Thursday, November 29, 2018

क्यों नहीं रुकता सिलसिला?

आत्महत्या करने से पहले अनीसिया बत्रा काफी देर तक छत पर रेलिंग के सहारे टेक लगाकर खडी रही। उसके मन-मस्तिष्क में तरह-तरह के विचारों की आंधियां चलती रहीं। उसने अत्याधिक शराब पी रखी थी फिर भी उसने अपने होश नहीं खोये थे। वह सोच रही थी तब उसके होश कहां गुम हो गये थे जब वह मयंक के प्यार में अंधी हो गई थी। माता-पिता और तमाम रिश्तेदारों की एक ही राय थी कि मयंक निहायत ही गंदा इन्सान है। उसकी अतरंग सहेली निहारिका ने तो उसके समक्ष मयंक की पूरी पोल-पट्टी ही खोलकर रख दी थी। मयंक ने कभी निहारिका पर भी डोरे डाले थे। पूर्व मिस इंडिया व अभिनेत्री निहारिका को मयंक ने उसके २९वें जन्मदिन पर आयोजित पार्टी में महंगी अंगूठी भेंट की थी और शादी का प्रस्ताव रखा था। उसने अपने सीने पर निहारिका के नाम का टैटू भी बनवा लिया था, लेकिन कुछ समय बाद निहारिका को जब पता चला कि मयंक एक दिलफेंक इन्सान होने के साथ-साथ मनोरोगी व हिंसक है तो उसने उससे दूरियां बना ली थीं। इसके बाद मयंक जानवरों की तरह अजीब-अजीब हरकतें करते हुए उसे खत्म करने की धमकियां देने लगा था। वह इतनी भयभीत हो गई थी कि कई दिनों तक दोस्तों के यहां छिपी रही। अनीसिया ने अपनी वर्षों पुरानी सहेली की बातों पर भरोसा न करते हुए मयंक के साथ शादी कर सभी को चौंका दिया था। कुछ हफ्तों तक मयंक का व्यवहार ठीक-ठाक रहा, लेकिन धीरे-धीरे निहारिका की कही हर बात सच होने लगी तो उसने अपना माथा पीट लिया। मयंक में प्रेमी और पति वाले गुण तो थे ही नहीं। वह तो हद दर्जे का लालची, हिंसक और शक्की इन्सान था। कभी भी हाथ उठा देता और गाली-गलौच पर उतर आता। अनीसिया जर्मन एयरलाइंस लुफ्तांश में एयरहोस्टेस थी। उसकी पहचान का दायरा काफी विस्तृत था। मयंक को तो उसका किसी से बात करना भी नहीं सुहाता था। वह किसी भी पुरुष को उसका यार और आशिक घोषित कर उसके चरित्र पर लांछन लगाने लगता। रोज-रोज के झगडों ने अनीसिया को थका दिया।
एक सर्वे के अनुसार वर्तमान में भी महिलाओं पर पुरुषों का आतंक बना हुआ है। लगभग एक तिहाई शादीशुदा महिलाएं पुरुषों की पिटायी का शिकार होती चली आ रही हैं। विडंबना तो यह भी है कि अधिकांश महिलाएं पतियों के सभी जुल्मों और अन्यायों को चुपचाप सह लेती हैं। कहीं कोई शिकायत तक नहीं करतीं। यह भी घोर हैरानी भरा सच है कि इस तरह की मारपीट की घटनाएं जिन घरों में घटती हैं वहां से भी विरोध की कोई आवाज नहीं निकलती। निजी मामला मानकर चुप्पी साध ली जाती है। चुप रहने के लिए विवश कर दिया जाता है। जिन पढी-लिखी महिलाओं को पता है कि हिंसक पुरुषों को सबक सिखाने के लिए देश में घरेलू हिंसा कानून बनाया गया है वे भी पति और परिवार की बदनामी के भय से मूक बनी रहती हैं। कुछ महिलाएं अपने बच्चों के भविष्य के लिए घरेलू हिंसा की आग में ताउम्र जलना स्वीकार कर लेती हैं तो कुछ अनीसिया की तरह आत्महत्या कर लेती हैं। वे यह भूल जाती हैं कि यह जीवन हारने और पीठ दिखाने के लिए नहीं मिला है। परमात्मा ने यह जीवन देकर हमारा सम्मान किया है। यह उसकी तरफ से दिया गया सर्वोत्तम उपहार है। उपहार का कभी अपमान नहीं किया जाता। यह भी कहा और लिखा जाता रहा है कि महिलाओं के पूरी तरह से शिक्षित तथा आत्मनिर्भर होने पर ही पुरुषों/पतियों की गुंडागर्दी पर लगाम लग सकती है। पढी-लिखी महिलाओं में अपना नया रास्ता चुनने, बोलने और विरोध करने का खुद-ब-खुद साहस आ जाता है। अगर यह निष्कर्ष, कथन और सोच सही है तो यह सवाल उठना भी लाजिमी है कि अच्छी-खासी नौकरी करने वाली अनीसिया ने आत्महत्या क्यों की? वह पढी-लिखी भी थी और आत्मनिर्भर भी। जिसने कभी लोगों की परवाह नहीं की। अपने सभी अहम फैसले खुद लेकर अपनों और गैरों को चौंकाया। बगावत करने की हिम्मत रखने वाली युवती को मानसिक रोगी, लडाकू पति से फौरन अलग होकर नयी जिन्दगी जीने से किसने रोका था! कोई रोकता भी तो वह कहां मानने वाली थी। अनीसिया ने आत्महत्या कर चिंतनीय अपराध तो किया ही है।
