Thursday, May 10, 2018

ईमानदारी का अपमान, भ्रष्टों का सम्मान!

सीधे-सादे लफ्जों में कहें तो आज अधिकांश लोग भ्रष्टाचार से परहेज नहीं करते। भ्रष्टाचारी को दुत्कार नहीं सत्कार देते हैं। ईमानदारों को अजीब निगाहों से देखा जाता है और उनकी बोली लगाने में संकोच नहीं किया जाता। सभी सरकारी कर्मचारियों, अधिकारियों को बिकाऊ समझने वालों के हौसले कितने बुलंद हैं इसका उदाहरण बीते सप्ताह हिमाचल प्रदेश के कसौली में देखने में आया। अतिक्रमण विरोधी अभियान का नेतृत्व कर रही महिला अधिकारी की एक गेस्ट हाऊस मालिक ने गोली मार कर हत्या कर दी। एक कर्मचारी व एक मजदूर भी गोली लगने से घायल हो गए। काफी भागदौड के बाद पुलिस ने हत्यारे को दबोचने में सफलता पायी। हत्यारे को कर्तव्यपरायण अधिकारी की हत्या करने का कोई गम नहीं था। उसे सिर्फ अपने गेस्ट हाऊस के अवैध हिस्से को गिराये जाने का दु:ख था। उसका कहना था कि इसी गेस्ट हाऊस से उसका घर-परिवार चलता है। उस दिन जब तोडफोड करने के लिए महिला अधिकारी पहुंची थीं तो उसकी मां ने पैर छूकर उनसे राहत की गुहार लगाई थी, लेकिन वे नहीं मानीं। वह तो उन्हें मोटी रिश्वत देने को भी तैयार था जिसे उन्होंने लेने से स्पष्ट इनकार कर दिया। ऐसे में उसे गुस्सा आ गया और अंधाधुंध गोलियां चला दीं।
गौरतलब है कि यह अतिक्रमण विरोधी अभियान सुप्रीम कोर्ट के आदेश से चलाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने पंद्रह दिन के भीतर कसौली के तेरह होटलों का अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए असिस्टेंट टाउन एन्ड कंट्री प्लानर शैलबाला शर्मा कसौली के नारायणी गेस्ट हाऊस में भी अवैध निर्माण गिराने की निगरानी के लिए गई थी। तभी उनकी निर्मम हत्या कर दी गई! पुलिस वाले भी देखते रह गए। उन्हीं के सामने से हमलावर भाग खडा हुआ। ज्ञातव्य है कि कसौली एक पर्वतीय क्षेत्र है जहां पर सुरक्षा की दृष्टि से दो मंजिला होटल निर्माण की स्वीकृति दी गई है, लेकिन कई लोगों ने छह-छह मंजिला होटल खडे कर लिए हैं। यह अवैध निर्माण आज के नहीं हैं। अतिक्रमणकारियों को अतिक्रमण का सफाया करने का भय दिखाकर अधिकारी वर्षों से वसूली करते रहे हैं। इसी वसूली अभियान के चलते होटल मालिक बेफिक्र थे। उन्होंने महिला अधिकारी को भी बिकाऊ समझ लिया था। जब उन्होंने वर्षों से चली आ रही परंपरा निभाने से इनकार कर दिया तो उन्हें मौत की सौगात दे दी गई? एक ईमानदार महिला अधिकारी की शहादत के बाद क्या कोई इस सवाल का जवाब देगा कि इस देश में ईमानदार होना गुनाह है और क्या उन भ्रष्ट अधिकारियों पर कार्रवाई होगी जिनके कारण अतिक्रमणकारी वर्षों तक बेखौफ होकर अपना धंधा चलाते हुए मालामाल होते रहे? यह भी सच है कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारी देश में कहां नहीं है। हर जगह इन्हीं का तो सिक्का चलता है। सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे के पीछे राजनीतिक ताकतों का हाथ तो होता ही है, सरकारी मशीनरी भी इसमें खासी भूमिका निभाती है। देश भर में कई राजनेताओं, समाजसेवकों और धंधेबाज कथित संतो, प्रवचनकारों ने करोडों-अरबों की जमीनों पर कब्जा कर रखा है। शासन और प्रशासन तभी जागता है जब इन अवैध कब्जा करने वालों के खिलाफ कोई बडा धमाका होता है। अन्यथा लेन-देन के खेल के चलते बडे से बडे महल खडे होते चले जाते हैं। यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि पाखंडी आसाराम, राम रहीम, रामपाल जैसों के द्वारा हडपी गयी जमीनों पर खडे किये गए आलीशान आश्रमों पर तभी हथौडा चला जब उनका काला सच सारी दुनिया के समक्ष उजागर हो गया। अगर इनका पर्दाफाश न हुआ होता तो इनकी अवैध सल्तनत में और विस्तार होता ही चला जाता।
