Thursday, November 1, 2018

कुछ मैं लडूँ, कुछ तुम लडो

जो अच्छी तरह से जानते हैं कि दिवाली पर बेतहाशा पटाखों का चलाना पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी बेहद हानिकारक है, वे भी दिवाली की रात अंधाधुंध पटाखे जलाने से बाज नहीं आते। पटाखे फोडने में धनवानों की तो जैसे रात भर प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। कितने लोगों के हाथ-पांव जल जाते हैं, आंखों की रोशनी चली जाती है इसकी भी खबरें अखबारों और न्यूज चैनलों पर आती हैं, लेकिन फिर भी फटाकेबाजों की आंखें नहीं खुलतीं। इसी जहरीले सच से अवगत होने के कारण ही सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली पर केवल रात आठ बजे से दस बजे के बीच पटाखे जलाने की अनुमति दी है। दीपावली को दीपों के बजाय सिर्फ और सिर्फ आतिशबाजी का उत्सव मानने वाले कई लोगों को अदालत का यह निर्णय कतई नहीं सुहाया। सोशल मीडिया पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं देखने में आयीं। कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय भी हिंदुओं के त्योहारों पर टेढी नज़र रखते हुए भेदभाव की नीति अपनाता है।
यह लगातार देखा जा रहा है कि सोशल मीडिया पर ऐसे कटुता प्रेमी छाते चले जा रहे हैं, जिनका एकमात्र मकसद किसी को लांछित करना, भ्रम फैलाना, अपनी भडास निकालना, विवाद खडे करना और अपशब्दों की बरसात करना ही है। उन्हें अब यह कौन बताये और समझाये कि सर्वोच्च न्यायालय धर्म का चश्मा लगाकर अपने निर्णय नहीं सुनाता। उसे हर भारतवासी की फिक्र रहती है। उसे मतलबी नेताओं के समकक्ष खडा करना अनुचित है जो जात-धर्म की राजनीति करते चले आ रहे हैं। विभिन्न डॉक्टर लोगों को सचेत करते रहे हैं कि पटाखे जलाने पर जो कार्बन मोनोक्साइड और कार्बन डायऑक्साइड गैस पैदा होती है वह सांस के साथ हमारे रक्त में चली जाती है। रक्त में घुलकर यह शरीर के विभिन्न हिस्सों को भारी क्षति पहुंचाती है। इसके अलावा जब पटाखे जलते हैं तो उनकी चिंगारियां आकाश की ओर जाती हैं, इससे पेडों पर रह रहे और आकाश में उड रहे पक्षी घायल हो जाते हैं। पटाखों में ऐसे-ऐसे रसायन होते है जो किडनी और लीवर को नुकसान पहुंचाते हैं। नर्वस सिस्टम पर असर डालने के साथ-साथ आंखों में जलन पैदा करते हैं। पटाखों में पाया जाने वाला क्रोमियम नामक रसायन त्वचा को तो हानि पहुंचाता ही है, फेफडों के कैंसर का कारक भी बन सकता है। और भी कई तकलीफों के जन्मदाता पटाखों पर आये सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर विरोध जताने वालों की सोच पर तरस के साथ-साथ गुस्सा भी आता है।
अपने यहां इंसानी जिंदगी का कोई मोल नहीं है। धन के लोभी सिर्फ और सिर्फ अपने हित की ही सोचते हैं। पर्यावरण के दूषित होने से कितने-कितने इंसानों और प्राणियों को असमय परलोक सिधारना पडता है इसकी चिन्ता वे कभी भी नहीं करते। देश में हर जगह खनन माफिया पर्यावरण को चौपट करते हुए लूटपाट मचाये हैं। यह कितनी चौंकाने वाली सच्चाई है कि राजस्थान में अरावली पर्वत माला की ३४ पहाडियों को उखाडकर गायब कर दिया गया। धन के लालची बेखौफ होकर पहाडों, तालाबों और पेडों को गायब कर पर्यावरण को अपूरणीय क्षति पहुंचा रहे हैं और हम और आप कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। शासन और प्रशासन ने तो जैसे अंधे बने रहने की कसम खा ली है। यह भी सच है कि इस लूटकर्म