Thursday, December 24, 2020

अस मानस की जात

कोरोना का आतंक जब चरम पर था। लाखों लोग आर्थिक रूप से टूट गये थे। तबाह हो गये थे। लॉकडाउन ने उन्हें घरों में कैद कर दिया था। तब भी कई घटिया अंधी सौदागर प्रवृति के लोग अपनी कमीनगी से बाज नहीं आ रहे थे। अस्पतालों में सफेद कपडों में कोरोना से दिन-रात जंग लडते डॉक्टरों तथा नर्सों को अपना निशाना बना रहे थे। वे भूल गये थे कि डॉक्टर और नर्से ईश्वर का ही रूप हैं, जो अपने जीवन को खतरे में डालकर कोरोना के मरीजो को बचा रहे हैं। इस घोर संकट के समय देश के कई महानगरों, नगरों में मकान मालिकों ने जबरन उनसे घर खाली करवा लिए। उनका सामान तक सडकों पर फेंकवा दिया। उनके आसपास के लोग उन्हें संदेह की नजरों से देखते हुए उनसे यह सोचकर दूरी बनाते देखे गये कि उनकी वजह से उन्हें कोरोना वायरस का संक्रमण हो जायेगा। हां, यह भी सच है कि कुछ अस्पताल और वहां के लालची डॉक्टर कोरोना वायरस से बचाने की बजाय मरीजों को अंधाधुंध लूट रहे थे। ऐसे अपना बैंक बैलेंस बढा रहे थे, जैसे उनके लिए यह कोई सुअवसर हो। एक तरफ जहां महामारी को लेकर लोगों के मन में खौफ था। वहीं छोटी-छोटी चीजों के अभाव से लोग जूझ रहे थे, तो वहीं धन की भूख ने कितनों को अंधा बना दिया। पता नहीं वो कौन-सी ताकत थी, जो उनसे ठगी और लूटमारी करवाती रही। साइबर क्रिमिनल्स भी पूरी तरह से सक्रिय हो गये। वे मेल भेजकर लोगों को धमकाते रहे कि हमें पैसे भेजो नहीं तो कोरोना वायरस का शिकार बना देंगे। कोरोना के चिन्ताजनक काल में कई ऐसे दानवीर भी सामने आये, जिन्होंने पीड़ितों की दिल खोलकर सहायता की। गरीबों ने भी अमीरी दिखायी। मिल-बांटकर खाया। इतना ही नहीं खुद भूखे सोये, लेकिन दूसरों को भूखे नहीं सोने दिया। उन्हें अपने घर में पनाह दी। जिन लोगों के अंदर की मानवता मर चुकी है उन्हें अपने आसपास भूख से कराहते बच्चों के रोने-बिलखने की आवाज़ें नहीं सुनायी दीं। अपने सामने मरते लोगों और बिछी लाशों को भी उन्होंने अनदेखा कर दिया। वे तो बस अपनी धन-धुन में मगन रहे। उनके लिए नये-नये भेष धर यह कमायी का अभूतपूर्व अवसर था।
उत्तर प्रदेश के हाथरस में गधे के गोबर से मसाले बनाने वाले धनपशु पकड में आए। उन्होंने बाकायदा नकली मसाले बनाने का कारखाना खडा कर लिया था। उन्हें पता था कि पूरा शासन प्रशासन बीमारी से जूझने में व्यस्त है। उनके गंदे जानलेवा कारोबार पर नज़र रखने और धावा बोलने वाला दूर-दूर तक कोई नहीं है। गधों के गोबर, एसिड, भूसा और हानिकारक रंगों से तैयार मसालों को चमकदार पैकेटस में भरने के बाद उन पर नामी-गिरामी ब्रांड का नाम लिखकर लाखों रुपये के वारे-न्यारे कर लिये गए। इन सौदागरों की दलील और सफाई यह है कि जब बाबा रामदेव गाय का मूत्र पिलाकर करोडों रुपये की कमायी कर सकते हैं तो हम अपने देशवासियों को गोबर क्यों नहीं खिला सकते। योग गुरू की तरह हम भी व्यापार ही तो कर रहे हैं।
