Thursday, July 9, 2020

सुनो सरकार!

इसी को तो कहते हैं नाटक, नौटंकी करना, करवाना, बात का बतंगड बनाना, और असली मुद्दों, सवालों और समस्याओं से मुंह चुराना...। २३ साल से एक बडे सरकारी बंगले में नाम मात्र का किराया देकर रहती चली आ रहीं सोनिया, राजीव गांधी की सुपुत्री, राबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका गांधी को बंगला खाली करने का आदेश क्या मिला... कांग्रेस के छोटे-बडे नेता, पदाधिकारी आग बबूला हो गये। लगभग सारे के सारों ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोसना शुरू कर दिया। कोरोना काल में रैलियां, रोड शो और धरने प्रदर्शन तो कर नहीं सकते थे इसलिए न्यूज चैनलों तथा सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब, इंस्टाग्राम आदि के माध्यम से गांधी खानदान के प्रति वफादारी दिखाते हुए बंगले को 'राष्ट्रीय समस्या' बना दिया गया। कांग्रेस की जोशीली हुल्लड ब्रिगेड ने यूपी में जगह-जगह पोस्टर लगाकर कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका के पक्ष में एक से एक तर्क-कुतर्क पेश कर धमकियां-चमकियां उछालते हुए कहा कि प्रियंका में इंदिरा का खून है। डरकर नहीं डटकर मुकाबला करेंगे। ऐसा लगा जैसे प्रियंका की खानदानी जायदाद छीनी जा रही हो। ऐसे में जवाबी हथियार चलाते हुए भाजपा के मरने-मारने पर उतारु रहने वाले जवानों ने भी यूपीए के कार्यकाल में सासू मां के आशीर्वाद से रातों-रात कंगाल से खरबपति बने प्रियंका के पतिदेव रॉबर्ट वाड्रा के कुख्यात बिल्डरों के साथ मिलकर किये गये जमीन घोटालों तथा किसानों की जमीनों को कौडी के मौल हथियाने के काले चिट्ठे खोलने वाले पोस्टरों की झडी लगा दी।
दरअसल, भारत की राजनीति आरोप, प्रत्यारोप, पटका, पटकी और खुद को सही बताने, दिखाने की जिस बीमारी का शिकार है उसका इलाज पाखंडी राजनेताओं के रहते कतई संभव नहीं, जिन्हें हमने अक्सर यही कहते पाया है कि हम राजनीति से ज्यादा समाजसेवा के अभिलाषी हैं। हम तो महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलते हुए समाज सुधार के रास्ते पर चलने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जिस तरह से बापू ने नशे, छुआछूत, साम्प्रदायिकता जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लडाई लडी, उसी तरह से देश को बदलने का हमारा भी अटूट इरादा है।
महाराष्ट्र की पिछली सरकार ने विदर्भ के चंद्रपुर जिले में पूरी तरह से शराब बंदी लागू की थी। दरअसल, यह मुश्किल काम उन महिलाओं की जंग की बदौलत संभव हो पाया, था जिन्होंने वर्षों तक शराब के खिलाफ जंग ल‹डी थी। २०१४ के विधानसभा चुनाव में हजारों महिलाओं ने उसी उम्मीदवार को वोट देने की कसम खायी थी, जो चंद्रपुर जिले में जगह-जगह आबाद शराब दुकानों और बीयर बारों को हमेशा-हमेशा के लिए बंद करवा दे। भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार ने महिलाओं को विश्वास दिलाया तो महिलाओं ने भी उनका पूरा साथ दिया। महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना गठबंधन की सरकार बनने के बाद एक अप्रैल २०१५ से पूरे जिले में देशी-विदेशी शराब बिकना बंद हो गई। बीयरबारों पर भी ताले लग गये। महाराष्ट्र