Thursday, May 16, 2019

ऐसा क्यों होता है?

मुकेश भाटिया की बारह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सभी एक से बढकर एक हैं। यह सभी पुस्तकें पाठकों के सोये हुए आत्मबल को जगा कर उनमें उत्साह, प्रसन्नता और सकारात्मकता का संचार करती हैं। मुकेश भाटिया को मैनेजमेंट गुरू भी कहा जाता है। भाटिया की किताबों से प्रेरणा लेकर न जाने कितने लोग अपने जीवन में बदलाव लाने में सफल रहे। उनके बिगडे काम बन गए। पारिवारिक कलह-क्लेश का खात्मा हो गया। मान-सम्मान के साथ धनवान भी हो गए। इसे अब क्या कहें... कि जिस शख्स ने दूसरों को जागृत रहकर जीवन जीने की कला सिखायी वही आज धोखाधडी का शिकार होकर अपनी पत्नी के साथ आगरा के रामलाल वृद्धाश्रम में रह रहा है। उनके जानने वाले उन पर कटाक्ष करते नहीं थकते कि जिसने देश और विदेश में प्रबंधन का ज्ञान बांटा वही पारिवारिक मोर्चे पर बुरी तरह से पिट गया। मात खा गया। वो भी अपनों से...! दिल्ली के चांदनी चौक निवासी भाटिया को अपने बेटे से बहुत लगाव था। आंख मूदकर उस पर भरोसा करते थे। उनकी एक बेटी भी है। बेटे ने किन्हीं मधुर पलों में सारी जमीन-जायदाद अपने नाम करा ली। भाटिया ने भी सभी कागजातों पर यह सोचकर हस्ताक्षर कर दिये कि इकलौता बेटा है। आखिरकार सबकुछ इसी का तो है। हम तो अब कुछ दिनों के मेहमान हैं। क्या पता कब ऊपर वाले का बुलावा आ जाए। इसलिए जो काम कल करना है उसे आज ही कर लेने में कौन-सा हर्ज है। भाटिया बेफिक्र थे। बेटे की खुशी में अपनी खुशी देख रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे बेटे और बहू का व्यवहार बदलने लगा। जो बहू कभी पूरा मान-सम्मान देती थी, अदब का दामन नहीं छोडती थी वह बेशर्मी के साथ बदतमीजी से पेश आने लगी। जिस घर में शांति का वास था वह कलह का अखाडा बन गया। देखते ही देखते घर के हालात इतने खराब हो गये कि उनके लिए एक पल भी रहना मुश्किल हो गया। भाटिया की पत्नी ने तो इसे किस्मत का लिखा मान कर खुद को संभाल लिया, लेकिन भाटिया इस अकल्पनीय सच को स्वीकार नहीं कर पाये। उनकी पागलों जैसी हालत हो गई। माथा पीट-पीटकर रोने और चीखने-चिल्लाने लगते। अपनी पत्नी से बार-बार पूछते कि यह क्या हो गया? मेरा बेटा तो ऐसा न था। वह कैसे बदल गया! मैंने उसे अच्छे स्कूल-कॉलेज में पढाया-लिखाया और उसकी हर इच्छा पूरी की। कभी किसी कडे अनुशासन की जंजीर में नहीं बांधा। अमूमन माता-पिता के बीच जो अनकही दूरी होती है उसे मिटाते हुए हमेशा यही एहसास दिलाया कि मैं उनका पिता नहीं, दोस्त हूं। हमारे बचपन और किशोरावस्था में तो हमारे मां-बाप अपने बच्चों के बीच एक दूरी बनाकर रखते थे, लेकिन मैंने तो बराबरी के सिद्धांत को अपनाये रखा और उसे अपना एक अच्छा दोस्त मानते हुए उससे न कभी अपनी अच्छाइयां छुपायीं न ही बुराइयां। वो भी तो अपनी हर बात मुझसे शेअर करता था। हम दोनों के बीच कोई दूरी नहीं थी। तो फिर एकाएक यह कैसे हो गया? क्या ज़मीन-जायदाद और पैसा मां-बाप से बढकर होता है। क्या इंसानी भावनाएं कोई अहमियत नहीं रखतीं? क्या आत्मीय रिश्ते महज दिखावा होते हैं? पितृत्व और ममत्व का कोई मोल नहीं है?
भाटिया के करीबी दोस्त बताते हैं कि कई बार ऐसा भी होता था बेटा कोई बडी मांग कर देता था और उनकी जेब खाली होती थी। तब वे अपने यार-दोस्तों से उधार लेकर या पत्नी के जेवर बेचकर उसकी फरमाइश पूरी कर देते थे। बेटे की खुशी उनके चेहरे पर चमक ला देती थी। पत्नी को उनकी यह दरियादिली अच्छी नहीं लगती थी। जाने-माने शायर गुलजार को यह पंक्तियां लिखने की प्रेरणा यकीनन ऐसे दरियादिल पिताओं से ही मिली होगी :
"जेब खाली हो तो फिर भी
 मना करते नहीं देखा,
मैंने पिता से अमीर
इंसान नहीं देखा।"

अस्सी वर्ष से ऊपर के हो चुके भाटिया ने वृद्धाश्रम में आने के बाद एक अजीब-सी चुप्पी ओढ ली है। आश्रम की तरफ से उनके बेटे को कई बार फोन किया जा चुका है कि वह एक बार आकर अपने बीमार पिता को देख जाए। अब वे ज्यादा दिनों के मेहमान नहीं हैं। बेटा हर बार यही जवाब देता है कि अब उनका उनसे कोई रिश्ता नहीं रहा। बार-बार फोन करके उसका समय बरबाद न करें। भाटिया की बेटी कभी-कभार फोन पर हालचाल पूछ कर अपना फर्ज निभा देती है। वह भी माता-पिता से मिलने के लिए कभी नहीं आई।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ काम कर चुके भारत के पूर्व आर्थिक सलाहकार अमृतलाल कत्यान पिछले छह माह से अपने घर में बंद थे। पडोसियों को रात को उनके घर से जोर-जोर से रोने की आवाज सुनायी देती थी। पडोसी हैरान-परेशान थे। उन्होंने कई बार दरवाजा खटखटाया, लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला। आखिरकार सजग पडोसियों ने स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी (सालसा) को सूचित किया। सालसा के अधिकारी पुलिस के साथ किसी तरह से ८५ वर्षीय कत्यान के घर में दाखिल हुए तो पता चला कि वे एकदम अकेले रह रहे हैं और मकान को अंदर से लॉक करके उसकी चाबी भूल चुके हैं। यह सच भी सामने आया कि छह महीने पहले तक उनका बेटा, बहू और दो पोतियां उनके साथ ही रहती थीं। ससुर और बहू में हमेशा टकराव रहता था। बहू अक्सर उम्रदराज ससुर की पिटायी भी कर दिया करती थी। शारीरिक रूप से कमजोर ससुर ने इसे अपनी नियति मान लिया था, लेकिन एक बार जब वे बहू के हाथों पिट रहे थे तो उन्होंने बहू का हाथ पकड कर खुद को बचाने की कोशिश की तो बहू ने वीडियो बनाकर उन पर ऐसे अश्लील आरोप जड दिये, जिससे उनकी आत्मा तक कराह उठी। इतना ही नहीं बहू ने पुलिस स्टेशन में जाकर अपने साथ छेडछाड और बदसलूकी की शिकायत दर्ज भी करवा दी। इसके बाद बहू और बेटे उन्हें अकेला छोडकर अलग रहने के लिए चले गए।

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