Thursday, February 1, 2018

आखिर कैसे आयेगा बदलाव?

गोंडा जिले के नवाबगंज में अठारह वर्षीया युवती के साथ गांव के ही एक युवक ने निकाह का आश्वासन देकर शारीरिक रिश्ते बना लिए। युवती जब गर्भवती हो गई तो युवक के परिवार वालों ने यह कहकर गर्भपात करवा दिया कि गर्म के दौरान निकाह नाजायज है। युवती मान गयी। कुछ दिनों के पश्चात युवक बदला-बदला-सा नज़र आने लगा। युवती उससे बात करना चाहती तो वह तरह-तरह की बहानेबाजी कर कन्नी काटने लगता। शंकाग्रस्त युवती ने उसपर निकाह करने का दबाव बनाया तो उसने स्पष्ट इनकार कर दिया। उसने उसे उसकी अश्लील फोटो वायरल करने की धमकी देकर हमेशा-हमेशा के लिए मुंह बंद रखने की धमकी दे डाली। युवती समझ गई कि वासना का शिकार बनाकर उसके साथ धोखाधडी की गई है। युवती अपनी मां के साथ पुलिस थाना जा पहुंची और आरोपी युवक व उसके परिवार वालों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी। मां-बेटी के इस हौसले से गांव वाले बौखला गये। उनका मानना था कि दोनों ने गांव की इज्जत उछालने का दुस्साहस किया है। गांव की बात गांव में ही रहनी चाहिए थी। नाराज गांववालों ने पंचायत बैठायी और मां-बेटी को पंचायत के समक्ष हाजिर होने का फरमान सुनाया। दोनों के साथ अपराधियों की तरह व्यवहार कर उन्हें धूप मे खडा रखा गया। पंचायत में पंचों ने सिर्फ और सिर्फ युवती को कसूरवार ठहराते हुए संपूर्ण परिजनों का बहिष्कार करने का निर्णय सुना दिया। इतना ही नहीं पांच हजार रुपये का जुर्माना और पीडिता का निकाह करने के बाद उसके परिवारवालों को फकीरों को भरपेट भोजन कराने की सजा भी सुना दी।
देश की राजधानी दिल्ली के निकट स्थित नोएडा में एक कलियुगी शक्की बाप ने अपनी ही बेटी को चुन्नी से गला घोंटकर मौत के घाट उतार दिया। बेटी का दोष सिर्फ इतना था कि वह फोन पर किसी से बात कर रही थी। बेटी बारहवीं की छात्रा थी। लोकलाज की चिन्ता के रोगी निर्दयी बाप ने बेटी का खात्मा करने के बाद खुद ही पुलिस को सूचना दी कि साहब मैंने अपनी बेटी की हत्या कर दी है। झूठी शान में बेटी की हत्या करने वाले बाप के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। लोकलाज का रोना रोने वाले हमारे समाज में अधेडों और बुजुर्गों को जब हवस की आग झुलसाती है तो वे किस कदर शैतान बन जाते हैं इसकी भी ढेरों हकीकतें हैं। इन सच्ची दास्तानों में वे दरिंदे भी शामिल हैं जिन्हें कुदरत दादा, नाना, बाप, चाचा, भाई, मामा आदि-आदि बनने का मौका देती है, लेकिन यह लोग रिश्तों और अपनी उम्र की परवाह किये बिना ऐसी-ऐसी शैतानियां करते देखे जाते हैं कि जिससे इंसानियत और रिश्ते शर्मसार हो जाते हैं।
पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर इलाके में एक उन्नीस वर्षीय युवती अपने नाबालिग दोस्त के साथ घूम रही थी। इस बीच एक अधेड शख्स उनके पास पहुंचा और उन्हें धमकाने लगा कि वे अश्लील हरकतें बंद कर अपने-अपने घर चले जाएं। वर्ना वह उन्हें अय्याशी करने के जुर्म में हवालात पहुंचवा देगा। डर के मारे दोनों ने वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी। लडके के चलने की रफ्तार तेज थी। युवती धीरे-धीरे चल रही थी। अधेड