Thursday, July 4, 2019

भक्तों का भयावह चेहरा

कुछ लोग जीते ही इसी मकसद से हैं कि उन्हें प्रचार, पुरस्कार और सहानुभूति मिलती रहे। मीडिया में सुर्खियां पाने की उनकी लालसा कभी खत्म नहीं होती। अपनी इस भूख को मिटाने के लिए वे किसी भी हद को पार करने को तत्पर रहते हैं। उनकी इस उत्कंठा का फैलाव करने के लिए भक्तों और अनुयायियों की सेना ऐसे मोर्चा संभाल लेती है जैसे इन जयकारे लगाने वाले सैनिकों का जन्म ही इसी काम के लिए हुआ हो। इन्हें घोर अंधविश्वासी होने में भी कोई परेशानी नहीं होती। सच तो यह है कि इस दुनिया का सारा कारोबार स्वार्थों की नींव पर टिका है...। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के संस्थापक आशुतोष महाराज को पांच साल पहले ही मृत घोषित कर दिया था, लेकिन अभी भी उनका शव डीप फ्रीजर में रखा है। उनके भक्तों को पूरा यकीन है कि आशुतोष महाराज ने समाधि ली है। एक-न-एक दिन महाराज समाधि से वापस आएंगे। पंजाब के जालंधर के नूर महल में स्थित दिव्य ज्योति संस्थान के जिस कमरे में उनका शव रखा है वहां पर चौबीस घण्टे जवानों का पहरा रहता है। हर छह महीने में एक बार डॉक्टर्स उनके शव की जांच करते हैं। मीडिया को भी वहां पर जाने की सख्त मनाही है। २८ जनवरी २०१४ की रात को आशुतोष महाराज को सीने में दर्द हुआ। इसके बाद वे मौन हो गए। उनके अनुयायी एकत्रित हुए। सभी ने यही निष्कर्ष निकाला कि महाराज पहले की तरह इस बार भी समाधि में चले गए हैं। गौरतलब है कि दिव्य ज्योति संस्थान की गतिविधियां अब भी निरंतर वैसे ही चल रही हैं, जैसे महाराज के समाधिस्थ होने से पहले चला करती थीं। आश्रम के प्रबंधकों में पहले जैसा ही उत्साह है। वे श्रद्धालुओं को सतत यही विश्वास दिलाते रहते हैं कि भले ही डॉक्टरों ने महाराज को मृत घोषित कर दिया है, लेकिन महाराज जीवित हैं। उनकी कभी मौत नहीं हो सकती।
आशुतोष महाराज के प्रति अटूट आस्था रखने वाले उनके लाखों भक्तों को उस दिन का बेसब्री से इंतजार है जब उनके आराध्य समाधि से लौटेंगे। बीते वर्ष राजस्थान के भीलवाडा में श्री पंचनाम जूना अखाडे के नागा बाबा श्यामानंद सरस्वती जब भूसमाधि लेने जा रहे थे तब कुछ सजग लोगों ने उनका विरोध किया था। बाबा के कट्टर भक्तों ने तो ९ बाई ९ का गड्ढा  हफ्तों पहले ही खोद कर पूरी तैयारी कर ली थी। वे अपने गुरु के समाधि में जाने के जिस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे आज वो दिन आ गया था। भक्त अपने प्रिय बाबा पर फूलों की बरसात करते हुए जयकारे लगा रहे थे। तमाशबीन भीड बेकाबू होती जा रही थी। बाबा भीड को देखकर गदगद हो रहे थे। उनके चेलों ने पहले से ही प्रचारित कर दिया था कि नागा बाबा देश में बढते सामूहिक बलात्कारों की वजह से आहत होने के कारण समाधि लेने का निर्णय कर चुके हैं। वे जो ठान लेते हैं उसे अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लेते हैं। इसी बीच किसी तरह से प्रशासन को बाबा के समाधि-कार्यक्रम की खबर लग गई। कई प्रशासनिक अधिकारी वहां पहुंच गये। बाबा तो शांत खडे रहे, लेकिन भक्त और भीड उनका विरोध करने लगी। उन पर पत्थर बरसाये जाने लगे। काफी मशक्कत के बाद अधिकारी बाबा को अपने साथ ले जाने में सफल हो पाये। बाबा की समाधि तो टल गई, लेकिन भक्तों का गुस्सा बना रहा।
