Thursday, February 22, 2018

पतन की पराकाष्टा

देश की राजधानी में एक नेता भाषण दे रहे थे और चंद लोगों की भीड बडी एकाग्रता के साथ सुनने का नाटक कर रही थी:
"दोस्तो, भीख मांगना भी एक तरह का रोजगार है। कमाई का चोखा धंधा है। जो लोग भीख मांगने को एक तुच्छ कार्य समझते हैं उन्हें अपने दिमाग का इलाज करवाना चाहिए। भिखारी को भी मेहनत करनी पडती है। अपना खून पसीना बहाना पडता है। भीख को छोटा काम मानने वालों को पता नहीं है कि भीख के कारोबार की बदौलत लाखों परिवार खा-पचा पा रहे हैं। उनके बच्चे स्कूल-कॉलेजों में पढकर अपना भविष्य संवार रहे हैं। मेरे प्यारे भारतवासियो, आपको मैं आज देश के कुछ चुनिंदा भिखारियों की कमाई की सच्चाई से अवगत कराना चाहता हूं। आपको इस सच को जानकर हैरत होगी कि मुंबई में एक भिखारी है, जिसका नाम है मासू। वह भीख के कारोबार की बदौलत ऐश कर रहा है। मासू के ठाठ बडे निराले हैं वह रोज सुबह ऑटो रिक्शा में भीख मांगने की अपनी निर्धारित जगह पर जाता है और शाम तक करीब डेढ से दो हजार रुपये जेब में भरकर ऑटो से ही घर लौट आता है।
शरीर से दिव्यांग झारखंड के छोटू की उम्र करीब चालीस साल है। उसकी तीन बीवियां हैं। छोटू ने काफी तकलीफें झेलीं। काम की तलाश में बहुतेरे हाथ-पैर मारे, लेकिन जब बात नहीं बनी तो उसने भीख के कारोबार को अपना लिया। आज वह हर माह तीस से चालीस हजार रुपये की भीख की बदौलत मजे में है। और हां उसने अपनी तीनों बीवियों को भी इसी काम में लगा रखा है। वे भी दिनभर भीख मांगती हैं और शाम को घर लौटकर छोटू को अपनी कमाई का ब्यौरा देती हैं तो छोटू उन्हें शाबाशी देते नहीं थकता। वह तीन फ्लैटों का मालिक है जिनमें शहर के इज्जदार किरायेदार के रूप में रहते हैं। तीनों पत्नियां छोटू जैसे कमाऊ पति का साथ पाकर खुद को धन्य मानती हैं और हर जन्म में उसका साथ चाहती हैं।
महाराष्ट्र में सोलापुर का संभाजी काले अपने परिवार के चारों सदस्यों के साथ भीख मांग कर हर रोज लगभग दो हजार रुपये कमा लेता है। इसी तरह से भरत जैन हर महीने एक लाख से ज्यादा जमा कर लेता है। उसके पास भी दो फ्लैट हैं। अच्छी-खासी खेतीबाडी के साथ एक बडी दुकान भी है जिससे हजारों की कमाई हो जाती है। पटना का पप्पू तो कमाल का भिखारी है। उसके हाथ-पैर टेढे-मेढे हैं। डॉक्टर कहते हैं कि उन्हें दुरूस्त किया जा सकता है, लेकिन पप्पू इस जन्म में तो दिव्यांग ही रहना चाहता है। क्योंकि खुदा के इसी उपहार की बदौलत उसने भीख मांग कर लाखों रुपये जुटा लिए हैं। उसके बच्चे इंग्लिश स्कूल में पढ रहे हैं। साहूकारों और बैकों में जमा रकम से मोटा ब्याज आ जाता है।
मैं तो प्रभु से यही प्रार्थना करता रहता हूं कि पप्पू जैसे किस्मत के धनी, अक्लमंद इस देश में लाखों की संख्या में पैदा हों।" ताकि सरकार को लोगों की नौकरी-वोकरी की चिन्ता ही न करनी पडे। इसलिए मेरे मित्रो, मेरा आपसे सनम्र निवेदन है कि अगर आप किसी को भी भीख मांगते हुए देखें तो उसे कमतर न आंकें और न ही हिकारत भरी नजरों से दुत्कारें। वह भी दूसरों की तरह एक कारोबारी है। कोई ठग और लुटेरा नहीं।"
