Thursday, December 10, 2020

कैसे टूटे परिपाटी?

 कोरोना के चरम दहशती काल ने लोगों की आंखें खोल दीं। भय के मारे अच्छे-अच्छों के पसीने छूट गये। कई चल बसे। कइयों की जान पर बन आयी। इस अभूतपूर्व अकल्पनीय समय में भी कुछ भ्रष्टाचारी तो जैसे बिलकुल निर्भय थे। सबकुछ थम गया, लेकिन वे नहीं थमे। बेखौफ होकर बेईमानी करते रहे। जी-भरकर रिश्वत लेते रहे और वो सब करते रहे जो उनकी फितरत रही है। ओडिशा में स्थित भुवनेश्वर के वन अधिकारी ने तो कमाल ही कर डाला। लॉकडाउन के दौरान जब सभी अपने-अपने घरों में बंद थे तब इस मौजपरस्त अधिकारी ने बीसियों बार चार्टर्ड प्लेन से पटना, मुंबई, दिल्ली और पुणे की यात्राएं कीं। वो भी अकेले नहीं, बल्कि अपने पूरे परिवार तथा यार दोस्तों के साथ। इन यात्राओं के दौरान उनके ठहरने के ठिकाने रहे बडे-बडे आलीशान फाईव तथा सेवन स्टार होटल, जहां करोडों रुपये लुटाकर भरपूर मौज-मज़े किये गए। इस वन अधिकारी पर जांच एजेंसियों का शिकंजा कसे जाने के बाद पता चला कि इस आधुनिक राजा-महाराजा ने अपने बेटे और खुद के लिए चार प्राइवेट बॉडी गार्ड रखे हुए हैं। हर बॉडीगार्ड को पचास हजार रुपये महीने की तनख्वाह के साथ-साथ और भी बहुत-सी सुविधाएं उपलब्ध करवायी जा रही हैं। उसकी भुवनेश्वर, मुंबई, पुणे, बिहार और राजस्थान में स्थित भव्य कोठियों में एक साथ छापेमारी करने पर जो अरबों की सम्पत्ति और भौतिक सुख-सुविधाओं का सामान मिला उसे देखकर जांच टीम भी स्तब्ध रह गई। उसने अय्याशी के लिए पुणे में एक विशाल फार्म हाऊस किराये पर ले रखा है, जिसका हर महीने का किराया पांच लाख रुपये है। उसके रिश्तेदारों के यहां से तो करोडों रुपये मिले ही, ड्राइवर के यहां से भी ढेर सारी धन-दौलत मिली।
जिस देश के आम आदमी की जिन्दगी रोटी, कपडा और मकान के जुगाड में खत्म हो रही है वहां पर भ्रष्ट नेताओं की राह पर दौडते ऐसे अनेक नौकरशाह हैं, जिन्हें अपने कर्तव्य से कोई लेना-देना नहीं हैं, उन्हें तो बस बंगले, कोठियां, फार्महाऊस, कारें, सोना- चांदी और शहंशाहों वाली सभी सुख-सुविधाएं चाहिए। इसके लिए वे दिन-रात बेइमानी, घूसखोरी, लूटमारी कर रहे हैं। फिर भी उन्हें अपना भ्रष्टाचार राजनेताओं के भ्रष्टाचार से छोटा लगता है। वैसे दोनों यही मानते हैं कि समुद्र में से एक लोटा जल निकाल लेने से विशाल समुद्र को कोई फर्क नहीं पडता। उसके पानी में किंचित भी कमी नहीं होती, जबकि सच यह है कि इन लुटेरों के कारण ही देश की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है। भारत के संविधान निर्माताओं ने कभी कल्पना ही नहीं की होगी कि राजनेता, सत्ताधीश और नौकरशाह रिश्वतखोरी का ऐसा तांडव मचायेंगे कि भ्रष्टाचार के मामले में भारत दुनिया के सभी देशों को पछाडते हुए पहले नंबर पर पहुंच जाएगा। जी हां, ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की २०२० के दिसंबर माह में आयी रिपोर्ट में यह शर्मनाक सच पूरी दुनिया के सामने लाया गया है, जिससे हर भारतवासी अच्छी तरह से वाकिफ हैं, फिर भी खामोश हैं, बेबस हैं।
वर्षों पहले भू-आंदोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे ने कहा था कि, 'भ्रष्टाचार तो शिष्टाचार हो गया है। जब सभी लोग भ्रष्टाचार करने लगें तो वह भ्रष्टाचार न होकर शिष्टाचार हो जाता है। भ्रष्टाचार तभी तक है, जब कुछ लोग उसे करें, लेकिन सब लोग उसे अपना लें तो वह भ्रष्टाचार न होकर शिष्टाचार हो जाता है। अधिकांश ईमानदारी का ढोल पीटने वालों की समस्या यह भी है कि उन्हें रिश्वतखोरी करने का मौका नहीं मिलता। इसलिए भ्रष्टों के खिलाफ चीखते-चिल्लाते रहते हैं। इस दौरान जैसे ही उन्हें धन की चमक दिखायी जाती है तो वे अपना ईमान बेचकर उनके साथ खडे हो जाते हैं, जो कल तक उनकी निगाह में पूंजीपति, शोषक, लुटेरे, बेईमान, देश के शत्रु तथा और भी बहुत कुछ थे। राजनीति और नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर पहले कभी शोर भी मचता था, लेकिन अब सब चलता है वाली बात हो गई है। जब कोई ऑटो चलाने और पावभाजी का ठेला लगाने वाला चतुर इंसान राजनीति में प्रवेश कर विधायक बनता है और चंद वर्षों में अरबपति बन जाता है तो किसी को कोई हैरानी नहीं होती। सब जानते हैं कि राजनीति से बढ़िया देश में आज कोई और धंधा नहीं है। यहां शान-शौकत और दबंगई के साथ लूटमार करने की पूरी-पूरी आजादी है। यदि कोई जांच एजेंसी भी उसके काले कारनामों की जांच करती है तो दबंग पार्टी और सत्ता भी उसके बचाव में आकर खडी हो जाती है।
इस कलमकार को वो बीते दिन आज भी याद हैं, जब विभिन्न सरकारी विभागों में बहुत डर-डर कर रिश्वतखोरी होती थी। छोटे स्तर के कर्मचारी ही घूस लेते थे। उनकी पूरी कोशिश होती थी कि उनकी रिश्वतखोरी की जानकारी बडे अधिकारी तक न पहुंचे। यदा-कदा जब उच्च अधिकारी को भ्रष्टाचार की खबर लगती थी तो वे ऐसी सख्त कार्रवाई करते थे, जिससे दूसरे बेईमान भी सतर्क हो जाते थे, लेकिन अब तो अधिकांश ब‹डे से बडे अधिकारी भी अथाह भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। खुद भी लूटमारी करते हैं और अपने सहयोगियों को भी खुली छूट देते हुए उनसे भी हिस्सेदारी पाते हैं। जब कोई खुद आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा हो तो वह दूसरों पर कार्रवाई तो क्या उंगली उठाने से भी कतरायेगा। यही सच भारत के राजनेताओं और सत्ताधीशों का है, जिनकी नाक के नीचे नौकरशाही बेखौफ होकर लूट-खसोट मचाये है। कभी-कभार कोई भ्रष्टाचारी नौकरशाह पक‹ड में आता है, तो वह खबर बन जाता है, लेकिन उसे कहीं न कहीं पक्का यकीन होता है कि उसे उसके वो ‘आकाङ्क बचा ही लेंगे, जिनके साथ उसकी मधुर साझेदारी है।

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