Thursday, July 16, 2020

डाकू की अंतिम इच्छा!

मोबाइल की लत बच्चों को अपराधी बना रही है। उनका मोबाइल के प्रति अत्याधिक लगाव और जिद्दीपन अभिभावकों की नींद उडा चुका है। माता-पिता, बडे-बुजुर्गों की जरा-सी ना-नुकुर, रोक-टोक उन्हें बर्दाश्त नहीं होती। घण्टों मोबाइल से चिपके रहने वाले कई बच्चे, किशोर, युवा अपने मां-बाप की मेहनत की कमायी लुटा रहे हैं। उनके सपनों को बुरी तरह से रौंद रहे हैं। नागपुर से मात्र घण्टे-सवा घण्टे की दूरी पर स्थित है धार्मिक नगरी रामटेक। यहां के तेरह साल के बालक ने सात जुलाई २०२० के दिन गेम खेलने के लिए अपनी मां से मोबाइल मांगा। मां ने यह कहकर मोबाइल नहीं दिया कि यह भी कोई गेम खेलने का समय है। अभी-अभी तो सोकर उठे हो, नहाओ, धोओ, नाश्ता-पानी कर पढाई-वढाई करो। खेलने के लिए तो पूरा दिन पडा है। जिद्दी बच्चे को तो किसी भी हालत में मोबाइल चाहिए था। वह नाराज होकर घर की छत पर गया और पाइप से रस्सी का फंदा बनाकर झूल गया। कुछ देर के बाद मां कप‹डे सुखाने के लिए छत पर गई तो बेटे को फंदे पर मृत पाया।
नागपुर का रितिक पबजी के चक्कर में ऐसा भटका कि उसने भी खुदकुशी कर ली। १९ वर्षीय रितिक पुणे के नामी कॉलेज में होटल मैनेजमेंट की पढाई कर रहा था। कोरोना काल में कॉलेज बंद होने के बाद नागपुर स्थित अपने घर आया हुआ था। उसके माता-पिता यह देखकर हैरान-परेशान थे कि जब से वह आया था, दिनभर चुपचाप मोबाइल पर लगा रहता था। दरअसल, उसे पबजी खेलने की लत लग चुकी थी। पिता ने बहुतेरा समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ। रात-रात भर गेम खेलने के कारण उसे माइग्रेन की बीमारी ने जकड लिया। डॉक्टर के पास ले जाया गया। डॉक्टर ने इलाज शुरू करने के साथ ही यह सलाह भी दी कि मोबाइल से इतनी अधिक मित्रता ठीक नहीं। पबजी से तो एकदम दूरी बना लो। सब ठीक हो जायेगा, लेकिन वह नहीं माना। गेम में उसे हार बर्दाश्त नहीं होती थी। हारने पर वह आक्रामक, हताश और निराश हो जाता था। ८ जुलाई २०२० की दोपहर खाना खाकर वह मोबाइल लेकर अपने कमरे में गया। काफी देर के बाद मां ने उसे आवाज लगाई। कोई जवाब न पाकर दरवाजे को धक्का दे कमरे में घुसी तो उसके पैरो तले की जमीन खिसक गई। बेटा फांसी पर लटका था। अस्पताल में ले जाने पर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
पबजी के मायावी चक्कर के कारण जान गंवाने वालों में नागपुर की ही उन्नीस वर्षीय युवती फारिया निजाम पठान का नाम भी जुड गया। यह युवती भी इस हत्यारे खेल के भटकाव तथा तनाव से गुजर रही थी। पढाई में ध्यान देना छोड चुकी फारिया को भी गुमसुम रहने का रोग लग गया था। कॉलेज बंद थे। पबजी से मिले अकेलेपन, तनाव, भय, निराशा के अथाह सागर में ऐसी डूबी कि १ जुलाई को घर में रखी चूहे की दवा खाकर सदा-सदा के लिए मौत की नींद सो गई। लॉकडाउन में एकांत और अकेलापन तो हर किसी के हिस्से आया। सभी अपने घरों में कैद होने को विवश हो गये। कई अभिभावकों ने तो खुशी-खुशी अपने बच्चों के हाथ में मोबाइल पकडा दिये। मोबाइल गेम के शौकीनों में भरपूर इजाफा हो गया। पुरानों के साथ नये भी जुड गये। चंडीगढ की पबजी प्रेमी दो औलादों ने तो मां-बाप की खून-पसीने की कमायी ही लुटा कर उन्हें कंगाल बना दिया। खरड निवासी १७ वर्षीय किशोर ने पबजी गेम्स में