Thursday, May 3, 2018

मुखौटो से मुठभेड की पत्रकारिता

इन दिनों पत्रकार, पत्रकारिता और अखबार निशाने पर हैं। इसकी कई वजहें गिनायी जाती हैं। प्रिंट मिडिया पर सबसे बडा आरोप यह है कि वह निष्पक्ष होकर अपना दायित्व नहीं निभा रहा है। साहसी और धारा के विरुद्ध चलने और लिखने वाले पत्रकारों का घोर अकाल पड गया है। सत्ता के कदमों में झुकने को आतुर घोर व्यापारी किस्म के लोगों के हाथों में अधिकांश अखबारों की कमान जा चुकी है। अधिकांश संपादक दलाल बनकर रह गए हैं। चाटूकार पत्रकारों की फौज बढती चली जा रही हैं। किसी कवि की लिखी कविता की पंक्तियों का सार है कि अभी दुनिया खत्म नहीं हुई। अभी बहुत कुछ बाकी है। निराश होने की जरूरत नहीं है। पत्रकारिता के विशाल क्षेत्र में अंधेरे से लडने और बदलाव लाने की क्षमता रखने वाले ढेरों लोग हैं जो शांत और चुप नहीं बैठने वाले। दरअसल, कुछ लोगों को अच्छाई दिखती ही नहीं। उनका सारा ध्यान बुराइयों, कमियों और कमजोरियों पर केंद्रित रहता है। हम मानते हैं कि दूसरे क्षेत्रों की तरह पत्रकारिता में भी गलत लोगों का डंका कुछ ज्यादा ही बज रहा है। पत्रकारिता को समाज का दर्पण माना जाता है और कुछ समर्पित पत्रकार अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं।
'राष्ट्र पत्रिका' की प्रारंभ से ही सजगता के साथ अपना दायित्व निभाने की नीति रही है। अराजकतत्वों को बेनकाब करने की राह में आने वाली बडी से बडी तकलीफों का हमने निर्भय होकर सामना किया है। इस सच से कोई भी इंकार नहीं कर सकता कि तीन वर्ग ऐसे हैं जिन्होंने देशवासियों को त्रस्त कर रखा है। सबसे पहला नंबर आता है राजनीति के खिलाडियों का जो खुद को जनता का सेवक बता कर वर्षों से वादाखिलाफी और धोखाधडी करते चले आ रहे हैं। अधिकांश राजनेताओं ने अपने चमचों की फौज पाल रखी है। देश में कुछ ही नेता है जो वास्तव में जनसेवा करते हैं। अधिकांश तो अपने चम्मचों, रिश्तेदारों और अपने परिवारों के हित में राजनीति करते हैं। दूसरे नंबर पर हैं भ्रष्ट नौकरशाह यानी सरकारी अफसर। जिन्हें अपनी तनख्वाह से सैकडों गुना ज्यादा दौलत जमाने की जादूगरी आती है। तीसरे नंबर पर हैं तथाकथित साधु-संत जो अपने भक्तों को मोहमाया त्यागने और रागद्वेष से दूर रहने की सीख देते हैं, लेकिन खुद धर्म की आड में लुटेरे और व्याभिचार बन कर रह गये हैं। 'राष्ट्र पत्रिका' ने प्रारंभ से इस तिकडी के 'मुखौटों' को तार-तार कर दिखाया है। जो भी राष्ट्रविरोधी ताकतें देश को नुकसान पहुंचाती दिखती हैं उन्हें बेनकाब कर उनका असली चेहरा शासन और प्रशासन के समक्ष लाना हम अपना धर्म मानते हैं।
