Thursday, August 3, 2017

हताशा और निराशा देती...न्याय की धीमी गति

पचास-सौ साल बाद जब लोगों को यह पढने को मिलेगा कि इक्कीसवीं सदी में भारतवर्ष में ऐसे नर-पिशाच भी थे जो बच्चों को मारकर उनके अंग निकाल लेते थे और युवतियों के साथ बलात्कार कर उन्हें मौत के घाट उतार देते थे, तो उन्हें कैसा लगेगा? यकीनन उन्हें हैवानियत की सभी हदें पार कर देने वाले राक्षसों की दिल दहला देने वाली दास्तानें हिलाकर रख देंगी। २००६ में देश की राजधानी दिल्ली के निकट स्थित नोएडा के निठारी गांव में जब मानवी नरकंकाल मिलने का सिलसिला शुरू हुआ तो पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। देश के करोडों संवेदनशील भारतीयों के लिए इस क्रूर सच को सहना कतई आसान नहीं था। निठारी में जब बच्चे अचानक ही गायब होने लगे और कुछ युवतियां भी गायब हो गर्इं तो पूरे गांव में दहशत पसर गई। लेकिन पुलिस के कानों पर जूं नहीं रेंगी। लोग अपने बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराते, लेकिन होता-जाता कुछ भी नहीं था। फाइल ही बंद कर दी जाती थी। गुम होने वाले बच्चे और युवतियां गरीब परिवार से थीं इसलिए भी पुलिस उनकी खोजबीन में समय गंवाने को तैयार नहीं थी। अगर यह बच्चे अमीरों के होते तो भारतीय पुलिस उन्हें खोजने में जमीन-आसमान एक कर देती। कुछ लोगों ने मनिंदर सिंह पंधेर की कोठी में चलने वाली संदिग्ध गतिविधियों को लेकर शंका जतायी तो भी पुलिस निष्क्रिय रही। मनिंदर सिंह पंधेर की कोठी पर पुख्ता संदेह के बादल तब मंडराये जब पायल नाम की बीस वर्षीय युवती कोठी में प्रवेश करने के बाद लापता हो गई। वह कोठी में रिक्शे से आई थी। उसने रिक्शेवाले को कोठी के बाहर यह कहकर रोका था कि वह फौरन वापस आकर पैसे देती है। काफी देर तक इंतजार करने के बाद जब वह नहीं लौटी तो रिक्शेवाले ने कोठी का गेट खटखटाया। काफी देर बाद पंधेर का नौकर सुरेंद्र कोली बाहर आया और उसने कहा कि वह तो कब की जा चुकी है। रिक्शेवाला पूरे होशोहवास में था। वह अड गया। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोली सच बोल रहा है। उसने जोर-जोर से बोलना शुरू कर दिया। उसका बस यही कहना था कि युवती उसके सामने अंदर गई है और वह तभी से गेट के सामने खडा है। उसने अपनी पलकें भी नहीं झपकीं और यह कह रहा है कि युवती जा चुकी है। रिक्शेवाले के जोर-जोर से बोलने के कारण काफी लोग जुट गए और वे तरह-तरह की बातें करने लगे। युवती के गायब होने की खबर को नोएडा और आसपास फैलने में देरी नहीं लगी। युवती के पिता नंदलाल ने बेटी के रहस्यमय ढंग से गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करवा दी। पुलिस वालों को भी मजबूरन जागना पडा। उन्होंने फटाफट कोठी को घेर लिया और छापामारी की। युवती तो नहीं मिली लेकिन कोठी के नौकर और मालिक के चेहरे के उडे रंग ने संकेत दे दिए कि दोनों घुटे हुए अपराधी हैं। पंधेर की आलीशान कोठी से सटे गंदे नाले की सफाई शुरू की गई तो एक के बाद एक नरकंकाल मिलने लगे। इनमें ज्यादातर बच्चों के कंकाल थे जिन्हें ४० बोरों में भरकर ले जाया गया। अब तो लोगों के दिलों में इस कदर दहशत घर कर गई कि वे कोठी के सामने से गुजरने से भी घबराने लगे। धीरे-धीरे रहस्य से पूरी तरह से परदा उठने के बाद पता चला कि बलात्कार करने के बाद इन्हें नाले में फेंक दिया गया था। सघन जांच के बाद यह तय हो गया कि कोठी के मालिक मनिंदर सिंह पंधेर और उसका नौकर सुरेंद्र कोली पूरी तरह से नृशंस बलात्कारी और नरभक्षी हैं। इस दिल दहला देने वाले कांड में सुरेंद्र कोली की काफी अहम भूमिका सामने आई। कोली बहुत अच्छा खाना बनाता था। इसी वजह से वह पंधेर के संपर्क में आया और पंधेर का सेवक बन गया। कालांतर में उसे नेक्रोफिलीया नामक बीमारी हो गई और वह बच्चों के मांस खाने का शौकीन हो गया। पंधेर की कोठी में अक्सर कॉलगर्ल आया करती थीं। इस दौरान कोली कोठी के गेट पर नजर रखता था। कोठी के सामने से गुजरने वाले बच्चों को पकड कर उनके साथ कुकर्म किया जाता था। उसके पश्चात उनकी हत्या कर दी जाती थी। कोली बच्चों का मांस पका कर खाता था। कई लोगों का कहना है कि पंधेर मानव अंगों का व्यापार करता था। बच्चों को मारकर उनके अंग निकाल लिए जाते थे, जिन्हें विदेशों में बेचा जाता था।  