Thursday, September 6, 2018

काली किताब

ये किस किस्म के नेता हैं। यह नेता हैं भी या नहीं? इनकी नौटंकियां और नाटक तरह-तरह के सवाल खडे करते हैं। इनकी बोली, इनके तेवर और इनकी बेशर्मी विस्मित करती है। अपने बोलवचनों से लोगों को भडकाने, क्रोधित करने वाले नेताओं की तादाद बढती चली जा रही है। हर किसी का अपना-अपना अंदाज है जिनकी वजह से उनकी एक खास पहचान बनी और बन रही है। सर्वधर्म समभाव और आपसी भाईचारे की धज्जियां उडाकर नफरत की भाषा बोलने वाले नेताओं और उनके पिट्ठुओं की प्रचार की भूख की कोई सीमा नहीं दिखती। ऐसे लोगों को लगता है कि अगर उन्होंने खुद को बदल लिया तो उनकी राजनीति की दुकान बंद हो जाएगी। कोई उन्हें पूछेगा ही नहीं। मध्यप्रदेश के दमोह जिले के हटा विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी की विधायक के बेटे ने कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को गोली मारने की धमकी देते हुए लिखा और कहा कि, "सुन ज्योतिरादित्य तेरी रगों में उस जीवाजी राव का खून है जिसने बुंदेलखंड की बेटी झांसी की रानी का खून किया था। अगर तुमने उपकाशी हटा में प्रवेश कर इस धरती को अपवित्र करने की जुर्रत की तो मैं तुम्हें गोली मार दूंगा।" इस तरह की भाषायी गुंडागर्दी इस देश में आम होती चली जा रही है। अभी हाल ही में समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद को उत्तर प्रदेश के पूर्व नगर विकासमंत्री, कडवी जुबान के लिए कुख्यात आजम खां ने धमकी दी कि वे उनकी बेटियों को तेजाब से नहला देंगे। वक्त, हालात और मौका देखकर अपने सुर बदलने वालों का जब भी जिक्र आता है तो सबसे पहला नाम जो ध्यान में आता है वो है अमर सिंह का। अमर सिंह को सत्ता का दलाल भी कहा जाता है। 'जिधर दम उधर हम' की लीक पर चलने वाले इस राजनीति के कुख्यात शख्स का असली ईमान-धर्म क्या है, कोई नहीं जान पाया। फिर भी ताज्जुब यह है कि इस कुख्यात को राजनीति के हर बडे मंच पर सम्मान के साथ बैठाया जाता है। जमकर तारीफें की जाती हैं। जैसे वे इस सदी के बहुत बडे ईमानदार नेता हों और सज्जन पुरुष हों। कभी समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह के बेहद करीबी रहे अमर सिंह का सारा का सारा अतीत कालिख से पुता हुआ है। इनका राजनीति में आने का मकसद ही मात्र धन कमाना था जिसमें इन्हें मनचाही सफलता मिली। सत्ता की दलाली और बिचौलिया की भूमिका निभाकर खरबपति बने अमर सिंह खुद स्वीकारते हैं कि वे दलाल भी हैं और जातिवादी भी। मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी के लिए चंदा जुटाने और विभिन्न क्षेत्रों की पहुंची हुई हस्तियों से रिश्ते बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने वाले अमर सिंह सभी पार्टियों के राजनेताओं, उद्योगपतियों, फिल्म सितारों के करीबियों में शुमार रहे हैं। अमिताभ उन्हें बडा भाई कहते थे तो मुकेश और अनिल अंबानी को वे अपने छोटे भाई कहकर सीना ताने रहते थे। सहारा ग्रुप के प्रमुख सुब्रत राय जैसे धनपति भी इनके इशारों पर नाचते थे। नामी चेहरों के साथ दोस्ती और प्रगाढता के नाम पर अमर ने कई खेल खेले। अमर सिंह के जरिए न जाने कितने भ्रष्ट नेताओं का काला धन सहारा कंपनी में लगा और सुब्रत राय लाल होते चले गए। उसकी काफी लंबी कहानी है। सुब्रत राय ने जेल की सलाखों के पीछे जाने के बाद भी अपनी कंपनी में काला धन लगाने वाले नेताओं की जानकारी नहीं दी। अमिताभ बच्चन जब दिवालिया होने के कगार पर थे तब अमर ने उनकी लाज बचायी थी। यह बात दीगर है कि आज दोनों में छत्तीस का आंकडा है। दरअसल अमर की कभी भी किसी से लंबे समय तक निभ नहीं पायी। उनके समाजवादी पार्टी में सक्रिय रहने के दौरान कई ईमानदार समाजवादी पार्टी से किनारा कर गए। उनमें फिल्म अभिनेता राज बब्बर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उत्तर प्रदेश के पूर्व नगर विकास