Thursday, October 8, 2020

तब भी, अब भी

कई वर्ष पहले...। छत्तीसगढ में स्थित कटघोरा के हाईस्कूल के एक शिक्षक की बागी, शर्मनाक प्रेम कहानी के विस्फोट से जमीन हिल गयी थी। वहां के सीधे-सादे लोग बेहद हतप्रभ रह गये थे। उन्होंने जिसकी कभी कल्पना ही नहीं की थी, वो जो हो गया था...! शिक्षक का हंसता खेलता, अच्छा खासा परिवार था। ऐसे में उनका खुद से काफी छोटी उम्र की युवती से जुडना और शादी करने का निर्णय लेना कई वजह से चौंकाने वाला था। तब कटघोरा की कुछ गांव तो कुछ शहर जैसी आदर्श तस्वीर थी। उस युवती का पिछले कई दिनों से शिक्षक के घर आना-जाना था। कुछ दिन तक तो अडोसी-पडोसी, किसी ने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब शिक्षक घर में अकेले होते तब भी युवती के चुपके से आने और घण्टों बिताने की वजह से शिक्षक की पत्नी असहज होने लगीं। कटघोरा कोई बडा शहर तो था नहीं, जहां उनके मिलने-मिलाने की जानकारी छिपी रह जाती। साथ ही तब समाज में इतना खुलापन भी नहीं था कि इसे उनका नितांत व्यक्तिगत मामला मानकर नजरअंदाज़ कर दिया जाता। ऐसे में वही हुआ जो अमूमन होता है। तरह-तरह की बातें... चर्चाएं। गांव में होने वाली हर चर्चा की स्वरलहरी को शिक्षक ने तो अनसुना कर दिया, लेकिन उनकी पत्नी से रहा नहीं गया। वे युवती से जाकर मिलीं। युवती ने यह कहकर उन्हें शांत होने को विवश कर दिया कि वह तो सर को अपना बडा भाई मानती है। इतना ही नहीं उसने घर में आकर शिक्षक की कलाई पर राखी बांधकर सभी शंकाग्रस्त लोगों को अपनी सोच बदलने की वजह सौंप दी। राखी बांधने-बंधवाने के बाद तो दोनों बेखौफ यहां-वहां, कहीं भी घूमने-फिरने लगे। कभी-कभार कोरबा और बिलासपुर तथा रायपुर भी चले जाते। राखी के धागे ने उनकी राह की सभी जंजीरें तोड दी थीं। किसी को भी संदेह करने या प्रश्न करने का हक नहीं था, लेकिन जब युवती गर्भवती हुई तो कटघोरा का हर सजग इंसान और चप्पा-चप्पा बहन-भाई के पवित्र रिश्ते के घोर अपमान से ऐसे शर्मसार था, जैसे उनसे कोई अक्षम्य पाप और अपराध हो गया हो। शिक्षक और युवती ने तो बाद में शादी कर ली, लेकिन लोगों ने आसानी से किसी पर यकीन करने की आदत में बदलाव लाने की राह पकड ली। इतना बडा कांड होने के बावजूद शिक्षक की पत्नी के विरोध की कोई आवाज़ नहीं सुनी गयी। यह खबर जरूर सुनी-सुनायी गई कि दिलफेंक शिक्षक ने पत्नी का मुंह बंद करने के लिए आदिम मारपीट के बर्बर तरीके का भरपूर इस्तेमाल किया।
लगभग साढे चार दशक के लम्बे अंतराल के बाद इस दास्तान के याद आने की वजह बना मध्यप्रदेश के स्पेशल डीजी पुरुषोत्तम शर्मा का वायरल हुआ वह वीडियो, जिसमें वे निहायत क्रूरता के साथ अपनी पत्नी की पिटायी करते दिखायी दे रहे हैं। दरअसल, खाकी वर्दीधारी अधिकारी की पत्नी को अपने पतिदेव के बदचलन होने का पक्का यकीन था। इसी बात को लेकर पति-पत्नी में अक्सर विवाद होता रहता था। पत्नी ने उनकी जासूसी करनी प्रारंभ कर दी। इसी तारतम्य में वे जा पहुंची वहां... जहां उनका आना-जाना था। वे बेफिक्र होकर नयी नारी के साथ सोफे पर बैठे थे। पत्नी को देखते ही आग-बबूला हो गये। नारी भी सकपका गई। यह क्या हो गया! पत्नी जोर से चीखीं, "तो यह है वो बदचलन सौंदर्य सम्राज्ञी जिसके चक्कर में मुझे बरबाद करने की ठान ली है तुमने...?