के लिए यह अच्छा मौका था। सुनसान रास्ते पर उसने युवती को दबोचा और उसका शील हरण कर लिया। इसके बदले में उसने युवती के हाथ में दो सौ रुपये भी जबरन थमा दिए। उस उम्रदराज अय्याश का युवती को बलात्कार के बाद रुपये देना यकीनन यही दर्शाता है कि वह ऐसे कुकर्म करने का पुराना खिलाडी है। ऐसे चरित्रहीनों की निगाह में रात को अकेले या किसी दोस्त के साथ घूमने वाली कोई भी युवती बाजारू ही होती है। उसे चंद सिक्कों में खरीदा जा सकता है, लेकिन यह युवती वैसी नहीं थी। उसने थाने में शिकायत कराने में जरा भी देरी नहीं लगायी। ऐसे नराधमों की यह सोच भी होती है कि चरित्रवान नारियां बलात्कार का शिकार होने के बाद भी लोकलाज के भय से शोर-शराबा नहीं करतीं।
देश के ही प्रदेश उत्तरप्रदेश में २६ जनवरी यानी गणतंत्र दिवस की शाम एक टीवी एंकर को अकेली देखकर दो मोटर सायकल सवार युवकों ने अपनी बेहूदा छींटाकशी का शिकार बनाया। बहादुर युवती ने जब उन्हें फटकारा तो वे और बेखौफ होकर अश्लील शब्दावली का इस्तेमाल करने लगे। बदमाश युवकों ने युवती को ऐसी-वैसी समझ लिया था, लेकिन युवती ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा कर युवकों को सलाखों के पीछे भेजकर ही दम लिया। कहने को तो सख्त कानून बना दिये गये हैं, लेकिन फिर भी महिलाएं खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर पा रही हैं। अपने ही देश भारतवर्ष में पिछले दिनों एक फिल्म को रोकने के लिए इस कदर हंगामें हुए कि लगा कि नारी की इज्जत की रक्षा के लिए भारतवासी कुछ भी कर सकते हैं। इस खबर ने तो पूरे विश्व के लोगों के कान खडे कर दिये कि डेढ हजार महिलाओं ने जौहर के लिए पंजीयन करवाया। कई सजग लोगों के मन में यह विचार भी आया कि रानी पद्मावती के जीवन पर बनी फिल्म 'पद्मावत' को लेकर किसी पुरुष ने ऐसी बहादुरी क्यों नहीं दिखायी? महिलाओं की तरह कोई मर्द क्यों अपने प्राणों की आहूति देने के लिए तैयार नहीं हुआ? दरअसल, यही वो चालाकी है जिसका पुरुष वर्ग सदियों से इस्तेमाल कर स्त्रियों को मोहरा बना उन्हें तरह-तरह की आग के हवाले करता चला आ रहा है। जब नारी जागने को तत्पर होती है तो उसे परंपराओं और यातनाओं के पहाड के तले दबाने की कोशिश की जाती हैं। इन कोशिशों की तस्वीर कई रूप में सामने आती रहती है। महाराष्ट्र के शहर नागपुर में एक तीन-चार दिन की दुधमुंही बच्ची को सडक पर फेंक दिया गया। नवजात बच्ची को कंपाकंपा देने वाली ठंड में रोता-कराहता देख राह चलते लोग रूक गए और उनकी आंखें भीग गयीं। यह तब की बात है जब पूरे देश में नारी के सम्मान की रक्षा के लिए 'पद्मावत' फिल्म का विरोध किया जा रहा था। जगह-जगह आगजनी की जा रही थी। सरकारी और निजी संपत्तियां फूंकीं जा रही थीं। फिल्म के प्रदर्शन पर रोक नहीं लगाये जाने पर देश को बहुत बडे संकट के हवाले करने का शोर मचाया जा रहा था। यह देखकर घोर ताज्जुब होता है कि बिना देखे, जांचे, परखे कपोल कल्पित शंकाओं के बहाव में बहकर तूफान खडा करने वालों को ऐसे जीते-जागते सच क्यों नहीं दिखायी देते। कहीं ऐसा तो नहीं कि वे बदलाव के पक्षधर ही नहीं हैं?

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