Friday, August 16, 2019

आज़ादी के ७२ साल बाद भी!

निर्भया कांड। जब भी देश में कहीं भी कोई बर्बर बलात्कार होता है तो पत्रकारों और सजग भारतीयों को २०१२ में अंजाम दिये गए निर्भया कांड की याद हो आती है। देश की राजधानी दिल्ली में चलती बस में हुई इस शर्मनाक दिल दहला देने वाली वारदात ने पूरे देश को दहला कर रख दिया था। छह बलात्कारियों में एक नाबालिग था। जो जेल की सजा काटकर बाहर आ चुका है। वहीं मुख्य आरोपी ने खुद जेल में ही आत्महत्या कर ली थी। निर्भया कांड के आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट के द्वारा फांसी के फैसले पर मुहर लगाने के बाद भी बाकी के चारों आरोपियों को अभी तक फांसी नहीं दी जा सकी है। निर्भया की तरह देश की हजारों बेटियों को अभी तक इंसाफ नहीं मिल पाया है। जब अदालत के फैसले के बाद भी बलात्कारियों को फांसी देने में इतनी ढिलाई है तो बलात्कारियों के हौसले कैसे पस्त हो सकते हैं? हर बलात्कार के बाद देशभर में शोर मचता है। बलात्कारी को बिना देर लगाये फांसी पर लटकाने की मांग उठती है। राजनेताओं और सत्ताधीशों के द्वारा भी बलात्कारियों को शीघ्र से शीघ्र मौत के फंदे में झुलाने का आश्वासन दिया जाता है, लेकिन सच हमारे सामने है। यही वजह है कि हालात बद से बदतर होते चले आ रहे हैं। छोटी-छोटी बच्चियां तक सुरक्षित नहीं हैं। निर्भया कांड के एक साल बाद ही दिल्ली के गांधीनगर इलाके में करीब ४ साल की एक मासूम के साथ उसी के घर के पास गैंगरेप हुआ था। घर से गायब कर दी गई इस बच्ची के माता-पिता उसकी तलाश में कहां-कहां नहीं भटके थे। बच्ची ४० घण्टे के बाद एक खंडहरनुमा घर में मरणासन्न हालत में पायी गई थी। २०१३ में यह दरिंदगी हुई थी। सघन इलाज के बाद ठीक हो चुकी बच्ची अब दस साल की हो चुकी है, लेकिन उसे किसी ने भी कभी खुलकर मुस्कराते नहीं देखा। पूरे घर में अभी भी मातम-सा छाया रहता है। बलात्कार के आरोप में दो बदमाशों को गिरफ्तार किया गया था। बच्ची के माता-पिता कोर्ट के चक्कर काट-काट कर थक गये हैं, लेकिन न्याय अभी तक उनसे कोसों दूर दिखायी देता है। आरोपियों के चेहरे सदैव खिले-खिले नजर आते हैं। खुद के द्वारा की गई हैवानियत का उन्हें कोई गम नहीं है। पश्चाताप तो बहुत दूर की सोच है।
कुछ दिन पूर्व दिल्ली के बदनाम जीबीरोड के एक कोठे से मात्र सात साल की बच्ची को छुडाया गया। असम में रहने वाली बच्ची की मां को नौकरी का लालच देकर राजधानी में लाया गया था। उसे नौकरी तो नहीं मिली, जबरन देह के धंधे में धकेल दिया गया। उसकी बेटी को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाने का झांसा देकर कुछ कागजों पर हस्ताक्षर करवाने के साथ-साथ पेनकार्ड, आधारकार्ड आदि भी छीन लिए गए। कुछ दिनों तक उसे बडे-बडे होटलों में भेजने के बाद जीबीरोड के कोठे पर बिठा दिया गया। बच्ची भी उसके साथ थी। कुछ हफ्तों के पश्चात वह किसी तरह से कोठे से भागने में सफल रही, लेकिन उसकी अबोध बच्ची नर्क में ही छूट गई। कोठे की मालकिन की कैद से अपनी बेटी को छुडाने के लिए महिला ने थाने में जाकर भी कई बार फरियाद की, लेकिन बिकाऊ खाकी वर्दीधारी उसे गालियां देकर भगाते रहे। इस दौरान बच्ची भी दुष्कर्म का शिकार होती रही और मां खून के आंसू रोती रही। किसी तरह से वह दिल्ली महिला आयोग की शरण में पहुंची तो बच्ची उसे वापस मिल पायी।
देश की ऐतिहासिक नगरी आगरा के थाने में तीन बलात्कार पीडिताएं जब शिकायत दर्ज करवाने पहुंचीं तो पुलिस वालों ने उनपर बडी गंदी नज़र डालते हुए सवाल-दर-सवाल दागे और बडी बेहयायी के साथ पूछा, "कैसे-कैसे और क्या-क्या हुआ तुम लोगों के साथ। उसका लाइव सीन बताओ। तुम्हारे कपडे कितनी बार उतारे गये? एकाध बार तो जुल्म की शिकार हुई महिलाओं ने उनके सवालों के जवाब देने की कोशिश की, लेकिन वे बार-बार बडी निर्लज्जता के साथ अपने अश्लील सवाल दोहराते रहे। पीडिताओं ने बदमाशों के खिलाफ लडाई लडने का इरादा ही स्थगित कर दिया। चुपचाप अपने-अपने घर चल दीं। देश के महान प्रदेश बिहार में कई नाबालिग बलात्कार पीडिताएं बिन ब्याही मां बनने को विवश हैं। छोटी उम्र में ही गर्भ में बच्चे को ढोए थानों के चक्कर काटती रहती हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं होती। बलात्कारी बडी शान के साथ छाती ताने घूमते देखे जाते हैं। यह कैसी विडंबना है कि जिस खाकी वर्दी पर कानून व्यवस्था बनाये रखने, नागरिकों को सुरक्षा देने और अपराधियों पर नकेल कसने की जिम्मेदारी है, वही अक्सर अपराधियों के साथ खडी नजर आती है। जिस तरह से एक सडी हुई मछली के कारण पूरा तालाब खराब हो जाता है वैसे ही पुलिस विभाग में कुछ पथभ्रष्ट नकारा पुलिस कर्मियों ने पूरे पुलिस विभाग को कलंकित कर दिया है। यह दागी खाकी वर्दीधारी कर्तव्यपरायण कर्मियों पर भी कई बार भारी पडते दिखायी देते हैं। खुद को कानून से ऊपर समझने वाले इन वर्दीधारी बदमाशों की चरित्रहीन राजनेताओं और अपराधियों से सांठगांठ रहती है। कुछ भ्रष्ट पुलिस वाले अपराधियों के एजेंट के रूप में काम करते हैं। निर्दोषों को तंग करने तथा रिश्वतखोरी को ही प्राथमिकता देने की इन्हें आदत पड गई है। पुलिस विभाग के उच्च अधिकारी अगर चाहें तो इन्हें दुरुस्त कर सकते हैं। लेकिन...? आजादी के ७२ वर्ष बीतने के बाद भी हिन्दुस्तान में नारी का यहां भी अपमान और वहां भी घोर दुर्दशा! देश के रहनुमाओं से इस सुलगते सवाल का जवाब मांग रही हैं वे तमाम बेटियां जो हैवानों के भय से डरी-सहमी रहने को विवश हैं...।

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