Thursday, May 31, 2018

अति मारे मति

सभी नहीं पीते। लेकिन जो पीते हैं उन्हीं की बदौलत सरकारों को अरबों-खरबों की कमायी होती है। गरीब देसी पीता है। अमीर अंग्रेजी। कितने अमीरों और गरीबों को नशे की लत का शिकार होकर अपनी कब्र खुद खोदते देखा गया है। इसके मोहपाश का शिकार होकर कई लेखक, पत्रकार, उद्योगपति, नेता, कलाकार अपना सबकुछ गंवा कर फकीर बन गए, इज्जत लुटा बैठे फिर भी नशे के मोहपाश से मुक्त नहीं हो पाए। जिनकी छाती पर समझदार होने का तमगा लगा होता है, जिनकी समाज में अपार प्रतिष्ठा होती है, जिन्हें लोग अपना प्रेरणास्त्रोत मानते हैं, जिनकी वाहवाही के किस्से गूंजते रहते हैं, आखिर वे भी क्यों और कैसे नशे के शिकंजे में फंस ही जाते हैं। नशे में ऐसा कौन-सा सम्मोहन होता है जो पीछा नहीं छोडता? शराब और अन्य नशों के साथी बने कुछ लेखक, पत्रकार मित्र कहते हैं कि इन्हें ले लेने के बाद दिमाग के बंद दरवाजे खुल जाते हैं, सोच का घोडा छलांगें मारने लगता है और संकोच के ताले टूट जाते हैं, जिससे ऐसे-ऐसी रचनाएं जन्म लेती हैं जिन्हें जमाना वर्षों तक याद रखता है। नशे के आदी व्यापारी, उद्योगपति, ठेकेदार, नेता और दलाल मानते है नशा संबंधों को प्रगाढ बनाने में अभूतपूर्व भूमिका निभाता है। दूरियां घटाता है और ऐसे-ऐसे काम संभव कर दिखाता है जिनकी होश में कल्पना नहीं की जा सकती। गरीब अपनी गरीबी को चिढाने और कुछ समय के लिए सुध-बुध खोने के लिए पीते हैं तो अमीरों के पास होते हैं बहाने अपार।
अमूमन यह माना जाता है कि डॉक्टर नशे से दूर रहते होंगे। क्योंकि नशे से होने वाले नुकसानों से सबसे ज्यादा डॉक्टर ही वाकिफ रहते हैं। यह भी सच है कि यह दुनिया अपवादों से भरी पडी है। डॉक्टरों के जीवन में कई तरह की परेशानियां, चिंताएं और दुविधाएं होती हैं। अपने कर्तव्य को निभाने के लिए उन्हें अपनी नींद और सुख-चैन की तिलांजलि देनी पडती है। दिल्ली में रहने वाले सर्जरी के एक प्रसिद्ध डॉक्टर को मरीजों की सर्जरी के दौरान घंटों तक खडा रहना पडता था। जिसकी वजह से उन्हें कमर के दर्द ने घेर लिया। शुरुआती दौर में दर्द से छुटकारा पाने के लिए उन्होंने आम दर्द निवारक दवाएं लीं। जब बात नहीं बनी तो बुटरफेनॉल नामक इंजेक्शन लेने लगे जिसे मरीजों को सर्जरी के बाद दर्द से राहत के लिए लगाया जाता है। इस इंजेक्शन को लगाने के बाद मन-मस्तिष्क पर नशा हावी हो जाता है क्योंकि इसमें मार्फिन की मात्रा अधिक रहती है। शुरु में वह इस इंजेक्शन को सप्ताह में एक से दो बार लेते थे। धीरे-धीरे उन्हें इसकी ऐसी लत लगी कि नशे के तौर पर प्रतिदिन तीन से चार बार यह इंजेक्शन लेने लगे। जिससे राहत मिलने की बजाय सेहत बिगडने लगी। प्रेक्टिस पर भी असर पडने लगा। जहां पहले कभी मरीजों की लाइन लगी रहती थी अब वहां पर सन्नाटा छाया नजर आने लगा। डॉक्टर के नशे में रहने