Thursday, January 16, 2020

सुलगता सवाल, मांगे जवाब

संपूर्ण देशवासियों को दहला और चौंकाकर रख देने वाले निर्भया सामूहिक दुष्कर्म काण्ड एवं हत्या के चारों आरोपियों को फांसी पर लटकाने की पूरी तैयारियां हो चुकी हैं। दिसंबर २०१२ में हुई इस वीभत्स और शर्मनाक घटना से गुस्साये लाखों भारतीय सडकों पर उतर आये थे। हर किसी की यही मांग थी कि हत्यारों को कडी से कडी सजा दी जाए, जिससे अपराधियों की रूह कांप उठे। भविष्य में कोई भी इन्सान, शैतान बन ऐसा दुष्कर्म करने की हिम्मत न कर पाए। महिलाओं की सुरक्षा के लिए शासन और प्रशासन ने भी न जाने कितने आश्वासन और वायदे किये थे, जिनसे लगा था कि अब देश में बदलाव आयेगा। हालात सुधरेंगे। महिलाएं निर्भय होकर घर से बाहर निकलेंगी। बच्चियां भी पूरी तरह से महफूज़ रहेंगी। निर्भया बलात्कार काण्ड के सात साल बाद भी महिलाएं और बच्चियां अपने ही देश हिन्दुस्तान में कितनी सुरक्षित हैं, इसकी जानकारी देश में कहीं न कहीं प्रतिदिन होने वाले बलात्कारों और हत्याओं से मिल जाती है।
शासन और प्रशासन के साथ-साथ हमारा समाज अभी भी पूरी तरह से नहीं जागा है। आंकडे चीख-चीख कर बताते हैं कि नारियों के पूजे जानेवाले देश में हर बीस मिनट में एक बेटी के साथ हैवानियत हो रही है। हर चौथी दुष्कर्म पीडिता नाबालिग होती है। अस्सी फीसदी बलात्कारी रिश्तेदार या पहचान के ही होते है। ऐसे में यह क्यों न मान लें कि हमारा आक्रोश सतही होता है। रैलियां, भाषण और अखबारों में धडाधड छपने वाले लेख बेअसर रहते हैं। सडक से संसद तक लोगों को जागृत करने की कसरत कोई मायने नहीं रखती। कडा कानून भी शैतानों को नहीं डरा पाता, जिससे स्त्री-हिंसा लगभग जस की तस रहती है।
इस सच को भी जानना जरूरी है कि देश में होने वाले हर बलात्कार की खबर अखबारों में नहीं छपती। कुछ ही खबरें अखबारों तक पहुंचती हैं। अधिकांश खबरों को दबा और छिपा दिया जाता है। न्यूज चैनल वाले तो चुनिंदा बलात्कारों की खबरों को सामने लाना पसंद करते हैं। उन्हें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों में होने वाले दुराचारों को रोचक तरीके से पेश करने में भरपूर आनंद और तसल्ली मिलती है। इस पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है, जहां पर मासूम अबोध बच्चियों को भी हैवानों की वासना का शिकार होना पडता है। गैर तो गैर अपने भी चुप्पी साधे रहते हैं। इतना ही नहीं अपनी ही बेटियों को दुष्कर्मियों और बाजार के हवाले करने में भी नहीं सकुचाते। नये वर्ष २०२० के जनवरी महीने के दूसरे हफ्ते में खबर के रूप में जो हकीकत सामने आयी, उसने भले ही कहीं न कहीं हर संवेदनशील, चिन्तनशील भारतीय को हिलाकर रख दिया, लेकिन अपने देश में तो ऐसा होना आम है :
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक सोलह साल की लडकी की खुलेआम बोली लगी। खरीददारों में बीस साल के युवक से लेकर अस्सी साल तक के वृद्ध शामिल थे। नाबालिग की देह की बोली लगाने वालों के इस जमावडे में कुछ नेता और बुद्धिजीवी किस्म के सफेदपोश चेहरों का भी समावेश था। लडकी को किसी बहुउपयोगी सामान की तरह सजा-धजा कर देह के भूखों के समक्ष बिठा दिया गया था। उसके गोरे रंग, आकर्षक बदन और अंग-अंग की तारीफ में ऐसे-ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा था, जिनसे सिर्फ अश्लीलता ही टपक रही थी, जिन्हें सुनकर अय्याशों को अलौकिक आनंद की अनुभूति हो रही थी। सभी लडकी को ललचायी नज़रों से देख रहे थे। बोली लगाने से पहले लडकी के जिस्म के अंग-अंग को ऐसे छू रहे थे, जैसे किसी सामान को खरीदने से पहले जांचा, परखा जाता है और पूरी तसल्ली के बाद कीमत अदा की जाती है। बोली लगाने वालों में ऐसे शैतान भी शामिल थे, जिनके छूने और परखने का अंदाज लडकी को बहुत पीडा दे रहा था। वह रोये जा रही थी और वे अपनी मस्ती में झूमते हुए बोली लगा रहे थे। पचास हजार से प्रारंभ हुई बोली बढते-बढते अस्सी हजार तक जा पहुंची थी। बोली और आगे बढती कि इससे पहले पुलिस वहां पहुंच गई और लडकी उम्रभर शैतानों की हैवानियत को झेलने और खून के आंसू बहाने से बचा ली गई। लडकी की मां का एक साल पहले निधन हो गया था। उसकी सौतेली मां ने उसे मानव तस्कर कलावती को पचास हजार रुपये में बेच दिया था। कलावती ने आसपास के लोगों को लडकी की अधिकतम बोली लगाने के लिए बुलाया था। उम्मीद से ज्यादा खरीददारों की भीड जुटने के कारण उसे यकीन था कि उसकी मोटी कमायी हो जाएगी। कलावती मानव तस्करी की पुरानी खिलाडी है। दो साल पहले जेल भी जा चुकी है। यह शातिर नारी आसपास के इलाकों की लडकियों को नौकरी दिलाने के बहाने बाहर ले जाती है और उन्हें बेच देती है। एक लडकी के बदले उसे चालीस से पचास हजार रुपये तक की कमायी हो जाती है। कभी-कभी तो यह आंकडा लाख-दो लाख तक भी पहुंच जाता है। जिस नाबालिग को बेचते हुए वह पुलिस के हत्थे चढी वह झारखंड की राजधानी रांची के निकट स्थित एक गांव की मूल निवासी है। कलावती झारखंड की पचासों लडकियों को उत्तर प्रदेश के बागपत, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ और बुलंदशहर में बेच चुकी है। गरीब और आदिवासी समाज के परिवारों की लडकियों को कलावती बडी आसानी से अपना शिकार बनाती रही है।

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