Thursday, October 15, 2020

और कितनी आज़ादी चाहिए?

एक हादसे में घायल बीस साल के युवक को अस्पताल वालों ने मृत घोषित कर दिया था। घर वाले दफनाने की तैयारी में थे। कब्र खोदी जा चुकी थी। इसी दौरान किसी परिजन को उसके शरीर में हरकत दिखाई दी। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने बताया कि वह जिन्दा है। परिवार ने बताया कि घायल होने के बाद युवक को जिस प्रायवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था, वहां इलाज के दौरान उन्होंने सात लाख रुपये जमा करा दिये थे। चार-पांच दिन बाद अस्पताल प्रशासन ने और रकम की मांग की। हमारे पास देने को कुछ नहीं था। कुछ ही घण्टों के बाद उनके बेहोश बेटे को मृत घोषित कर दिया गया...।
एक सत्रह साल की इस देश की बेटी जेल में बंद अपने पिता से मिलने पहुंची थी। जेल के गेट के पास उसे दो युवक मिले, जिन्होंने उसके पिता को जेल से छुडाने का झांसा देकर उस पर बलात्कार किया और अश्लील वीडियो भी बना ली...। यह और इन जैसी पचासों खबरें महज खबरें नहीं हैं, जिन्हें पढ-सुनकर भुला दिया जाए। यह तो आस्था और भरोसे के कत्ल किये जाने की चिन्ताजनक दास्तानें हैं, जिनकी दहशत सतत बनी हुई है। भारत के पुरातन ग्रंथ कहते हैं कि, विश्वास के शीशे का धूमिल होना, दरकना, टूटना-फूटना सबसे ज्यादा चोट तथा पीडा देता है। यह शीशा एक बार जो टूटा तो जुडना मुश्किल। फिर भी अपने निजी फायदे और स्वार्थ के लिए यह अपराध बार-बार किया जा रहा है। अफसोस तो इस बात का भी है कि जिन पर अपराधियों को बेनकाब करने की जिम्मेदारी है, वे ही आज अपराधी की तरह कटघरे में खडे हैं। देश का मीडिया जिस पर कभी नाज़ था, आज तमाशा बनकर रह गया है। उसी के खिलाफ कई-कई शिकायतें हैं। हर तरफ नाराज़गी है। उसे दंडित किये जाने की मांग की जाने लगी है। इसलिए क्योंकि वह अब निष्ठुर सौदागर की तरह काम कर रहा है। अपनी जेब भरने के लिए धोखाधडी पर भी उतर आया है।
करोडों-करोडों रुपये के विज्ञापन हथियाने के लिए टीवी न्यूज चैनल वाले फर्जी लोकप्रियता दिखाकर विज्ञापनदाताओं की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। उन्हे किसी भी तरह से पैसा और दर्शक चाहिए। फर्जी दर्शकों से भी उन्हें परहेज नहीं। इसके लिए भले ही कितना छल-कपट और झूठ क्यों न बोलना पडे। उनकी एक पक्षीय आहत करने वाली खबरों की वजह से लोग अदालतों के दरवाजें खटखटाने लगे हैं। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय को उसे आईना दिखाने के लिए आगे आना पड रहा है। जब कोरोना की महामारी फैल रही थी, तब एकाएक पूरे देश में यह खबर तेज आंधी की तरह फैलायी गयी कि राजधानी दिल्ली के निजामुद्दीन में आयोजित तबलीगी जमात के आयोजन में शामिल हुए मुसलमानों ने कोविड-१९ का संक्रमण देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचाया है। जहां-जहां जमातियों के कदम पडे वहां-वहां पर कोरोना तूफानी गति से फैला है। पूरे देश में अजीब-सी दहशत छा गई थी। एक तो कोरोना की जानलेवा बीमारी और उस पर यह अनेकों मानव बम! हां अधिकांश न्यूज चैनलों ने ऐसे ही भय का माहौल बना दिया था। घृणा, तनाव और दूरियां बढाने की साजिशी मंशा दर्शाने वाली इस खबर को रबर की तरह खींचने की प्रतिस्पर्धा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। दिल्ली के निजामुद्दीन-मरकज में देश और विदेश के हजारों मुस्लिम बंधु शामिल हुए थे। तबलीगी जमात के इस आयोजन की समाप्ति के बाद उन्हें अपने-अपने स्थायी ठिकानों पर लौटना था, लेकिन इस बीच कोविड-१९ ने अपना शिकंजा तेजी से कसना प्रारंभ कर दिया। विदेश ही नहीं देश की भी हवाई, रेल, बस आदि की सेवाएं बंद हो गईं।
कोरोना काल में आयोजित तबलीगी गतिविधि को लेकर यदि न्यूज चैनलों ने शोर नहीं मचाया होता तो साम्प्रदायिक तनाव, घृणा और समाज को बांटने वाली प्रवृतियों को बल नहीं मिलता। कोविड-१९ के चिन्ताजनक काल में सोशल मीडिया पर भी मुसलमानों की गलत छवि पेश करने वाली ऐसी शंका तथा भेदभाव की आंधी नहीं चलती तो शहर की गली-गली में घूमकर सब्जी बेचने वाला रहमान आज भी जिन्दा होता। कल तक जो लोग उसकी ताजी सब्जी का इंतजार करते थे, अब उन्हें उसकी सब्जी में विष होने का संदेह होने लगा था। कुछ अति उत्साही, असामाजिक तत्वनुमा चेहरों ने उसकी इसलिए पिटायी भी कर दी... कि उसने उनके मोहल्ले में आने की जुर्रत ही क्यों की...! कमायी बंद हुई तो रहमान बीमार पड गया। कुछ दिनों के पश्चात इलाज के अभाव में वह चल बसा।
