Thursday, June 22, 2017

मरीजों को अपराधी मानने वाले डॉक्टर

हिन्द के नामी-गिरामी अस्पतालों में कैसी भर्राशाही चलती है उसका एक जीवंत उदाहरण १८ जून २०१७ को दिल्ली में सामने आया है। यहां के सफदरजंग अस्पताल में एक नवजात को मृत घोषित कर दिया गया। लेकिन अंतिम संस्कार से पहले परिवार के सदस्यों ने उसे जिन्दा पाया। हुआ यूं कि एक महिला ने एक शिशु को जन्म दिया। अस्पताल के डॉक्टरों, कर्मचारियों को बच्चे में कोई हरकत नजर नहीं आई तो उन्होंने बच्चे को एक पैक में बंद कर उस पर डेड का लेबल लगाकर अंतिम संस्कार के लिए पिता को सौंप दिया। मां की हालत ठीक न होने के कारण वह अस्पताल में ही भर्ती थी। पिता व परिवार के अन्य सदस्य जब अंतिम संस्कार की तैयारी में लगे थे तभी उन्होंने पैक में कुछ हरकत महसूस की और जब उसे खोला गया तो बच्चे की धडकन चल रही थी और वह हाथ-पैर चला रहा था।
क्या कोई अस्पताल धन की वसूली के लिए मरीज को बंधक बना सकता है? इसका जवाब है, हां। भारतवर्ष के अस्पताल इस तरह की करतूतें कर मीडिया की सुर्खिया पाते रहते हैं। दरअसल कुछ अस्पताल ठगी के अड्डे बन गए हैं जहां सीधे-सादे गरीब लोगों को बेखौफ लूटा जाता है।
देश की राजधानी में स्थित सेंट स्टीफेस अस्पताल में एक मां ने अपने बच्चे को इलाज के लिए भर्ती करवाया। लाचार मां ने डॉक्टरों को भर्ती किये जाने से पहले ही बता दिया था कि उसकी आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर है। डॉक्टरों ने भी उसे यह कहते हुए ढांढस बंधाया कि माताजी, चिन्ता न करें, यहां पर गरीबों का मुफ्त भी इलाज होता है। मां अस्पतालों के चरित्र से वाकिफ थी। इसलिए उसने लोगों की मदद से शुरू में ही ३० हजार रुपये जमा करवा दिए और अपने जिगर के टुकडे के इलाज के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त हो गई। इलाज शुरू होने के दो दिन बाद डॉक्टरों ने गिरगिट की तरह रंग बदलना शुरू कर दिया। मां को १० हजार रुपये और जमा करने और तीन हजार रुपये की दवाएं बाजार से लाने को कहा गया। किसी तरह से यह रकम भी जमा कर दी गई। एक हफ्ते के बाद बच्चा स्वस्थ हो गया। मां ने बच्चे को घर ले जाने की इजाजत मांगी तो उसे २७ हजार रुपये का और बिल थमा दिया गया। उसने जब असमर्थता प्रकट की तो बच्चे को बंधक बना लिया गया। मां हाथ जोडती रही। तीन दिन बाद उसने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवायी तब कहीं जाकर बच्चा दानवी प्रवृत्ति के डॉक्टरों के चंगुल से मुक्त हो पाया।
छत्तीसगढ में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और चिकित्सकों की असंवेदनशीलता किसी भी जागरूक इंसान को क्रोधित और चिंतित कर सकती है। बीते दिनों बिलासपुर जिले में एक गर्भवती महिला को सरकारी अस्पताल में भर्ती न कर भगा दिया गया। निराश, थकी-हारी वह महिला जब अस्पताल से पैदल लौट रही थी तो उसे प्रसव पीडा हुई और फिर एक टूटे घर के शेड में उसका प्रसव कराया गया। मध्यप्रदेश के शिवपुरी में स्थित सरकारी अस्पताल में नवजात बच्ची की उंगली चूहे के द्वारा कुतरे जाने और इंदौर के सरकारी अस्पताल के पोस्ट मार्टम हाऊस में रखे नवजात के शव को चीटियों ने नोचे जाने की खबरें अब आम हो चुकी है।
