Thursday, February 4, 2021

कैंसर

    पति, पत्नी दोनों जेल में हैं। अब उनकी पूरी उम्र यहीं कटेगी। बचना असंभव। दोनों बुद्धिजीवी। पत्नी निजी स्कूल में प्रधानाचार्य तो पति कॉलेज में उपप्रधानाचार्य। मान-सम्मान के साथ जिन्दगी गुजर रही थी। कोविड-१९ का काला साया पडने के बाद दोनों में हैरतअंगेज बदलाव आता चला गया। उनकी बदली दिनचर्या में अंधश्रद्धा ने अपनी जडें जमानी प्रारंभ कर दीं। उन्हें अपने करीबी रिश्तेदार तक अपनी जान के शत्रु लगने लगे। घर के नौकरों पर से भी भरोसा उठ गया। एकाएक उनके घर में तांत्रिकों और बाबाओं का आना-जाना होने लगा। बाकी और किसी के लिए उनके घर के दरवाजे खुलने पूरी तरह से बंद हो गये। उन्हें निकट से जानने वालों ने यह सोचकर तसल्ली कर ली कि कोरोना के वायरस से बचने के लिए उनके द्वारा एहतियात बरती जा रही है। अपनी जान तो हर किसी को प्यारी है। वे भी कोई भूल-चूक नहीं होने देना चाहते, लेकिन उनका संदिग्ध तांत्रिकों से मिलना-जुलना सभी के लिए चिंताजनक तो था ही...।
    उनके रहस्यमय क्रियाकलापों की धीमी-धीमी चर्चाएं होने लगी थीं, लेकिन वे दोनों किसी भी तरह की प्रतिक्रिया देने के लिए उपलब्ध नहीं थे। उन्होंने तो खुद को एकांत में स्थित अपने विशाल घर में कैद कर लिया था। जहां कलयुग के सतयुग में बदलने का बडी बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। भ्रम और शंका के भंवर में फंसे दंपति ने अपना दिल और दिमाग पता नहीं कहां छोड दिया था। तांत्रिक के द्वारा उन्हें कहा गया कि उन्हें अपनी दोनों बेटियों की कुर्बानी देनी होगी। यह कुर्बानी कुछ ही घण्टों के लिए होगी। सतयुग का उजाला होते ही वे नई ऊर्जा और दृष्टि के साथ फिर से जी उठेंगी... तो उन्होंने इसे ऊपर वाले का दिव्य संदेश मानते हुए वो कर डाला, जिसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती। वे दोनों बेटियों को घर के पूजा के कमरे में ले गये। उन्हें नहलाया-धुलाया। नये वस्त्र पहनाये गए। पूजा-पाठ करने के बाद छोटी बेटी का बडे इत्मीनान से मुंडन किया। बडी को फूल मालाएं पहनायीं। स्कूल कॉलेज में पढी-लिखी बेटियां भी उनके हर इशारे का पालन करती रहीं। उन्हें भी नवयुग के अवतरित होने का पूरा भरोसा था। अपने उच्च शिक्षित माता-पिता की धारणा के प्रति शंकित होने का कोई कारण ही नहीं था। वे उन्हें ईश्वर मानती थीं, जो अपनी संतान का अहित करने की सोच ही नहीं सकता। आज्ञाकारी बेटियां पुनर्जीवन के लिए सपनों में खोयी थीं। मां ने अपनी ही छोटी बेटी के जिस्म में त्रिशूल घोंपा और मौत की नींद सुला दिया। बडी की भी डंबल से यह सोचकर नृशंस हत्या कर दी कि कुछ ही घण्टों की ही तो बात है। रात बारह बजे के बाद, सतयुग शुरू हो रहा है। तब फौरन दोनों बेटियां बुरी आत्माओं के प्रभाव से मुक्त और पवित्र होकर जिन्दा हो ही जाएंगी।
    बेटियों का यह खूनी हश्र करने के बाद मां काफी देर तक रक्तरंजित शव के चारों ओर कुछ गुनगुनाते हुए नाचती रही। इसी दौरान पिता ने अपने एक कॉलेज के सहकर्मी को फोन कर बताया कि हमने दिव्यशक्ति के आदेश पर मानवता के हित में अपनी दोनों बेटियों की कुर्बानी दे दी है। आज (रविवार) रात बारह बजे के बाद कलयुग का खात्मा और नये स्वर्णिम युग का आगमन हो रहा है, जहां खुशियां ही खुशियां होंगी। कष्टों, गमों और तकलीफों का नामों-निशान मिट जायेगा। हमारी दोनों बेटियां भी फिर जिन्दा हो जाएंगी। हम मिलकर रंगारंग जश्न मनायेंगे। जीवनभर खूब नाचें और गायेंगे। सहकर्मी मित्र भागा-भागा उनके घर पहुंचा। वहां का मंजर देखकर वह कांपने लगा। घर में खून ही खून बिखरा था। दोनों बेटियों के शव खून से लथपथ पडे थे। उनके माता-पिता बडे इत्मीनान से ऐसे बैठे थे जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। मित्र ने डरते-डरते उनसे कहा, 'यह क्या कर डाला आपने! जवान बेटियों की हत्या करते समय आपके ज़रा भी हाथ नहीं कांपे, आपको किंचित भी ख्याल नहीं आया कि आप कौन-सा पाप और घोर अपराध कर रहे हैं?'
