Thursday, March 4, 2021

स्वेच्छा-मरण... शर्मनाक पलायन

    माना तो यही जाता है कि जिन्दगी तो सबको प्यारी है। कोई भी मरना नहीं चाहता। अमर होने के रास्ते भी खोजे जाते हैं। कोई भी कष्ट और कोई भी खतरा सामने आने पर इंसान उससे मुक्ति पाने और टकराने के उपाय खोज ही लेता है। आसानी से हार मान लेना उसकी फितरत नहीं। कोविड-१९ के दौरान भी लगभग सभी ने अपने हौसले को बनाये रखा। कोरोना के वायरस से बचने और उसे हराने के तरह-तरह के उपाय तलाशे। दवाओं पर दवाएं लीं। खुद को घरों में कैद रखा। जो लोग हद से ज्यादा लापरवाह रहे उन्हें मौत ने नहीं बख्शा। यही कोरोना था, जिसने लोगों को हतप्रभ कर उनकी आंखें खोलीं और जीवन का मोल बताया। इस अकल्पनीय काल में यह सच बार-बार सामने आया कि गरीबों का तो किसी न किसी बहाने मरना ही मरना है। देश और दुनिया के करोडपतियों, अरबपतियों ने अपनी तथा अपने परिवार की सुरक्षा की खातिर अपनी सारी दौलत लुटाने की तैयारी ही नहीं की, लुटायी भी। एक अमेरिकन कंपनी ने महामारी से बचने और बचाने के लिए देखते ही देखते अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में कई फीट मोटी दीवार के ५७२ बंकर बना डाले, जिनमें भूगर्भ में बडे आराम से रहने के लिए स्पा, स्विमिंग पूल, बीयर बार, इनडोर शूटिंग रेंज के साथ-साथ ऐसी-ऐसी सुख-सुविधाएं हैं, जो सिर्फ फाईव स्टार होटलों में ही मिल पाती हैं। एक बंकर में उसके आकार के हिसाब से लगभग १० से २४ लोग रह सकते हैं। इन बंकरों में आश्रय लेने वाले धनवानों का यहां ताउम्र रहने का इरादा है। यह बंकर सिर्फ किराये पर ही उपलब्ध हैं। बेचे नहीं जा रहे हैं। एक बंकर के लिए पहले चौंतीस हजार डॉलर यानी भारतीय मुद्रा में चौबीस लाख रुपये अग्रिम भुगतान करना होता है और उसके पश्चात हर माह एक हजार डालर अर्थात ७२ हजार रुपये का किराया देना होता है। सोने के लिए रेलगाडी की तरह ऊपर नीचे बर्थ हैं। एक से एक लजीज भोजन भी यहां उपलब्ध है, जो सस्ता नहीं, बेहद महंगा है।
    कोरोना तो २०२० की देन है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जो इससे पहले भी किसी बीमारी से कोसों दूर रहने के लिए सावधानी बरतते रहे हैं। अमेरिका के ही रहनेवाले ६७ वर्षीय शख्स, जिनका नाम डेल लैम्बर्ट है, बीते तीस वर्षों से हर दिन बीस विटामिन की गोलियां खाते हैं। उन्हें बहुत पहले अंदेशा होने लगा था कि कोई खतरनाक वायरस दुनिया को अपनी चपेट में ले सकता है। अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने और बरकरार रखने के लिए और भी कई तरह की एहतियात बरतने वाले डेल कहते हैं कि, अब भी मैं शक्तिशाली घोडे को भी फुर्ती के मामले में मात दे सकता हूं। कोरोना वायरस के संक्रमण की जानकारी मिलते ही डेल ने अपने घर में और भी इतनी सारी दवाएं जमा कर लीं, जो कई वर्ष तक खत्म नहीं होने वाली। डेल की तरह दुनिया के और भी कई अरबपतियों ने अपनी तथा अपने परिवार की सुरक्षा के लिए एक से एक इंतजाम करने में कोई कमी नहीं की। भारत के धनाढ्य भी इस मामले में पीछे नहीं रहे। कइयों ने घने जंगलों, समुद्री द्वीपों, फार्महाउसों, टापुओं, बंदरगाहों को अपना ठिकाना बनाया तो बहुतों ने डेल की राह पकडी। सभी बस