Thursday, January 2, 2020

इनकी पीडा को भी तो समझो...

चित्र -१ : हिन्दुस्तान दुनिया का सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश है। यहां पर असहमति दर्शाना और विरोध प्रदर्शन करना हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है, परंतु आंदोलन और विरोध के नाम पर अराजकता फैलाना कैसे जायज़ हो सकता है? नागरिकता संशोधन कानून-२०१९ के विरोध में देश के विभिन्न हिस्सों में तोडफोड और आगजनी की गई। अरबों रुपये की सरकारी और गैर सरकारी संपत्ति को स्वाहा कर दिया गया। कई पुलिस कर्मी घायल हुए। आम नागरिकों के साथ-साथ छात्र भी बुरी तरह से पिटे और लहुलूहान हुए। नागरिकता संशोधन कानून बनाने के पीछे भारत सरकार का यही संकल्प है कि पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान के उन गैर मुस्लिम अल्पसंख्यको को भारतीय नागरिकता प्रदान कर उनका जीवन सुखमय बनाया जाए, जिन्हें उपरोक्त देशों में वर्षों तक बदसलूकी और प्रताडना का शिकार होना पडा है। हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध और जैन जैसे अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय नागरिकता देने वाले इस साहसिक कदम पर विरोध जताने वालों ने समानता के अधिकार की दुहाई देते हुए जहां पूरे देश में उथलपुथल मचायी, लोगों को भडकाया, वहीं घटिया और निकृष्ट शब्दावली का इस्तेमाल करने में भी कोई कसर बाकी नहीं रखी।
चित्र - २ : जिन्हें ज़हर उगलना है, उगलते रहें, मातम मनाना है, मनाते रहें, लेकिन बंटवारे के बाद पाकिस्तान में लंबे समय तक प्रताडना झेलने के बाद बीते कुछ सालों में भारत लौटे हिन्दू परिवार काफी खुश हैं। इस कलमकार को दिल्ली में स्थित मजनू का टीला एवं मजलिस पार्क मेट्रो स्टेशन के निकट स्थित रिफ्यूजी कैंप में रह रहे सैकडों शरणार्थियों से करीब से मिलने और जानने का अवसर मिला। वासनमल २०११ में कुंभ के बहाने टूरीस्ट वीजा पर दिल्ली आए थे। पाकिस्तान में बहुसंख्यक समुदाय के आतंक और जुल्मों-सितम ने उनके पूरे परिवार का जीना दुश्वार कर दिया था। बहन, बहू, बेटियों की आबरू खतरे में पड चुकी थी। रेहडी लगाकर किसी तरह से अपना परिवार पाल रहे वासनमल जैसे हर शरणार्थी का अपना दर्द और अपनी शिकायत है।
ईश्वर तो बोलते-बोलते रूआंसें होकर सवाल करने लगते हैं कि आप ही बताइए कि कोई अपना बसा-बसाया घर कभी छोडता है? मेरी तो वहां पर अच्छी खासी कपडे की दुकान थी। खेती-बाडी भी थी, लेकिन जब बहू-बेटियों के साथ बदसलूकी होने लगी तो सबकुछ छोडकर यहां चले आए। २०११ में ही पाकिस्तान से भारत आए रामनाथ के पास भी किसी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन बहुसंख्यक समुदाय के गुंडे-बदमाशों की चौबीस घण्टे उनकी बहन-बेटियों पर गंदी नज़रें लगी रहती थीं। कभी भी घर में घुस जाते थे और मारते-पीटते थे। पाकिस्तान में अपने परिवार के साथ हुई बदसलूकी और प्रताडना को याद कर अस्सी वर्षीय रामप्यारी की आंखों के आंसू थमने का नाम नहीं लेते। वे बताती हैं कि पाकिस्तानी गुंडों का हमेशा दबाव बना रहता था कि अगर हमें पाकिस्तान में रहना है, तो अपना धर्म परिवर्तन करना ही होगा। हमारे विरोध करने पर गंदी-गंदी गालियां देते थे और बहू-बेटियों की इज्जत लूटने पर उतारू हो जाते थे। ७५ वर्षीय देवराज का दर्द भी उनकी आंखों से आंसू बन बार-बार छलकता रहा : "हिन्दुओं के लिए पाकिस्तान नर्क से भी बदतर देश है, जहां पर उनके साथ बेहद घटिया बर्ताव किया जाता है। दिनदहाडे हिन्दुओं की बहन-बेटियों को मदरसे से जुडे लडके जबरन उठा ले जाते हैं। फिर कुछ दिनों के बाद यह ऐलान कर देते हैं कि लडकी ने इस्लाम कुबूल करते हुए शादी कर ली है। विगत कुछ वर्षों में हजारों हिन्दू लडकियों का अपहरण हो चुका है। गुंडागर्दी का तो यह आलम है कि कोई लडकी सामने आने की हिम्मत ही नहीं दिखा पाती। वहां पर सामूहिक धर्म परिवर्तन कराये जाने की तो जैसे परंपरा बन गई है। पहले जहां पाकिस्तान में हिन्दू करोडों की संख्या में थे, अब लाखों में सिमटते जा रहे हैं। मजनू का टीला में रहने वाले दादा दयालदास इज्ज़त और सुख-चैन की जिन्दगी जीने के लिए मार्च २०१३ में पाकिस्तान के हैदराबाद (सिंधप्रांत) को छोडकर दिल्ली आए। उनकी बहू ने जब बेटी को जन्म दिया तो उन्होंने अपनी पोती का नाम 'नागरिकता' रखा। 'नागरिकता' की दादी से जब पूछा गया कि उन्होंने अपनी पोती का यह नाम क्यों रखा तो उनका कहना था कि मोदीजी ने कोई कानून बनाया है, जिससे हम लोगों को अब हिन्दुस्तान की नागरिकता मिल जाएगी। इसलिए बिटिया का नाम 'नागरिकता' रख दिया है। वैसे तो हम लोगों के यहां सवा महीने में नामकरण संस्कार किया जाता है, लेकिन कानून जिस दिन बना उसी दिन नामकरण संस्कार कर दिया गया। हमारी आप सभी से हाथ जोडकर विनती है कि कानून का विरोध मत कीजिए। हम लोगों को स्वीकार कीजिए। हम लोग मजदूरी कर गुजर-बसर कर लेंगे। हम लोग आपके हैं, कृपया हमें मत दुत्कारिए। आप लोग हमारी खुशी का अंदाजा नहीं लगा सकते। यह सोचकर हमारे पांव जमीन पर नहीं पड रहे हैं कि अब हमें हिन्दुस्तान में रहने का कानूनी हक मिलने वाला है। अब हमें कोई शरणार्थी नहीं कहेगा। हम और हमारे बच्चे बडे गर्व से कहेंगे, हम हैं हिन्दुस्तानी। सच्चे हिन्दुस्तानी।

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