Friday, November 9, 2018

ऐसा ही है...

कल एक युवा लेखक की मौत हो गई। उसके मित्र तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं व्यक्त करने में लीन हो गए। इन मित्रों में कुछ कहानीकार थे, कुछ कवि थे तो कुछ व्यंग्यकार। चंद पत्रकार भी शामिल थे। उसके अति शुभचिन्तकों, कवि मित्रों को उसके असमय जाने का अत्यंत दु:ख था। अभी तो उसने साहित्य के आकाश पर चमकना शुरू किया ही था। व्यंग्यकार और पत्रकार मित्र भी शोकाकुल थे, लेकिन वे खुद को यह कहने और बताने से रोक नहीं पा रहे थे कि वह हद दर्जे का शराबी था। अगर उसने पीने पर नियंत्रण रखा होता तो ऐसे अचानक परलोक नहीं सिधारता। कुछ बुद्धिजीवियों की राय थी कि उसका समय पूरा हो गया था। ऊपर वाले के आगे किसी की नहीं चलती। देश के कई साहित्यकार मय के दिवाने रहे हैं। गोपालदास 'नीरज', सआदत हसन मंटो, हरिशंकर परसाई, राजेंद्र यादव, कमलेश्वर, रविंद्र कालिया, खुशवंत सिंह आदि ने शराब के प्यालों में डूब कर ही प्रभावशाली साहित्य की रचना की है। इनमें मंटो को छोडकर कुछ ने बहुत अच्छी तो कुछ ने ठीक-ठाक उम्र पायी। खुशवंत सिंह तो प्रतिदिन अपने तय समय पर मयखोरी करने के बावजूद निनायनवें साल तक जिन्दा रहकर अपने अंदाज से लेखन के साथ-साथ मौज मस्ती करते रहे।
अपने यहां आधुनिक तथा खुले विचारों के हिमायती होने के जितने दावे किये जाते हैं उन सब में पूरी की पूरी सत्यता नहीं होती। भारतवर्ष में आज भी महिलाओं को खुले अंदाज में चलता-फिरता देखकर पुरुषों की बहुत ब‹डी जमात भौचक्क रह जाती है। तरह-तरह के बोल और कटाक्ष किये जाते हैं। मर्द कहीं भी कुछ भी पीने और करने को स्वतंत्र हैं, लेकिन स्त्री के लिए अथाह बंदिशों की वकालत करने वाले सीना ताने खडे नजर आते हैं। उनका मानना है मौज-मस्ती के सभी साधन पुरुषों के लिए बने हैं। महिलाओं के लिए तो इनकी कल्पना करना भी वर्जित है। कुछ दिन पूर्व गोवा में छुट्टियां मनाने गई एक युवा फिल्म अभिनेत्री ने अपनी कुछ तस्वीरें इंस्टा अकाउंट पर शेयर कीं। इन तस्वीरों में एक तो उसने बिकिनी पहन रखी थी, दूसरे उसके हाथ में शराब का गिलास शोभायमान था। शराब के साथ सिगरेट पीती अभिनेत्री की तस्वीरों पर लोगों ने गालियों की बौछार के साथ आपत्ति जताते हुए उसे एक बुरी घटिया नारी घोषित कर दिया। आजाद ख्याल अभिनेत्री ने विभिन्न प्रतिक्रियाओं के जवाब में लिखा : हां मैं शराब पीती हूं और स्मोक भी करती हूं। पर आप यह भी जान लें कि छुपाने में नहीं, खुलकर सामने आने में विश्वास रखती हूं। मैं कैसी नारी हूं इसका आकलन करने का हक किसी को भी नहीं है। शराब और सिगरेट पीने वाली औरत को आप एक बुरी औरत कैसे कह सकते हैं? मुझे ऐसा कतई नहीं लगता कि मैं इन नशों के चक्कर में अपनी जिन्दगी बर्बाद कर रही हूं। मैं कोई बेरोजगार नहीं हूं। मेरे पास करने को बहुत कुछ है। मैं एक ऐसी सफल एक्ट्रेस और डांसर हूं जो देश की बहुत बडी मायानगरी मुंबई में अपने दमखम पर रहती है।
यह हकीकत किसी से छिपी नहीं है कि संभ्रांत समाज में लडकियां और महिलाएं खुलकर शराब पीती हैं। ड्रग्स भी लेती हैं। नामी क्लबों और बडी पार्टियों में पढी-लिखी और अच्छे परिवारों की नारियां शराब, वाइन, शैम्पेन पीकर बहकती नज़र आती हैं। यह उनके लिए फैशन है। आधुनिकता की निशानी है। एक सर्वे बताता है कि भारतवर्ष में पुरुषों के हमलों का शिकार होने वाली एक तिहाई तथाकथित आधुनिक महिलाएं नशे में होने के कारण विरोध कर पाने में असमर्थ होती हैं। विभिन्न अध्ययनों में यह भी पाया गया कि दो में से एक यौन हमला उन पुरुषों के द्वारा किया गया जो शराब के नशे में थे।
