Thursday, August 24, 2017

आज़ादी...आज़ादी...आज़ादी?

कितने युवा ऐसे हैं जो सच्चे प्यार की परिभाषा को आत्मसात करने को तैयार ही नहीं हैं। स्कूल कॉलेजों में अध्ययनरत असंख्य छात्रों को जकडता सेक्स और रोमांस का बुखार भयावह और चिंताजनक मंजर दिखाने लगा है। एकतरफा तथाकथित प्यार के आवेश में मनमानी करने वाले मजनुओं ने सम्मान, मनुहार और त्याग से दूरी बनानी शुरू कर दी है। उनमें यह सोच घर कर चुकी है कि मेरी नहीं, तो किसी और की भी नहीं। नहीं सुनना तो उन्हें कतई रास नहीं आता। इसी के फलस्वरूप उनके बलात्कारी और हत्यारे होने के समाचार बेटियों और उनके माता-पिता को बेहद डराने लगे हैं। वैसे ऐसे लोगों की तुलना तो सिर्फ और सिर्फ जानवरों से ही की जा सकती है। मानसिक रूप से बीमार वासना के गुलामों के कई चेहरे हैं। एक ओर जहां बेगाने घिनौने दुराचारों को अंजाम दे रहे हैं वहीं अपने भी अपनों की इज्जत पर डाका डालने में पीछे नहीं हैं। जो संबंध कभी पवित्रता की कसौटी पर पूरी तरह से खरे उतरते थे, उनमें खोट का आ जाना कई-कई सवाल खडे करता है। करीबी रिश्तों में घर कर चुकी विषाक्त गंदगी की सफाई आखिर कैसे हो पायेगी और दूसरों की मजबूरी और पीडा का फायदा उठाने की प्रवृत्ति का कैसे अंत होगा?
श्रेया बारहवीं क्लास की छात्रा थी। वह प्रोफेसर बनना चाहती थी। वह एशियाड और ओलंपियाड में कई बार टॉप लेवल पर आ चुकी थी। २८ जुलाई २०१७ को उसने स्कूल के जोनल कॉम्पिटशन अचीवमेंट में यह कविता सुनाई थी जिसे सुनकर सभी भावुक हो गए थे, "बेटियां किसी से कम नहीं... मगर घर से निकलने में डरती हैं... नजरें घूरती हैं... डर लगता है पीछा करने वालों से... फिर भी बेटियां किसी से कम नहीं, किसी के डर से घर में कैद न करो...।" १७ वर्षीय श्रेया शुरू से ही पढाई में होनहार थी। रात को दो बजे तक पढती रहती थी। माता-पिता को उसे याद दिलाना पढता था कि काफी रात हो गयी है, अब सो जाओ, सुबह स्कूल जाना है। स्कूल से आने के बाद भी वह अपने भाई को पढाती और मां के साथ काम में हाथ बंटाती। हर पल का सदुपयोग करने वाली श्रेया की १६ अगस्त २०१७ को गला दबाकर हत्या कर दी गई। हत्यारा और कोई नहीं, उसी का दोस्त सार्थक था, जिससे उसने कुछ वजहों से दूरियां बना ली थीं और बात तक करना बंद कर दिया था। लेकिन सार्थक जब-तब उसका पीछा कर उसे तंग करता रहता था। श्रेया ने सार्थक को कई बार फटकारा, लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया। उसके पास श्रेया की कुछ तस्वीरें भी थीं जिनके दम पर वह उस पर एकांत में मिलने के लिए दबाव डालता था। बुधवार शाम आठ बजे श्रेया ट्यूशन पढकर घर लौट रही थी तो वह उसके समक्ष गिडगिडाने लगा कि उसे सिर्फ एक बार जरूरी बात करनी है। इसके बाद वह कभी उसका पीछा नहीं करेगा। श्रेया उसकी बात मान गई। दोनों कुछ ही दूरी पर संकरी गली में जा पहुंचे। श्रेया ने उसे अपना ध्यान पढाई-लिखाई पर लगाने और उसका पीछा करने से बाज आने को कहा तो वह भडक उठा। सार्थक कुछ और ही सोचकर आया था। उसने बस यही रट लगाये रखी कि वह उससे बेहद प्यार करता है। श्रेया ने उसे बहुतेरा समझाया कि उसके मन में कभी भी ऐसा कोई ख्याल नहीं आया। दोस्ती का उसने गलत अर्थ लगाया है। गलत हरकतों के कारण ही वह उसकी नजरों से गिर चुका है। बातों ही बातों में दोनों के बीच नोंक-झोंक और धक्का-मुक्की होने लगी। गुस्से में आकर उसने श्रेया का गला घोंटा और सीधे अपने घर पहुंच गया।
