Friday, May 24, 2019

बलात्कारियों की सत्ता और व्यवस्था को खुली चुनौती

मैं नहीं जानता कि लडकियों पर बार-बार बलात्कार होने की खबरें आप पर क्या असर डालती हैं। आप क्या सोचते हैं। हो सकता है कि आपने यह सोचकर ऐसी खबरों को पढना और सुनना ही बंद कर दिया हो कि यह तो रोजमर्रा की बात है। इसमें नया कुछ भी तो नहीं। सच कहूं मुझे तो हर बलात्कार की खबर सन्न कर देती है। ऐसा लगता है बलात्कारियों ने एकजुट होकर फिर से ललकारते हुए सत्ता और व्यवस्था के मुंह पर तमाचा जड दिया है कि जिससे जो बनता हो, कर लो। जितना चीखना-चिल्लाना, बोलना, लिखना हो, लिख लो। देश का कोई भी कानून हमारा बाल भी बांका नहीं कर सकता। हमें जहां भी, जब भी मौका मिलेगा हम दूसरों की बहन, बहू, बेटियों की अस्मत लूटते रहेंगे। हम तो वो शैतान हैं जो अपने घर की बहन-बेटियों को भी नहीं बख्शते। यही हमारा शौक है। यही हमारी फितरत है। हमारी हैवानियत का खेल बस ऐसे ही चलता रहेगा। पिछले दिनों राजस्थान के अलवर में एक महिला पर हुए सामूहिक बलात्कार जैसी वारदातें हमारे बेखौफ जिन्दा होने का सबूत हैं। यह हमारी मर्दानगी ही है, जो पति के सामने खुद तो सामूहिक दुष्कर्म करते ही हैं, पति को भी अपनी पत्नी से बलात्कार करने को विवश कर देते हैं। बडी दबंगता के साथ ऐसी हैवानियत का वीडियो बनाते हैं और उसे वायरल भी कर देते हैं, ताकि सारी दुनिया हमारी ताकत से वाकिफ हो जाए।
इन दरिंदो के कई चेहरे हैं। इन बहुरुपियों ने पूजा स्थलों, घरों, स्कूल, कॉलेजों तक को इंसानियत को तार-तार करने का सुरक्षित स्थल मान लिया है। स्कूल, कॉलेजों में बेटियां पढने जाती हैं। उनके लिए ये शिक्षा के मंदिर हैं। उनके माता-पिता भी यही सोचते हैं। वे इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त रहते हैं कि शिक्षालयों में प‹ढाने वाले शिक्षक, प्रोफेसर, प्राचार्य और कर्मचारी नेक नीयत के होते हैं। उनकी बेटियों की मान-मर्यादा के संरक्षक होते हैं। फरीदाबाद में स्थित राजकीय महिला कॉलेज में छात्राओं को परीक्षा में उत्तीर्ण करवाने का लालच देकर तीन बदमाशों की तिकडी अस्मत लूटने के गंदे खेल को अंजाम देने में लगी थी। एक भुक्तभोगी छात्रा ने प्राचार्य को चिट्ठी और वीडियो भेजकर कॉलेज में चलने वाले देह शोषण के पूरे खेल के बारे में अवगत कराया तो यह शर्मनाक सच सामने आया। अगर यह छात्रा हिम्मत नहीं दिखाती तो यह काला सच उजागर नहीं हो पाता। छात्राएं घुट-घुट कर शोषित होती रहतीं और वासना के खिलाडियों की मनमानी चलती रहती। कॉलेज के एक प्रोफेसर, लैब अटेंडंट और एक चपरासी शातिर गिरोह की तरह छात्राओं को अपने वासना के जाल में फांसते थे। उन्हें परीक्षा में पास करवाने के बदले देह सौंपने को विवश करते थे। उनसे कहा जाता था कि उनके पेपर अलग कमरे में बैठाकर हल करवा देंगे। यह दुराचारी एडमिशन के समय से ही छात्राओं पर अपनी पैनी निगाह रखते थे। मौका पाते ही नजदीकी बढाते थे। मोबाइल नंबर हासिल कर उनसे