में शासकों के करीबी नेता और उनके साथी शामिल हैं। उत्सवों को मनाने में बरती जाने वाली लापरवाही कितनी मर्मांतक त्रासदी में तब्दील हो सकती है इसका भयावह मंजर १९ अक्टूबर, दशहरे की शाम अमृतसर के धोबीघाट पर देखने में आया। इस घटना ने जहां नेताओं की संवेदनहीनता उजागर की वहीं प्रशासन का बिकाऊ और अंधा चेहरा भी दिखा दिया। यह जानते-समझते हुए भी कि यह रेलपथ है फिर भी हजारों की संख्या में लोग वहां पर खडे होकर रावण दहन देख रहे थे। पटाखों के शोर के अलावा कुछ भी सुनायी नहीं दे रहा था। महज पांच सेकंड में एक १०० किमी की रफ्तार से दौडती ट्रेन लोगों को कुचलते हुए निकल गई। सैकडों लोग बुरी तरह से घायल हुए और बासठ लोगों की मौत हो गई। जिन लोगों ने यह खौफनाक मंजर देखा उनकी तो रातों की नींद ही उड गई। खाने-पीने की इच्छा मर गई। रेलवे फाटक से लगी खाली पडी जमीन पर रावण दहन का यह खूनी कार्यक्रम कांग्रेसी पार्षद के पुत्र ने करवाया था। अधिक से अधिक भीड जुटाने के लिए उसने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। इस हृदयविदारक घटना के बाद वह कराहते मौत से जूझते लोगों की सहायता करने की बजाय भाग खडा हुआ। पंजाब सरकार के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी इस आयोजन में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थीं, लेकिन जैसे ही यह हादसा हुआ तो वे फौरन मंच से उतर कर फुर्र हो गर्इं। मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने इस दर्दनाक दुर्घटना को कुदरत का कहर बता कर इस हकीकत पर मुहर लगा दी कि नेताओं की कौम स्वार्थी भी होती है और निष्ठुर भी।
देश के लगभग हर प्रदेश में माफियाओं की समानांतर सत्ता चल रही है। रेत माफियाओं, शराब माफियाओं, कोल माफियाओं के साथ अन्य तमाम माफियाओं को बडे-बडे राजनीतिज्ञों का साथ और आशीर्वाद सर्वविदित है। देश का सर्वोच्च न्यायालय समय-समय पर सरकारों से जवाब-तलब करने के साथ-साथ समस्त देशवासियों को भी जागरूक करने में लगा रहता है। सरकारें कैसे अपना दायित्व निभा रही हैं, इसकी हम सबको पूरी खबर है। अधिकांश भारतवासी कौन से रास्ते पर चल रहे हैं इस पर भी तो चिंतन होना चाहिए। जब देखो तब भ्रष्टाचार के खिलाफ शोर मचाया जाता है तो फिर सवाल उठता है कि भ्रष्टाचार का खात्मा क्यों नहीं हो पा रहा है? इंडियन करप्शन सर्वे २०१८ की रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक साल में हमारे देश में रिश्वत देने के प्रचलन में बढोतरी हुई है। लोग खुद ही घूस देने को लालायित रहते हैं ताकि उनका काम हो जाए। सोचिए... ऐसे में देश की तस्वीर कैसे बदलेगी? दरअसल हम खुद को बदलने को तैयार ही नहीं हैं। दूसरों से ही तमाम उम्मीदें लगाये रहते हैं। लोगों की सोच पर कटाक्ष और सवाल दागती बालकवि बैरागी की लिखी यह पंक्तियां पढें और चिंतन-मनन करें:
आज मैंने सूर्य से बस जरा सा यूं कहा,
"आपके साम्राज्य में इतना अंधेरा क्यूं रहा?"
तमतमा कर वह दहाडा - "मैं अकेला क्या करूँ?
तुम निकम्मों के लिए मैं ही भला कब तक मरूँ?
आकाश की आराधना के चक्करों में मत पडो
संग्राम यह घनघोर है, कुछ मैं लडूँ, कुछ तुम लडो।"
'राष्ट्र पत्रिका' के तमाम सजग पाठकों, संवाददाताओं, एजेंट बंधुओं, लेखकों, विज्ञापनदाताओं, संपादकीय सहयोगियों और शुभचिंतकों को दीपावली की अनंत शुभकामनाएं... बधाई।

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