Thursday, October 1, 2020

मदारी और सपेरे

एक उत्पाती, नशेडी, महिलाओं तथा बच्चियों का दुश्मन हत्यारा बंदर पिछले तीन साल से जेल में कैद है। उसकी मौत खुली हवा में नहीं होगी। घरों की छतों और पेडों की डालियों पर कूदने-फांदने की आज़ादी भी उसने हमेशा-हमेशा के लिए खो दी है। अपने दुर्गुणों के कारण उसे वन विभाग के बडे से पजरे में ही अपने प्राण त्यागने होंगे। यह खूंखार बंदर एक बच्ची की हत्या कर चुका है। महिलाओं को देखते ही वह आग-बबूला हो जाता है। किसी खूंखार शत्रु की तरह बदला लेने के अंदाज में उन पर झपटता है और लहुलूहान करके ही दम लेता है। इस घोर आतंकी बंदर का नाम है कलुआ। कलुआ के हत्यारे और शैतान बनने के पीछे की कहानी उन इन्सानों से जुदा नहीं, जो नशे के गुलाम होकर वहशी हो जाते हैं और अंतत: अपना सबकुछ खो देते हैं। समाज उन्हें अपने साथ रहने लायक नहीं मानता। परिजन भी दूर रहकर कोसते हैं। इस बंदर के महा बिगडैल होने की भी वही वजह है जो अच्छे-भले इंसानों के तबाह होने की होती है। मिर्जापुर में एक तांत्रिक था, जो वशीकरण, मंत्र, काला जादू और तंत्र-मंत्र के लिए जाना जाता था। उसी ने बंदर को पाला था।
अपने यहां हजारों तरह के दुखियारे हैं, जिन्हें लगता है कि तंत्र-मंत्र, काला जादू, झाड-फूंक बडी काम की चीज़ है। इनसे बांझ औरत मां बन सकती है, अंधा देखने में सक्षम हो जाता है, बेवकूफ, नालायक इंसान को शानदार नौकरी मिल सकती है, दुनिया की सबसे खूबसूरत नारी को अपने वश में किया जा सकता है और दुश्मन को पलक झपकते बरबाद किया जा सकता है आदि-आदि। तांत्रिक को अपना धंधा जमाने में ज्यादा पापड नहीं बेलने पडे थे। उसकी रोज की हजारों रुपये की कमायी थी। हराम की कमायी इंसान को अवगुणों के गर्त में गिराकर ही दम लेती है। तांत्रिक को भी पहले शराब की लत लगी। फिर जैसे-जैसे आवक ब‹ढती गयी वह गांजा, भांग, अफीम, चरस का भी नशा करने लगा। इतना ही नहीं उसने बंदर को भी दिन-रात शराब पिलानी शुरू कर दी। तांत्रिक की तरह बंदर भी नशे में धुत रहने लगा। बंदर का मुंह और शरीर काला था इसलिए तांत्रिक ने उसका नाम कलुआ रख दिया। अत्याधिक शराब और ड्रग्स के कारण एक दिन तांत्रिक चल बसा। कलुआ को शराब मिलनी बंद हो गई। शराब के लिए वह तांडव मचाने लगा। देखते ही देखते उसका आतंक चरम पर पहुंच गया। महज एक महीने में उसने तीस से अधिक बच्चों को काटा। उसने महिलाओं तथा छोटी बच्चियों को चुन-चुनकर अपना शिकार बनाया। लगभग दो सौ महिलाओं को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होना प‹डा। उसके हमले की शिकार बनी अधिकांश मासूम बच्चियों की प्लास्टिक सर्जरी करवानी पडी। नशेडी, शातिर तांत्रिक के शागिर्द कलुआ ने एक बंदरिया को भी अपनी चेली बना लिया। यह चतुर और फुर्तीली बंदरियां अपने गुरू के प्रति कितनी श्रद्धावान और ईमानदार रही इसका पता तब चला जब वन विभाग और चि‹डयाघर की टीम ने कलुआ को पक‹डने की कोशिश की तो बंदरिया ने आवाज लगाकर उसे चौकन्ना कर दिया। कलुआ ने उसे पकडने आई टीम के नाक में दम कर दिया था। होश में जब उसे दबोचना मुश्किल हो गया तो उसे बेहोश करने की तैयारी की गई। कई दिनों तक छकाने के बाद कलुआ पकड में आया। दो इंजेक्शन लगाकर उसे बेहोश किया गया। वन अधिकारी कहते हैं कि यदि उसे जंगल में ले जाकर छोडा गया तो वह फिर से आबादी में आकर उत्पात मचा सकता है।
कलुआ तो जानवर है, लेकिन वो लोग कौन हैं, जो इंसानियत को शर्मिंदा करने के कीर्तिमान बना रहे हैं। एक तरफ नारियों की इज्जत को तार-तार करने और नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों की थू-थू करते हैं, दूसरी तरफ उनकी काली जिन्दगी पर बनी फिल्म को देखने के लिए टूट पडते हैं। महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस, विवेकानंद, शहीद भगत qसह जैसे महानायकों पर बनी फिल्मों को देखना अपने अमूल्य समय की बरबादी मानते हैं। जिन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया उनकी फिल्म पांच-सात दिन भी सिनेमा हाल में टिक नहीं पाती। फिल्म निर्माता का दिवाला निकल जाता है। हर तरह के ड्रग के दलदल में धंसे शराबी, कबाबी संजय दत्त की काली फिल्म आसानी से धन लोलुप, चेतनाहीन निर्माता की पहले से भरी तिजोरी में पांच-सांत सौ करोड की और बरसात कर देती है। फिल्म का नायक ब‹डी शान और अभिमान के साथ महंगी से महंगी ड्रग लेता है, पानी की तरह शराब पीता है। गटर में गिरता-गिराता है फिर भी एक से एक खूबसूरत लडकियां उसकी गोद में समाती चली जाती हैं। पथभ्रष्ट नायक बडे गर्व के साथ बताता है कि अभी तक उसके जीवन में ऐसी सैकडों युवतियां आ चुकी हैं, जिन्हें उसने अपनी मर्दानगी का स्वाद चखाया है।