कौन नहीं जानता कि अपने देश के अधिकांश नेता जनता की आंखों में धूल झोंकने में माहिर हैं। राजनीति के व्यापार बन जाने के बाद भारतवर्ष में ऐसे नेताओं की तादाद बढती चली जा रही है, जो जनता का मूल समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए ऐसा-वैसा बोलकर तालियां पिटवाने की फिराक में लगे रहते हैं। इस किस्म के नेताओं की प्रेरणा का ही नतीजा है कि जो होशियार किस्म के लोग भीख नहीं मांग पाते वे गबन, ठगी, जालसाजी और लूटमारी पर उतर आते हैं। इनके पकडे जाने पर ज्यादा हैरत नहीं होती। दरअसल, हम और आप ऐसी खबरों के अभ्यस्त हो गये हैं। एक का भी काला चेहरा सामने आने के बाद किसी और नये जालसाज के पर्दाफाश होने की राह देखने लगते हैं। यह सच है कि विजय माल्या और नीरव मोदी की तरह सभी का पर्दाफाश नहीं हो पाता। कितने लुटेरों की हकीकत दबी रह  जाती है। जिनका पर्दाफाश हो जाता है वो मीडिया के 'नायक' बन जाते है। मुंबई के निकट स्थित ठाणे शहर में एक अंडे बेचने वाले की महज इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि खरीददार को लगा कि वह एक रुपया ज्यादा वसूल रहा है। खरीददार को यह बहुत बडी ठगी लगी। दूसरी तरफ मुंबई का हीरा व्यापारी नीरव मोदी पंजाब नेशनल बैंक को ११ हजार करोड से अधिक की चपत लगाकर विदेश भाग गया। इस शातिर कारोबारी ने दो हजार के असंख्य हीरे पचास लाख से एक करोड तक में आसानी से खपाकर कई धनकुबेरों की आंखों में बडे मज़े से धूल झोंकी। कहीं कोई शोर-शराबा नहीं हुआ। अपने देश में गरीब एक रुपये के लिए मौत का हकदार हो जाता है और जालसाज बैंकों को अरबों की चोट देकर मौज मनाते हैं। इससे तो यही लगता है कि यह देश आम आदमी का न होकर सिर्फ और सिर्फ धनकुबेरों और टोपीबाजों का है। स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय जैसे क्रांतिकारियों की पहल और खून-पसीने से बने पंजाब नैशनल बैंक में हुए घोटाले ने सजग जनता के विश्वास को हिलाकर रख दिया है। अब तो सभी सरकारी बैंकों पर अविश्वास के बादल मंडराने लगे हैं। माल्या के बाद नीरव मोदी और उसके फौरन बाद सामने आये पेनकिंग विक्रम कोठारी के घोटाले ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि आम उपभोक्ताओं को छोटे-मोटे लोन के लिए गारंटी और अन्य औपचारिकताओं के नाम पर चक्कर कटवाने वाले बैंक बडे उद्योगपतियों पर किस तरह से मेहरबान रहते हैं। स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि बैंको के नियंत्रण का निगरानी तंत्र लचर होने के साथ बिकाऊ भी है। बैंकों को लुटवाने में बैंक अधिकारियों के साथ-साथ उन राजनेताओं की अहम भूमिका है जो अंबानियों, अडानियों, माल्याओं, केतनों और नीरव मोदियों के चुनावी चंदों की बदौलत चुनाव लडते हैं और असली देशभक्त होने का नाटक करते नहीं थकते।

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