Wednesday, October 31, 2018

चिन्तन को विवश करते तीन चित्र

अहमदाबाद में रहने वाले पच्चीस वर्ष की उम्र के निशांत पटेल को श्री कृष्ण के प्रेरक चरित्र ने इस कदर अपने मोहपाश में बांधा कि उसने सदा-सदा के लिए कृष्णभक्त हो जाने का निर्णय ले लिया। शुरू-शुरू में उसके इस्कॉन मंदिर जाने के सिलसिले से उसके माता-पिता काफी प्रसन्न थे। उन्हें यह देखकर अच्छा लगता था कि उनके बेटे ने अच्छी राह पकडी है। वह नियमित मंदिर जाता है और कृष्ण भक्ति में लीन रहता है। आज के जमाने में जहां अधिकांश दूसरे लडके गलत शौक और ऊटपटांग संगत के चलते अपने भविष्य को दांव पर लगा देते हैं, वहीं उनका बच्चा सद्गुणों का भंडार है। सबकुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन बेटे ने यह कहकर माता-पिता के पैरों तले की जमीन खिसका दी कि अब उसने हमेशा-हमेशा के लिए इस्कान मंदिर में प्रभु अर्चना में लीन रहने और जनसेवा का निर्णय ले लिया है। अब उसका अपने परिवार से कोई नाता नहीं रहेगा। रात भर माता-पिता उसे समझाते रहे। उसे उसके दायित्व और कर्तव्य की याद दिलायी गई, लेकिन वह नहीं पसीजा। सुबह होते ही युवक ने घर त्याग दिया। माता-पिता का तो चैन ही लुट गया। जिस बेटे को उन्होंने अपने खून पसीने की कमायी खर्च कर इंजीनियर बनाया था, वही बुढापे का सहारा बनने की बजाय दगा दे गया था। करीबी रिश्तेदारों, शुभचिन्तकों ने उन्हें यह कहकर तसल्ली दी कि कुछ दिनों के बाद जब उसे अपनी इकलौती बहन और आपकी याद सतायेगी तो वह खुद-ब-खुद घर दौडा चला आएगा। तीन साल बीतने के बाद भी जब जवान बेटे ने बूढे मां-बाप और शादी के योग्य हो चुकी बहन की सुध नहीं ली तो वे अपने करीबियों को साथ लेकर इस्कॉन मंदिर जा पहुंचे। वहां पर उन्होंने मंदिर के कर्ताधर्ताओं पर अपने बेटे को गुमराह करने का आरोप लगाकर खूब हंगामा मचाया। बेटा गहरी चुप्पी साधे रहा। एकाध बार उसने यह जरूर कहा कि उसने अपनी मर्जी से इस्कॉन मंदिर की शरण ली है। बेटे के अडिग रवैये को देखकर सभी की समझ में आ गया कि इस समस्या का आसानी से समाधान नहीं होगा। अंतत: वे यह सोचकर थाने जा पहुंचे कि पुलिस वालों की सलाह और धमकी-चमकी का संन्यासी बेटे पर जरूर असर पडेगा। युवक को भी थाने में बुलवाया गया। वहां पर भी सभी ने उसे उस दौर की याद दिलाने की कोशिश की जब वह बच्चा था और माता-पिता उस पर स्नेह की बरसात करते नहीं थकते थे। उन्होंने अपनी हैसियत से ज्यादा उसे सुख-सुविधाएं उपलब्ध करवायीं। उम्दा कॉलेज में दाखिला दिलवाकर इंजीनियर बनाया। आज जब उनका ध्यान रखने, उनके सपने पूरे करने की उसकी जिम्मेदारी है तो वह भाग खडा हुआ है। अच्छी संतानें ऐसा कभी नहीं करतीं। वो तो माता-पिता की सेवा को ही अपना धर्म मानती हैं। माता-पिता और बहन की अनदेखी कर उसे कभी भी सुख-चैन नहीं मिल पायेगा। माता-पिता और बहन की फरियाद और सिसकियां पुलिस वालों की आंखों को नम करती रहीं, लेकिन