"नहीं मैडम, आप गलत सोच रही हैं। मैं एक शादीशुदा खानदानी औरत हूं। आपके पति देव तो मेरे पितातुल्य हैं।"
"यह कैसा बाप-बेटी का रिश्ता है, जो नितांत एकांत में निभाया जा रहा है!" उससे इसका कोई जवाब नहीं मिलने पर पत्नी ने पति को घूरते हुए अपने सवाल का जवाब जानना चाहा तो वे यह कहते हुए वहां से भाग खडे हुए कि तुम्हें तो शक की पुरानी बीमारी है। पति को महिला के साथ रंगे हाथ पकडने के बाद पत्नी ने घर में कदम रखा ही था कि बौखलाये साहब ने मारना-पीटना प्रारंभ कर दिया। पत्नी ने भी जवाब में खूब हाथ पैर और मुंह चलाया। आयकर विभाग में ऊंचे पद पर कार्यरत पुत्र ने अपने माता-पिता के 'तांडवी युद्ध' का वीडियो बनाकर मध्यप्रदेश के गृहमंत्री, डीजीपी और मुख्य सचिव को भेजकर पिता को जहां कसूरवार ठहराया, वहीं बेटी पिता के समर्थन में आ खडी हुई। उसका कहना है कि मां मानसिक तौर पर इतनी अधिक बीमार हैं कि खुद को मारने की कोशिशें करती रहती हैं। इतना ही नहीं वो तो अपने घर को भी आग लगाने जा रही थीं। हम सबने किसी तरह से उन्हें नियंत्रित किया। अधिकारी की तथाकथित प्रेमिका ने भी थाने पहुंचकर अपनी शिकायत में कहा, "मैं एक चैनल की सम्मानित न्यूज एंकर हूँ। मैं जिस शख्स को अपना पिता मानती हूं उसे मेरा प्रेमी... यार प्रचारित कर मेरी छवि को कलंकित किया जा रहा हैं, तथा मेरी व्यक्तिगत जिन्दगी पर शर्मनाक कटाक्ष कर मुझे मानसिक रूप से बीमार करने की साजिश रची जा रही हैं।
वैसे महिला पत्रकारों और खाकी वर्दी वालों की करीबी मेल-मुलाकातों के बिस्तर तक पहुंचने की कई और भी सनसनीखेज दास्तानें हैं। उनमें से एक की तो लिखते-लिखते याद हो आई है...। राजधानी दिल्ली की शिवानी भटनागर एक तेजी से उभरती पत्रकार थीं। इंडियन एक्सप्रेस अखबार में काम करने वाली शिवानी का न्यूज के सिलसिले में तत्कालीन आईजी आर.के.शर्मा से मिलना-जुलना होता रहता था। इसी दौरान दोनों अनैतिक रिश्ते की डोर में बंध गये। कालांतर में शिवानी भटनागर, शर्मा पर शादी के बंधन में बंधने का दबाव डालने लगी। शादीशुदा पुलिस अधिकारी ने नये मौज-मजे के लिए पत्रकार को अपने जाल में फांसा था। जब उसने देखा कि अपना ज़िस्म न्योछावर कर चुकी युवती भारी पड रही है तो उसने किसी और की तलाश कर राह बदल ली।
२३ जनवरी १९९९ को शिवानी अपने फ्लैट में मृत पायी गई। महिला पत्रकार की नृशंस हत्या पर राजनीति भी हुई। कितने-कितने वर्ष बीत गये लेकिन, ऐसा लगता है कि तब और अब में कुछ सच नहीं बदले। भोपाल के पुलिस अधिकारी पुरुषोत्तम शर्मा ने भी अपनी पत्नी का मुंह बंद रखने के लिए किसी भी हद तक जाने में कोई कमी नहीं रखी। औरत का मुंह बंद रहे इसके प्रयास हमेशा किये जाते रहे हैं। जिस दिन शर्मा को अफसरी खोनी पडी उसी दिन उत्तरप्रदेश के हाथरस में एक लडकी की सामूहिक बलात्कार के बाद हुई मौत की दिल दहलाने वाली खबर ने देशभर में भूचाल-सा ला दिया। इस अमानवीय कांड ने दिल्ली के निर्भया कांड की याद ताजा करने के साथ खाकी वर्दीधारियों की मनमानी तथा असंवेदनशीलता का भयावह चेहरा भी दिखाया। खाकी वर्दी की पारिवारिक तथा व्यक्तिगत छवि जैसी भी हो, लेकिन फिर भी असहाय आम आदमी तो उसी से ही न्याय और सुरक्षा की उम्मीद रखता है।
