Thursday, December 26, 2019

अब नहीं तो कब?

हमारे देश की बडी अजीब हालत हो गई है। सभी शुद्ध, स्वस्थ हवा में सांस लेना चाहते हैं, लेकिन पर्यावरण के प्रति अपने दायित्व का सतर्कतापूर्वक पालन नहीं करना चाहते। हमें सुरक्षा तो चाहिए, लेकिन नियम-कायदों की अवहेलना करने से बाज नहीं आते। जो राह हमें लाभदायक लगती है उसी पर चलना पसंद करते हैं। दूसरे मरें या जिएं हमें इससे कोई सरोकार नहीं। यह कितना हैरतअंगेज सच है कि देश में हर आठ में से एक व्यक्ति की मौत वायू प्रदूषण से हो रही है। दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में १२ शहर हमारे ही देश में हैं। इन्सानों को जीने के लिए शुद्ध हवा चाहिए। हवा में आक्सीजन का होना निहायत आवश्यक है, तभी जिन्दा रहा जा सकता है। पेड पौधों और वृक्षों से आक्सीजन मिलती है, लेकिन हम इनके प्रति कितने निर्दयी हैं इसकी पूरी खबर होने के बावजूद अंधे बने हुए हैं। सरकार ने प्रदूषण पर काबू पाने के लिए पिछले कुछ वर्षों से काफी सक्रियता दिखायी है, लेकिन हम कितने जागरूक हुए हैं? हमारी इस संपूर्ण दुनिया में प्राणियों और पेड-पौधों को जीवित और स्वस्थ रहने के लिए आसपास के वातावरण का स्वच्छ होना बहुत जरूरी है, लेकिन हमने अपने निजी स्वार्थों के चलते पर्यावरण को प्रदूषित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। प्रदूषण का एकदम सरल-सा अर्थ है, गंदगी। हमारी सोच और विचारों पर भी 'प्रदूषण' ने अपनी जबरदस्त पकड बना ली है।
वायू प्रदूषण और जल प्रदूषण से तो हम सभी वाकिफ हैं। ध्वनि प्रदूषण भी कम अहितकारी नहीं है, लेकिन पता नहीं क्यों इसे नजरअंदाज किया जाता रहा है। प्रदूषित हवा, पानी और ध्वनि एकाएक अवतरित नहीं हुए। अगर हमने प्रारंभ से ही इनकी तरफ ध्यान दिया होता तो आज हालात इतने घातक नहीं होते। हाल ही में आया एक सर्वे बताता है कि देश की राजधानी दिल्ली सहित अधिकांश महानगरों, शहरों में प्रदूषण बेहद खतरनाक स्थिति तक पहुंच चुका है। बेतहाशा बढते वाहनों के ईंधन के जलने से होने वाले धुएं, रिहाइशी इलाकों में बडे पैमाने पर चलाई जा रही अवैध फैक्टरियों, खुले में होने वाले निर्माण कार्यों और सडकों पर कूडे-कर्कट को जलाये जाने से फैलने वाला प्रदूषण अत्याधिक जानलेवा है। इससे जो वायु प्रदूषित हो रही है, वही तो सभी के फेफडों में जा रही है। यह कोई हवा में उडा देने वाली बात नहीं है कि ऐसे विषाक्त वातावरण में हर दिन हर व्यक्ति चालीस सिगरेट पीने जितना धुआं अपने फेफडे में भरने को विवश है। ऐसे में वह कैंसर और अन्य गंभीर जानलेवा बीमारियों से कब तक बचा रह सकता है? आज भले ही यह महानगरों और बडे शहरों का भयावह सच है, लेकिन धीरे-धीरे छोटे शहर भी इस संकट की जद में आ रहे हैं। आज पानी खरीद कर पिया जा रहा है, अगर तुरंत नहीं संभले तो सांस लेने के लिए आक्सीजन भी कीमत देकर हासिल करने की नौबत आ सकती है।