मंत्री आजम खां भी अमर की चालाकी, धूर्तता और धन वसूली का सतत विरोध करते रहे। इसलिए दोनों में जुबानी तलवारें चलती रहती हैं। आजम खां, अमर और मुलायम की गहरी दोस्ती के हर राज से वाकिफ हैं। उन्हें अच्छी तरह से पता है कि इन दोनों ने किस तरह से काली कमायी का अथाह साम्राज्य खडा किया है। अमर को बार-बार राज्यसभा का सदस्य बनाने की मजबूरी के पीछे की वजह भी आजम को ज्ञात है। ज्ञात रहे कि मुलायम-पुत्र अखिलेश के खुले विरोध के चलते अमर को समाजवादी पार्टी से बाहर कर दिया गया। फिर भी इन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया। यह भी कह सकते हैं कि इस्तीफा देने को विवश ही नहीं किया गया। मुलायम सिंह ने भी अपने खास दोस्त के खिलाफ कभी मुंह नहीं खोला। भले ही अमर उनके बेटे अखिलेश की ऐसी-तैसी करते चले आ रहे हों और चाचा-भतीजा को लडवाकर समाजवादी पार्टी के टुकडे करने पर आमादा हों। अमर सिंह को 'परिवार तोडक' भी कहा जाता है। अच्छे भले घर-परिवारों के बीच फूट डालने में उनका कोई सानी नहीं है। अंबानी बंधुओं में दरार डालने और बंटवारे के बीज बोने में इस तमाशबीन की खासी भूमिका थी। प्रचार पाने के लिए किसी भी हद तक चले जाने को तैयार रहने वाले इस 'महापुरुष' ने हाल ही में पत्रकारों से कहा कि, 'मैं एक डरा हुआ पिता हूं, जिसकी बेटियों को तेजाब से नहलाने की धमकियां आजम खां दे रहे हैं। माना कि मैं एक बुरा आदमी हूं। विवादों से मेरा अटूट नाता रहा है, लेकिन मैं दो नाबालिग बेटियों का पिता हूं वे अभी पढ रही हैं। राजनीति से अंजान हैं। आजम की दुश्मनी मुझसे है। कुर्बानी लेनी है तो मेरी लें।' तिल को ताड बनाने की कला में माहिर इस 'सज्जन' से पत्रकार, संपादक जब मिलते हैं तो उनकी यही कोशिश होती है कि इनके मुंह से ऐसा कुछ निकले जो चटपटी खबर बन जाए। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस 'महान आत्मा' की तारीफों के पुल बांधकर देशवासियों को अचंभित कर दिया। यह महाशय भी मोदी और भाजपा के गुणगान में लग गए। कल तक इन्हें भाजपा साम्प्रदायिक पार्टी लगा करती थी और आज सर्वधर्म समभाव के मार्ग पर चलने वाली पार्टी लगने लगी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति भी उनकी सोच बदल गई है। तभी तो कहा जाता है कि ऐसा निराला और अजूबा इंसान भारतीय राजनीति में और कोई नहीं है। यह कभी भी राजनीति के शीर्ष में नहीं रहे, लेकिन फिर भी राजनीति में छाये रहे। फिल्मी सितारों की तरह चर्चा में बने रहे। अपने अंदर कई रहस्य समेटे इस हरफनमौला की जीवनी का प्रकाशन एक विदेशी प्रकाशक करने जा रहा है। इस किताब में वो सबकुछ होगा, जिसे जानने के लिए लोग लालायित रहते हैं। अमर सिंह हमेशा कहते रहते हैं कि 'एनी पब्लिसिटी इज गुड पब्लिसिटी।' उनकी आनेवाली किताब के पीछे भी यही उद्देश्य छिपा है। दूसरों को बेनकाब कर निंदा के सुख में डूबे रहने वाले इस दुखियारे को हर किसी से सौ-सौ शिकायतें हैं। उन्होंने जिसका भला किया उसने भी बुरे वक्त में साथ नहीं दिया। वैसे इसमें नया क्या है? यही तो इस दुनिया की रीत है। प्रतिशोध की आग में जलते सिंह अपनी इस काली किताब में अमिताभ बच्चन की जमकर बखिया उधेडेंगे। मुलायम, सुब्रत राय, मुकेश, अनिल अंबानी से लेकर और भी कितने चेहरे उनके निशाने पर होंगे यह तो किताब के छपने के बाद ही पता चलेगा। चंद्रशेखर और देवगौडा जैसे पूर्व प्रधानमंत्रियों से भी उनकी करीबी रही है। यह भी तय है कि दूसरों को नंगा करने की ठाने यह शख्स खुद के कपडे उतारने से भी परहेज नहीं करेगा। अमर के वो साथी जो अभी जीवित हैं, वे बेहद घबराये हुए हैं। उन्हें दिन-रात यही चिन्ता खाये जा रही है कि उन्हें किताब में पता नहीं किस तरह से पेश किया जाने वाला है। यकीनन किताब धमाकेदार होगी। विदेशी प्रकाशक करोडों रुपये यूं ही तो नहीं देने जा रहा है।

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