निजी अस्पतालों के हालात तो और भी चिंताजनक हैं। आज के दौर में होटलों और निजी चिकित्सालयों में ज्यादा फर्क नहीं रह गया है। मरीजों की जेबें काटने के कई तरीके ईजाद कर लिए गए हैं। कानून का पालन करना तो कतई जरूरी नहीं समझा जाता। मेडिकल कंपनियों और डॉक्टरों की मिलीभगत से अंतहीन लूटमार चल रही है। अपनी जान बचाने के लिए लोग आगा-पीछा नहीं सोचते। इधर-उधर से भी कर्ज लेकर इलाज कराते हैं। इसी का नाजायज फायदा उठा रहे हैं प्रायवेट अस्पताल और धंधेबाज डॉक्टरों के गिरोह। दूसरे व्यापार-धंधों में तो मुनाफे की कोई मर्यादा होती है, लेकिन चिकित्सा के क्षेत्र में मुनाफाखोरी अपनी सभी सीमाएं पार कर चुकी है। मेडिकल उपकरणों का बाजार तो मुनाफाखोरों और डॉक्टरों की जागीर बन कर रह गया है। अस्पतालों को कंपनियां जो मेडिकल उपकरण... नी (घुटना) रिप्लेसमेंट किट, हिप (कूल्हा) रिप्लेसमेंट किट और दिल की बीमारी वाले मरीजो के लिए उपयोगी स्टेंट की आपूर्ति करती हैं उन पर वे १००० से १५०० प्रतिशत मुनाफा कमाती हैं उसके बाद निजी अस्पताल वाले भी अपना अच्छा-खासा मुनाफा जोड लेते है उसपर अस्पताल के कमरे का किराया, नर्सों के शुल्क आदि की जो मनमानी वसूली की जाती है उससे अच्छे भले मरीज तथा उसके परिवार वालों की कमर टूट जाती हैं। यह अत्यंत ही हैरत की बात है कि घुटना बदलने वाली जिस किट की लागत मात्र १०,१५९ रुपये है उसी किट की कीमत चिकित्सा के बाजार में एक से डेढ लाख रुपये हो जाती है। लूट के इस खेल को यदि डॉक्टर और अस्पताल चाहें तो खत्म कर सकते हैं, लेकिन कमाई कर लालच उन्हें ऐसा नहीं करने देता। दिल की बीमारी में काम आने वाली कार्डियल स्टेंट की कीमतें कम करने की पिछले दिनों खबरें तो खूब आयीं थीं, लेकिन हुआ कुछ नहीं। अभी भी जमकर लूट जारी है। दरअसल हमारे देश के अधिकांश डॉक्टरों ने चिकित्सा को जनसेवा के बदले लूट का कारोबार बना दिया है।
देश के विख्यात सर्जन डॉ. नरेश त्रेहन का कहना है कि हिन्दुस्तान के अधिकांश डॉक्टर्स जल्द अमीर बनने के लिए लालची हो गए हैं और पैसे के पीछे भाग रहे हैं। रातों-रात धनपति बनने और हॉस्पिटल्स के दबाव में जरूरत नहीं होने पर भी स्टेंट लगा रहे हैं। सर्जरी कर रहे हैं। इससे डॉक्टर्स की प्रतिष्ठा पर जबर्दस्त आघात पहुंच रहा है। पैसे के लिए डॉक्टर्स उस प्रतिज्ञा (शपथ) को भूल गये हैं जो मरीजों की सेवा के लिए ली जाती है। आज मरीजों को नैतिक मूल्यों के आधार पर सेवा नहीं मिल पा रही है। प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों से डिग्री लेने के लिए अंधाधुंध पैसा खर्च किया जा रहा है। डिग्री लेने पर खर्च हुआ पैसा मरीजों के इलाज से वसूला जा रहा है। पचास साल पहले डॉक्टर्स के पास संसाधन नहीं होने के बावजूद उनका सम्मान था। आज टेक्नोलॉजी होने के बाद भी उन्हें सम्मान नहीं मिल पा रहा है। मरीजों से अनावश्यक रूप से पैसा वसूलने वाले डॉक्टरों ने तो जैसे मरीजों को अपराधी मान लिया है। उन्हें इलाज के लिए घर, जमीन और गहने तक बेचने पडते हैं।

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