यही चाहते थे कि भले ही दुनिया खत्म हो जाए, लेकिन उनके घर-परिवार के किसी भी सदस्य पर कोई आंच न आने पाए। सभी जिन्दादिली के साथ जिन्दा रहें। एक विशाल अपार्टमेंट के फ्लैट में रहने वाली महिला को यह भय सताने लगा कि यदि कहीं पानी की आपूर्ति बंद हो गई तो उसका परिवार तो जिन्दा ही नहीं रह पायेगा। ऐसे में उसने पूरा हिसाब किताब लगाकर डिस्टिल वॉटर के इतने बडे-बडे कैन घर में बुलवा कर रख लिए, जिनका महीनों खत्म होना मुश्किल था।
    जब सारी दुनिया के लोग अपनी जान बचाने की जद्दोजहद में लगे थे। दिन-रात ऊपर वाले से प्रार्थनाएं कर रहे थे कि कुछ भी अशुभ न हो। जिसने भी इस धरती पर जन्म लिया है वह अपनी पूरी उम्र जीकर ही इस दुनिया से विदा हो। तब जगह-जगह से लगातार आत्महत्याओं की खबरें आ रही थीं। यह खुदकुशी करने वाले चेहरे न तो गरीब और फकीर थे और ना ही किसी गंभीर रोग के शिकार। फिर भी इन्होंने तब मौत का दामन थामा, जब सभी उससे येन-केन-प्रकारेण बचना चाहते थे। नागालैंड के पूर्व राज्यपाल अश्वनी कुमार, जिन्हें बेहद महत्वाकांक्षी तथा हिम्मती शख्स के रूप में जाना जाता था। अपनी योग्यता और कर्मठता की बदौलत जो सीबीआई और एसपीजी में प्रमुख पदों पर भी रहे, उन्होंने बदनामी वाला मौत का रास्ता चुन लिया। अश्वनी कुमार किसी तरह की तकलीफ, नाराजगी या डिप्रेशन के शिकार भी नहीं थे। फांसी के फंदे पर लटकने से पहले उन्होंने जो सुसाइड नोट छोडा वह भी बेहद चौंकाने वाला था, 'मैं अपना जीवन समाप्त कर रहा हूं। हर कोई खुश रहे। मेरी आत्मा नई यात्रा पर निकल रही है...।'
    ऐसी ही अंतिम यात्रा पर फिल्मी कलाकार सुशांत राजपूत की रवानगी हो गई और कई महीनों तक उनकी खुदकुशी को हत्या मानने वाले लोग हत्यारों की तलाश करते रहे और जिस-तिस को कटघरे में खडा करते रहे। उसकी प्रेमिका तक को कई दिन सलाखों के पीछे काटने पडे। सुशांत की ही अबूझ पहेली नुमा राह पकडी एक्टर संदीप नाहर ने। सुशांत ने तो कोई सुसाइड नोट नहीं छोडा था, लेकिन संदीप जरूर अपनी आप बीती से दुनिया को अवगत करा गये। देश के विख्यात क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी की जीवनी पर बनी हिट फिल्म 'एम एस धोनी : द अनटोल्ड स्टोरी' ने सुशांत को अभूतपूर्व ख्याति दिलवायी थी। इस फिल्म में उनका अभिनय भी बेमिसाल था। इसी फिल्म में संदीप नाहर ने नायक के दोस्त की बडी सशक्त भूमिका निभाकर दर्शकों का दिल जीता। इसमें दो मत नहीं कि संदीप भी राजपूत की तरह मंजा हुआ अभिनेता था, जिसके लिए खुशहाल जिन्दगी अपनी बाहें फैलाये खडी थी, लेकिन वह ही कायर, अहसान फरामोश निकला। संदीप की शादीशुदा जिन्दगी सही नहीं चल रही थी। पत्नी जब-तब उसे अपमानित करती रहती थी। बात-बात पर लडना-झगडना उसकी आदत थी। दोनों के विचार बिलकुल मेल नहीं खाते थे। जिस खुशी और सुकून के लिए संदीप ने शादी की थी वह तो उसे मिली ही नहीं। उनकी शादी दो साल पहले हुई थी। इन दो सालों में पत्नी पचासों बार उसे धमकी दे चुकी थी कि वह खुदकुशी कर लेगी और उसे पूरी तरह से कसूरवार ठहराने वाला सुसाइड नोट लिख छोडेगी, जिससे वह सारी उम्र जेल में ही स‹डता रहेगा। संदीप की सास अपनी जिद्दी अहंकारी और अपने पति के साथ हमेशा बदसलूकी