हमारे यहां का एक बडा सच यह भी है कि जो पकडा गया वो चोर बाकी सब साहुकार। वतन में अभी कई ठग हैं जो श्रद्धालुओं की अंधभक्ति की बदौलत अपने अवैध सिंहासनों को बरकरार रखे हुए हैं। जानते-समझते हुए भी लोगों की चुप्पी बनी हुई है। यही चुप्पी ही पाखंडियों का साहस बढाती है। अपराधियों को बेनकाब करने का साहस दिखाने वाले पत्रकारों को अपने यहां वो सम्मान नहीं मिलता जिसके वे हकदार होते हैं। अय्याश राम रहीम के घृणित चरित्र के रेशे-रेशे को देशवासियों के समक्ष प्रस्तुत करने वाले साहसी पत्रकार रामचंद्र छत्रपति को तब किसी ने प्रोत्साहित नहीं किया था जब वे अपने छोटे से अखबार में भोगी और अहंकारी असंत राम रहीम का बेखौफ होकर पर्दाफाश करने में लगे थे। तब तो उसके अंधभक्त सेवक-भक्त रामचंद्र के ही पीछे पड गये थे। अपने आपको जागरूक नागरिक कहने वाली भीड भी पत्रकार की कलम पर यकीन नहीं करती थी। सभी की आंखों पर धर्म की पट्टी बंधी थी। पाखंडी ही उनका भगवान था। पत्रकार वर्षों तक अपने अभियान में लगा रहा। तब तो सभी ने उन्हें मरने के लिए अकेला छोड दिया था, लेकिन जब दुराचारी राम रहीम को बलात्कार के आरोप में उम्रकैद की सजा हुई तो सजग पत्रकारिता के लिए कुर्बान हो जाने वाले पत्रकार की तारीफों की झडी लग गई और उनके परिवार को भी याद किया जाने लगा।
घाघ साधु-संत हों या नेता इनके उभार का चमत्कार इनके अंध भक्तों, समर्थकों के कारण होता है। अगर देश के मतदाता धर्म-जाति के महाजाल और अपनी बिरादरी वाला है की सोच से मुक्त होते तो जन्मजात भ्रष्ट और लुटेरे नेताओं की कब से राजनीति से विदायी हो चुकी होती। कौन नहीं होगा जिसने भ्रष्ट, बिकाऊ मर्यादाहीन नेता लालू प्रसाद यादव का नाम नहीं सुना होगा। लालू की भ्रष्टपत्री से देश का बच्चा-बच्चा वाकिफ है। बेशर्म लज्जाहीन नेता का सर्वोत्तम उदाहरण बना लालू प्रसाद यादव जेल में कैद होकर अपने भ्रष्ट कर्मों का फल भुगत रहा है। उसके हावभाव और अकड दर्शाती है कि नकली संतों, बाबाओं की तर्ज पर जनता को बेवकूफ बनाना और देश को लूटना वह अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानता है। भ्रष्ट नेताओं को जब भी जेल में डाला जाता है तो वे बीमारी का ढोंग करने लगते हैं। इस मामले में लालू को महारत हासिल है। चतुर-शातिर लालू का कहना है उसे कई रोग हैं। इन्हीं बीमारियों के इलाज के लिए उसे दिल्ली के एम्स में भर्ती किया गया था। कुछ दिन के बाद जब डाक्टरों ने पाया कि लालू पूरी तरह से स्वस्थ हो गया है तो एम्स से छुट्टी देने की घोषणा कर दी गई। लालू भडक उठा। कहने लगा कि मेरी जान लेने की साजिश की जा रही है। मेरी बीमारियां तो जस की तस हैं। उसके कई समर्थकों ने एम्स की कैथलेब में तोडफोड कर दी और वहां पर मौजूद सुरक्षा गार्डों के साथ भी मारपीट की। दिल्ली का एम्स ऐसा अस्पताल है जहां आम लोगों को अगर उपचार कराना होता है तो उन्हें कई हफ्तों तक इंतजार करना पडता है। अथाह भ्रष्टाचार करने के कारण सजायाप्ता लालू को तुरंत एम्स में इलाज कराने की सुविधा मिल गई! लालू ने घोटाले किये हैं, धोखाधडी की है, कोई देशसेवा का काम नहीं किया है तो फिर ऐसे में उसे मनचाहे अस्पताल में इलाज उपलब्ध करवाना देश के ईमानदार नागरिकों का हक छीनना है। ईमानदारी का अपमान करना है और बेईमानी को सम्मानित करना है।

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