Thursday, November 15, 2018

यह कैसी नृशंसता और आक्रामकता?

दीपावली का दिन था। उत्तर प्रदेश के शहर मेरठ में कुछ बच्चे अपने घर के बाहर खेल-कूद रहे थे। हर उत्सव पर बच्चों को मिठाई की चाह रहती है। फिर दिवाली तो मिठाइयों, दीपों, पटाखों तथा अपने और बेगानों में आदर, स्नेह की वर्षा करने का त्योहार है। वैसे बडों का भी मिठाई के प्रति लगाव और खिंचाव जगजाहिर है। पिछले कुछ वर्षों से भारतीय परंपरागत मिठाइयों को तरह-तरह की चाकलेटों ने मात दे दी है। अधिकांश बच्चों को चाकलेट बहुत भाती हैं। मोहल्ले में बच्चे खेलने में मस्त थे। तभी एक अधेड वहां पहुंचा। उसने एक बच्ची को अपने पास बुलाकर कहा कि यह बहुत बढ़िया चाकलेट है इसे खाने में तुम्हें बहुत मज़ा आयेगा। बच्ची खुशी के मारे झूमने लगी। वैसे भी हमारे यहां के मासूम बच्चे बडों पर फौरन यकीन कर लेते हैं। मात्र तीन वर्ष की बच्ची कुछ समझ पाती इससे पहले ही उस शख्स ने चाकलेट के नाम पर बच्ची के मुंह में जलता हुआ सुतली बम रख दिया। बम को तो फटना ही था। बम के फटते ही बच्ची के मुंह के चिथडे उड गए। खून के फव्वारे छूटने लगे। बच्ची के रोने की आवाज जैसे ही मां के कानों तक पहुंची तो वह घर से बाहर आई। उसकी बच्ची लहू से सनी सडक पर तडप रही थी। बच्ची के साथ खेल रहे बच्चों ने मां को सारी बात बताई। मां ने किसी तरह से खुद को संभाला और पडोसियों की मदद से घायल बच्ची को अस्पताल ले गई। बच्ची के क्षत-विक्षत मुंह और उसकी तडपन को देखकर डॉक्टर भी हिल गए। एक डॉक्टर को तो रुलाई आने लगी। डॉक्टर फौरन उसके इलाज में लग गए। मुंह के साथ-साथ बच्ची की जीभ पूरी तरह से फट चुकी थी। पटाखे के विषैले कण भी शरीर में प्रवेश कर गये थे। डॉक्टरों को उसके इलाज के लिए काफी परिश्रम करना पडा। मुंह पर पचास टांके लगाये गए। टांके लगाते समय बच्ची की दर्द के मारे रोने और कराहने की आवाज पूरे अस्पताल में गूंज रही थी और मां बेहोश हो चुकी थी।
एक जमाना था जब बडों की सलाह और नसीहत को सुनकर उस पर अमल करने में संकोच नहीं किया जाता था, लेकिन अब हालात बदल गये हैं। अधिकांश लोग अपनी मनमानी करना चाहते हैं। उन्हें किसी की सलाह और सुझाव शूल और थप्पड से लगते हैं। अमृतसर से टाटानगर जा रही जलियांवाला बाग एक्सप्रेस ट्रेन में एक उम्रदराज सजग महिला ने ट्रेन में सिगरेट पी रहे तीन युवकों को टोका तो वे महिला से ही हिंसक जानवरों की तरह भिड गये। अपनी मां के साथ बदतमीजी से पेश आने वाले युवकों को बेटे ने जब समझाने की कोशिश की तो युवकों ने बेटे और बहू की लात-घूसों से पिटायी कर दी। बेटे के हस्तक्षेप करने के कारण युवक इतने अधिक उग्र हो गये और उसकी मां की फिर से इस तरह से पिटायी करने लगे जैसे उससे उनकी पुश्तैनी दुश्मनी हो। महिला को बचाने के लिए कोई भी यात्री सामने नहीं आया। सभी भय