Thursday, January 23, 2020

अपनी सोच, अपनी राह

यह हमारी ही दुनिया हैं, जहां तरह-तरह के लोग रहते हैं। कई तो ऐसे हैं, जिन्होंने अंतिम रूप से मान लिया है कि अच्छे लोगों का घोर अकाल पड गया है। किसी पर भी भरोसा करने का जमाना नहीं रहा। सभी को अपनी पडी है। उनके आसपास कोई सहायता के लिए तडपता भी रहे तो वे उसकी अनदेखी कर अपने रास्ते निकल जाते हैं। सेवाभाव तो कहीं बचा ही नहीं। सभी पैसे के पीछे दौड रहे हैं।
लेकिन सच तो यह है कि हमारी इसी दुनिया में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो कभी शिकायतें नहीं करते। बेवजह की माथापच्ची में उलझे नहीं रहते। वे सभी को अपना समझते हैं। उनके जीवन का मकसद ही दूसरों के लिए कुछ अच्छा कर गुजरना है। अपने लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन उन्हें बिना किसी भेदभाव के हर किसी के जीवन को संवारने का गजब का हुनर हासिल है।
फरीदाबाद के ऑटोचालक शीशपाल का एक साल सात महीने का बेटा सुबह-सबेरे घर में खेलते-खेलते अकेले बाहर निकल गया। बाहर गली में कुत्ते झुंड बनाकर बैठे थे। अबोध, मासूम बच्चे को देखकर कुत्ते उस पर झपट प‹डे। बच्चे का मुंह, नाक, कान और पेट बुरी तरह से नोच डाला। बच्चे की चीखें सुनकर परिवार वाले और आसपास के लोग बच्चे तक पहुंचे। बच्चा लहुलूहान मरणासन्न हालत में तडप रहा था। बुरी तरह से जख्मी बच्चे को निकट के अस्पताल ले जाने पर पता चला कि घाव इतने गंभीर हैं कि तुरंत सर्जरी करनी पडेगी। काफी खर्चा आयेगा। बच्चे के ऑटो चालक पिता चिंतित और परेशान थे कि सर्जरी का पैसा कहां से लाएंगे। उनके पास तो बचत के नाम पर धेला भी नहीं है। आसपास के लोगों को जैसे ही पता चला कि बच्चे का परिवार आर्थिक रूप से बेहद कमजोर है तो उन्होंने मिलजुलकर सहायता करने की ठानी। शाम तक अस्पताल की फीस देने के लिए लगभग पचास हजार रुपये जमा हो गये। बच्चे के चेहरे और शरीर पर काफी टांके लगाने पडे। आंखों पर पलकें भी नहीं थीं। नाक भी खराब हो गई थी। उसे आसपास की खाल लेकर सही किया गया। इलाज होने के पश्चात बच्चे के पिता जब कुछ लोगों के साथ अस्पताल का बिल चुकाने के लिए पहुंचे तो डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि बच्चे की गंभीर हालत देखते ही हमने तो उसी समय मुफ्त में सर्जरी करने का निर्णय ले लिया था। यह रुपये हमें देने के बजाय बच्चे की समुचित देखभाल पर खर्च करें और उसका पूरा ख्याल रखें। हर माता-पिता अपने छोटे बच्चों को लेकर सतर्क रहें। उन्हें एक पल भी अपनी आंखों से ओझल न होने दें।
गुलाबी शहर जयपुर में रहते हैं कर अधिकारी संदीप गुप्ता। गुप्ता जी सडक पर आते-जाते कहीं भी दुर्घटना में घायल या जरूरतमंद को देखते हैं तो तुरंत अपनी गाडी से उसे अस्पताल पहुंचाते हैं। इस सद्कार्य के लिए उन्होंने अपनी लग्जरी फॉरच्यूनर गाडी में खास इंतजाम कर रखे हैं। अब तक वे सडक दुर्घटनाओं में घायल सैक‹डों लोगों को अस्पताल पहुंचा चुके हैं। इनमें से कई तो ऐसे थे, जिन्हें यदि समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया जाता तो उनकी मौत हो सकती थी। जरूरतमंदों के इस मसीहा की कार को प्रशासन ने एम्बुलेंस की तरह इस्तेमाल करने की इजाजत भी दे रखी है। जरूरत पडने पर संदीप अपनी गाडी पर नीली बत्ती, सायरन और एम्बुलेंस लिखे बोर्ड को तुरंत लगाते हैं ताकि घायल को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाया जा सके। बाद में इन्हें उतारकर गाडी में रख लेते हैं। कार में स्ट्रेचर और चादर के अलावा प्राथमिक उपचार का सामान भी हमेशा मौजूद रहता है, जिससे घायल को अस्पताल तक पहुंचाते समय रास्ते में खुद उपचार करने का प्रयास करते हैं। इस अनोखे कर्मठ समाजसेवी को पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, राजस्थान के पुलिस महानिदेशक सहित कई संस्थाओं के द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। संदीप गुप्ता किसी भी घायल को अस्पताल पहुंचाने के साथ ही उसके पास अपना विजिटिंग कार्ड अवश्य छोडते हैं, जिसमें मोबाइल नंबर और पते के साथ यह भी लिखा हुआ है कि यदि भविष्य में आपको कोई घायल रास्ते में मिले तो आप भी यही करें, उसे अस्पताल जरूर पहुंचाएं।
मेरठ में एक शख्स जिनका नाम सालिगराम है, ने २०२० के जनवरी महीने में अपने सौवें जन्मदिन पर बडी धूमधाम से केक काटा। उनका चेहरा खुशी से दमक रहा था। कहा और पूछा जा सकता है कि यह कौन-सी अनोखी बात है! देश में कई स्वस्थ उम्रदराज़ अपनी उम्र के ९९ के आंकडे को पार कर १००वां जन्मदिन धूमधाम से मनाते हैं। ऐसे में यदि सालिगराम ने भी मना लिया तो हैरानी कैसी? दरअसल, सालिगराम ने विभिन्न बीमारियों से तंग आकर २०११ में राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु मांगी थी। उनकी जीने की इच्छा ही पूरी तरह से खत्म हो चुकी थी। पल-पल काटना मुश्किल हो गया था। उनकी एक ही रट थी कि वह फौरन इस दुनिया से रुखसत होना चाहते हैं। जिन्दगी उन्हें बोझ लगने लगी है। सेना में नौकरी कर चुके सालिगराम के इच्छा मृत्यु के आवेदन ने सरकार को भी स्तब्ध कर दिया था। एक रिटायर भारतीय सैनिक की खुद की मौत की मांग कई सवाल खडे करने वाली थी। सरकार के लिए यकीनन यह चिन्ता की बात थी। सरकार ने उनके आवेदन को खारिज करते हुए बेहतरीन डॉक्टरों को उनके इलाज और देखरेख में लगा दिया। डॉक्टरों ने उनका नियमित इलाज करते हुए उनके सोये हुए मनोबल को जगाया। उनमें सकारात्मक सोच का संचार किया। उनकी तबीयत में ब‹डी तेजी से सुधार आने लगा। वो दिन भी आ गया, जब वे अपने कमरे में चलने-फिरने लगे। आंखों में जिन्दगी के प्रति नई चमक दिखायी देने लगी। इच्छा मृत्यु का आवेदन भी स्वयं लिखकर वापस ले लिया। एक निराश-हताश-बीमार आदमी की जिन्दगी में उमंग और रोशनी बिखेरने का पूरा श्रेय यकीनन उन डॉक्टरों को जाता है, जिन्होंने यह करिश्मा कर दिखाया।

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