श्रेया के माता-पिता और भाई इस सदमे को कभी भी नहीं भूल पाएंगे। उसका हंसना-खिलखिलाना और शरारतें करना उन्हें जब-तब याद आता रहेगा। बेटी के कमरे में सजे मेडल्स, शील्ड और सर्टिफिकेट्स ताउम्र पुरानी यादों को ताजा करते हुए आंखों को भिगोते रहेंगे। हत्यारा सार्थक तो कुछ साल जेल की सलाखों के पीछे रहने के बाद जिन्दा अपने घर वापस लौट आयेगा।
जब देशवासी आजादी का जश्न मना रहे थे तब चंडीगढ में दस साल की एक बलात्कार पीडिता बच्ची ने अस्पताल में एक बेटी को जन्म दिया। बच्ची को उसके मामा ने अपनी हवस का शिकार बनाया था। बीते महीने जब बच्ची के पेट में दर्द हुआ तो उसकी मां उसे डॉक्टर के पास ले गई थी। वहां पर पता चला कि बच्ची तो सात महीने से गर्भवती है। बच्ची के गर्भवती होने की खबर जब मीडिया में आयी तो पूरा देश स्तब्ध रह गया। अखबारों और न्यूज चैनलों पर चर्चाओं का दौर चलने लगा। पिता, चाचा, भाई, मामा के वहशीपन की नयी-पुरानी दास्तानें दुहरायी जाने लगीं और गर्त में जाते नजदीकी रिश्तों पर गहन चिन्ता जताने का सिलसिला चल पडा। नाबालिग बच्ची के अबॉर्शन की अनुमति मांगी गई, लेकिन शीर्ष अदालत ने अनुमति देने से इन्कार कर दिया था। ३२ हफ्ते के गर्भ की मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद अदालत का मानना था कि गर्भपात न तो पीडिता के लिए ठीक है और न ही भ्रूण के लिए। बच्ची की प्रेग्नेंसी ३६ हफ्ते के करीब पहुंचने पर उसे १५ अगस्त के दिन आपरेशन थिएटर ले जाया गया जहां उसने बेटी को जन्म दिया। अबोध बच्ची से उसके गर्भवती होने के सच को छिपाया गया। उसे बताया गया कि उसके पेंट में पथरी थी जिसका ऑपरेशन किया गया है। गौरतलब है कि मनोविज्ञान की डॉक्टरों ने डिलीवरी से पहले बच्ची को मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार करने के लिए काउंसलिंग को जरूरी बताया था, पर बच्ची के माता-पिता ने मना कर दिया था। उनका कहना था कि इससे बच्ची को पता चल सकता है कि वह गर्भवती है। बच्ची के पिता ने दो दिन पहले मेडिकल कॉलेज प्रशासन को एक पत्र में स्पष्ट लिख दिया था कि वे किसी भी हालत में नवजात को अपनाने को तैयार नहीं हैं। उनकी बेटी को भी जन्म लेने वाले बच्चे का मुंह न दिखाया जाए। देश के कई लोगों ने बच्ची को गोद लेने की इच्छा जतायी है। अमेरिका से एक व्यक्ति ने बच्ची को गोद लेने के लिए हॉस्पिटल डायरेक्टर को ईमेल भेजी है।
मानवता का धर्म तो यही कहता है कि लाचार और बीमार के प्रति सहानुभूति दर्शाते हुए उसकी सहायता करनी चाहिए। लेकिन...। १५ अगस्त को देश की राजधानी दिल्ली में लोगों का चौंका देने वाला बेरहम और बेपरवाह चेहरा नजर आया। एक तेज रफ्तार कार की चपेट में आया युवक १४ घण्टे तक रिंग रोड पर तडपता रहा, लेकिन किसी को भी उसकी मदद करने की नहीं सूझी। उलटे उसे लूट लिया गया। एक स्कूटर सवार लहुलूहान तडपते युवक के पास पहुंचा और उसका १२ हजार रुपये से भरा बेग और जेब से तीन हजार रुपये लेकर चलता बना। हां, उसने वहां पर एक पानी की बोतल जरूर रख दी। एक पानी की बोतल के बदले १५ हजार की इस लूट ने यकीनन इंसानियत को तो शर्मसार कर ही डाला।

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