पुलिसिया प्रताडना और सज़ा के वास्तविक हकदार तो अपराधी हैं। दलित परिवार की उन्नीस वर्षीय बेटी गुड़िया की चार दबंग दरिंदों ने सामूहिक बलात्कार के दौरान गर्दन और रीढ की हड्डी तोडने के साथ-साथ जीभ भी काट दी, ताकि वह बोल ही न पाये। १४ सितंबर २०२० को इस क्रूर दुष्कर्म को बेखौफ होकर जिन हैवानों ने अंजाम दिया वे उसी गांव (बूलगढी) के जाने पहचाने ऊंची जाति के शैतान हैं।  २९ सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में गुड़िया ने दम तोड दिया। बलात्कारियों ने इंसानियत की धज्जियां उडायी ही थीं, लेकिन तंत्र खासतौर पर पुलिस की अमानवीयता की पराकाष्ठा ने तो हर संवेदनशील भारतवासी के खून को खौला दिया। गुड़िया के शव को घर के देहरी तक ले जाने और मां-बाप को अपनी लाडली का चेहरा दिखाये बिना पुलिस और प्रशासन ने जबरन दाह संस्कार कर दिया। वो भी रात के ढाई बजे! घर-परिवार वाले हाथ जोड-जोडकर विनती करते रहे कि रात में अंतिम संस्कार की परंपरा नहीं है। सूर्योदय का तो इंतजार कर लें! लेकिन उनकी बिलकुल नहीं सुनी गई। उलटे उन्हें जबरन घर में कैद कर दिया गया। बंद कमरे में मां रोती-बिलखती रही। बच्ची को हल्दी लगाकर अपने घर के दरवाजे से अंतिम विदायी देने की अंतिम इच्छा का अनादर करने वाली पुलिस ने पूरे गांव की नाकेबंदी कर यह सोच और मान लिया कि किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा, लेकिन शर्मनाक सच बाहर आया... पूरे जोरशोर से आया। सलाम उस महिला पत्रकार तनुश्री पांडेय को जिसने डंडे-घूसे खाने के बाद भी खाकी वर्दी की गुंडई की हकीकत देशवासियों तक पहुंचायी। उसके मुंह को बंद करवाने की ताकतवर कोशिशें और साजिशें धरी की धरी रह गईं। असंख्य जुबानों पर ताले-जडवा चुके खाकी वर्दीधारी माथा पीटते रह गये। उसके बाद तो तनुश्री को भी लांछित करने और घेरने का सिलसिला चल पडा। वो काले कौए जो चौबीस घण्टे कांव-कांव करते रहते हैं वे भी गुड़िया के गांव पहुंच गये और दावे करने लगे कि हमने, हमारे न्यूज चैनल ने देशवासियों तक सबसे पहले इतनी हृदयविदारक खबर पहुंचायी है। वैमनस्य तथा भेदभाव को बढावा देने की अपनी राजनीति की दुकानें चलाने वाले विभिन्न नेता भी मैदान में आ गये। पक्ष और विपक्ष की शाब्दिक तलवारबाजी हमेशा की तरह सजग देशवासियों का सिरदर्द बढाती रही। मन-मस्तिष्क में कई सवाल भी कौंधते रहे। सरकार तो हर जगह हो नहीं सकती, लेकिन फिर भी कई 'दिमागवालों' को सरकार को कोसने के ऐसे मौकों का इंतजार रहता है। इसमें दो मत नहीं कि सरकार का खौफ होना चाहिए। उसका पूरी तरह से सतर्क तथा निष्पक्ष होना भी नितांत आवश्यक है, लेकिन हम और हमारा यह समाज आज कहां पर खडे हैं। यह जो बिगडैल युवा बलात्कारी, दुराचारी हैं, कहीं आकाश से तो नहीं टपके! इसी धरती पर ही जन्मे हैं, लेकिन उन्हें कभी भारतीय संस्कारों से परिचित ही नहीं कराया गया। इन्हें पढाया और समझाया नहीं गया कि दूसरों की मां-बहनों की भी कद्र करना हर किसी का कर्तव्य भी है और धर्म भी। जब तुम्हारी बहन-बेटी पर कोई झपटता है, तब तो तुम शेर बन जाते हो और दूसरे की बहू-बेटी पर आक्रमण होता देख बकरी बन जाना तुम्हारी कायरता और नपुंसकता की जीती-जागती निशानी है।

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