यह सच भी चौंकाने वाला है कि शराब के खिलाफ हुए अधिकांश आंदोलनों में ग्रामीण महिलाओं ने ही सक्रियता दिखायी है। बिहार जहां पर नीतीश कुमार ने सरकार बनाने के बाद फौरन बाद शराब बंदी की घोषणा की थी उसका वास्तविक श्रेय महिलाओं को ही जाता है। दरअसल, समाज में शराब की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं को ही उठाना पडता है। शराबी पति के कारण उन्हें आर्थिक समस्याओं के साथ-साथ घरेलू हिंसा का शिकार होना पडता है। जहरीली और नकली शराब की वजह से होने वाली मौतों का भयावह असर अंतत: महिलाओं को ही झेलना पडता है। पिछले महीने ओडिशा के झारसुगडा जिला मुख्यालय से ११ किलोमीटर दूर श्रीपुरा गांव में महिलाओं ने कई हफ्तों तक शराब भट्टी के समक्ष तंबू गाड कर अपने विरोध का प्रदर्शन किया। इस गांव में पुरुष तो शराब का नशा करते ही थे, बच्चों को भी इसका आकर्षण अपनी ओर खींचने लगा था। कुछ बच्चे भी चोरी-छिपे शराब भट्टी तक पहुंचने लगे थे। ओडिशा के अलग-अलग जिलों में इससे पहले भी शराब बंदी के लिए कुछ आंदोलन हो चुके हैं, लेकिन इस आंदोलन ने शराब भट्टी मालिकों की नींद उडा दी। यह नशीला धंधा हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो जाए इसके लिए महिलाएं चौबीस घंटे भट्टी की निगरानी करती थीं। प्रशासन की नींद उडाकर रख देने वाले इस आंदोलन में महिलाओं की एकता देखते ही बनती थी। अपने घरेलू कामकाज से निवृत्त होकर वे बारी-बारी से आंदोलन स्थल पर आकर बैठ जातीं और शराब के खिलाफ नारेबाजी करती रहतीं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए गांव के कुछ युवक तंबू के आसपास मौजूद रहते।
खुद को नशे के हवाले करने के लिए जान गवां देने वालों के बारे में क्या कहा जाए? दिल्ली के नांगलोई रेलवे स्टेशन के पास रेलवे ट्रैक पर बैठकर शराब पी रहे तीन लोगों की ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई। जब यह शराबी ट्रैक पर बैठकर शराब पी रहे थे तब लोको पायलट ने उन्हें ट्रैक से हटने को कहा था, लेकिन इसके बावजूद वे वहां डटे रहे और जाम से जाम टकराते रहे। धीरे-धीरे उन्होंने इतनी अधिक चढा ली कि नशे ने उनको पूरी तरह से बेसुध कर दिया। इसी दौरान दिल्ली-बीकानेर एक्सप्रेस ट्रेन आई और उन्हें कुचलते हुए निकल गई। नशे में ट्रेन की चपेट में आने वाले यह तीनों पियक्कड रेलवे लाइन के किनारे बनी झुग्गियों में रहते थे। देश की राजधानी सहित लगभग पूरे देश में रेलवे लाइनों के किनारे झुग्गियां बनी हुई हैं जहां पर तमाम असुविधाओं के बावजूद हजारों लोग रहते हैं। इनमें से कुछ मजबूर और बेबस हैं और कई आदतन अपराधी हैं। पुलिस जांच में यह सच उजागर हो चुका है कि इन झुग्गियों में तरह-तरह के अपराध और अपराधी जन्मते और पलते-बढते हैं। झुग्गियों में रहने वाले बदमाश रेलगाडियों में चोरी, लूटपाट और झपटमारी को आसानी से अंजाम देकर झुग्गियों की संकरी गलियों में गायब हो जाते हैं। रेलवे प्रशासन की आंखें कभी भी नहीं खुल पातीं।

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