वह पत्थर की मूर्ति बना रहा। अन्तत: पुलिस अधिकारियों ने यह कहकर अपना पल्ला झाड लिया कि वे इस मामले में कुछ नहीं कर सकते। उनका बेटा कोई नादान बच्चा नहीं है, जिसे जबरन घर में कैद कर दिया जाए। हर बालिग की तरह उसे भी अपनी मनमर्जी का निर्णय लेने और कहीं भी रहने का कानूनी अधिकार है। माता-पिता फिर भी नहीं माने। उनका रोना-गाना चलता रहा। इस बीच युवक ने खडे होकर उन्हें प्रणाम किया और मंदिर चला गया।
सूरत के करोडपति परिवार में जन्मे भाई-बहन ने सांसारिक मोह-माया और तमाम भौतिक सुखों को त्यागने का निर्णय ले लिया है। ९ दिसंबर को सूरत में आयोजित होने वाले दीक्षा समारोह में बीस वर्षीय यश साधु तो उनकी बाईस वर्षीय बहन आयुषी संन्यासिन बन जाएंगी। उनके पिता का अच्छा खासा कपडे का व्यापार है। करोडों की संपत्ति है। घर में नौकर-चाकर हैं, कई कारें हैं। यश पढाई पूरी करने के पश्चात अपने पिता के कपडे के व्यवसाय से जुड तो गये, लेकिन कुछ ही महीनों के बाद उन्हें लगा कि वे इस काम के लिए नहीं बने हैं। प्रभु ने उन्हें कुछ और ही करने के लिए इस धरती पर भेजा है। माता-पिता भी समझ गए कि बेटा अशांत रहता है। काम-धंधे में उसका बिलकुल मन नहीं लगता। आयुषी को तो वर्षों पहले ही मां ने संन्यास लेने के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया था। वे अक्सर कहतीं कि वे बेटी की शादी करने के बजाय उसे माता के रूप में देखना चाहती हैं। बहन आयुषी ने जब भाई को बेहद उदास पाया तो उसने उसे संन्यास लेने की सलाह दे डाली। भाई तो जैसे इसी मौके की राह देख रहा था। आलीशान हवेलीनुमा घर में रहने और कारों की सवारी करने वाले दोनों भाई-बहन अब पैदल चलेंगे। उनके बदन पर महंगे कपडों की बजाय एकदम साधारण सफेद सूती कपडे होंगे। पूरी तरह से सात्विक भोजन करना होगा। दोनों को बडी बेसब्री से ९ दिसंबर का इंतजार है।
एक लोकप्रिय धारावाहिक में भगवान श्रीकृष्ण का किरदार निभाकर लोकप्रियता के शिखर को छूने वाले अभिनेता सौरभ जैन इन दिनों अपनी छवि को लेकर खासे परेशान हैं। उन्हें जहां-तहां ज्ञानवान होने का दिखावा करना पडता है। हर जगह भीड उनसे प्रवचन सुनने को लालायित रहती है। लोग उन्हें सचमुच का भगवान मानते हैं। उनसे जिस तरह के व्यवहार और हावभाव की अपेक्षा की जाती है उसमें खरा उतर पाना उनके लिए बहुत मुश्किल होता है। उनकी तमन्ना है कि लोग उन्हें भगवान नहीं, आम इंसान समझें। भीड की आशाओं पर खरा उतरने के लिए उन्हें हमेशा चेहरे पर जबरन मुस्कान का नकाब लगाये रखना पडता है। 'महाकाली : अंत ही आरंभ है' में भगवान शिव की भूमिका निभा चुके सौरभ इन दिनों धारावाहिक 'पोरस' में खलनायक की भूमिका निभा रहे हैं। उनकी खुशी देखते ही बनती है। अब वो दिन दूर नहीं, जब वे आजाद पंछी की तरह उड सकेंगे। खलनायक का किरदार उन्हें बनावटी जीवन से मुक्ति दिलायेगा।

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