राजधानी में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने के लिए विदेशों से आये कुछ तबलीगी जमात के लोगों का नागपुर में आगमन हुआ था। कोविड-१९ के संकट के दिन उन्होंने यहां बडे इत्मीनान से गुजारे। प्रशासन ने कुछ दिन तक निर्धारित स्थान पर क्वारंटाइन भी किया। नारंगी नगर से विदा होते समय उनकी आंखे नम थीं। उनका कहना था कि इस शहर में उन्हें जो मान-सम्मान तथा अपनापन मिला उसे वे कभी भुला नहीं पाएंगे। सर्वधर्म समभाव के जीवन-सूत्र के प्रबल हिमायती नागपुरवासी दहशत और विकट संकट काल में सतत हौसला अफजाई कर हमें दिलासा देते रहे कि आपके साथ बेइंसाफी नहीं होगी। आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने दूध का दूध और पानी का पानी कर हमारे माथे पर थोपे कलंक के दाग को मिटा ही दिया है। उन लोगों की भी आंखें खोली हैं, जिन्हें देश और दुनिया के सभी मुसलमान कोरोना फैलाने के महा षडयंत्र में शामिल लग रहे थे। यकीनन, कुछ समय जरूर लगा, लेकिन यह स्पष्ट तो हो गया है कि हिन्दुस्तान में कोरोना तबलीगी जमातियों की वजह से नहीं, लोगों की अपनी असावधानी की वजह से तेजी से फैला। न्यूज चैनलों ने सनसनी फैलाने तथा लोकप्रियता पाने के लिए पत्रकारिता को एक नहीं, हजार बार कलंकित किया।
ड्रग्स मामले में करीब एक महीना जेल में बिताने के बाद अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती को जमानत मिल गई। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत के बाद न्यूज चैनलों ने रिया को घेरने का जो एक पक्षीय आतंकी अभियान चलाया, उससे भी तमाम मीडिया के प्रति यही राय बनी है कि इसने धन और नाम चमकाने के चक्कर में चिन्तन-मनन करना बंद कर दिया है। जिस तरह भूखा शेर मौका पाते ही शिकार पर झपटता है, उसी तरह से भारतीय मीडिया भी जिस किसी को भी लपेटता है, तो उसकी बडी निर्दयता के साथ चीर-फाड करने में लग जाता है। उसके खुद के शोर में शिकार की हर आवाज़ तथा फरियाद दबकर रह जाती है। उसकी सुनना मीडिया को अपना अपमान लगता है। उसके क्षेत्र में दखल देने की कुचेष्टा लगता है।
इस बेकाबू, लापरवाह मीडिया पर जब भी उंगली उठती है, तो उसकी तरफ से लट्ठ घुमाने के अंदाज में बस यही कहा जाता है कि कुछ दुष्ट हमारी अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने पर आमादा हैं। हम यह कदापि नहीं होने देंगे। दरअसल अधिकांश न्यूज चैनलों के कर्ताधर्ताओं ने यही मान लिया है कि यह आजादी सिर्फ उन्हीं के लिए है, दूसरों के लिए तो बिलकुल ही नहीं। इनकी तरह कई लोग और भी हैं, जिनकी शैतानी हरकतों से देश परेशान है। देश को भी समझ में नहीं आ रहा है कि उन्हें कितनी आजादी चाहिए और कितने टुकडे...! इससे किसी को इंकार नहीं कि हर किसी को विरोध करने तथा अपनी बात कहने का पूरा हक है। शाहीन बाग में कई हफ्तों तक जबरन हुए धरने प्रदर्शन से दिल्लीवासियों को अथाह तकलीफें झेलनी पडीं। एक अच्छे-खासे सार्वजनिक स्थल को बंधक बनाया गया। किसी की भी नहीं सुनी गई। उससे भले ही कुछ लोगों को संतुष्टि मिली हो, लेकिन भारत माता आहत होकर रह गई। अपने अधिकारों के लंबे तमाशे में दूसरों के अधिकारों की लूट तथा तकलीफ देने की जिद की सबकी तरफ से खुलकर भर्त्सना नहीं की गयी। कुछ थाली छेदकों से भारत माता बहुत परेशान है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री व नेशनल कांफ्रेस के नेता फारूख अब्दुल्ला को यह कहते ज़रा भी लज्जा नहीं आयी कि चीन के समर्थन से जम्मू-कश्मीर में फिर से अनुच्छेद ३७० लागू करके ही दम लेंगे। यानी यह और इन जैसे शैतान, अहसानफरामोश, अशांति फैलाने और हिन्दुस्तान को नीचा दिखाने के लिए दुश्मन देश की शरण में जाने से भी नहीं हिचकिचाने वाले। इसलिए सावधान, भारत देश...! हमें खतरा बाहरी आतंकवादियों से कम, देश में उजागर तथा छिपे हुए गद्दारों से अधिक है...।

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