Thursday, July 6, 2017

सडी हुई मछलियां

गुंडागर्दी करने वाले बेखौफ हैं। कुछ नेताओं की जुबानें जहर उगलने लगी हैं। सेना तक को नहीं बख्शा जा रहा है। मारपीट आम हो गयी है। हर चेतावनी और नसीहत बेअसर है। भीड को जज बनते देरी नहीं लगती। देखते ही देखते निर्दोषों को मौत के हवाले कर दिया जाता है। लोग तमाशबीन बने रहते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में निरंकुश भीड के द्वारा आतंक मचाने और हत्या कर गुजरने की खबरों का छा जाना रोजमर्रा की बात हो गई है। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे कि अपना देश खान-पान, जाति-धर्म, संकीर्णता और भीड की न्याय व्यवस्था के आधार पर चल रहा है। यह हिंसक हालात सत्ताधीशों, नेताओं और नौकरशाहों को भले ही परेशान न करते हों, लेकिन देश का हर संवेदनशील नागरिक उन्मादी भीड की दादागिरी से बेहद आहत है। उसकी नींद हराम हो चुकी है। क्या यह आहत करने वाला सच नहीं है कि २९ जून को जिस वक्त गुजरात के साबरमती में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गोरक्षा के नाम पर मौत का तांडव मचाने वालों को इंसानियत का पाठ पढा रहे थे... तभी झारखंड के रामगढ में गोमांस ले जाने के शक में एक वैन ड्राइवर को पीट-पीटकर मार डाला गया। गौरतलब है कि दो वर्ष पूर्व गोरक्षा के नाम पर उत्तरप्रदेश के दादरी में बीफ खाने के आरोप में अखलाक नामक बुजुर्ग को घर से खींचकर मार डाला गया था। इस शर्मनाक घटना से पूरे विश्व में भारत की छवि दागदार हुई थी। उसके बाद तो जैसे ऐसी हिंसक घटनाओं की झडी-सी लग गयी। अभी तक भीड के इंसाफ के नाम पर सैकडों बेकसूरों को मौत के घाट उतारा जा चुका है। ताज्जुब है कि राजनेताओं के चेहरे पर कहीं कोई शिकन नजर नहीं आती। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह का बयान आया है कि भीड द्वारा पीट-पीटकर मारने के जितने मामले एनडीए सरकार के तीन साल के कार्यकाल में सामने आये हैं उससे तो कहीं ज्यादा पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान सामने आये थे। तब तो इस तरह से सवालों की बौछार नहीं की गयी थी। निश्चित ही अमित शाह के कथन का तो यही अभिप्राय है कि पहले की सरकार के कार्यकाल में भीड द्वारा अधिक हत्याएं हुर्इं इसलिए लोगों को वर्तमान में घटित अपराधों को गंभीरता से कतई नहीं लेना चाहिए, लेकिन शाह को कौन समझाए कि हिन्दुस्तान की जनता पहले वाली सरकार के नकारेपन से त्रस्त हो चुकी थी तभी तो उसने नरेंद्र मोदी एंड कंपनी को देश की बागडोर सौंपी है। ताज्जुब है पार्टी अध्यक्ष के लिए यह कोई गंभीर समस्या नहीं है। जब कप्तान के यह हाल हैं तो पार्टी से जुडे अन्य संगठनो और कार्यकर्ताओं की सोच की सहज ही कल्पना की जा सकती है। देश का जन-जन यह देखकर हैरान-परेशान है कि गोरक्षकों की भीड का आतंक थमता नहीं दिखता। बेवजह मारपीट करने वालों को कानून का कतई भय नहीं है। अधिकांश गोरक्षक स्वयं को भाजपा एवं आर.एस.एस. का कार्यकर्ता और समर्थक बताते हैं और इन्हीं में से कई चुनावी मौसम में भाजपा प्रत्याशियों के लिए खून-पसीना बहाते देखे जाते हैं। एक शोध से यह सच सामने आया है कि गोरक्षा की आड में मारपीट करने और खून बहाने के करीब ९७ फीसदी मामले मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद अंजाम दिये गए हैं।
