Friday, October 25, 2019

कैसी-कैसी पाठशालाएं

भारत में सब चलता है। कानून तोडने वाले दबंग और मालदार मस्त रहते हैं। खाकी उनकी दासी बन मलाई खाती रहती है। यहां संस्कारों और संस्कृति का भी खूब ढोल पीटा जाता है। घर की चारदिवारी में ऐसे-ऐसे अपराध होते रहते हैं, जिन्हें इज्जत की खातिर कभी उजागर नहीं होने दिया जाता। अपने घरों को ही नशाखोरी और नारी देहशोषण के लिए सुरक्षित स्थल मान कर  मनमानी चलती रहती है, जिन्हें विरोध करना चाहिए वे भी खामोश रहने में अपनी भलाई समझते हैं।
दुनिया में थाईलैंड एक ऐसा देश है, जहां पर अपने ही घर में सिगरेट पीना कानूनन अपराध माना जाता है। यहां पर यदि कोई नागरिक घर में सिगरेट पीते पकडा जाता है तो उसे जेल में डाल दिया जाता है। साथ ही स्मोकर पर घरेलू हिंसा का केस भी चलाया जाता है। घर के बच्चों और परिवार वालों की सेहत का ख्याल रखने के लिए थाईलैंड की सरकार को इतना कडा फैसला लेने को मजबूर होना पडा। जब यह हकीकत सरकार की समझ में आयी कि सिगरेट और सिगार पीने का चलन अपनी हदें पार कर चुका है और इनके धुएं की चपेट में आकर हर साल छह लाख लोग अपनी जान गंवा रहे हैं, जिनमें साठ प्रतिशत तो मासूम बच्चे ही हैं तो उसने यह कानून बनाया और फिर लागू करने में किंचित भी देरी नहीं लगायी। विशेषज्ञों का मानना है कि धूम्रपान की लत इमोशनल और फिजिकल वायलेंस का कारण बनती है। एक सर्वे में पता चला कि परिवार के सदस्यों की देखा-देखी बच्चे भी धूम्रपान के प्रति आकर्षित होते हैं। एक समय ऐसा भी आता है, जब वे धूम्रपान करने लगते हैं। थाईलैंड की जेलों में कैदियों को अनुशासन के सूत्र में बांध कर रखा जाता है। जेल के अधिकारी बडी सख्ती के साथ पेश आते हैं। उन्हें किसी भी प्रलोभन के जाल का शिकार नहीं बनाया जा सकता। 
जेलें अपराधियों के सुधार के लिए बनी हैं। हर सुधारगृह सुरक्षा  और अनुशासन का भी बोध कराता है। इनकी स्थापना का एकमात्र उद्देश्य होता है अपराधियों को नेक इंसान बनने के लिए प्रेरित करना। उन्हें यह बताना और समझाना कि आजादी और कैद में क्या फर्क होता है, लेकिन कई भारतीय जेलों में रिश्वत की परिपाटी को निभाते हुए किस तरह से कैदियों को सुविधाभोगी बनाया जाता है, इसका पता इस खबर को पढकर चलता है : "अक्सर कहा और सुना जाता है कि जेल में बंद कैदियों को तरह-तरह की यातनाएं झेलनी पडती हैं। उनके जीवन में खुशी के पल तो कभी आते ही नहीं। उन्हें हमेशा घुट-घुट कर रहना पडता है, लेकिन यह बात मंडोली जेल नंबर -१३ में बंद कैदियों पर लागू नहीं होतीे, क्योंकि यहां के कैदी जेल के वरिष्ठ अधिकारी को मोटी रकम चुका कर भरपूर विलासिता का आनंद लूट रहे हैं। रिश्वतखोर अधिकारियों की शह पर धनवान और खूंखार कैदी बडे मजे से स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते हैं। जब भी किसी कैदी को अपना जन्मदिन या अन्य खुशी का जश्न मनाना होता है तो वह अपने घर में पेटीएम या फोन-पे पर पैसे मंगवाता है। उसके बाद दारू और चिकन पार्टी के लिए मोटी रकम जेल के अधिकारी को देकर इसका ऑर्डर करता है। इसके बाद तय समय पर उस कैदी को सबकुछ उपलब्ध करा दिया जाता है, जिससे कैदी अपने दोस्तों के साथ मिलकर जमकर जश्न मनाते हैं।"
कोटला में नशा मुक्ति केंद्र की स्थापना की गई है। यहां पर नशेडियों को नशे की आदत से मुक्त कराने के लिए भर्ती किया जाता है, लेकिन यह मुक्ति केंद्र उन लोगों के लिए सिर दर्द बन गया है, जो इसके आसपास रहते हैं। महिलाएं तो इसके पास जाने से ही खौफ खाती हैं। दरअसल यह नशा मुक्ति केंद्र तो नाम का है। असल काम तो यहां पर लोगों को नशे की और आदत डालना है। यहां जिन लोगों को नशा छुडाने के लिए भर्ती कराया जाता है उन्हें यहां पुराने ड्रग्स के नशाखोरों का साथ मिल जाता है, जो उन्हें नशा करने के ऐसे-ऐसे गुर सिखाते है, जिनके बारे में उन्हें पहले पता ही नहीं होता। सुबह-शाम केंद्र के बाहर ही ये लोग एक-दूसरे को ड्रग्स के इंजेक्शन लगाते रहते हैं। कोई उन्हें रोकता-टोकता नहीं। ड्रग्स खरीदने के लिए यह नशेडी इलाके में चोरी-चकारी करते हैं। महिलाओं और ऑटोवालों से लूटपाट करते हैं। कुछ हफ्ते पूर्व नशा मुक्ति केंद्र के अंदर चाकू से गोदकर एक युवक की हत्या कर दी गई। हत्यारा इसी सेंटर में रहता था। वह ड्रग्स का लती था। उसके पिता ने २०१५ में उसे नशा मुक्ति केंद्र में यह सोचकर भर्ती कराया था कि वह कुछ महीनों में सुधर जाएगा, लेकिन पुराने नशेडियों की संगत में उसने और भी कई दुर्गुण अपना लिए। नशा करने के बाद वह इस कदर हिंसक हो उठता था कि किसी पर भी हाथ उठा देता था। नशा केंद्र के अधिकारियों से मारपीट करने के बाद उसे गिरफ्तार भी किया गया था। कई महीनों तक जेल में रहने के बाद जब वह जमानत पर बाहर आया तो उसका हौसला और बुलंद हो चुका था। जेल में उसे हत्यारों और बलात्कारियों की भरपूर संगत मिली थी। नशा मुक्ति केंद्र में उसने अपने एक साथी की हत्या को ऐसे अंजाम दिया जैसे यह कोई बच्चों का खेल हो। इंसानी जान का कोई मोल ही न हो।

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