के कारण घर में भी लडाई-झगडा होने लगा। पत्नी ने उन्हें बहुतेरा समझाया, लेकिन इंजेक्शन के नशे के गुलाम हो चुके डॉक्टर ने एक भी नहीं सुनी। हालात इस कदर बिगडे कि पत्नी और बच्चे घर छोडकर चले गए। ऐसा भी नहीं था कि यह डॉक्टर महोदय कमर के दर्द से छुटकारा पाने के लिए केवल बुटरफेनॉल नामक दवा ही लेते थे। उन्हें शराब और सिगरेट का भी खास शौक था। नींद की गोलियां गटकने में भी कमी नहीं करते थे। एक इंसान और इतने सारे नशे! आखिरकार उनकी हालत इतनी बिगड गई कि बेहोशी के दौरे पडने लगे। साथी डॉक्टरों से उनकी यह हालत देखी नहीं गई तो वे उन्हें किसी तरह से समझाकर गाजियाबाद स्थित नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर में इलाज के लिए ले गए। जहां उनका अभी भी इलाज चल रहा है।
नशे में इंसान क्या-क्या नहीं कर गुजरता। उसे रिश्तों का भी भान नहीं रहता। नई दिल्ली में स्थित जामियानगर में एक शराबी बेटे ने दो साथियों के साथ मिलकर अपने माता-पिता को मौत के घाट उतार दिया। पच्चीस वर्षीय इस हत्यारे को शराब के अलावा ड्रग्स लेने की भी लत थी। माता-पिता उसे टोकते रहते थे। पत्नी भी छोडकर चली गई थी। तलाक का केस चल रहा था। इसी बीच उसकी फेसबुक के जरिये कानपुर की एक युवती से दोस्ती हो गई थी। वह इस युवती से शादी करना चाहता था, जबकि माता-पिता इस शादी के खिलाफ थे। एक दिन उसने जमकर शराब पी और अपने दो दोस्तों को ढाई लाख की सुपारी देकर बूढे मां-बाप की हत्या करवाकर फेसबुक फ्रेंड से शादी करने की तैयारी शुरू कर दी। शुरू में पुलिस यह मानकर चलती रही कि दंपति ने खुदकुशी की है। लेकिन पोस्टमार्टम में पता लग गया कि मुंह दबाकर दोनों की हत्या की गई है। पुलिस ने आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज और बेटे के मोबाइल की कॉल डिटेल को खंगाला तो आखिरकार सच सामने आ गया। शराब पीकर घर को कलह का मैदान बनाने और मारपीट करने वाले पिताओं की खबरें तो हम अक्सर सुनते और पढते रहते हैं। लेकिन पिता की शराब की लत से परेशान होकर बेटे के द्वारा खुदकुशी कर लेने की खबरें कम ही सुनने और पढने में आती हैं। तामिलनाडु के तिरुनेलवेली में रहने वाला दिनेश अपने पिता की शराबखोरी से त्रस्त हो चुका था। वह पिता को टोक-टोक कर थक गया था। पर शराबी पिता को शराब के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं था। ऐसे में नशे में धुत होकर रोज घर में मारपीट, गाली-गलोच करने वाले पिता से उसे इतनी घृणा हो गई कि उसने उन्हें कोई चोट पहुंचाने की बजाय खुदकुशी कर ली। डॉक्टर बनने की चाहत रखने वाले इस बेटे के मन में अपने शराबी पिता के प्रति कितनी नफरत थी उसका पता उसके सुसाइड लेटर में लिखी इन पंक्तियों से लग जाता है - "अप्पा आप शराबी हैं, इसलिए मेरी चिता को छूना भी नहीं।"

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