तू डाल डाल मैं पात पात की कहावत को चरितार्थ करने की तो जैसे प्रतिस्पर्धा ही चल रही थी। अपनी ही इंसानी जात के सभी शत्रु तो कभी पकड में नहीं आते। मध्यप्रदेश के शहर इंदौर की महू तहसील के निकट स्थित एक गांव में ऐसे मिलावटखोर पकड में आये जो कीडों को मारने वाले कीटनाशक से काली मिर्च को चमकाते थे और उसका वजन बढाने के लिए घातक रसायन, नारियल का बूरा व स्टार्च मिलाते और बाजार में खपाते थे। जिस व्हाइट ऑइल से काली मिर्च को चमकाया जा रहा था, उससे सांस संबंधी समस्याएं पैदा होती हैं। अमूमन इसका उपयोग पत्तियों में लगने वाले कीट पतंगों को मारने के लिए किया जाता है। खाद्य पदार्थों में इसकी मिलावट से इन्सानों को कई तरह की जानलेवा बीमारियां हो जाती हैं। उन्हें डॉक्टरों के चक्कर काटने और बिस्तर पकडने को मजबूर होना पडता है। यह हमारा ही समाज हैं, जहां पर एक से एक शैतान भरे पडे हैं। उनके लिए इंसानी जान की कोई कीमत नहीं। उन्हें बस धन चाहिए। यही उनका ईमान है, धर्म है, मां, बाप, भाई, बहन, बच्चे, रिश्तेदार सबकुछ है। तभी तो जहां एक ओर कोरोना वायरस ने कोहराम मचा रखा तब वो ठगी के नये-नये तरीके ईजाद कर रहे थे। साइबर क्रिमिनल्स तो धमका-चमका रहे थे, लेकिन यह तो मौत के सामान पहुंचाते हुए मौत के मुंह में पहुंचा रहे थे। नीच सौदागरों को पता था कि गंभीर कोरोना मरीजों की जान बचाने के लिए प्लाज्मा चढाया जाता है। यह प्लाज्मा कोरोना को मात देकर स्वस्थ हो चुके मरीजों से लिया जाता है। क्योंकि उनके प्लाज्मा में कोरोना से लडने के लिए एंटीबॉडी तैयार हो चुकी होती है। उनका प्लाज्मा कोरोना के गंभीर मरीजों को चढाने से उनके शरीर में भी वही एंटीबॉडी डेवलप होती है और वे तेजी से कोरोना को मात देकर स्वस्थ हो जाते हैं। धन-पशुओं को यह भी जानकारी थी कि देश में कोरोना मरीजों की संख्या ज्यादा है और प्लाज्मा दान करने वाले कम हैं। बस फिर क्या था वे लग गये अपने काली कमायी के काम में और धडाधड नकली बनावटी प्लाज्मा बनाने और बेचने लगे। दतिया में घटिया मिलावटी प्लाज्मा चढाने से जब एक मरीज की मौत हुई तो तब प्लाज्मा के सौदागरों के खतरनाक गिरोह का पता चला। इस गिरोह के हत्यारे पंद्रह-बीस हजार में नकली प्लाज्मा बेच रहे थे। नकली प्लाज्मा चढाये जाने से मरीज की मौत होने पर परिजनों ने डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए हंगामा ख‹डा कर दिया। इस प्लाज्मा को बीस हजार रुपयों में खरीदा गया था। पुलिसिया पूछताछ में यह सच सामने आया कि नकली प्लाज्मा बेचने वाले तभी सक्रिय हो गये थे, जब उन्हें इसके महत्व की जानकारी मिली थी। उनके इस खतरनाक खेल से और भी कई लोगों की जानें गई होंगी, यह तो तय है। नकली प्लाज्मा खपाये जाने के गोरखधंधे में जिन डॉक्टरों ने साथ दिया, यकीनन वे तो ईश्वर के रूप नहीं, हद दर्जे के लुटेरे और शैतान हैं...।

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