उस पर टीवी पर सतत होने वाला बेहूदा शोर-शराबा...! अंधा-बहरा बनने की प्रतिस्पर्धा और प्रतियोगिता में अधिकांश न्यूज चैनलों ने गजब की महारत हासिल कर ली है। उन्हें अच्छी तरह से पता है कि भारत में बच्चे भी नशे के गर्त में डूब चुके हैं। लगभग एक करोड ४८ लाख बच्चे और किशोर अल्कोहल, अफीम, कोकीन, चरस, भांग सहित और भी कई आधुनिक किस्म के नशे का सेवन कर रहे हैं। इन कम उम्र के बच्चों में शराब पीने के शौकीनों की संख्या बडी चौंकाने वाली है। दस से सत्रह वर्ष के तीस लाख बच्चों तथा किशोरों को शराब ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। चालीस लाख बच्चे तथा किशोर अफीम के गुलाम हैं। किसी और के नहीं, भारत सरकार के सर्वेक्षण से ही यह बेहद चौंकाने तथा डराने वाली हकीकत सामने आयी है। हमारी आंखों के सामने देश का वर्तमान और भविष्य बदहाली, बरबादी, बेहोशी तथा मौत की तरफ जा रहा है। उन्हें इसकी भी खबर है कि वो कौन मदारी हैं, जो अपने पिटारे से नशे के नाग-नागिनों को निकाल कर नौनिहालो को नर्क की तरफ धकेल रहे हैं। सपेरे की बीन की आवाज कानों को चीर रही है। फिर भी, हां फिर भी तथाकथित इज्जत की खातिर लुकाने-छिपाने तथा अंधे बने रहने की धूर्तता खत्म होने का नाम नहीं ले रही है।
गुरूग्राम के एक नामी स्कूल का एक बारहवीं का प्रतिभावान छात्र अपने स्कूल के दो साथियों के साथ गांजा बेचते पकडा गया है। वह तथा उसके साथी ड्रग लेते रहे हैं। उनका कहना है कि ड्रग लेने के बाद उनके बदन में फूर्ती आ जाती है। दिमाग तेजी से काम करने लगता है। बच्चों के माता-पिता तथा स्कूल चलाने वालों को जब उनके नशेडी होने का पता चला तो उन्होंने इस qचताजनक सच को छुपाना बेहतर समझा। उनका निवेदन था कि इस मामले को ज्यादा न उछाला जाए। बच्चों के भविष्य का सवाल है। बच्चों के साथ-साथ उनकी भी बदनामी होगी। पुलिस वाले भी ठंडे पड गये। मीडिया को भी खबर लगी, लेकिन वह भी गूंगा बना रहा। ऐसे कई-कई मामले और जहरीले सच हैं, जिनसे वह दूरी बनाये है। न्यूज चैनलों के संपादक, पत्रकार, एंकर बॉलीवुड की हर हस्ती को ऐसे दुत्कारते-फटकारते नज़र आ रहे हैं, जैसे उनकी बिरादरी के लोगों ने नशा करने से तौबा कर रखी है। मनोरंजन प्रेमियों को भले ही चैनलों पर हो रही बेतुकी चर्चाएं-परिचर्चाएं, चीख-चिल्लाहटें अच्छी लग रही हों, लेकिन अधिकांश भारतीय माथा पीट रहे हैं। यह कैसा बेशर्म और गैर जिम्मेदार मीडिया है? उसे कृषि बिल को लेकर सडक पर उतरे किसान और चक्का जाम करते उनके संगठन दिखायी नहीं देते। भारत के अधिकांश न्यूज चैनलों ने महामारी से मरते लोगों की परवाह करनी छोड दी है। महंगाई, बेरोजगारी से त्रस्त, अपने जमे-जमाये कारोबार, धंधों से हाथ धो चुके करोडों लोगों की उसे ज़रा भी चिन्ता नहीं। उसे चिन्ता है तो बस उस लापरवाह अभिनेता सुशांत कुमार की, जो खुद कई नशों का गुलाम था। हद दर्जे का आशिक मिज़ाज था। हर फिल्म के साथ उसकी प्रेमिका बदलती रही। बॉलीवुड की चकाचौंध की आंधी में तिनके की तरह उडता रहा। उसकी कमियां, कमजोरियां और अंधी मायावी लालसाएं उस पर भारी पडीं। अंतत: उसकी मौत भी पहेली बन गई। कई विद्वान किस्म के लोगों का कहना है कि जो इंसान दुनिया को छोड गया हो उसकी बुराई नहीं करनी चाहिए। उनसे हमारा भी यह सवाल कि... भले ही उसके चक्कर में, उसके रंग में रंगे उसके दोस्तों और जान-पहचान वालों को चौराहों पर नंगा करने का अभियान अनवरत चलाया जाता रहे। क्या इनका यही कसूर है कि वे जिन्दा हैं? यानी... जो मर जाए वो देवता और जो बच जाएं वो हत्यारे, अपराधी और शैतान?

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