हमारा सदैव यह प्रयास रहता है कि 'राष्ट्र पत्रिका' में सकारात्मक खबरों को प्राथमिकता दी जाए। प्रेरणास्पद लेख और जानकारियां समाहित कर पाठकों के मनोबल को बढाया जाए। 'राष्ट्र पत्रिका' के नियमित सजग पाठक इस सच से भी पूरी तरह से अवगत हैं कि इस राष्ट्रीय साप्ताहिक में अपराध से जुडी खबरों को भी काफी अहमियत दी जाती है। अपराध और अपराधियों के बारे जानकारी पूर्ण समाचार प्रकाशित करने के पीछे हमारा यही ध्येय रहता है कि लोग सचेत हो जाएं। यह जान लें कि अपराधी का अंत हमेशा बुरा ही होता है। लाख चालाकियां उसे कानून के शिकंजे से बचा नहीं सकतीं। पाठकों और अपराधियों से परिचित कराने का यही मकसद होता है कि वे आसपास के संदिग्ध लोगों से सतर्क हो जाएं। अपराधियों से दूरी बना लें। उन्हें संरक्षण देना भी अपराध है। अपराधियों को नायकों की तरह पेश करने के हम कभी पक्षधर नहीं रहे। यह भी सच है कि अपराधी आसानी से पहचान में नहीं आते। राजनीति, धर्म, समाजसेवा और व्यापार के क्षेत्र में कई लोग ऐसे-ऐसे मुखौटे लगाये रहते हैं जिनकी एकाएक हकीकत सामने नहीं आ पाती। देश में कितने आसाराम, राम रहीम, नित्यानंद, भीमानंदा, परमानंद, मेहंदी कासिम और चंद्रास्वामी भरे पडे हैं जो ढोंग और पाखंड का जाल फैलाकर लोगों को बेवकूफ बनाते रहते हैं। यह धूर्त आज के युग के शोषक हैं, लुटेरे हैं, माफिया हैं। हवसखोर आसाराम, जिसे एक नाबालिग लडकी पर बलात्कार करने के कारण उम्र कैद की सजा दी गई है, कभी परमपूज्य था। न जाने कितने घरों के पूजाघरों में उसकी तस्वीर लगी हुई थी। यदि हवस की शिकार होने वाली लडकी हिम्मत नहीं दिखाती तो आसाराम के स्वागत, पाठ-पूजा और सत्कार का जलवा बरकरार रहता। उसके दरबार में सत्ता, राजनीति, व्यापार, उद्योग के सभी दिग्गजों की हाजिरी लगती थी और वे इस ढोंगी प्रवचनकार के समक्ष नतमस्तक होकर गौरवान्वित होते थे। मुझे १९९६ का वो काल याद आ रहे हैं जब नागपुर में आसाराम का पहला कार्यक्रम आयोजित होने जा रहा था। कार्यक्रमों के आयोजकों ने गांधी सागर में स्थित हॉल में मीटिंग आयोजित की थी जिसमें मुझे भी आमंत्रित किया गया था। क्या-क्या तैयारियां करनी हैं कैसे अधिक से अधिक चंदा जमा करना है, आदि की योजना, रूपरेखा बनाने के लिए शहर के धर्मप्रेमी, व्यापारी, उद्योगपति, समाज सेवक उपस्थित थे। मीटिंग में यह तय किया गया था कि बापू का ऐसा स्वागत सत्कार किया जाए कि वे गदगद हो जाएं। वर्षों तक उनके मन में नागपुर बसा रहे। कुछ दिनों के बाद बापू नागपुर में पधारे थे। प्रथम प्रवचन कार्यक्रम के दौरान ही कुछ ऐसे नजारे देखने को मिलते चले गए जिन्होंने सजग लोगों को अचंभित कर दिया। एक स्वतंत्र पत्रकार मित्र को बापू के इर्द-गिर्द रहने वाली महिलाओं ने बताया कि वे उनकी सच्ची सेविकाएं हैं। आसाराम बहुत रसिक किस्म के संत हैं। उन्हें महिलाओं की संगत बहुत भाती है। उन्हें पानी के टब में नहाने का शौक है। वे उन्हें नियमित गुलाब जल और इत्र वाले जल से नहलाती हैं। दरअसल, उन्हें महिलाओं के हाथों नहाने से ही अपार संतुष्टि मिलती है। कार्यक्रम आयोजन समिती से जुडे पत्रकार को बाबा के काले चरित्र के बारे में और भी कई जानकारियां मिली थीं। विरोध स्वरूप उन्होंने अपने मुंह पर पट्टी बांध ली थी। यह पट्टी तब हटी थी जब बाबा का काफिला नागपुर से विदा हो गया था। पत्रकार मित्र ने उसके बाद फिर कभी आसाराम के किसी भी प्रवचन कार्यक्रम में जाने की सोची भी नहीं।