बीमार पिता के इलाज और मुश्किल समय के लिए जोडकर रखे १६ लाख रुपये के वर्चुअल हथियार खरीदकर लुटा दिये। माता-पिता को इस बात की जानकारी तब मिली जब उन्हें पैसे कटने संबंधी एक मैसेज फोन पर मिला। उन्होंने तुरंत बैंक जाकर सारे रिकॉर्ड चेक किये तो उन्हें पता चला कि वे तो पूरी तरह से लुट चुके हैं। उन्हें अपने बेटे पर काफी भरोसा था। बेटे को अपने मां-बाप के बैंक खाते की पूरी जानकारी थी। मां-बाप के साथ दगाबाजी करने वाला पबजी का यह नशेडी ऑनलाइन पेमेंट ट्रांसफर करके पूरी जानकारी डिलीट कर देता था। किडनी तथा अन्य गंभीर बीमारियों से जूझ रहे पिता का खून तो बहुत खौला, लेकिन उन्होंने जैसे-तैसे खुद को संभाला। पत्नी ने भी समझाया कि रोने-गाने, मारने-पीटने से छिन चुके रुपये तो वापस आने से रहे। इसलिए खून का घूंट पी लेने के सिवाय और कोई चारा नहीं है। इकलौते बेटे के प्रति लगाव और अथाह ममता के समक्ष पिता ने हथियार डाल तो दिये, लेकिन उन्होंने कसम खायी कि चाहे कुछ भी हो जाए वे अपने इस नालायक बेटे पर कभी भी यकीन नहीं करेंगे। उन्होंने विश्वासघाती बेटे को अपने परिचित की स्कूटर रिपेयर की दुकान पर नौकर की तरह काम करने के लिए छोड दिया है, ताकि उसे अपनी भूल का अहसास हो तथा यह भी पता चले कि एक-एक पैसा कमाने के लिए कितना खून-पसीना बहाना पडता है।
मोहाली के पंद्रह वर्षीय किशोर रतन ने भी यही राह पकडी और माता-पिता बेखबर रहे। करीब तीन माह पहले जब ऑनलाइन कक्षाएं शुरू हुई थी तभी यह लडका पबजी गेम के चंगुल में जा फंसा। घरवाले समझते रहे कि बेटा मोबाइल पर पढाई में तल्लीन है, लेकिन वह तो पबजी गेम का लती हो संयुक्त परिवार के बैंक में जमा रुपये लुटाते हुए हवा में उडता रहा। कुछ ही दिनों में जब उसने तीन लाख रुपये उडा दिये तो मां-बाप एकाएक जागे। ऐसा भी नहीं था कि उन्होंने उसे रोका-टोका और समझाया नहीं था। दरअसल, रोकने पर वह हिंसक हो जाता और बदतमीजी से पेश आने लगा था।
अनुभवों की आग में तपे बडे-बुजुर्ग कहते हैं कि बच्चे को उसकी मनचाही वस्तु या उपहार न दिया जाए तो वह कुछ समय तक रोयेगा मगर संस्कार न दिये जाएं तो वह जीवन भर रोयेगा। अमीरों का धन लूटकर गरीबों में बांटने वाले सुल्ताना डाकू को जब मौत की सज़ा सुना दी गयी तो उसने अपने मित्र से अनुरोध किया कि मैं चाहता हूं कि मेरे दुष्कर्मों और ख्याति, कुख्याति की छाया मेरे बेटे पर न पडे। मुझे तो बचपन में अच्छे संस्कार नहीं मिले। मैं डकैत और हत्यारा बन गया, लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरा बेटा अपराधी बने। यह तभी संभव है, जब उसे अच्छा वातावरण और सुसंस्कृत लोगों का साथ मिले। इसलिए मेरी अब बस एक ही चाहत है कि उसे उच्च शिक्षा दिलवायी जाए। सुल्ताना की इच्छा का सम्मान करते हुए मित्र ने उसके सात साल के बेटे को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया। ऊंची शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करने के बाद वो भारत आया और आईसीएस की परीक्षा पास करने के बाद पुलिस विभाग का एक उच्च अधिकारी बना तथा काफी नाम कमाया। तय है कि यदि पिता के प्रभाव की छत्रछाया में रहता तो डाकू, लुटेरा और हत्यारा ही बनता और फिर अंतत: फांसी के फंदे पर लटका दिया जाता।

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