काबिलेगौर है कि प्रधानमंत्री का यह बयान भी कम चौंकाने वाला नहीं है कि ८० फीसद गोरक्षक फर्जी हैं। देश में सक्षम कानून है फिर भी फर्जी बलशाली हैं और आम आदमी भय के शिकंजे में जीने को विवश है! राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बेकाबू भीड के द्वारा खुले आम लोगों की हत्या करने की बढती घटनाओं पर गंभीर चिन्ता जताते हुए सवाल उठाया है कि क्या ऐसी घटनाओं के प्रति हम वाकई सतर्क हैं। ऐसी सभी घटनाएं देश के मूलभूत सिद्धांतों, संविधान की मर्यादा के खिलाफ हैं। अगर इन्हें रोका नहीं गया तो हमारी आने वाली पीढ़ियां हमसे तरह-तरह के सवाल पूछेंगी। जुनैद हत्याकांड, झारखंड में बीफ ले जाने के शक में भीड का कातिल हो जाना और कश्मीर में डीएसपी की हत्या जैसी बर्बरताओं ने हर किसी को चिन्तन-मनन करने को विवश कर दिया है कि यह हिंसा, अविश्वास, भेदभाव और नफरत की आंधी इस देश को कहां ले जाने वाली है। लोगों के तमाशबीन बने रहने की प्रवृति भी कई सवाल खडी करती है। बिहार के रोहतास में २९ जून को दो दलितों को बडी बेरहमी से मार दिया गया तो कोई उन्हें बचाने नहीं आया। उससे पहले २७ जून को झारखंड के गिरीडोह में उस्मान अंसारी नामक शख्स के घर के पास गाय की लाश मिलने के बाद उसे बुरी तरह से पीटा गया और घर में आग लगा दी गई। जांच में यह सच सामने आया कि बीमारी की वजह से गाय की मौत हुई थी। इसमें उस्मान का क्या कसूर था?
यह खबर भी कम स्तब्ध करने वाली नहीं है कि डॉक्टरों को भी बेकाबू भीड की गुंडागर्दी का भय सताने लगा है। कई डॉक्टर तनाव में जीने को विवश हैं। एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि इलाज में होने वाली देरी और मरीजों की इलाज के दौरान होने वाली मौतों की वजह से उनके परिजन एकाएक आक्रामक हो उठते हैं और डॉक्टरों के साथ मारपीट पर उतर आते हैं। इस तरह की घटनाओं में लगातार इजाफा होने की वजह से चिकित्सकों को हर वक्त भावनात्मक और शारीरिक हमलों के साथ-साथ मुकदमेबाजी भी का भय सताता रहता है। यही वजह है कि लगभग तीस प्रतिशत डॉक्टर तो अपनी संतानों को डॉक्टर ही नहीं बनाना चाहते। कुछ वर्ष पहले तक लोगों में डॉक्टरों के प्रति जो विश्वास और सम्मान की भावना थी उसे कुछ कफनचोर डॉक्टरों की कारस्तानियों ने काफी चोट पहुंचायी है। कहावत है कि 'एक सडी हुई मछली पूरे तालाब को गंदा-बदबूदार बना देती है।' इस मानव सेवा के पावन क्षेत्र में कुछ ऐसे लोग घुस आए हैं जो हद दर्जे के धनलोभी हैं। मरीजों को लूटना ही उनका एकमात्र उद्देश्य है। एक मरीज और डॉक्टर के बीच का रिश्ता भरोसे का होता है। और यह भरोसा तब टूटता है जब कोई डॉक्टर चिकित्सकीय शुचिता कायम रखने में नाकाम रहता है। देश में बहुतेरे ऐसे डॉक्टर हैं जो अपने मरीजों को भलाचंगा करने में अपनी जान लगा देते हैं। उनका किसी भी लालच से कोई लेना-देना नहीं होता। ऐसे डॉक्टरों के कारण ही चिकित्सकों को भगवान का दर्जा हासिल है। वैसे अपवाद कहां नहीं होते। डॉक्टरों पर हमलेबाजी को कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस पर चिन्ता जताते हुए कहा है कि- महात्मा गांधी के इस देश में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। अगर किसी विफल ऑपरेशन की वजह से किसी मरीज की मौत हो जाती है तो रिश्तेदार अस्पतालों को जला देते हैं और चिकित्सकों को पीटते हैं। दुर्घटना तो दुर्घटना है। हादसों में लोग मरते हैं या घायल होते हैं तो लोगों का हुजूम आता है और वाहनों को जला देता है। यकीनन इस 'आग' को बढने से रोकना होगा। यह काम हम और आप ही कर सकते हैं। तमाशबीन बने रहने की आदत को त्याग कर सच्चे-सतर्क देशवासी की भूमिका निभानी ही होगी।

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