Thursday, September 27, 2018

कब खुलेंगी आंखें?

एक बलात्कारी के लिए यह बहुत बडी सजा है जब उसकी पत्नी यह ऐलान कर दे कि वह अब इस बलात्कारी का मुंह नहीं देखना चाहती। रेवाडी में हुए सामूहिक बलात्कार के आरोपी पंकज की पत्नी ज्योति ने पुलिस चौकी में पहुंचकर कहा कि वह अपने पति की करतूतों से शर्मसार है और आज के बाद उसका पंकज से कोई रिश्ता नहीं है। पुलिस उसे फांसी दे या गोली मार दे उसे इससे कोई मतलब नहीं। ऐसे शैतान किसी के नहीं होते। उससे शादी करके वह बहुत पछता रही है। इस साहसी पत्नी का यह कहना भी एकदम दुरुस्त है कि पंकज ने उसके साथ धोखाधडी की है। यह हद दर्जे का अहसान-फरामोश है। यह सच ही तो है कि कोई भी शादीशुदा आदमी जब ऐसे दुराचार करता है तो उसकी अपनी पत्नी के प्रति वफादारी खत्म हो जाती है। रिश्तों में भरोसे का होना जरूरी है। ऐसी करतूतें उस विश्वास के परखच्चे उडा कर रख देती हैं जो पति, पत्नी के प्रगाढ संबंधों की बुनियाद होता है। आस्था और यकीन के टूटने का धमाका तो बहुत जोर से होता है, लेकिन अपराधी किस्म के लोग बहरे और अंधे बने रहते हैं। इसे उनकी फितरत भी कह सकते हैं। यह सच बार-बार दिल को दहला कर रख देता है कि शासन और प्रशासन की लाख कोशिशों के बाद भी नारियों के साथ होने वाली धोखाधडियों और बलात्कारों का तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है। कम उम्र की बच्चियों को भी बख्शा नहीं जा रहा है। जिस तरह से कोई भूखा जंगली जानवर मौका पाते ही शिकार को दबोच लेता है, वैसे व्याभिचारी मासूम बच्चियों को अपनी वासना का शिकार बना रहे हैं।
दिल्ली के सीमापुरी थाना में घर से प्रसाद लेने के लिए मंदिर के लिए निकली एक सात वर्षीय बच्ची को नशे में धुत प‹डोसी युवक बहला-फुसलाकर सुनसान पार्क में ले गया। रस्सी से उसके हाथ-पैर बांधे और बेखौफ होकर दुष्कर्म कर डाला। इतना ही नहीं इस दरिंदे ने मासूम के प्राइवेट पार्ट में प्लास्टिक की बोतल भी डाल दी। बच्ची के शोर मचाने पर उसकी बुरी तरह से पिटाई भी कर दी। खून से लथपथ बच्ची किसी तरह से घर पहुंची और आपबीती बतायी। उसे फौरन अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसकी हालत अभी भी नाजुक बनी हुई है। इस हृदयविदारक घटना के बारे में नेताओं को जैसे ही पता चला तो वे राजधानी के पूरी तरह से असुरक्षित होने और बलात्कारियों के हाथों का खिलौना बनने का पुराना राग अलापने लगे। यह कहना व्यर्थ भी है और ज्यादती भी कि अकेले राजधानी में ही बलात्कारों की झडी लगी है। सच तो यह है कि आज देश के लगभग तमाम महानगर, नगर और गांव अनाचारियों के कहर से कराह रहे हैं।