के मारे दुबक कर बैठे रहे। मारपीट करने वाले दो युवक चेनपुलिंग करके रास्ते में उतरकर भाग गए, जबकि एक को पकड कर पुलिस के हवाले कर दिया गया। लहुलूहान महिला को अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। यह महिला ट्रेन के जनरल कोच में बैठकर अपने बहू-बेटे के साथ छठ-पूजा का त्योहार मनाने के लिए बिहार में स्थित अपने गांव जा रही थी, लेकिन दुष्टों ने तो रास्ते में ही उसकी जान ले ली। समझ में नहीं आता कि कुछ लोग इतने निर्मम और हिंसक क्यों हो जाते हैं। उन्हें न अपनी और न ही दूसरों की मान-मर्यादा का ख्याल रहता है।
नागपुर शहर के एक नामी क्लब में दिवाली मिलन के कार्यक्रम में एक व्यापारी को बीच-बचाव करना बहुत महंगा पड गया। व्यापारी अपने परिवार के साथ बनठन तन कर क्लब के द्वारा आयोजित कार्यक्रम मैं यह सोचकर पहुंचा था कि आज पुराने मित्रों से मुलाकात होगी। एक दूसरे के गले मिलेंगे। हालचाल जानेंगे और दिल खोलकर मौज-मज़ा करेंगे। नगरों-महानगरों में क्लब का मेम्बर बनने का मकसद ही यही होता है कि शहर के नामी-गिरामी प्रतिष्ठित लोगों से मेलजोल बढे और ऐसा गोपनीय, सुरक्षित और आत्मीय माहौल मिले जो अन्यत्र दुर्लभ होता है। क्लबों में आम होटलों, बीयर बारों और मनोरंजन स्थलों की तरह आम लोगों का आना-जाना नहीं होता। इसलिए उच्च अधिकारी, वकील, जज, उद्योगपति, मंत्री, विधायक, मीडिया के दिग्गज तथा तरह-तरह के बडे कारोबारी मोटी फीस देकर क्लब के मेंबर बनते हैं।
उस रात भी मेल-मुलाकात के कार्यक्रम में शहर की कई नामी-गिरामी हस्तियां मौजूद थीं। इसी दौरान व्यापारी लघुशंका के लिए बाथरूम गया तो वहां पर उसने देखा कि एक युवक को कुछ लोग बुरी तरह से पीट रहे हैं, जिससे उसके सिर से बेतहाशा खून बह रहा है। व्यापारी ने उन्हें युवक की पिटायी करने से रोका-टोका तो उन्होंने उसी पर बीयर की बोतलों और कांच के गिलासों की बरसात कर लहुलूहान कर दिया। गंभीर रूप से घायल व्यापारी को अस्पताल ले जाया गया, जहां पर उसके सिर और चेहरे पर तीस टांके लगाकर बडी मुश्किल से उसकी जान बचायी जा सकी। सच तो यही है कि भागा-दौडी के इस दौर में लोगों की सहन शक्ति खोती चली जा रही है और आक्रामक प्रवृत्ति बढती चली जा रही है। खुद को ही सही मानने वाले लोग दूसरों की सुनना ही नहीं चाहते। अधैर्य और गुस्सा उन्हें अनियंत्रित करने में किंचित भी देरी नहीं लगाता। बच्चे भी बडी तेजी से इस आदत और रोग के शिकार हो रहे हैं। बीते वर्ष महाराष्ट्र के यवतमाल शहर में एक स्कूली छात्र ने अपने ही सहपाठी की पत्थर से कुचलकर हत्या कर दी थी। छोटी उम्र में किये गए हत्या जैसे इस बडे अपराध के पीछे सिर्फ यही वजह थी कि उसके द्वारा मौत के घाट उतार दिया गया छात्र उसे अक्सर चिढाता था...।

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