करने वाली बेटी का ही साथ देती थी। दरअसल सास की दखलअंदाजी और दबाव ने संदीप के समूचे जीवन में ज़हर घोल दिया था। संदीप अपने माता-पिता से बेइन्तहा प्यार करता था। वह उनके लिए बहुत कुछ करना चाहता था। वह अपनी पत्नी को भी दिलोजान से चाहता था। उसे लगता था कि वह अभी नादान है। भोली है। उसकी मां ने उसके दिमाग को घुमा-फिरा दिया है। संदीप को यह भी अच्छी तरह से पता था कि खुदकुशी तो घोर बेवकूफी और कायरता की निशानी है। फिर भी वह कई पन्नों का अंतिम पत्र लिखने के बाद फांसी के फंदे पर झूल गया और हमेशा-हमेशा के लिए इस दुनिया से चलता बना। उसने यह भी याद नहीं रखा कि हर मुसीबत का इलाज है। रिश्ते की अहमियत तब तक है, जब तक वह निभे और जब यह लगने लगे कि अब रिश्ते का बोझ ढोना मुश्किल हो रहा है, तो उससे छुटकारा पाने के लिए कानून बना हुआ है। तलाक लेकर बडे सम्मानजनक तरीके से अलग राह पकडी जा सकती है। नासूर बने रिश्ते के साथ बने रहना अक्लमंदी तो नहीं...।
    महाराष्ट्र में स्थित है शहर अहमदनगर। इसी नगर की कर्जत तहसील के राशिनगांव में एक जाने-माने डॉक्टर ने अपने पूरे परिवार को इंजेक्शन देने के बाद खुद भी फंदे पर लटककर आत्महत्या कर ली। अपनी पत्नी और दोनों बेटों के इस ४६ वर्षीय हत्यारे डॉक्टर ने मृत्युपूर्व सुसाइड नोट में लिखा कि, 'मेरा बेटा कान से सुन नहीं सकता है, जिसकी वजह से आसपास के लोग और रिश्तेदार उसे अपमानित करते रहते हैं। यह हमें मंजूर नहीं। लोगों के गलत बर्ताव और ताने कसने से तंग आकर हमें अपनी जान देने को विवश होना पड रहा है। हम अब बस यही चाहते हैं कि हमारी सारी सम्पत्ति दिव्यांग बच्चों को दान कर दी जाए।ङ्क एक छोटी सी आम परेशानी को सहन नहीं कर पाने वाला यह डॉक्टर एक अच्छा समाजसेवी भी था। १९ फरवरी, २०२१ को इस समाजसेवी डॉक्टर के श्रीराम अस्पताल और निवास, जहां पर इस हृदयविदारक घटना को अंजाम दिया गया, वहां का मंजर जिसने भी देखा उसके रोंगटे ही खडे हो गए।
    एक बार नहीं, पूरे सात बार लोकसभा का चुनाव जीतकर दिखाने वाला शख्स कोई ऐसा-वैसा नेता तो हो नहीं सकता। आज के जमाने में नगरसेवक का चुनाव लडना और उस पर जीतना आसान नहीं। लोगों को जब उनकी मुंबई के एक होटल में फांसी के फंदे पर झूल जाने की खबर लगी तो वे सन्न होकर सोचते रह गये। कोई भी आसानी से यह मानने को तैयार नहीं था कि मोहन डेलकर जैसा धैर्यवान, साहसी जन नेता खुदकुशी कर सकता है। केंद्र शासित प्रदेश दादरा-नगर हवेली में उनका डंका बजता था। इस दबंग सांसद ने दुनिया को अलविदा कहने से पहले पूरे १५ पेज का सुसाइड नोट भी लिखा था, जिसमें गुजरात के कुछ ऐसे नेताओं और अफसरों के नामों का उल्लेख था, जिन्होंने उनका जीना हराम कर रखा था। वे बार-बार उन्हें परेशान करते रहते थे, लेकिन राजनीति में यह कोई नयी बात तो नहीं। वह राजनेता ही क्या, जिसके विरोधी न हों। असली सच क्या था, यह तो कोई भी नहीं बता सकता। जाने वाला कई सवाल छोडकर चला गया, लेकिन यह स्वेच्छा-मरण  जहां अबूझ पहेली है वहीं कायरता की शर्मनाक निशानी भी है। यहां पर किसी भी प्रकार की शिकायत और बहानेबाजी कोई मायने नहीं रखती...।

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