Thursday, August 31, 2017

धूर्त और बहुरूपिये

नाम राम रहीम। लेकिन उनके संस्कारों और नेक कर्मों से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं। इंसां होने का दावा करने वाले शैतान गुरमीत ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि उसे अपने दुष्कर्मों की सज़ा मिलेगी। उसके सत्ताधीशों से प्रगाढ रिश्ते थे। नेता, अफसर उसके यहां आकर चरणवंदना करते थे। प्रशासन उसके इशारों पर नाचता था। इसलिए वह पूरी तरह से बेफिक्र होकर दुष्कर्म पर दुष्कर्म करता रहा और जिसने भी उसके खिलाफ आवाज़ उठाई उसकी इस दुनिया से रवानगी कर दी गई। फिर भी सदियों से चली आ रही यह कहावत कि 'ऊपर वाले के यहां देर है, अंधेर नहीं' चरितार्थ हो गई। डेरा सच्चा के सर्वेसर्वा गुरमीत को केन्द्रीय जांच ब्यूरो की विशेष अदालत ने अपनी दो शिष्याओं के साथ बलात्कार करने के संगीन अपराध में बीस साल की कडी सजा सुनायी। खुद को भगवान का दूत कहने वाला गुरमीत फैसला सुनते ही फूट-फूट कर रोया। हाथ जोडकर उसने दया की भीख मांगी। उसके हाथ-पैर कांपने लगे। वह बार-बार माफी की भीख मांगता रहा और कहता रहा है कि उसने जीवन पर्यंत बेबसों, गरीबों, दलितों, शोषितों की मदद की है। लाखों लोगों को नशे से मुक्ति दिलवायी है, वेश्याओं का उद्धार किया है, विधवाओं को आश्रय दिया है और समाज के लिए ऐसे कई काम किये हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। लेकिन माननीय जज पर कोई असर नहीं पडा। उन्होंने तो गुरमीत के काले सच की पूरी किताब पढने-जांचने के बाद ही यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। गुरमीत की नीच हरकतों का पिटारा तो २००२ में ही खुल गया था जब पीडित साध्वी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र लिखकर डेरा सच्चा सौदा के सिरसा डेरे में साध्वियों से दुष्कर्म किये जाने की शिकायत कर गुरमीत के संत नहीं, कुसंत होने का सारा काला-चिट्ठा पूरे सबूतों के साथ पेश किया था। तब होना तो यह चाहिए था कि यह खबर देश के तमाम अखबारों के पहले पन्ने पर जगह पाती, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। गुरमीत का अथाह रसूख और धनबल काम कर गया और अधिकांश नामी-गिरामी, बडे-बडे पत्रकारों, संपादकों और मालिकों ने बिकने में देरी नहीं लगायी। गुरमीत ने अपने व्याभिचारी चेहरे को छुपाने के लिए देश के बडे-बडे समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में चार-चार-आठ-आठ पेज के ऐसे-ऐसे विज्ञापन छपाने शुरू कर दिए जिनमें उसे ईश्वर का एकमात्र ऐसा दूत दर्शाया गया जिसका इस धरती पर आगमन ही गरीबों की सेवा और नारी कल्याण के लिए हुआ है। पत्रकारिता के इस बिकाऊ और घोर अंधेरे दौर में उजाले की किरण के रूप में तब एक पत्रकार ने गुरमीत के काले कारनामों को उजागर करने का बीडा उठाया। इस पत्रकार का नाम था, रामचंद्र छत्रपति। वे सिरसा से एक सांध्य दैनिक 'पूरा सच' का प्रकाशन करते थे जिसकी खबरें उसके नाम के अनुरुप होती थीं। उन्होंने बेखौफ होकर साध्वी की चिट्ठी को 'पूरा सच' में प्रकाशित करने के साथ-साथ उसके तमाम काले कारनामें लगातार उजागर करने का अभियान चला दिया। इससे गुरमीत की तो चूलें ही हिल गयीं और वह इस कदर बौखलाया कि उसने निष्पक्ष निर्भीक पत्रकार की हत्या करवा दी। इस निर्मम हत्या पर कहीं कोई शोर-शराबा नहीं हुआ। एक पाखंडी के द्वारा करवायी गई इस निर्मम हत्या को महज एक आम खबर मानकर भुला दिया गया और अब जब गुरमीत को जेल में ठूंसा गया तो देश के तमाम मीडिया को रामचंद्र छत्रपति की कुर्बानी की याद हो आयी। विभिन्न