Thursday, October 22, 2020

वंश, मोक्ष और मुक्ति

खबरें खुश करती हैं। खबरें उदास करती हैं। खबरें आशा तथा उत्साह की राह पर ले जाती हैं। खबरें ही पीड़ा, वेदना तथा घोर निराशा के कगार पर ले जाकर छोड़ देती हैं। यह जानकर बड़ा अच्छा लगा कि बेटे और बेटियों को लेकर काफी लोगों की सोच बदल रही है। अब वो जमाना नहीं रहा, जब बेटियों पर पुत्रमोह भारी पड़ता था। बेटे के नहीं होने पर मायूसी छायी रहती थी। मुझे अपने मामाजी याद आ रहे हैं, जिन्होंने पांच बेटियों के पिता बन जाने के बाद भी खुद को नहीं रोका। यह तो अच्छा हुआ कि पांच बेटियों के बाद उनके यहां बेटे ने जन्म ले लिया। उनकी तो जिद थी कि जब तक बेटा नहीं होगा, उनका प्रयास जारी रहेगा। जिस पंजाब तथा हरियाणा में बेटे की चाहत की जिद में दस-दस बेटियों के जन्मने के बाद भी विराम नहीं लगता था, अब वहां पर भी लोग बदल रहे हैं। उनकी सोच में परिवर्तन दिखायी देने लगा है। एक या दो बेटियों के होने के बाद परिवार नियोजन अपनाया जा रहा है। लड़की के जन्म लेने पर खुशियां मनायी जा रही हैं। जिस तरह से लड़के के पैदा होने पर खुद को सौभाग्यशाली माना जाता था, अब लड़की के आगमन पर भी खुद को खुशनसीब समझने वालों की खबरें अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं। दत्तक लेने के मामले में भी बेटियां बाजी मार रही हैं। वो जमाना और समय लुप्त होने को है, जब अनाथ आश्रमों में लड़के को गोद लेने वाले दंपतियों की कतारें लगती थीं। कोने में दुबकी लड़की की तरफ तो देखा तक नहीं जाता था, लेकिन अब अधिकांश दंपति अपनी गोद में बिटिया की किलकारी की गूंज सुनना चाहते हैं। शहरों में ही नहीं, गांवों में भी बेटे की पैदाइश की जिद में कमी आने के पीछे की वजह है कि लड़कियों का 'कुलदीपकों' से कमतर न होना। लड़कियों के आत्मबल, साहस और जुनून को पिछले कुछ वर्षों में अच्छी तरह से देखा और परखा गया है। अवसर मिलते ही कई लड़कियोें ने उन बुलंदियों को छूकर दिखाया है, जिसके बारे में अधिकांश लोगों की यह राय रहती थी कि वहां तक तो लड़के ही पहुंच सकते हैं। लड़कियों के बस की बात कहां...!
मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में पली-बढ़ी सायली को २५ जनवरी २०२० के दिन देश के महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रीय सम्मान देकर सम्मानित किया। ढेर सारी प्रशंसा भी की। सायली की बचपन से ही कुछ अलग हटकर करने की तमन्ना थी। हालात और परिस्थितियां कतई अनूकुल नहीं थीं फिर भी जिद की पक्की सायली ने हार नहीं मानी। लोग तो उसका मज़ाक उड़ाने से बाज नहीं आते थे कि गरीब परिवार की लड़की होकर ऐसे सपने देख रही हो, जिन्हें पूरा करना अच्छे खासे सम्पन्न लड़कों के बस की बात नहीं। सायली आत्मबल के दमखम में कम नहीं थी। तभी तो उसने पुलिस कमिश्नर बनकर दिखाया और वो वर्दी पहनी, जो कभी उसका सपना थी। कई गौरवशाली पुरस्कारों से सम्मानित युवा आईपीएस सायली अपने अटूट साहस तथा नये-नये प्रयोगों के लिए जानी जाती हैं। जब वे बिहार के पटना साहिब की पुलिस अधीक्षक थीं, तब वहां पर एक बलात्कार हुआ था। मामला काफी संवेदनशील था। गुस्से में बेकाबू हो चुकी भीड़ के उन्मादी तेवर और मारकाट के इरादे भांपने के बाद पुरुष वर्दीधारियों के पसीने छूटने लगे थे। डर कर भागने का विचार भी उनके मन में आया था, लेकिन साहसी सायली ने बड़ी हिम्मत के साथ विपरीत परिस्थितियों में इस