इन्सानी तबाही का कारण बन चुके प्रदूषण ने कृषि वैज्ञानिकों को चिन्ता और परेशानी में डाल दिया है। कृषि पैदावारों में भी विष घुलने लगा है। वायुमंडल में रच-बस चुके धूल और धुएं के कारण इन्सानों की उम्र तो घट ही रही है, फसलें भी चौपट होने लगी हैं। पैदावार में कमी देखी जा रही है। फल-सब्जियों में पहले जैसी पौष्टिकता और स्वाद नहीं रहा। फूल खिलने से पहले ही गिरने और मुरझाने लगे हैं। सरकार की प्लास्टिक से मुक्ति पाने की अनवरत कोशिशों के बाद भी इसका चलन पूरी तरह से बंद नहीं हो पा रहा है, जबकि यह समय की मांग है कि प्लास्टिक की थैलियों के स्थान पर कपास और जूट के बने थैलों का उपयोग किया जाए। निजी और सरकारी कार्यक्रमों में प्लास्टिक की जगह मिट्टी-धातु के बर्तन प्रयोग में लाये जाएं। पॉलीथिन पर प्रतिबंध के बावजूद अधिकांश लोग इसका उपयोग कर कहीं भी फेंक देते हैं, जबकि वे इस हकीकत से वाकिफ हैं कि प्लास्टिक इन्सानों के साथ-साथ पशुओं के लिए भी अत्यंत हानिकारक है। पिछले दिनों फरीदाबाद में एक सांड के पेट से ८० किलो पॉलीथिन, पानी की बोतलें और ढक्कन आदि का विषैला कचरा पशु चिकित्सकों ने निकाला। गाय जिसे हम माता का दर्जा देते हैं, उसके पेट में भी यही कचरा समाता रहता है और हम गाय की सुरक्षा के नाम पर इन्सानों की गर्दनें उडाने में नहीं सकुचाते... घबराते। भारत में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पेड-पौधों की अंधाधुंध कटाई पर अंकुश लगाना अत्यंत जरूरी है। अपने देश में ऐसे लोग भी हैं, जो समाज को बदलने के लिए अनुकरणीय पहल कर रहे हैं।
खरगौन जिले के ब‹डवाह ग्राम में एक जागरूक बेटे ने अपने प्रकृति प्रेमी पिता की पगडी रस्म पर वर्षों से चली आ रही परंपरा से हटकर चलते हुए बर्तन की जगह नीम, सीताफल, आम, बिल्वपत्र, आंवला सहित ३०० पौधे मंगवाकर स्वजनों को न सिर्फ बांटे, बल्कि उन्हें रोपकर बडा करने का भी आग्रह किया। बेटा अपने पर्यावरण प्रेमी पिता के पेड-पौधों के प्रति असीम लगाव से बचपन से ही बेहद प्रभावित रहा था। दमोह में अपने २५ साल के जवान बेटे की सडक हादसे में मौत के बाद उसकी तेरहवीं में शिक्षक पिता ने ५१ युवाओं को हेलमेट बांटे और उन्हें अपनी जान की रक्षा के लिए यह संदेश दिया कि कभी भी अंधाधुंध बाइक न चलाएं और हेलमेट जरूर पहनें। २० नवंबर २०१९ की रात थी। रिहाइशी इलाके में चल रही फैक्टरियां काला जहरीला धुआं उगल रही थीं। रात के दस बजे थे। तभी शिक्षक के इकलौते बेटे की बाइक एक भैंसे से टकरा गई थी, जिससे मौके पर ही उसकी दर्दनाक मौत हो गई थी। उसका शव रात भर सडक पर ही पडा रहा था। उम्रदराज शिक्षक की कांपती आवाज़ और दुख भरे गले से निकले इन शब्दों ने हर किसी की आंखें नम कर दीं, "वायु प्रदूषण और हेलमेट न लगाने की नादानी की वजह से मेरा जवान बेटा इस दुनिया से चला गया। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि किसी को भी कभी इस तरह से अपना बच्चा न खोना पडे।" उन्होंने हेलमेट बांटने के साथ-साथ बच्चों के माता-पिता से भी अपील की, कि कृपया वायुमंडल को विषाक्त होने से बचाएं। जब भी वे अपने बच्चों को बाइक खरीदकर दें तो उन्हें हेलमेट भी दें और उसे लगाने के लिए भी बाध्य करें।

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