न्यूज चैनलों और समाचार पत्रों में छत्रपति की निर्भीक पत्रकारिता के चर्चे होने लगे। जिन दैनिक अखबारों के मालिकों और संपादकों ने तब छत्रपति के द्वारा भेजी गई साध्वी की चिट्ठी और गुरमीत के डेरों में चलने वाले हवस के खेल की सच्चाई को छापने से इन्कार कर दिया था वे भी अब यही लिखते और कहते नजर आ रहे हैं कि पत्रकार हो तो रामचंद्र जैसा, जिसने गुरमीत जैसे दानव से लोहा लेकर सजग पत्रकारिता का मान और सम्मान बढाया। सच तो यह है कि अगर तब देश का सारा मीडिया पाखंडी गुरमीत के पर्दाफाश में जुट जाता तो उसके कुकर्मों की शर्मनाक यात्रा और आगे नहीं बढ पाती। मीडिया ही है जो लोगों को जगा सकता है। यह काम नेताओं के बस का नहीं है। उन्हें तो जहां से वोट मिलते दिखते हैं, वहीं पर वे भीख का कटोरा लेकर पहुंच जाते हैं। अय्याश गुरमीत को सजा सुनाये जाने के बाद कई अंधभक्तों के होश ठिकाने आ गये हैं और उन्होंने वासना के कीचड में सने ढोंगी की तस्वीरों को कचरे और नालियों के हवाले करना शुरू कर दिया है। यह उनके साथ किये गए विश्वासघात से उपजा गुस्सा है। यह नफरत उन हवस के पुजारियों के लिए चेतावनी है जो साधु का लिबास धारण कर भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाते हैं। गुरमीत जैसे कई और धूर्तों का जाल जहां-तहां फैला है। इनके कई खरीदे हुए चेले होते हैं जो भोले-भाले लोगों को फांसने के लिए दिन-रात इनके गुणगान के प्रचार में लगे रहते हैं। इनके निशाने पर अनपढ और गरीब लोग ज्यादा होते हैं जिन्हें बताया जाता है कि बाबा उनकी सभी समस्याओं का खात्मा कर सकते हैं। उनकी सभी मनचाही मुरादें पूरी हो सकती हैं। निराश और हताश लोग बडी आसानी से उनके झांसे में आ ही जाते हैं। गुरमीत के भी ऐसे ही अंधभक्त शिष्यों की संख्या लाखों-करोडों में थी जो 'चमत्कार' पर यकीन रखते थे। बाबाओं के अनुयायियों की संख्या के आधार पर ही उनकी कीमत, रूतबा तय होता है। गुरमीत के डेरों में उनके लाखों भक्तों को वोट में तब्दील करने के लिए विभिन्न पार्टियों के राजनेता उसके आगे-पीछे दौडते रहते थे। वे उसके यहां नतमस्तक होने के लिए बार-बार हाजिरी लगाते रहते थे। 'इस हाथ ले, उस हाथ दे' की नीति पर चलने वाला गुरमीत उन्हें भरोसा दिलाता था कि उसके लाखों भक्तों के वोटों पर सिर्फ उन्हीं का हक है। इन्हीं वोटों के लालच में ही वर्षों तक कांग्रेस गुरमीत पर कई तरह की मेहरबानियों की बरसात करती रही। चार कांग्रेसी सांसदों ने सीबीआई के डायरेक्टर पर पावन रिश्तों के हत्यारे गुरमीत का केस बंद करने का जबर्दस्त दबाव बनाकर उसके हौसले को बुलंद किया था। भारतीय जनता पार्टी पर भी कांग्रेस की परंपरा निभाने के आरोप हैं।
गुरमीत की तथाकथित बेटी हनीप्रीत ने डंके की चोट पर कहा कि, "हरियाणा में विधानसभा के चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी से यह डील हुई थी कि पार्टी के सत्ता में आने के बाद भरपूर राहत प्रदान की जाएगी और बलात्कार का मुकदमा खत्म कर दिया जाएगा। गुरमीत ने भाजपा के दिग्गज नेताओं पर यकीन कर डेरा के प्रभाव वाली २८ विधानसभा सीटों पर भाजपा के पक्ष में मतदान करने का फरमान जारी किया था। मनोहरलाल खट्टर ने ही चुनाव के वक्त गुरमीत की मुलाकात अमित शाह से कराई थी। गुरमीत को पूरा यकीन था कि उसके साथ धोखा नहीं होगा। सीबीआई कोर्ट की ओर से उसे बलात्कार का दोषी ठहराए जाने के बाद यह तय हो गया है कि भाजपा के दिग्गज नेताओं ने वोट के लालच में सत्ता प्राप्ति के लिए बाबा के साथ धोखा किया है।"

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