उनके प्रवचन, सत्संग कार्यक्रम में जो वैभवशाली पंडाल लगाया गया था वह विशेष रूप से अहमदाबाद से आया था। इसके साथ ही विभिन्न प्रचार सामग्री, बडे-बडे आकर्षक पोस्टर, बैनर, पम्पलेट, स्टीकर जो शहर और कार्यक्रम स्थल पर लगाये गये थे वे सभी भी बापू के कारखाने से निर्मित होकर आये थे। इन सबकी बहुत बडी फीस वसूली गई थी। जिस तरह से कार्यक्रम स्थल पर ऑडियो-विडियो, कैसेट, कैलेंडर, मासिक पत्रिका ऋषि प्रसाद, चाय, च्यवनप्राश, शहद, चावी के छल्ले, डायरियां और विभिन्न दवाइयों की दुकाने सजायी गई थीं, उससे यही तय हो गया था कि यह संत तो बहुत बडा सौदागर है। मेरे अंदर के खोजी पत्रकार को आसाराम के संदिग्ध कारोबारों से अवगत होने में देरी नहीं लगी थी। १९९६ के पहले कार्यक्रम के बाद उनका हर दो-तीन साल में नागपुर आकर नोट कमाने का सिलसिला प्रारंभ हो गया था। मेरी आस्था के तो चिथडे ही उड चुके थे और मैं बेखौफ होकर उनके खिलाफ लिखने लगा था। उन दिनों हमारे द्वारा राष्ट्रीय साप्ताहिक 'विज्ञापन की दुनिया' का प्रकाशन, संपादन किया जाता था। उस दौर में 'विज्ञापन की दुनिया' इकलौता ऐसा अखबार था जिसने आसाराम के असली चरित्र से पाठकों को अवगत कराने का अभियान चलाया था। भ्रष्ट नेताओं, सत्ताधीशों, नकली समाज सेवकों, तमाम अपराधियों और ढोंगी संतों के खिलाफ आज भी यह अखबार बेखौफ लिखने में पीछे नहीं रहता।
अपने प्रकाशन के दसवें वर्ष में प्रवेश कर रहे 'राष्ट्र पत्रिका' की जीवंत पत्रकारिता से देश के लाखों सजग पाठक अच्छी तरह से वाकिफ हैं। देश, दुनिया और समाज का स्वच्छ दर्पण बना 'राष्ट्र पत्रिका' अपने सहयोगियों के अटूट साथ और सहयोग की बदौलत निष्पक्षता और निर्भीकता का कीर्तिमान स्थापित करता चला आ रहा है। हम अपने शहरी और ग्रामीण संवाददाताओं के अत्यंत आभारी हैं, जिनकी खोजी खबरों ने इस साप्ताहिक को ऊचाइयां प्रदान की हैं। हमें यह अच्छी तरह से मालूम है कि स्थानीय पत्रकारिता करना अत्यंत जोखिम वाला कर्म है। छोटे शहरों और ग्रामों के सजग पत्रकार जिनके खिलाफ लिखते हैं वे उनके करीब ही रहते हैं। जनहित के कार्यों के लिए आने वाले सरकारी धन के लुटेरे सरकारी ठेकेदारों और जनप्रतिनिधियों से रोज उनका आमना-सामना होता रहता है। ईमानदार पत्रकार इनकी पोल खोलकर ही दम लेते हैं। हर किस्म के अपराधी, माफिया, डकैत, हत्यारे भी इनके आसपास मौजूद रहते हैं इसलिए पत्रकारों को प्रतिक्रिया स्वरूप बहुत कुछ झेलना पडता है। कई बार बात मारपीट और हत्या तक पहुंच जाती है। ऐसे पत्रकारों के कारण भी पत्रकारिता की साख बरकरार है। अपराधियों से सतत लोहा लेने वाले ऐसे पत्रकारों को हमारा सलाम। 'राष्ट्र पत्रिका' की वर्षगांठ पर समस्त सहयोगियों, संवाददाताओं, पत्रकारों, लेखकों, एजेंट बंधुओं, पत्र विक्रेताओं को बधाई...शुभकामनाएं।

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