की वर्तमान सरकार शराब के खिलाफ जंग ल‹डने वाली महिलाओं के मुंह पर तमाचा मारते हुए चंद्रपुर जिले में फिर से मयखाने आबाद करने की तैयारी कर चुकी है। शराब के पक्ष में जनमत संग्रह भी करवा लिया गया है। ध्यान रहे कि चंद्रपुर के सांसद सुरेश धानोरकर शराब के बहुत बडे कारोबारी हैं। उनकी पत्नी भी जिले के शहर वरोरा की विधायक हैं। महाराष्ट्र में अधिकांश देशी शराब के कारखानों के मालिक राकां और कांग्रेस पार्टी के बडे-बडे नेता हैं। यह महान लोग शुरू से ही शराब बंदी के विरोधी रहे हैं। जिले में शराबबंदी हटाने के कई कारणों में यह भी कहा जा रहा है कि शराब बंदी होने के बाद अवैध शराब तस्करों ने पियक्कडों को शराब की कमी नहीं होने दी, जिससे सरकार को ही चूना लगा। उसे जो राजस्व मिलना था, वो नहीं मिला। यह सच भी किसी से छिपा नहीं है कि अवैध शराब माफियाओं को जबरदस्त राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा है। पुलिस के वरदहस्त के बिना एक बोतल की भी तस्करी संभव नहीं। तस्करों के जितने भी गॉडफादर हैं उन्हें लोग अच्छे से जानते-पहचानते हैं।
अपनी तिजोरी भरने को आतुर नेताओं तथा सरकार को कौन याद दिलाये कि चंद्रपुर जिले में शराब बंदी उन अनेक महिलाओं की पुरजोर मांग पर लागू की गई, जिनके शराबी पतियों ने उनका जीना हराम कर रखा था। न जाने कितने परिवार तबाह हो चुके थे और हो रहे थे। बच्चों की पढाई छूट गई थी। घरों में चूल्हा कभी जलता था, कभी नहीं, लेकिन पति, पिता, भाई, भतीजे, भांजे आदि को तो नशे की गुलामी की गंदी लत लग चुकी थी। नशे में धुत शराबी अपनी मांओं, बहनों, पत्नियों को मारते-पीटते और लहुलूहान करने से नहीं चूकते थे। मासूम बच्चे भी उनके आतंक, जुल्म से नहीं बच पाते थे। शराब बंदी के बाद अनेक पुरूषों में काफी बदलाव आने लगा। वे अपनी मेहनत की कमायी पत्नी, मां, बहन के हाथ में थमाकर घर के सच्चे, अच्छे मुखिया बनने की राह पकड चुके हैं। उन्हें घर-परिवार की अहमियत समझ में आने लगी है। बच्चों के चेहरों की खोयी चमक भी लौट आयी है। उन्हें अच्छे कपडे, जूते, किताबें-कापियां मिलने लगी हैं। पिता के प्यार दुलार, मिठाई और चाकलेट का मज़ा लेने के सुहाने दिनों ने दस्तक दे दी है, लेकिन धन के भूखे जनप्रतिनिधि, सरकार शराब की दुकानों के ताले खुलवाकर कलह-क्लेश, भुखमरी, तबाही, अपराध, मार-काट और बरबादी के रास्ते फिर से खोलने जा रही है। शराबी तो नशे के गुलाम होते हैं, लेकिन मंत्री, सांसदों, विधायकों और सरकारों का यह अंधापन? इस सरकार के मंत्री, नेता जिस तरह से देसी-विदेशी शराब की दुकानों, बीयरबारों को फिर से शुरू करवाने के लिए जल्दबाजी में हैं, उससे तो यही लगता है कि शराबबंदी पियक्कडों से ज्यादा  उनके लिए कष्टदायी है। और हां, नक्सलग्रस्त जिला गडचिरोली तथा बापू की कर्मभूमि वर्धा, जहां पर कई वर्षों से शराब बंदी है वहां पर भी मंत्री और नेताबंधु जनमत संग्रह करवायें। यकीनन ७० प्रतिशत से अधिक जनता शराब की दुकानें और बीयर बारों को शुरू करने की मांग का झंडा उठाये दिखेगी...। तो फिर देरी किस बात की। बहा दो शराब की नदियां और जी भर कर अपना खजाना भर लो सरकार...।

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