अपने देश में फक्कडवन बाबा भी हैं, जो कई बार समाधि ले चुके हैं। गत वर्ष उन्होंने धार के एक गांव में नर्मदा किनारे १२ फीट गहरे गड्ढे में समाधि लगायी थी और ९ दिन बाद बाहर निकले थे। फक्कडवन बाबा के भक्तों का कहना है कि उनके गुरुजी मानवता को जिन्दा रखने, हर मनुष्य का कल्याण करने और पापों का विनाश करने के लिए समाधि लेते रहते हैं। जन-जन तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए बाबाओं का समाधि लेने का सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। कुछ साधु बाबा तो समाधि का ऐलान करने के पश्चात भाग खडे होते हैं। ऐसे बाबा भी हुए हैं, जो अपने जिद्दी भक्तों के उकसावे में समाधि के गड्ढे में उतर तो गए, लेकिन बाद में उनकी लाश ही बाहर निकली। हवा-पानी के बिना घण्टों गड्ढे में बिताने की 'कला' पूरी तरह से किसी की समझ में अभी तक नहीं आयी है।
अभी हाल ही में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के दौरान स्वामी वैराग्यानंद उर्फ मिर्ची बाबा ने भोपाल से दिग्विजय सिंह की जीत के लिए पांच क्विंटल मिर्ची से यज्ञ करते हुए यह दावा किया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी दिग्गी राजा ही लोकसभा चुनाव जीतेंगे। उनका अपार प्रभावी 'मिर्ची यज्ञ' विरोधियों को पूरी तरह से नेस्तनाबूत कर देगा। अगर दिग्गी राजा चुनाव हार गये तो वे किसी को अपना मुंह नहीं दिखायेंगे और फौरन समाधि ले लेंगे। भाजपा की प्रज्ञा ठाकुर की जीत ने बाबा के पैरों तले की जमीन खिसका दी। उनके भक्त बेसब्री से चुनावी नतीजों का इंतजार कर रहे थे। वे ढोल नगाडे बजाते हुए मिर्ची बाबा के ठिकाने पर जा पहुंचे। अपनी भविष्यवाणी के गलत साबित होने के कारण स्वामी जी तो अपना झोला-झंडा समेट कर गायब हो चुके थे, लेकिन भक्त कहां छोडने वाले थे। उन्होंने फोन पर फोन लगाकर उन्हें अपनी प्रतिज्ञा याद दिलायी। जान हर किसी को प्यारी होती है। स्वामी जी ने जोश ही जोश में दिग्गी राजा के चुनाव हारने पर समाधिस्थ होने का ऐलान तो कर दिया था, लेकिन अब उन्हें यहां-वहां मुंह छिपाने के लिए विवश होना पड रहा था। कई दिनों तक समाधि से डरे फिरते मिर्ची बाबा का भक्तों ने जीना ही मुहाल कर डाला। बाबा पर समाधि में जाने का जबर्दस्त दबाव बनाये जाने की खबर जब मैंने प‹ढी और सुनी तो स्तब्ध रह गया। यह कैसे भक्त हैं, जो अपने गुरु को मौत के मुंह में समाते देखना चाहते हैं! कल तक तो यह लोग उनके नाम के जयकारे लगा रहे थे, उन पर फूल बरसा रहे थे और आज उनकी मौत चाहते हैं! यह इन्सान हैं या दरिन्दे जो दारुण और दर्दनाक मंजर देखने को आतुर हैं।

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