्र परेशान हैं। वे नहीं चाहते कि अब कोई सुलह हो। क्योंकि जो लडकी इस कदर बिगड चुकी हो कि उसे रोज शराब सिगरेट चाहिए, उससे शालीनता की उम्मीद असंभव है। वे तलाक चाहते हैं।
एक और मामला सामने आया कि बहू आई और उसने साफ कह दिया कि मैं सुबह देर से उठूंगी। सास ने कहा कि कोई बात नहीं। वो आराम से उठती तो उसे चाय मिल जाती। खाना बनाने से भी उसे परहेज। मगर सास जो खाना बनाए वो उसे पसंद न आए। ऐसा कब तक चलता। आखिर लडकी 'त्रस्त होकर' मायके लौट गई। अब तलाक की प्रक्रिया चल रही है। ऐसी घटनाएं बढ रही हैं। प्रश्न ये है कि ऐसा क्यों हो रहा है? क्यों कम होती जा रही है शालीनता?"

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