इसी हफ्ते बुलंदशहर से सटे एक गांव में दिनदहाडे दुष्कर्म की दो वारदातों को अंजाम दिया गया। नौ साल की एक बच्ची अपने घर के बाहर खेल रही थी, तभी एक पडोसी की उस पर गंदी नजर पड गई। उसने बडी चालाकी से बच्ची को खेत में ले जाकर शराब पिलाई और कुकर्म कर डाला। घायल बच्ची का अस्पताल में इलाज चल रहा है। इसी तरह से एक तेरह वर्षीय बच्ची को पडोस का एक युवक बहला-फुसला कर अपने साथ ले गया और इस कदर हैवान बन गया कि बच्ची तडपती रही और वह शैतानियत का खेल खेलता रहा। सुबह से घर से लापता हुई बच्ची जब शाम को घर लौटी तो उसकी हालत देखकर माता-पिता के होश उड गए। उन्होंने बच्ची को अस्पताल में भर्ती करवाया, जहां डॉक्टर भी लाख कोशिशों के बाद भी उसे बचा नहीं सके। पिछले कुछ महीनों से देश में स्थित कई आश्रमों और आश्रय स्थलों का जो सच सामने आ रहा है उससे यह सवाल भी दिमाग को मथता है कि अब किस पर यकीन किया जाए। कौन है भरोसे के लायक? जिन आश्रय स्थलों में असहाय बेटियों, मां, बहनों को मान सम्मान के साथ रखा जाना चाहिए था उन्हें सभी तरह की सुविधाएं मुहैया करवायी जानी चाहिए थीं, वहां पर उनका यौन शोषण हो रहा है। उन्हें अय्याशों के बिस्तरों तक पहुंचाकर सेक्सवर्कर बनाया जा रहा है। हैवानियत की सभी हदें पार करनेवालों ने अंधी, गूंगी, बहरी कुदरत की मार से सदा डरी सहमी रहने वाली लडकियों को अमानवीय यातनाएं देकर उनकी जीने की इच्छा ही छीन ली है। इससे भयावह शैतानियत और क्रूरता और कोई नहीं हो सकती। इसे अंजाम देने वाले बदमाश भी जाने-पहचाने चेहरे हैं, जिन्होंने साधु-संत, कथावाचक, नेता, समाजसेवक, पत्रकार आदि-आदि का मुखौटा अपने चेहरे पर लगा रखा है।
हाल ही में एक युवक को लूटमारी करते हुए रंगेहाथ पकडा गया। पुलिस अधिकारी ने उससे जानना चाहा कि अच्छे घर-परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद उसने यह अपराध की राह क्यों चुनी तो उसका जवाब था कि साहब मैंने कई महीनों तक मेहनत-मजदूरी करके भी देख ली, लेकिन उतना धन हाथ में नहीं आया जितना मैं चाहता था। धोखाधडी, चोरी-चक्कारी और लूटमारी कर मैंने कुछ ही हफ्तों में इतना माल जमा लिया जिसकी मैंने कल्पना नहीं की थी। युवक का यह कथन... यह जवाब यकीनन स्तब्ध करने वाला है और इन सच से भी उन सभी की आंखें खुल जानी चाहिए जो बाबाओं के चक्कर में घनचक्कर बन आगा पीछा नहीं सोचते। एक महिला और उसकी बेटी की अस्मत लूटने वाले आशु भाई गुरुजी ने बाबा... संत का चोला इसलिए ओढा क्योंकि संतई के धंधे में अंधी कमायी है। अंधविश्वासी अपने आप खिंचे चले आते हैं। धर्मप्रेमी महिलाओं की कतार लग जाती है। आशु भाई गुरुजी ने यह विस्फोट कर भी कम दिलेरी नहीं दिखायी कि दरअसल वह तो मुसलमान है। उसने जब देखा कि तंत्र-मंत्र, साधना का जाल फेंककर लोगों को बडी आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है तो वह आसिफ मोहम्मद खान से 'आशु भाई गुरुजी ज्योतिषाचार्य' बन गया। यह नाम धारण करते ही धर्मप्रेमी लोग उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।
उसकी दुकानदारी अच्छी-खासी चल रही थी। अगर वासना के भंवर में नहीं फंसता तो वह बडा हिन्दू धर्म गुरू भी बन जाता।

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