पायल की बलात्कार कर हत्या कर दी गई थी। ऐसे न जाने कितने बलात्कारों और हत्याओं को निठारी की कोठी में अंजाम दिया गया, लेकिन जांच के बाद केवल १९ एफआईआर दर्ज की गयीं। ११ जनवरी २००७ को यह पूरा प्रकरण राज्य सरकार द्वारा सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया। अभी तक आठ मामलों में कोली को फांसी की सजा सुनायी जा चुकी है। हालांकि एक मामले में उसकी फांसी की सजा को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उम्र कैद में तब्दील कर दिया था। पंधेर को वर्तमान सजा के साथ सीबीआई कोर्ट ने दो मामलों में फांसी की सजा सुनाई, मगर पूर्व में एक मामले में हाईकोर्ट उसे बरी कर चुका है। निठारी कांड के आठवें केस में २४ जुलाई २०१७ को गाजियाबाद की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने मनिंदर सिंह पंधेर और सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा सुनायी तो पीडितो के परिजनों का यही कहना था कि उन्हें असली सुकून तभी मिलेगा जब दोनों दरिंदों को फांसी के फंदे पर लटकाया जाएगा। परिजनों को लगता है कि गरीब कोली को तो आखिरकार फांसी दे दी जाएगी, लेकिन धनपशु पंधेर बच जाएगा। इस देश में अमीर कानूनी दांव-पेच खेलकर बच जाते हैं और गरीबों का कानून के शिकंजे से बाहर निकलना असंभव हो जाता है। लोगों को तो यह भी शंका है कि इन दोनों के अतिरिक्त कुछ अन्य लोग भी इस निर्मम कांड में शामिल थे जिनके नाम सामने नहीं आने दिये गए। एक पिता जिनकी १० वर्षीय बेटी ११ वर्ष पूर्व लापता हुई थी, वे तो कोर्ट में फफक-फफक कर रोने लगे। इस बदनसीब पिता ने बताया कि उन्हें कई बार मोटी रकम का लालच दिया गया। कहा गया कि अब बेटी तो वापस आने से रही। इसलिए जो हुआ उसे भूल जाओ। सतत अडिग रहकर कानून की लडाई लडने वाले इस पिता ने यह भी बताया कि कई बच्चियों के मां-बाप ऐसे थे, जिनकी जेबें खाली थीं। उनकी भी आर्थिक मदद कर वे उनका हौसला बढाते चले आ रहे हैं। निठारी कांड की बलि चढी बच्चियों को न्याय मिल सके इसके लिए उन्होंने अपना मकान तक बेच डाला। आज की तारीख में वे लगभग ९ लाख रुपये के कर्जदार हो चुके हैं। बहन को न्याय मिल सके इसके लिए उनका एक बेटा अधिवक्ता बन गया है। निराश और उदास पिता के आंसू आखिर तक नहीं थमते। वे सवाल की मुद्रा में आ जाते हैं : "आखिर हमारी बिटिया को कब मिलेगा न्याय? वह पढ-लिखकर वकील बनना चाहती थी। बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए हम अपना गांव छोडकर नोएडा आये थे। आज जब मैं उस मनहूस दिन को याद करता हूं तो बहुत पश्चाताप होता है साहेब।"
निठारी में ही एक सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने वाले बीस वर्षीय युवती के पिता भी कोर्ट के चक्कर काटते-काटते जैसे हार चुके हैं। न्याय है कि दूर की कौडी होता चला जा रहा है। उन्हें ऐसा लगता है कि अपराधी जेल में ही मर-खप जाएंगे। फांसी का फंदा उन्हें छू भी नहीं पायेगा। यह हमारी कानून व्यवस्था की खामी ही है जो ११ वर्ष बीतने के बाद भी परिजनों को शीघ्र न्याय दे पाने में सक्षम दिखायी नहीं देता। अभी तो ११ वर्ष बीते हैं। हो सकता हैं ऐसे ही बीस वर्ष और बीत जाएं और दोनों दरिंदे जेल में ही अपनी मौत मर जाएं। यह उनके लिए बहुत पीडा की बात होगी जो वर्षों से न्याय का इंतजार कर रहे हैं। देरी... बहुत देरी से मिलने वाले न्याय का इसलिए भी कोई मतलब नहीं रह जाता क्योंकि इससे अपराधियों तक कडे कानून का सबक और संदेश ही नहीं जाता।

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