    'अरे यह क्या कह रहे हैं आप? मैं तो शिवभक्त हूं। मेरे शरीर के कण-कण में ही कोरोना आया है। यह बिना वैक्सीन के इस्तेमाल के शीघ्र खत्म हो जाएगा। आप लिख लो कलयुग खत्म हो रहा है और सतयुग आ रहा है। हमारी बडी बेटी शिव तो छोटी ईश्वर की दूत है। दोनों मानव कल्याण के लिए शीघ्र फिर से जिन्दा होने वाली हैं। अगर यकीन न हो तो कुछ घण्टे यहां बैठकर इंतजार कर लो...।'
    पुलिस ने जब उनके यहां दस्तक दी तो उन्होंने उसे धमकाते हुए भीतर जाने से रोका। पुलिस अधिकारी यह देखकर दंग रह गये कि हत्यारी मां बेटियों के शव के चारों ओर झूम-झूम कर नाच रही थी। पिता ने चिल्लाते हुए अधिकारियों से कहा कि मैं कोई अनपढ गंवार नहीं हूं। खासा विद्वान हूं। पीएचडी हूं। आप से ज्यादा मैंने दुनिया देखी है। हमें जो दिव्य संदेश मिले थे, उन्हीं का हमने पूरा पालन किया है। हमारी दोनों जागरूक बेटियों ने अपने पुनर्जन्म के लिए खुद को मारने को कहा था। अगर हम इन्हें नहीं मारते तो वे खुद खुदकुशी कर लेतीं। परमपिता परमेश्वर तथा उनकी इच्छा को पूरा कर हमने कोई गुनाह नहीं किया है। दरअसल गुनाह तो आप लोगों ने किया है, जो यहां दौडे-दौडे चले आए हैं। धमके हैं, लेकिन अब जब आ ही गए हैं तो कुछ देर सब्र तो करें। आप भी अचंभित हुए बिना नहीं रहेंगे जब हमारी दोनों लाडली बेटियां आपके सामने ही उठ खडी होंगी।
    महान संत महात्मा गांधी की कर्मभूमि वर्धा में स्थित आचार्य विनोबा भावे ग्रामीण अस्पताल में पिछले कई हफ्तों से दर्द के मारे तडपती बत्तीस वर्षीय महिला को भर्ती किया गया। गहन जांच करने पर पता चला कि उसके पेट में इंजेक्शन की सुइयां हैं, जिनकी असहनीय पीडा की वजह से महिला ने खाना-पीना तक छोड दिया था। बस बिस्तर पर पडी कराहती रहती थी। उसके पेट में इन प्राणघातक सुइयों को पहुंचाया था उसके ससुराल वालों ने जो उसे अपशकुनी और हत्यारी डायन मानते थे। दरअसल हुआ यह था कि उसने दस माह पूर्व एक बच्चे को जन्म दिया था और उसी दिन उसके पति की एक सडक दुर्घटना में मौत हो गई थी। उसके बाद तो उस पर जुल्मों की बरसात शुरू हो गई। गंदे-गंदे ताने देकर मारा-पीटा जाने लगा। घर का एक सदस्य जो अस्पताल में काम करता था, उसने उसके पेट में जबरन इंजेक्शन की सुइयां घुसा दीं, जिससे वह जीवन भर उस अपराध की सजा भुगतती रहे, जो उसने किया ही नहीं था।
    झारखंड की राजधानी रांची में स्थित एक गांव में रहने वाली साठ साल की महिला को उसके ही पडोसियों ने डायन करार देकर इस कदर प्रताड़ित किया कि अंतत: उसने आत्महत्या कर ली। यह हमारे उस समाज की शर्मनाक आतंकी तस्वीर है, जो इक्कीसवीं सदी में भी अंधश्रद्धा की जंजीरों में जकडा है। वह आज भी तांत्रिकों, नीम हकीमों पर श्रद्धा और भरोसा रखता है। पचासों मील दूर रह रही 'टोनही' की तो उसे भरपूर जानकारी रहती है, लेकिन अपने घर के आसपास अकेलेपन, गरीबी, बदहाली से जूझ रहे पडोसी की खबर नहीं रहती। उसकी सहायता और चिन्ता करना तो बहुत दूर की बात है। नारंगी शहर नागपुर से कुछ ही दूरी पर स्थित है कामठी नगरी, जहां पर दो बहनें अपने घर में मृत पायी गईं। किसी से ज्यादा बातचीत नहीं करने वाली इन बहनों की भूख और कुपोषण की वजह से कब मौत हो गई, पडोसियों को भी पता नहीं चला। १५-२० दिन पहले एक बहन घर से बाहर दिखी थी। उसके बाद वह भी नहीं दिखी। हैरानी की बात तो यह भी है कि पडोस में ही उनका चचेरा भाई भी रहता है। साठ वर्षीय पदमा और पचास वर्षीय कल्पना की जब एक साथ अंतिम यात्रा निकल रही थी, तब आसपास के लोग खुद को इस कदर गमगीन दर्शा रहे थे, जैसे इन दर्दनाक मौतों ने उन्हें झकझोर कर रख दिया हो। कुछ को तो इस बात का बेहद मलाल था कि उन्होंने अपनी गरीबी, बदहाली, भूख और परेशानी छिपाये क्यों रखी! बता देतीं तो कोई न कोई तो दाना-पानी पहुंचा ही देता...। इस तरह से भूख से मरने की दर्दनाक नौबत तो न आती।

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