ऐसा ही अपराध बीते सप्ताह इंटरनेशनल गोल्ड मेडलिस्ट एथलीट पलविंदर चौधरी ने कर डाला, जिसकी उम्र महज अठारह वर्ष ही थी। देश के होनहार खिलाडियों में उसकी गिनती होने लगी थी। रांची में २०१५ में आयोजित नेशनल चैंपियनशिप में पलविंदर चौधरी ने अंडर-१६ कैटिगरी में १०० मीटर की रेस १०.१ सेकंड में पूरी कर नेशनल रिकॉर्ड की बराबरी कर अपने अच्छे भविष्य के संकेत दिए। साथ ही उन्हें साकार भी कर दिखाया। दिल्ली के साई हॉस्टल में रहकर बडे जोशो-खरोश के साथ १०० और २०० मीटर रेस की तैयारी में जुटे पलविंदर के कमरे में पंखे से लटकर आत्महत्या करने की जब खबर आयी तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ। माता-पिता, रिश्तेदार और यार-दोस्त सन्न रह गए। हर किसी की आंखों से आंसू बह रहे थे और सवालों की भीड जवाब पाने को उत्सुक थी। "वह तो बेहद जुनूनी खिलाडी था। देश हो या विदेश, जहां भी दौडा, गोल्ड लेकर ही आया। अब उसके दिलो-दिमाग पर केवल ओलम्पिक ही छाया हुआ था। किसी भी सूरत में वह गोल्ड लाने के लिए पागल हुआ जा रहा था। ओलंपिक के प्रति उसकी दिवानगी उसके दिमाग में इस कदर हावी हो गई थी कि उसने एक हाथ पर ओलम्पिक के सिंबल का टैटू तक गुदवा लिया था। कल ही तो फोन पर उससे बात हुई थी। ऐसा कुछ भी नहीं लगा था जो ऐसी अनहोनी की ओर इशारा करता।" यह कहना था पलविंदर के पहले कोच अजीतकुमार का जो उसे बचपन से जानते थे। आत्महत्या करने से लगभग पंद्रह दिन पूर्व युवा खिलाडी पलविंदर ने अपने किसान पिता को खुराक के लिए कुछ पैसे भेजने को कहा था। पिता ने उसे आश्वस्त किया था कि जैसे ही धान बिक जाएगी पैसे उसके पास पहुंच जाएंगे। हर खिलाडी को स्वयं को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए पौष्टिक खाद्य पदार्थ लेने जरूरी होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पलविंदर धन के अभाव के चलते उनसे वंचित था। खिलाडी बेटा अपनी जगह परेशान था और किसान पिता की वही मजबूरी थी, जो लगभग हर किसान की नियति बन चुकी है। देश का अन्नदाता अपने ही परिवार की ढंग से परवरिश नहीं कर पाता। हर वर्ष हजारों किसान फांसी के फंदे पर झूलकर या जहर खाकर आत्महत्या कर लेते हैं। कोई भी किसान शौकिया मौत को गले नहीं लगाता। आर्थिक तंगी ही उसे यह कदम उठाने को विवश करती है। सरकारें किसानों की सहायता के लिए सरकारी तिजोरियों के मुंह को खोलने का ऐलान तो करती हैं, लेकिन किसानों की आत्महत्याओं का आंकडा बढता ही चला जाता है। किसानों के हिस्से का धन पता नहीं कहां गायब हो जाता है? ३१ अक्टूबर २०१८ की रात फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के टीवी कार्यक्रम 'कौन बनेगा करोडपति में महाराष्ट्र के एक किसान ने देश के अन्नदाता की हकीकत बयां कर करोडों लोगों की आंखें भिगों दीं। साहूकारों और बैंकों पर आश्रित रहने वाला भारत का मेहनतकश आम किसान इतना भी नहीं कमा पाता कि वह अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी और अन्य जरूरी सुविधाएं हासिल कर सके। उसकी पत्नी का मंगलसूत्र तक साहूकार के पास गिरवी रहता है। दिल को दहला और रुला देने वाली किसान की दास्तां को सुनकर अमिताभ बच्चन भी बेहद भावुक हो गये। उन्होंने किसानों की सहायता करने के लिए धनपतियों से अपील की और खुद भी खुले हाथों से सहयोग देने का ऐलान किया। कुछ लोगों ने इसे अभिनेता की नौटंकी कहते हुए कहा कि यह तो भावुकता में कहे गये ऐसे शब्द हैं, जिनका इस्तेमाल राजनेता और सत्ताधीश अक्सर करते रहते हैं।  केबीसी के मंच से उतरने के बाद उन्हें कुछ भी याद नहीं रहेगा। महाराष्ट्र के हों या उत्तर प्रदेश के... किसान तो किसान हैं। सभी की तकलीफें और चिंताएं एक समान हैं। अमिताभ ने अपने कथन को साकार करने में देरी नहीं लगायी। उन्होंने उत्तर प्रदेश के १३९८ किसानों के चार करोड पांच लाख रुपये के बैंक कर्जे को चुका दिया। उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा है कि उनके लिए यह बहुत संतुष्टि का पल है कि महाराष्ट्र के बाद वह उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए कुछ कर पाए।

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