Thursday, January 9, 2020

शहीद की नई परिभाषा

लोकतंत्र में विपक्ष का काम ही होता है, सत्ता पार्टी पर नज़र रखना। जो कार्यक्रम और नीतियां उसे जनहितकारी न लगें उनका शांतिपूर्वक तरीके से विरोध करना। सच्चे लोकतंत्र में जितना महत्व जनता के द्वारा चुनी सरकार का होता है, उतना ही विपक्ष का भी होता है, लेकिन भारतवर्ष में काफी अलग मंजर नज़र आ रहा है। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर जिस तरह से विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं और हंगामा करने वालों का साथ दे रहे हैं, उससे उनकी नीयत पर शक होना स्वाभाविक है। देश के गृहमंत्री अमित शाह बार-बार स्पष्ट कर चुके हैं कि नागरिकता संशोधन कानून से किसी भारतीय का कोई लेना-देना नहीं है। यह कानून किसी की नागरिकता नहीं छीन सकता। नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी को नागरिकता संशोधन कानून के साथ जबरन जोडने का कोई मतलब ही नहीं है क्योंकि फिलहाल इसे लेकर कोई पहल नहीं हो रही है, लेकिन फिर भी विपक्ष ने अपना रवैया नहीं बदला। देश की जनता को भ्रमित और भयभीत करने का गंदा खेल निरंतर जारी रखा। किसी भी विपक्षी नेता ने हिंसक प्रदर्शन करने वाले उपद्रवियों को रोकने और समझाने की पहल नहीं की, उलटे लोगों को भडकाया और उकसाया। ऐसा लगता है कि विपक्षियों के लिए लोकतंत्र का अर्थ जनता को भ्रमित करना है, उन्हें वास्तविकता से अवगत कराना नहीं। उन्हें आग बुझाने में नहीं, लगाने में दिलचस्पी है।
देशभर में हुए हिंसक प्रदर्शन और आंदोलनों में मारे गए उपद्रवियों को हिन्दुस्तान की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी ने 'शहीद' घोषित कर हर किसी को स्तब्ध कर दिया। हिंसा की अनोखी पक्षधर प्रियंका यह भी भूल गईं कि इसी हिंसा ने उनकी दादी और पिता की जान ली थी। जिस महात्मा के उपनाम 'गांधी' को बडी शान से उनके खानदान और उन्होंने अपने नाम के साथ जोड रखा है, उनकी हत्या भी जिस नाथूराम गोडसे ने की थी वह हिंसा का पुजारी था। शहीद की यह नई परिभाषा पेश करने वाली इस महान अनोखी राजनीतिक हस्ती का अभिनंदन किया जाना चाहिए। फूलमालाओं से लाद दिया जाना चाहिए, ताकि इनका हौसला बरकरार रहे। ये नई-नई परिभाषाएं गढती रहें और देशवासियों का ज्ञानवर्धन होता रहे।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले प्रदर्शनकारियों के होश ठिकाने लगाने और उन्हें सबक सिखाने के लिए एक क्रांतिकारी पहल करते हुए यह घोषणा की, कि अब सरकार चुप नहीं बैठेगी, जिसने सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचायी है, उन्हीं से क्षतिपूर्ति की जाएगी। नुकसान की भरपाई नहीं करने पर सरकार उनके खिलाफ कुर्की जब्ती की कार्रवाई करने से नहीं चूकेगी। प्रदेश की पुलिस ने १०० से ज्यादा लोगों की शिनाख्त कर उनकी तस्वीर वाले पोस्टर चौक-चौराहों पर लगवाये और उनके खिलाफ तेजी से कार्रवाई शुरू हो गई। खुद को सच्चे देशभक्त और अत्यंत बुद्धिमान समझने वाले कई बुद्धिजीवियों और नेताओं ने इस पर भी आपत्ति जतायी। उनका कहना था कि यह तो सरासर सरकारी गुंडागर्दी है। विरोध की आवाज़ों को दबाने के लिए सरकार दहशत फैलाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट रही है। लोकतंत्र का अपमान कर रही है।
एक नारी है अरूंधती राय। अंग्रेजी लेखिका है। समाजसेवी होने का खूब ढोल पीटती है। उसने जिस तरह से खिलखिलाते हुए बिल्ला और रंगा जैसे हत्यारों का नाम लेकर देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के लिए घोर अपमानजनक टिप्पणी की उससे पूरे देश में उसकी थू-थू हुई। उल-जलूल बकवास करने और छात्र-छात्राओं को उकसाने वाली भाषा का इस्तेमाल करने वाली यह तथाकथित बुद्धिजीवी अपने नक्सली प्रेम के लिए भी कुख्यात रही है। यह अलग बात है कि अपनी इस कुख्याति को वह ख्याति समझती है। बडी बेशर्मी से अभद्रता और तुच्छता की सभी सीमाएं लांघने वाली यह बददिमाग नक्सलियों और आतंकियों के हाथों जवानों के मारे जाने पर जश्न और आतंकियों, नक्सलियों के ढेर होने पर मातम मनाती है। उनके पक्ष में लेख लिखती है, किताबें छपवाती है और विदेशी पुरस्कार पाती है। इतना ही नहीं, अपने साथियों के साथ उनके लिए अदालतों के दरवाजे भी खटखटाती है। दरअसल हिन्दुस्तान में ऐसे और भी कई चेहरे हैं, जिनका बस एक ही मकसद है, मानवाधिकार की बातें कर अपना उल्लू सीधा करते रहो और सरकार के विरोध करने के बहाने ढूंढते रहो। इनके गिरोह में कुछ पत्रकार भी शामिल हैं, जिन्हें देश में कुछ भी अच्छा होता नहीं दिखता। खुद को छोडकर इन्हें बाकी दूसरे सभी पत्रकार बिकाऊ लगते हैं। नागरिकता कानून में संशोधन के बाद देशभर में हुई हिंसा की वजह से करीब पच्चीस लोगों की मौत हो गई। अरबों-खरबों का नुकसान हुआ। जहां देश की अर्थव्यवस्था पर भी बहुत बुरा प्रभाव पडा, वहीं पूरी दुनिया में भारत की बदनामी भी हुई। दिल्ली के जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में पुलिस तथा जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय (जेएनयू) में नकाबपोशों के द्वारा की गई गुंडागर्दी और बेतहाशा हिंसा के बाद तो कई विदेशों के विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने भी अपना तीव्र विरोध जताया और खुलकर निन्दा की। अमेरिका, ब्रिटेन और रूस सहित कई देशों की सरकारों ने भारत में फैली हिंसा की आग के चलते अपने देश के नागरिकों को भारत न जाने की सलाह देकर सतर्क कर दिया। असम में नब्बे फीसदी पर्यटकों ने अपनी बुकिंग कैंसिल कराई। जिन दो लाख से अधिक देशी-विदेशी पर्यटकों ने ताजमहल देखने के लिए आगरा में होटल आदि बुक कराये थे, उन्होंने भी अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया। हर पर्यटक यही चाहता है कि उसकी यात्रा आरामदेय और चिंता मुक्त हो। कोई भी अपने जीवन को खतरे में नहीं डालना चाहता। सभी भारतवासी भी तो यही चाहते हैं कि देश में अमन-चैन बना रहे। कहीं कोई हिंसा और खून खराबा न हो।

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