मीठी-मीठी बातें की जाती थीं। नयी छात्राओं को अपने जाल में फंसाने के लिए उन्हें बताया जाता था कि परीक्षा में पास होने के लिए पहले भी कई छात्राएं उन्हें देह सुख देकर अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण हो चुकी हैं। यह शातिर छात्राओं को अपने जाल में फंसाकर पहले पेपर कराने की एवज में रुपये की मांग करते, जिनसे धन मिल जाता है वे तन सौंपने से बच जातीं। जो धन की रिश्वत नहीं दे पातीं उनसे शारीरिक सुख की मांग की जाती। छात्रा ने जो कॉल रिकार्डिंग की है उसमें एक अय्याश आरोपी साफ-साफ यह कहता सुनायी देता है कि दो घंटे की ही तो बात है। हरियाणा टूरिजम के सरकारी होटल में मात्र एक हजार में कमरा किराये पर मिल जाता है। वहां पर मौजमस्ती करेंगे और किसी को कानों-कान खबर ही नहीं होगी। छात्रा ने दावा किया कि ये तीनों मिलकर कई छात्राओं की जिन्दगी बर्बाद कर चुके हैं। यह लोग इतने कमीने हैं कि जब कोई लडकी इनके साथ जाने में आनाकानी करती है तो उससे किसी अन्य लडकी को भेजने को कहा जाता था। लडकी गोरी है, सांवली है या काली है, इसकी भी जानकारी ली जाती थी।
बलात्कार का शिकार होनेवाली लडकियों पर क्या बीतती है, इसकी हकीकत जानने के लिए उस बेटी के दर्द से रूबरू होना जरूरी है, जिसे उसके पिता और चाचा ने एक वस्तु की तरह बेच दिया। पांच साल तक बीस से ज्यादा वहशियों ने उसे बडी निर्दयता के साथ अपनी हवस का शिकार बनाया। उसे मजबूरन एक बलात्कारी की मां भी बनना पडा। फिर भी उसे बलात्कारियों से मुक्ति नहीं मिली। उसने पुलिस थाने में जाकर भी कई बार अपना दर्द बयां किया, लेकिन उसकी सुनी नहीं गई। अंतत: तंग आकर उसने खुद को आग के हवाले कर दिया। अगर उसका वीडियो सामने नहीं आता तो उसके साथ हुई दरिंदगी की सच्चाई सामने नहीं आ पाती। उत्तरप्रदेश के हापु‹ड की रहने वाली ७५ से ८० प्रतिशत तक जल चुकी यह युवती फिलहाल दिल्ली के एक अस्पताल में अधमरी बिस्तर पर पडी है। अथाह दर्द के कारण बार-बार वह चीखती-चिल्लाती और कराहती है तो उसकी गूंज पूरे अस्पताल को हिलाकर रख देती है। उसके शरीर का अंग-अंग जल चुका है। पूरे शरीर पर पट्टियां बंधी हैं। उससे ज्यादा बोलते नहीं बनता। जब कभी-कभार मुंह खोलती है तो बस यही कहती है कि जल जाने के बाद मैं इतनी कुरूप हो चुकी हूं कि अब कोई भी मेरे साथ बलात्कार करने की नहीं सोचेगा। यानी वह अब खुद को सुरक्षित पाती है। क्या देश की सत्ता-व्यवस्था और हमारा समाज उसके इन शब्दों की तह तक पहुंचना चाहेगा। क्या उसे बलात्कार का दंश झेलने वाली महिलाओं का असली दर्द कभी समझ में आयेगा? या फिर सहानुभूति के चंद बोल बोलकर यह मान लिया जाता रहेगा कि हमने तो अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। इससे ज्यादा और हम कर भी क्या सकते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि जब हमारी बहन-बेटी की इज्जत लुटेगी तभी हमें होश आयेगा?

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