चुनौती का सामना कर नारी होने की सार्थकता का जो प्रदर्शन किया, उससे पुरुषों ने भी दांतो तले उंगली दबा ली। इस महिला खाकी वर्दीधारी ने हमला करने पर उतारू हो चुकी हजारों की भीड़ से किंचित भी खौफ न खाते हुए ललकारा और भीड़ की तरफ दौड़ने लगीं। उनका यह आक्रामक रूप देखकर लोग दुम दबाकर इधर-उधर दौड़ने लगे। बॉडीगार्ड भी अपनी निर्भीक अधिकारी के पीछे-पीछे दौड़ रहा था। भीड़ का पीछा करते-करते वे एक छोटी-संकरी-सी गली तक जा पहुचीं। वहां पर डंडे, लाठी तथा विभिन्न हथियारों से लैस असमाजिक तत्वों ने उन्हें घेरने की कोशिश की। उनकी तो उन्हें वहीं खत्म कर देने की प्रबल मंशा थी। तभी संयोग से उस गली से एक सायकल सवार गुजर रहा था, जिससे उन्होंने सायकल मांगी और फिर उस पर बैठकर गुंडई दिखाते बदमाशों के पीछे भागीं। महिला अधिकारी को सायकल से पीछा करते देख गुंडे ठंडे पड़ गये। उनकी हिम्मत जवाब दे गई और एक-एक कर भाग खड़े हुए। उसके बाद पटना साहिब के अशांत क्षेत्र में पूरी तरह से शांति तो स्थापित हुई ही, तमाम कुख्यात असामाजिक तत्व भी उनसे खौफ खाने लगे। आज भी लोग जब उस घटना को याद करते हैं, तो उनकी आंखों के सामने अदम्य साहसी सायली का चेहरा घूमने लगता है। उस दिन यदि उन्होंने पीठ दिखा दी होती तो तय था कि कई पुलिस वाले गुस्सायी भीड़ की हिंसा का शिकार हो जाते। तब रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल थे। उन्होंने इस कर्तव्यपरायण आदर्श नारी की काफी सराहना की थी और एक समारोह में प्रशस्तिपत्र देकर सम्मानित किया था। सायली को पुलिस सेवा में मात्र दस वर्ष ही हुए हैं, लेकिन पुरस्कार तथा सम्मान पाने के मामले में उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी पीछे छोड़ दिया है। बिहार के अररिया जिले में धाकड़ छवि माने जाने वाले पुलिस अधिकारी भी दुर्दांत अपराधियों के दिमाग को दुरुस्त नहीं कर पाते, लेकिन सायली ने यहां पर भी अपनी कार्यक्षमता की गज़ब की छाप छोड़ी। बोगस मतदान और हिंसक घटनाओं के लिए कुख्यात अररिया में शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव सम्पन्न करवाने का श्रेय भी उन्हें जाता है। यह उनके काम करने के तौर-तरीके तथा निर्भीक तथा अनुशासित छवि का ही प्रतिफल है, कि २०१९ के लोकसभा चुनाव में एक भी बोगस मतदान का केस दर्ज नहीं हुआ और ना ही कहीं कोई हिंसक घटना हुई।
पिछले दिनों ग्वालियर में एक बारह-तेरह साल की लड़की मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की कार के सामने बेखौफ आकर खडी हो गई। मुख्यमंत्री की सुरक्षा में लगे अफसर कुछ कह और समझ पाते उससे पहले मुख्यमंत्री ने उसे अपने पास बुलाया और वजह पूछी। लड़की ने बिना घबराये उन्हें अपनी समस्या बतायी कि मेरी मां को कैंसर हो गया है। यहां के डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिये हैं। मुझे आपकी मदद चाहिए। मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था। जब मुझे कहीं से पता चला कि आप ग्वालियर आये हैं तो मैंने आप से मिलने का यह रास्ता चुना। आप कहने को तो प्रदेश की हर लड़की के मामा हैं, लेकिन आपके निकट पहुंचना आसान नहीं। ऐसे में आप आम लोगों की समस्याओं से अवगत ही नहीं हो पाते। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को बहादुर लड़की की पूरी मदद करने का निर्देश देने के साथ उसका मोबाइल नंबर भी ले लिया। इस सच से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि लड़कियों के मन में अपने माता-पिता और परिजनों के प्रति जो आदर, स्नेह और अपनत्व होता है, उसका आधा हिस्सा भी लड़कों में नहीं होता। बेटियां अपने अभिभावकों के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाने के ऐसे-ऐसे उदाहरण पेश कर रही हैं, जिनकी पहले कल्पना तक नहीं की जाती थी। बेटिया अब श्मशान घाट जाने से नहीं घबरातीं। पिता की चिता को मुखाग्नि देने की पहल करने वाली बेटियो ने कई परंपराओं को तोड़ने का साहस दिखाया है। फिर भी जब छोटी-छोटी बच्चियों पर बलात्कार और नृशंस दुराचार की खबरें सुनने-पढने में आती हैं तो बड़ी तकलीफ होती है। यह जानकर भी मन बहुत आहत होता है कि अभी भी कुछ दुष्ट लोग हैं, जो लड़की के जन्म लेने पर मातम मनाते हैं। बेटियां उनके लिए अशुभ तो बेटे सौभाग्यशाली हैं, जो वंश को आगे बढाते हैं। यही लोग ही बेटी के जन्म लेने पर उसे कचरे के ढेर पर या अनाथ आश्रम में छोड़कर निर्ममता तथा दरिंदगी का इतिहास लिखते हैं।
मैंने अपने इस जीवन-काल में बेटियों के एक से बढ़कर एक दुश्मन देखे हैं, लेकिन बदायूं में एक शैतान हैवान ने जो क्रूर अपराध कर्म किया है, वह तो मानवता को शर्माने तथा दिल को रूलाने वाला है। मैंने जब यह खबर पड़ी तो मेरे रोंगटे ही खड़े हो गये। दिल तथा दिमाग को क्षत-विक्षत कर देने वाली इस खबर को मेरे लिए तो ताउम्र भूला पाना मुश्किल होगा- "बेटे की चाहत में कई हैवान देखे, लेकिन ऐसा पहली बार देखा..., जिसने यह पता लगाने के लिए पत्नी का पेट ही फाड़ डाला कि उसके गर्भ में बेटा है या बेटी। बदायूं शहर के नेकपुर मोहल्ले में गली नंबर तीन में रहने वाले पन्नालाल पांच बेटियों का पिता है। जब उसकी पत्नी छठवीं बार गर्भवती हुई तो उसे फिर से बेटी के होने का भय सताने लगा। पन्नालाल ठीक-ठाक कमाता था। उसकी पत्नी ने भी परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार और उठाव लाने के लिए घर पर ही छोटी-सी किराना दुकान खोल ली थी। दुकान वही संभालती थी। उसे बेटियों के पैदा होने का कोई गम नहीं था। उसकी तो यही कोशिश और दिली तमन्ना थी कि वे उन्हें पढ़ाए-लिखाए और अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाए। लेकिन पन्नालाल वंश के आगे न बढने की चिन्ता में पगलाया था। वह प्रतिदिन रात को शराब पीता और फिर अनीता को बेटा पैदा न करने की सज़ा देने लगता। यह मारपीट उसने तब से प्रारंभ कर दी थी, जब से उसके यहां दूसरी बेटी ने जन्म लिया था। उसे बेटियों से सख्त नफरत थी। उन्हें वह अपने मोक्ष के मार्ग की बाधा मानता था। जब पत्नी आठ महीने की गर्भवती हुई तो उसके दिमाग में भूचाल आने लगा। रातों की नींद उ‹ड गई। एक रात उसने जमकर शराब पी और हमेशा की तरह पत्नी से मारपीट करने लगा। पत्नी ने दिलासा देने के अंदाज में समझाया कि ईश्वर पर भरोसा रखो। सब ठीक होगा, लेकिन उस बेसब्र शैतान ने चीखते हुए कहा कि, मैं प्रसूति के समय का इंतजार नहीं कर सकता। मैं तो आज ही सबकुछ जानकर रहूंगा। नशे में धुत हैवान ने हंसिया से पत्नी का पेट फाड़ डाला। लहुलूहान पत्नी की पेट की आंतें बाहर निकल गईं। परिवार व पास-पड़ोस में कोहराम मच गया। अस्पताल में अनीता का ऑपरेशन कर बच्चे को बाहर निकाला गया। वह बेटी नहीं, बेटा था...। जिसकी वंश और मोक्ष प्रेमी दरिंदे पिता ने ही हत्या कर दी...।"

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